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ढोंग

ढ़ोंग

रबिन एक सुन्दर लड़की थी । उसकी उम्र लगभग 17 — 18 रही होगी पर उसमें अभी भी बचपन , और शरारत बाकी थे । तीन भाई — बहनों में सबसे छोटी थी तो सबकी लाडली भी थी । दो बड़े भाई थे जिनकी षादी हो चुकी थी । जब रबिन छोटी थी , , , तो मम्मी घर का सारा काम करती थी । और जब वह काम करने लायक होने लगी तो बड़े भाई की षादी हो गई । घर का सारा काम भाभी , और , मम्मी ने सम्भाल लिया । , , , , ,

रबिन का मन करता तो कोई काम कर लेती ,, ,, वरना कोई बात नही । रबिन पर किसी भी प्रकार का कोई दबाव न था । कुछ समय बाद मंझले भाई का भी विवाह हो गया तो रबिन को करने को काम ही न बचा । अब उसके और भी मजे हो गये । तड़के देर तक सोती और उठ कर बिस्तर पर ही चाय पी कर कदम जमीन पर रखती । पूरा दिन सोने , खाने और पड़ने के अलावा उसके कोई काम न था । अब रबिन धीरे — धीरे विवाह लायक हो चुकी थी । घर के सभी सदस्य इस जिम्मेदारी को अच्छी तरह और समय पर पूरा करना चाहते थे । इकलौती बेटी के लिए अच्छा लड़का अच्छा परिवार और अच्छा कारोबार सभी कुछ देखना था । घर के सभी सदस्यों की राय थी कि लड़का अपने माँ — बाप का इकलौता पुत्र हो ताकि रबिन को कोई परेशनि न रहे । उन्हे क्या पता था कि कभी — कभी आप जिसे वरदान समझते हैं वो कभी — कभी अभिशप भी साबित हो सकता है । काफी सारे लड़के देखने के बाद रबिन के परिवार वालों को विरेन नाम का एक लड़का पसंद आ गया । अच्छा घर पढ़ा लिखा लड़का सुंदर और सुशील सब बातों से ऊपर लड़का अपनें घर में अकेला था ना कोई भाई ना कोई बहन । विरेन के घर में मम्मी — पापा और दादा जी छोटा सा संक्षिप्त परिवार था । दादी जी का स्वर्ग में वास हो चुका था । घर में केवल चार सदस्य थे। विरेन के परिवार बड़ा सरल स्वभाव का था । रबिन के पापा ने बड़ी धूम — धाम से सगाई कर दी । धीरे — धीरे विवाह का दिन आ पहुंचा । रबिन के पापा और भाईयों ने खूब अच्छा इंतजाम किया । सभी बातों का खयाल रखा गया । बारातियों के खाने का और अच्छे दहेज का ताकि कोई कमी न रहे । रबिन और विरेन का ये संस्कार बड़ी धूम — धाम से सम्पन हुआ । विवाह के कुछ दिनो तक सब अच्छा चलता रहा । नई नवेली दुल्हन को काई इधर से उठ कर उधर बैठने को भी न कहे । लेकिन ऐसा हमेशा न चलने वाला था । धीरे — धीरे विरेन की मम्मी ने रबिन को रसोईघर की रहा दिखनी षुरु कर दी । रबिन को काम करने की आदत कंहा थी अपने घर तो वो मन मर्जी की मालिक थी । उसने थोड़ा — थोड़ा करके बेमन काम करना षुरु किया । इस बार घर जाते ही उसने अपनी मम्मी को सारी समस्या कह सुनायी । मम्मी ने कहा — देखो बेटा वो तुम्हारा घर नही है । वहां तो ये सब काम करने ही पड़ेंगे । और हां ये बात कभी भी अपने पापा के सामने मत कहना तुम तो उनका गुस्सा जानती ही हो । अब रबिन परेशान अब क्या करे । उसके लिए माँ अब दुष्मन दिखाई देने लगी थी । जैसे जैसे सुसराल जाने का समय नजदीक आता रबिन की चिंता बढ़ती जाती । कई बार तो उसने तारीख भी पीछे हटवाई लेकिन ये सब कब तक चलता अब रबिन को फिर से सुसराल आना पड़ा । अब वह हर समय काम से जान छुटाने का उपाय सोचने लगी । विरेन का सारा परिवार रबिन को सरांखों पर रखता था। उसकी सब सुखों का ध्यान रखते थे । ऐसे में रबिन को काम से जान बचाने का उपाय न सुझा । एक दिन सोचा की बिमारी का बहाना बना लेती हूं । डॉक्टर आयेगा तो पेट दर्द को कैसे चैक करेगा । अगर इंजक्सन लगायेगा तो मना कर दूंगी ,, कि हल्का सा दर्द है बस दवाई दे दो । और दवाईंयाँ सबकी नजरें बचा कर फैंक दिया करुंगी । लेकिन अगर मम्मी जी ने दवाई अपने हाथों से खिलाने की जिद की तो ? नही , नही लोचा हो जायेगा । कुछ और ही सोचना पड़ेगा । रबिन का सारा दिन इसी उधेड़ बुन में जाता । एक दिन टीवी पर एक हॉरर प्रोग्राम देखते हुए उसेके मन में विचार आया कि क्यूं ना भूत आने का ढोंग किया जाये । इसमे कोई रिस्क भी नही है । बस फिर क्या था सही मौका देखकर उसने अपनी चाल चली । भूत आये लोगो के बारे सब देखे सुने ढ़ंग उसने अपनाये । पहले पहल उसने धीरे — धीरे अपना रंग जमाया । सबको यकीन दिलाया कि उस पर भूत है सर को तेज — तेज हिलाती ,, सारा बदन थर — थर कंपा देती बाल — वाल बिखेर कर ऐसा विकराल रूप धारण करती की देखने वाले कांप जाते। उसका ढ़ोंग खूब चला । फिर सारा दिन आराम से लेटी रहती । यही तो वो चाहती थी । विरेन के घर वालों ने उसे भक्तों और ओझाओं को दिखना षरु किया । दवायें तों बिमारोंं का ईलाज होती हैं । ठीक को कौन ठीक कर सकता है ? सोते को तो कोई भी जगा दे पर जगे को कैसे जगाये। रबिन को भी दूर दूर तक दिखाया । कई ओझाओं ने तो रबिन को चाटें तक भी मारे जैसा की भूत उतारने में करते हैं पर उसने वे भी सह लिए । बस इसलिए कि काम ना करना पड़े । विरेन के घर वाले सीधे साधे थे दूर दूर तक रबिन को इलाज के लिए ले कर गये लेकिन निरासा ही हाथ लगी । पूरा परिवार बहुत दुखी था । वे किसी भी कीमत पर रबिन को ठीक करना चाहतें थे । रबिन के मायके में भी सब इस बात से चिंतित थे । पर रबिन की मम्मी बात को समझ रही थी लेकिन बेटी की बदनामी के डर से किसी को कुछ ना बताया । एक दिन विरेन के घर एक बिलकुल अंजान अतिथि आया । उसने उनके घर पर रात के लिए आश्र मांगा । विरेन के पापा ने उनका खूब आदर सत्कार किया । आगंतुक ने सबके चेहरों को मुरझाया देखकर पुछा कि क्या बात है ? आप सब इतना परेषान क्यों हैं ? तो विरेन के पापा की आंंखों में अश्रु आ गये और उन्होंने सारा किस्सा कह सुनाया । आगंतुक ने कहा कि यदि आप को कोई ऐतराज ना हो तो मैं एक बार आपकी बहु को देख सकता हूं क्योंकि मैं भी इस बारे में जानता हूं । उन्होंने कहा ठीक है ।

