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कंप्यूटर की कंट्रोल में इंसानी दिमाग

संदर्भः कंप्यूटर बनाम इंसानी मस्तिष्क

प्रस्तुतिः शंभु सुमन

ब्रेन-कंप्यूटर इंटरफेस

कंप्यूटर की कंट्रोल

में इंसानी दिमाग

वह दिन दूर नहीं जब अत्याधुनिक मानव का मस्तिष्क कंप्यूटर के जरिए संचालित होने लगेगा और वह व्यक्ति के विचारों को पढ़ने में सक्षम हो जाएगा। इस तरह से बने दिमाग का रिश्ता किस हद तक हमारा मददगार बनेगा, वैज्ञानिक इसकी संभावनाएं तालाशने में जुटे हैं। जबकि इसका इस्तेमाल सेना में सायबाॅर्ग सोल्जर, चिकित्सा में सर्जरी, टेलीपैथी, विकलांगता के उपचार या परिवहन में करने की योजनाएं बनाई जा रही है। यह जानना काफी रोचक होगा कि मानव द्वारा बनाए गए कंप्यूटर के साथ भविष्य में कैसा संवाद कायम होने वाला है, जिसमें दिमाग सीधे तौर पर कंप्यूटर से संपर्क स्थापित कर लेगा। अर्थात न माउस होगा, न किबोर्ड और न ही कर्सर!! यह सब इलेक्ट्राॅनिक उपकरणों को नियंत्रित करने के नए तरीके के दरवाजे खोल सकता है, तो निःशक्तों के लिए वरदान साबित हो सकता है।

यह किसी साइंस फिल्म या फिक्शन की तरह नहीं, बल्कि हकीकत में बदलने जैसे कुछ प्रयोग और किए जाने वाले प्रदर्शनों के आधार पर कहा जा सकता है कि भविष्य में कार चालाता हुआ व्यक्ति अपनी कार को दाएं-बाएं मुड़ने, आगे बढ़ने या रूकने का आदेश केवल अपनी सोच से ही दे देगा। इसके लिए स्टेयरिंग को हाथ लगाने की जरूरत नहीं पड़ेगी। या फिर सुदूर बैठे किसी रोगी के दिमाग में डाक्टर की महत्वपूर्ण सूचना के संकेत मिल जाएंगे और उसका उपचार असान हो जाएगा। यह भी संभव है कि कोई व्यक्ति बगैर रिमोट का बटन दबाए ही सामने टीवी का चैनल बदलने की सोचे और वह बदल जाए। यह कहें कि हम सिर्फ सोचें और सामने वाला व्यक्ति हमारी मनोभावना को समझ ले कि हम उसके लिए क्या करने वाले हैं। इस संदर्भ में कुछ भविष्यद्रष्टा वैज्ञानिकों का दावा है कि मनुष्य आने वाले कुछ सालों में जब अपने दिमाग को कंप्यूटर पर अपलोड करने में कामयाब हो जाएगा, तब यह संभव हो जाएगा। इस दिशा में वैज्ञानिकों को ब्रेन-कंप्यूटर-इंटरफेस बनाने में सफलता मिल चुकी है।

मस्तिष्क में चिप का प्रत्यारोपण

कंप्यूटर द्वारा दिमाग को पढ़ने की दिशा में किए जा रहे प्रयोगों से मिली अबतक की सफलता से संभव है कि वह हमारे विचार को समझने में सक्षम हो जाए। इसके बड़े पैमाने पर उपयोग के तौर पर अमेरिकी सेना में ‘सायबाॅर्ग सोल्जर’ की योजना बनाई गई है। इस संबंध मंे विकसित की जा रही नई परियोजना के तहत मानव मस्तिष्क में एक खास चिप का प्रत्यारोपण किया जा सकता है। इसके लिए वैज्ञानिक कंप्यूटर का इंसानी दिमाग के साथ सही ढंग से सीधे संवाद कायम करने का तरीका निकालने में जुटे हुए हैं। अमेरिकी सेना की डिफेंस एडवांस रिसर्च प्रोजेक्टस एजेंसी (डीएआरपीए) के वैज्ञानिकों और तकनीशियनों ने इसके लिए प्रत्यारोपित चिप्स विकसित करने संबंधी एक कार्यक्रम शुरू किया है। उनका कहना है कि इस तरह की तंत्रिका प्रत्यारोपण का उद्देश्य कंप्यूटर उपयोग को और तेज करना, सौ फीसदी सक्षम बनाना और विभिन्न इलेक्ट्रानिक उपकरणों के नए क्षेत्र में उपयोग के वैसे तरीके निकालने हंै, जो केवल अपने विचारों के जरिए ही नियंत्रित किए जा सकें।

