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अफसोस

प्रशांत सुभाषचंद्र साळुंके

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Prashant subhashchandra Salunke publication

लेखक : प्रशांत सुभाषचंद्र साळुंके

यह कहानी एक काल्पनिक कहानी है. कहानी को रोमांचक बनाने के लिए लेखक ने अपनी कल्पनाओ का भरपूर इस्तमाल किया है, इसलिये इस कहानीको सिर्फ एक कहानी के रूप में ही पढे. इस कहानी के सभी पात्र काल्पनिक है. इस कहानी का बहुत ही ध्यान से प्रुफ रीडिंग करने के लिए में मेरे भाई अनुपम चतुर्वेदी का तहेदील से शुक्रिया करता हुं

सुचना : इस कहानी में लिए गए सभी पात्र काल्पनिक है. इनका किसीभी जीवित या मृतुक व्यक्तिसे कोई सबंद नहीं है और अगर एसा होता है तो वो महज एक इत्तफाक है

कहानी : अफसोस

प्रीति और मनोहर अपने जीवन से काफी संतुष्ठ थे। दो बेटिया मालती और लता और उसके 10 साल के लंबे इंतजार के बाद और कुछ मेडिकल उपचारो और भगवान से हजारो मीन्नतों के बाद जन्मा उनका प्यारा अभिजीत! बड़े लाड प्यार से उन्होंने अपने बेटे अभिजीत को बड़ा किया था। अच्छी स्कूल मे उसे पढ़ाया पेट काट-काट कर अपनी हैसियत से भी ऊंचे कॉलेज मे अभिजीत को दाखिला दिलवाया। अभिजीत भी होशियार था। पढ़ लिख कर वो एक अच्छी कंपनी मे नौकरी पे लगा। बड़ी बेटी लता की शादी हो गई...मंझली बेटी कोमल की भी शादी एक अच्छे परिवार मे हुई लड़का वोचमेंन था पर सुशील था संस्कारी था बस और क्या चाहिए? अभिजीत को भी अच्छी नौकरी लगते ही, अच्छे रिश्ते भी आने लगे प्रीति और मनोहर ने ऐसे ही एक अच्छे रिश्ते पर मोहर लगाई और फूल सी कोमल आशा को अपनी बहु बनाके लाए। बहु भी सुशील और संस्कारी थी। हंसी खुशी से सब चल रहा था। पर जैसे भगवान को यह मंजूर न था। वैसे लता के पति की एक सड़क दुर्घटना मे अचानक मोत हो गई। अचानक पूरे परिवार की जवाबदारी लता पर आ गई। परीस्थिती विकट थी की तभी एक दिन अचानक मनोहर के हाथो मे एक लेटर आया। मनोहर ने लेटर को पढ़ा उसे विश्वास नही हुआ उन्होंने बार बार लेटर को पढ़ा। तभी अभिजीत उनके सामने आया। उसे देखते ही मनोहर ने पूछा "अभिजीत ये क्या है बेटे? तुम अपना तबादला शहर मे करवानी की तजवीज मे हो? और हमे बताया भी नही?”

अभिजीतने रूखे स्वर मे कहा "क्या बताना पिताजी, आप तो यह छोटासा गाँव छोड़ने के लिए तैयार होते ही नही। शहर मे काफी अच्छा जीवन हम जी सकते है। कलको मेरे बच्चे भी बड़े होंगे उनकी पढ़ाई लिखाई यहाँ रहकर अच्छी नही हो सकेगी.”

प्रीति जो चुपचाप अब तक उनकी बातें सुन रही थी वो बोली "तुम भी तो इसी गाँव मे पढ़े। और बड़े आफिसर बन ही गए न बेटा? क्या खराबी है गाँव में?”

अभिजीतने मुस्कुरा कर कहा " माँ, में अपनी लगन, मेहनत और होशियारी से ऑफिसर बना अगर शहर मे अच्छी पढ़ाई लिखाई मिली होती तो आज मे डॉक्टर या इंजीनर होता। बस पिताजी मेरा तबादले की मंजूरी मुझे मिल गई है। बस अगले हफ्ते ही हम शहर को जा रहे है। कंपनी से मुझे रहने के लिए घर भी मिल गया है।“

मनोहरने हताश स्वर मे कहा "बेटा जैसी तेरी मर्जी। तेरी खुशी में ही हमारी खुशी है। तु कहेगा तो हम भी तेरे साथ....”