अतिथि को रबिन को देखकर मामला समझते देर ना लगी कि रबिन झूंट बोल रही है ।

लेकिन अतिथि ने होषियारी से काम लिया । पहले उसने रबिन की हालत बहुत ही नाजुक बताई और घर वालों को अपने विष्वास में लिया । और अपने काम में विघन न डालनें का वचन लिया । घर वाले किसी तरह रबिन को ठीक कराना चाहते थे सो सब बातें मान ली । उसने कहा की लोहे की दो छड़ आग में लाल होने तक गर्म करो । उन्होने कर दी । उसने कहा कि आप सब जरा दूर खड़े हों । मैं ये छड़ रबिन के हाथों में रखुंगां रबिन का कुछ नही बिगड़ेगा पर भूत भाग जायेगा । ये सुन कर रबिन के रोंगटें खड़े हो गये । वो मन ही मन कहने लगी — हे भगवान बस आज बचा ले ।

उस आदमी ने सारा जाल बिछाया । कुछ बेमतलब के काम भी किये । जो बस भुमिका जमाने के लिए थे । फिर उसने अपना काम षुरु किया । लेकिन रबिन उसके सामने आते ही कांप गई । अतिथि रबिन के मन को भांप कर घीरे से उससे बोला बेटी क्या तुम कुछ कहना चाहती हो ? जो भी कहना चाहती हो खुल कर कहो । रबिन ने मौके की नजाकत को समझते हुए एक क्षण की बिना देरी किये सारा माजरा बयां कर दिया की वह झूट बोल रही है । उस पर कोई भूत प्रेत नही है । और उसने ये सब काम से बचने के लिए किया था ।

आगंतुक ने कहा क्या तुमने कभी इन परिवार वालों को नही देखा । ये सब तुम्हें कितना प्यार करते हैं । इन सब ने तुम्हारे लिए अपनी क्या हालत कर ली है । अगर इन्हें पता चल जाये कि तुमने इनके साथ कितना बड़ा विष्वासघात किया है तो इन पर क्या बीतेगी ?