डीआरपीए के अनुसार यह मस्तिष्क की तंत्रिका कोशिकाओं के द्वारा प्रयोग में आने वाले इलैट्रोकेमिकल लैंग्वेज (वैद्युत रासायनिक भाषा) को इलेक्ट्राॅनिक मशीनों, यानि कंप्यूटर के लिए महत्वपूर्ण डिजिटल बाइनरी नंबर (0 और 1) के संकेतों में बदल देगा। एजेंसी का इस बारे में कहना है कि मस्तिष्क में प्रत्यारोपित किया जाने वाला चिप का आकार छोटे से सिक्के से भी काफी छोटा हो सकता है। हालांकि न्यूरल इंजीनियरिंग सिस्टम डिजाइन प्रोग्राम के प्रबंधक फिलिप अवेल्डा का कहना है कि इस तकनीक का उद्देश्य ब्रेन-कंप्यूटर कम्युनिकशन के मौजूदा प्रयासों में आ रही समस्याओं पर काबू पाना भी है। जब ये उपकरण मस्तिष्क की विद्युतीय गतिविधि का पता लगा सकते हैं, तब इनके इस्तेमालकर्ता को ध्यान केंद्रित करने और विशेष तरह के प्रशिक्षण के दौर से गुजरने की आवश्यकता होती है।

अवेल्डा के अनुसार आज का अच्छा ब्रेन-कंप्यूटर-इंटरफेस सिस्टम दो सुपर कंप्यूटरों के द्वारा एक पुराने 300 ब्राॅड मोडम का इस्तेमाल करते हुए आपस में बातें करने की कोशिश जैसा ही है। कल्पना करें कि यह किस तरह और कितना उपयोगी बन जाएगा जब हम अपने उपकरणों को उन्नत बना लेंगे और वे उपकरण मानव मस्तिष्क और आधुनिक इलेक्ट्रानिक्स के बीच नया चैनल खोलने या आपसी तालमेल बिठाने में सक्षम हो जाएंगे। इसके साथ ही यह परियोजना तंत्रिका संबंधी विकार के लिए नए उपचार की राहें भी बन जाएंगी। इस तरह बनने वाले उपकरणों से अंधे को देखने और बहरे को सुनने की क्षमता विकसित की जा सकती है। यानि कि इस नई तकनीकी की मदद से कंप्यूटर जल्द ही उपयोगकर्ता के दिमाग को उसकी जरूरतों के मुताबिक समझने लगेंगे।

यूं सफल हुआ ब्रन-कंप्यूटर- इंटरफेस

लकवा पीडि़त जन सेउरमन्न वह पहली महिला थीं, जिनके दिमाग में ब्रेन कंप्यूटर इंटरफेस यानि बीसीआई तकनीक का उपयोग किया गया। उनके दिमाग में इस तकनी का उपयोग कर न्यूरान्स के साथ सीधे दो चिप्स प्रत्यारोपित कर दिए गए थे। यह सबसे पहला मानव मस्ष्कि प्रत्यारोपण ब्राउन विश्वविद्यालय के न्यूरो साइंटिस्ट जाॅन डोनोघुए द्वारा 2004 में किया गया था। तब ये चिप्स सीधे कंप्यूटर और इंटरनेट के माध्यम से ब्रेनगेट तकनीक का उपयोग करते हुए मस्तिष्क से जुड़ गए थे। ब्रेनगेट एक ऐसा आविष्कार है, जिसकी सहायता से इंसान अपने विचारों की शक्ति से बिजली के उपकरणों को नियंत्रत कर सकता है। जान सेउरमन्न के मस्तिष्क में ब्रेनगेट चिप प्रत्यारोपण के बाद आए नतीजे से उसकी शिथिल पड़ी भुजा में हरकत आ गई उसने चाॅकलेट का एक टुकड़ा उठाकर मुंह में डाल लिया।