बात को काटते अभिजीत ने कहा " पिताजी मैं और आशा ही शहर में जा रहे है। आप लोग शहर के तोर तरीको से अनजान है। आपको वहाँ नही जमेगा।“

मनोहरने हताशा से कहा, “हमे नही जमेगा? की बेटे तुम्हे नही जमेगा? यह अनपढ़ गवार माबाप तेरे शहर मे तेरी कथित शक्सियत को खराब करेंगे यही चिंता है न तुम्हे?”

छोटी बेटी चुपचाप खम्बे की आड में उनकी बातें सुन रही थी बड़ी बेटी अभी अभी अपने ससुराल से लौटी थी। उसने बेग रखते पूछा "क्या हुआ पिताजी?”

मनोहरने हंसकर कहा, " कुछ नही तेरा भाई बड़ा हो गया।“

दो हफ़्तों के बाद अभिजीत और आशा शहर की और निकल पड़े। पीछे प्रीति और मनोहर अपने एकलौते बेटे को आंसू भरी आंखो से देखते रहे। उन्हें यु रोता बिलखता देख बड़ी बेटी ने उन्हें संभालते बोला "माँ चिंता मतकर कोई भी तकलीफ होगी मुझे याद कर लेना मे तुम्हारे सामने होउंगी। तभी छोटी बेटी ने पास आकर कहा और मा मैं भी तो हु तुम्हारी देखभाल के लिए, फिर किस बात का अफसोस है?”

प्रीतिने आंखो मे आये आंसूओ को पोंछते कहा "अफसोस तो रहेगा बेटा, जिंदगी भर रहेगा। इस बात का नही की अभिजीत हमे छोड़कर गया!

बड़ी बेटी ने आश्चर्य से कहा "तो किस बात का अफसोस है माँ?"

प्रीति ने हताशा से कहा, "तुम दोनो अभिजीत से ज्यादा होशियार थी। उससे बेहतर नंबर लाती थी। पर अभिजीत लड़का था उसे बेहतर पढ़ाने लिखाने के लिए हमने तुम्हारी स्कूल जल्दी छुड़वाई, सोचा लड़कीयो को पढ़ा-लिखाके क्या फायदा? आज अगर तुम पढ़ी लिखी होती तो अपने पेरो पे खड़ी होती! लता को अपनी पति के मृत्यु के पश्च्यात इतनी तकलीफ सहन न करनी पड़ती। कोई अच्छी जगह तुम्हे नौकरी मिलती और अपने बच्चो का अच्छेसे खयाल रख सकती। पति गुजरने के बाद जो तकलीफे तुम झेल रही हो वो शायद तुम्हे न सहनी पड़ती। कोमल के भी अच्छे रिश्ते सिर्फ कम पढ़ाई की वजह से टूटे न होते! और पति की आर्थिक हालत अगर नाजुक होती तो भी वह अच्छी नौकरी कर अपने पति को आर्थिकरूप से मददरूप होती!

तुम काबिल हो सकती थी पर हमने तुम्हे मौका नही दिया। और अभिजीत को हमने हर तरह का मौका दिया, पर वो इसके काबिल न था! बेटी-बेटीयो के इस भेदभाव का अफसोस हमे जिंदगीभर रहेगा। और इसका परिणाम भी हमे ही भुगतना पड़ेगा। और आज हम इतनी लाचारी महसूस नही करते, तुम्हारे उपर बोझ नहीं बनते! हमे यकीन है तुम हमारी अच्छे तरीके से देखभाल करती। पर कहते है न जैसी करनी वैसी भरनी!”

लता और कोमलने आँख में आंसू के साथ कहा " माँ हम अब भी तुम्हारा ख्याल रंखेंगे। आधी रोटी खाएंगे पर तुम्हे तकलीफ नही होने देंगे। माँ हम लडकिया है तो क्या हुआ माँ हम तुम्हे किसी भी किस्म की तकलीफ होने नहीं देंगे

अभिजीत की गाड़ी अब दिखाई देनी बंध हुई थी। प्रीति और मनोहर के आंखो मे अब भी आंसू थे शायद अफसोस के हो!