रबिन ने कहा — अंकल आज के बाद मैं कभी इन्हे नही सताउंगी बस आज माफ कर दो ।

तो उन्होंने कहा — ठीक है बेटी ।

तब तक लोहे की छडें़ भी ठंड़ी हो चुकीं थीं । फिर उस अतिथि ने बड़ी सावधनी से उन छड़ों को चैक करके रबिन को यकीन दिला कर की वे ठंड़ी हैं उसके हाथ में दे दी । फिर उससे धीरे से चिल्लाने को कहा और बेहोस होने की एक्टिंग करने को कहा और कहा कि जब तुम होस में आओगी तो पूरी तरह से ठीक हो चुकी होगी । रबिन ने ऐसा ही किया ।

जब रबिन को होस आया और उसने कहा की वह अब अच्छा महसूस कर रही है । तो सब घर वाले बड़े खुष हो गये । अगले दिन रबिन ने ही सब के लिए खाना बनाया । जाते वक्त अंजान अतिथि घर वालो को कहा कि रबिन धीरे — धीरे घर का सारा काम करने लगेगी । फिर रबिन को कहा क्ंयू बेटी करोगी ना ? रबिन ने कहा जी अंकल बिलकुल ।

फिर कभी कभी आने का वादा करके वो अतिथि जाने लगा तो घर वालों ने बड़े सम्मान के साथ विदा किया और धन्यवाद भी दिया ।

मदद

राम दौड़ कर कमरे में गया और बहार भी ऐसे ही आया । उसने बहार आते ही मम्मी को आवाज दी — मम्मी ,,,,,,, मम्मी ,,, ,,, ,,,

मम्मी ने कहा — क्या हुआ राम ? क्यों चिल्ला रहे हो ? क्या चहिए ?

राम — मम्मी मेरा पुराना बैग कहां है ? जो मैने कल ही खाली किया था ।

मम्मी ने कहा — लेकिन राम तुम्हे वो बैग क्यों चाहिए ? तुम उसका क्या करोगे ? तुम्हारे पास तो नया बैग आ गया है । जो कल ही तुम्हारे पापा ने तुम्हें लाकर दिया है । उसका क्या हुआ ?

राम — मेरे बैग को कुछ नही हुआ मम्मी ! मेरा बैग तो ठीक है । लेकिन अभी मेरा पुराना बैग भी ठीक स्थिति मे था तो मैने सोचा उसे अपने पडौस के रघु को दे दूं बेचारा रोज स्कूल रोते — रोते जाता है । उसके पास किताबें ले जाने को बस एक गंदी सी पन्नी है । वो भी फटी पड़ी है ।

राम की मम्मी की आँखें सजल हो गई । पता नही राम की दरियादिली देख कर या पड़ौस के बच्चे की व्यथा सुन कर ।

फिर भी उसने पूछा — अगर उसकी मम्मी ने पुराना बैग लेने से मना कर दिया तो ?

राम ने कहा — मैंने पहले ही रघु को पुछने को कह दिया था और उसने पूछ लिया । उसकी मम्मी ने भी हां कह दिया । लाऔ अब जल्दी से दे दो ।

राम की मम्मी ने कमरे के अन्दर से बैग ढूंढ़ कर ला दिया । राम बैग को लगभग छीन कर भागना चाहता था । वो बस एक क्षण में अपने मित्र को बैग देना चाहता था । वो बैग लेकर फिर उसी गति से चला गया जिससे आया था ।

दिल में हो चाहत तो कौन रोक सकता है तुम्हे । । ।

इरादों में हो हिम्मत तो कौन टोक सकता है तुम्हे । । ।

साधनों से नही हौंषलों से होती है मदद । । ।

मन में हो चाहत ,,,, प्रयास हो सतत । । ।

फिर तेरे सामने कोई मुष्किल नही है बड़ी । । ।

बस तू नजरे तो उठा कर देख , , , , ,

हर मुष्किल तेरे सामने नजरे झुकाये है खड़ी । । ।

धन्यवाद। । ।