सउरमन्न 40 वर्ष की उम्र में एक बड़ी अनुवांशिक बीमारी से गंसित हो गई थी। उसके हाथ-पांव शिथिल पड़ गए थे। इस स्थिति में उसके द्वारा दस वर्ष तक कठिन जीवन गुजारने के बाद ब्रेनगेट पद्धिति से नया जीवन मिला। उसके बाद चिकित्सा जगत में यह संभावना प्रबल हो गई कि लकवाग्रस्त या अपाहिज व्यक्ति इसके प्रयोग से व्हीलचेयर का नियंत्रण कर सकते हैं। ब्रेन गेट चिप मस्तिष्क के बिद्युत संकेतों को पढ़ता है और उसका विश्लेषण कर दूसरे अंगों प्रेषित कर देता है। यह तकनीक किसी नए सिद्धांत पर नहीं, बल्कि बर्जर की ईईजी या फेट्ज द्वारा किया गया बिजली के मीटर का प्रयोग यानि मस्तिष्क द्वारा बिजली के संकेंतों के उपयोग पर ही है।

चीनी मस्तिष्क कंप्यूटर चिप डार्विन

मानव मस्तिष्क की तंत्रिका तंत्र का अनुकरण कर कंप्यूटर के कार्य को पूरा करने उद्देश्य से चीन के झेजियांग प्रात में वैज्ञानिकों ने मानव मस्तिष्क के जैसा काम करने वाली चिप का निर्माण किया है। हांग्जो डियांजी यनिवर्सिटी और झेजियांग यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों द्वारा मिलकर बनाए गए इस विशेष चिप का नाम ‘डार्विन’ रखा है। वैज्ञानिकों के अनुसार इसमें न्यूरान्स सिनैप्सिस के माध्यम से कंप्यूटर और मानव मस्तिष्क एक दूसरे से जुड़े होते हैं। हांग्जो यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिक मा डी के अनुसार काली सी प्लास्टिक की बनी यह चिप एक सिक्के के 10वें भाग से भी छोटी है, लेकिन इसमें दो हजार से अधिक न्यूराॅन्स और चार हजार सिनेप्सिस समाए हुए हैं। इसके द्वारा कंप्यूटर कम विद्युत ऊर्जा में अधिक काम करने मंे सक्षम हो जाती है। इसके उपयोग के बारे में वैज्ञानिक बताते हैं यह रोबोट्स, हार्डवेयर तंत्र और मस्तिष्क-कंप्यूटर तंत्रों के लिएं उपयोगी होता है। हालांकि इस पर अभी बहुत काम किया जाना बाकी है। वैसे अमेरिका की बहुराष्ट्रीय कंपनी आईबीएम भी अक्टूबर 2013 में ट्रनार्थ नाम की मानव चिप्स बनाने मे सफल रहा है। इसके बाद ही चीन इसी तरह का चिप बनाने की योजना बनाई थी। डार्विन के विकास के साथ चीनी मस्तिष्क प्रेरित कंप्यूटर अनुसंधान के क्षेत्र में चीन अपना महत्वपूर्ण स्थान बनाने की कोशिश में है।

इलेक्ट्रानिक खूनः मानव बनाम मशीन

मानव के मस्तिष्क की संरचना से प्रेरित होकर आईबीएम द्वारा इंसानी दिमाग जैसा कंप्यूटर बनाने के क्रम में वैज्ञानिकों ने जिस द्रव का इस्तेमाल किया है उसे कंप्यूटर का ‘इलेक्ट्रनिक खून’ कहा जा सकता है। इस द्रव के जरिए ही उस दिमाग जैसे कंप्यूटर को ऊर्जा मिलती है और सहजता से संचालित होता है। एक मनुष्य के दिमाग की बहुत छोटी-सी जगह में असाधारण गणना की क्षमता होती है और उसके लिए मात्र 20 वाॅट ऊर्जा की जरूरत पड़ती है। आईबीएम की यही कोशिश रही कि उसके नए कंप्यूटर में भी ऐसी ही क्षमता विकसित की जा सके। इसके लिए वैज्ञानिकों ने कंप्यूटर के नए ‘रिडाॅक्स फ्लो तंत्र’ का इस्तेमाल किया। यह तंत्र एक ऐसी रासायनिक प्रतिक्रिया के तहत कार्य करता है, जिसमें एक बार आॅक्सी करण होन पर उसकी उल्टी प्रतिक्रिया में कमी आती है। इसके जरिए ही कंप्यूटर में इलेक्ट्राॅनिक खून का प्रवाह बनता है और कंप्यूटर को बिजली मिलती है। यानि कि इलेक्ट्राॅनिक खून एक ऐसा द्रव है, जिससे बिजली प्रवाहित होती है।

इस प्रयोग की सफलता को ज्यूरिख में आईबीएम की प्रयोगशाला में डाॅ पैट्रिश और डा. ब्रूनो मिशेल ने अक्टूबर 2013 में एक छोटे माॅडल के तौर पर पेश किया था। उनका कहना है कि 2060 तक एक काफी बड़े आकार वाले पेटाफ्लाॅप कंप्यूटर को डेस्कटाॅप में फिट करने लायक बनाना संभव होगा तो उनकी इच्छा एक शूगर क्यूब के अंदर एक सुपर कंप्यूटर को फिट करने की है। वे कहते हैं- ऐसा तभी संभव है जब हम इलेक्ट्रानिक्स में बदलाव कर लें और दिमाग से प्रेरित हो जाएं।

मानव का मस्तिष्क किसी कंप्यूटर के मुकाबले 10,000 गुन अधिक जटिल और सक्षम है। यह गर्मी और ऊर्जा अत्यंत सूक्ष्म नलिकाओं के जाल और रक्त वहिकाओं से प्राप्त करता है। अब यदि अमेरिका के लोकप्रिय टीवी क्विज शो जियोपार्डी के दो चैंपियनों को हराने वाले दिमागी क्षमता के समतुल्य कंप्यूटर वाॅटसन की बात करें, तो यह जानकारी आधारित कंप्यूटिंग के क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण पड़ाव था। तभी यह समझ लिया गया था कि मशीन में मनुष्य को पीछे छोड़ने की क्षमता भरी जा सकती है। इस प्रतियोगिता के मूल में तकनीकी बात मनाव मस्तिष्क और वाॅटसन के भीतर संचालित ऊर्जा ही थी। प्रेतियोगियों का दिमाग मात्र 20 वाॅट की ऊर्जा से संचालित था, जबकि वाॅटसन को 85,000 वाॅट की ऊर्जा प्रदान की गई थी। यानि कि इस आधार पर वैज्ञानिकों का कहना है कि अगली पीढ़ी के कंप्यूटर चिप के लिए ऊर्जा की दक्षत ही अहम होगी।

ब्रेन फ्लाइट प्रोजेक्ट

विमान उड़ाना कोई आसान काम नहीं होता है और न ही इसके लिए केवल कंट्रोल पैनल संभालना पड़ता है, बल्कि मानसिक तौर पर भी सतर्क और जागरूक बने रहना पड़ता है। जून 2014 में एक फ्लाइट सिमुलेटर में बैठे पायलट को हाथ का इस्तेमाल किए बगैर विमान को अपने रास्ते पर बनाए रखने और संचालन में कामयाबी मिली। यह ब्रेन यूरोपीय संघ की मदद से एक फ्लाइट प्रोजेक्ट के तहत संभव हुआ। इसके लिए पायलट को दिमागी गतिविधियंा मापने वाला इलेक्ट्रोड कैप पहनाया गया था, जिससे विमाने उड़ान के समय उसका दिमाग ही आंख की भूमिका निभाने में सक्षम बन गया था और वह जॉय स्टिक की मदद से विमान का उड़ान पथ तय करने में सफल हुआ। हालांकि इस तकनीक का इस्तेमाल असमर्थ(विकलांग) पायलटों के लिए होने में अभी कई साल लेगेंगे, लेकिन तब यह प्रयोग दिमागी कंट्रोल काफी चैंकाने वाला साबित हुआ, जिसमें यूरोपीय संघ की वित्तीय मदद से हुए ब्रेन फ्लाइट प्रोजेक्ट के पांच दलों को अलग-अलग जिम्मेदारी सौंपी गई थी।

इस बारे में म्यूनिख के फ्लाइट सिस्टम डायनामिक्स इंस्टीट्यूट के समन्वयक टिम फ्रीके का कहना है कि यह तकनीक निश्चित तौर पर कंप्यूटर को ब्रेन-कम्प्यूटर-इंटरफेस के जरिए हमारे विचारों और भावनाओं तक पहुंच को संभावित बनाकर उनपर काम करना और आसान बना सकता है। बर्लिन की तकनीकी यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर थॉर्स्टन सांडर का मानना है कि नए इंटरफेस बनाए जा सकते हैं, जो आवाज की लय, संकेतों और नकल करने की आदतों जैसी इस्तेमाल की बहुत सारी सूचनाओं का उपयोग करते हैं। उनका कहना है कि इस समय हम टाइप कर या कर्सर घुमाकर सीधे कमांड के साथ कम्प्यूटर के साथ कम्युनिकेट करते हैं। कंप्यूटर कुछ सही नहीं होने पर किसी इस्तेमाल करने वाले की झल्लाहट को रिकॉर्ड नहीं करता है, और न ही प्रोग्राम के धीमे चलने पर होने वाली बेचैनी को दर्ज करता है, लेकिन ब्रेन कंप्यूटर इंटरफेस के साथ इस संबंध में कंप्यूटर को सूचनाएं दी जा सकेंगी।

ब्रेन-कंप्यूटर इंटरफेस का परीक्षण सिर्फ हवाई उड़ान के मामले में ही नहीं हुआ है, बल्कि उसका प्रयोग कार ड्राइवरों के दिमाग की गतिविधि मॉनीटर करने के लिए भी किया गया। इस बारे में ब्रिटेन की कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी के न्यूरो साइंस विभाग के एलन ब्लैकवेल कहते हैं, ‘कार निर्माताओं की दिलचस्पी इस बात का पता करने में है कि किस समय ड्राइवर कार चलाते हुए ध्यान एकदम केंद्रित नहीं कर पाता है। कुछ कारों के लिए यह तकनीक बेची जा रही है, जो ड्राइवर को उनींदे होने की स्थिति में चेतावनी देता है।

रोगियों की मददगार

ब्रेन फ्लाइट प्रोजेक्ट की तकनीक का फायदा अस्पतालों में संभव है। इस सिलसिले में ऐसे सिस्टम पर काम किया जा रहा है, जिसमें सर्जन को ऑपरेशन थिएटर में ब्रेन कंप्यूटर इंटरफेस की मदद मिल पाएगी। इसके जरिए एक कंप्यूटर अगर सर्जन की दिमागी हालत का आकलन कर लेगा, तो उसे साथ में काम रहे सहायकों को भी जानकारी दे देगा। इस बारे में सांडर बताते हैं, ‘अगर सर्जन किसी चीज पर ध्यान केंद्रित कर रहा है या कोई जटिल ऑपरेशन कर रहा है, तो इसे एक छोटी लाल बत्ती के जरिए दिखाया जा सकता है, ताकि सहायकों को पता लग जाए कि उस समय कोई सवाल नहीं करना है।’ इस सिस्टम के जरिए मानव दिमाग के बारे में सीधे संवाद या बोले बिना कंप्यूटर को आवश्यक निर्देश दिया जा सकता है।

बहरहाल, दो लाख सालों में मानव मस्तिष्क के क्रमिक विकास का नया रूप क्या रंग दिखएगा और जीवनशैली को कितना सरल-सहज बना पाएगा इसका आकलन हमसभी अपनी बौद्धिकता से लगा सकते हैं, जो हैरत में डालने वाली नहीं, बल्कि विज्ञान की महत्ता को और पुख्ता कर देगा।

प्रस्तुतिः शंभु सुमन

12, जनपथ,

नई दिल्ली-11

मोबाइलः 9871038277

2- feb 2016