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डायरीके पन्ने

डायरी के पन्ने

–ः लेखक :–

अजय ओझा


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डायरी के पन्ने

१८ सितम्बर, शनिवार

दो मजदूरोंने दूकानका नया बना बोर्ड दूकानके उपरठीकसे लगा दिया । बोर्ड पर चित्रकार ने बडे निराले ढंगसे लिख दियाथा : 'सीताराम प्रोविजन स्टोर '। दस साल हो चूके इस दुकान को,फिर भी ऐसा लगता था जैसे कलकी बात हो । दस साल पहले बाबुजीने दूकान शुरू की थी । वक्त के साथ लडका सब कुछ सीख जायेगाऐसा बाबुजी का भरोसा मैंने टूटने नहीं दिया था । अब तो दूकान कासारा कारोबार मैं ही चलाता हूँ । उम्र की वजह से बाबुजी अब दूकाननहीं आते । धीरे धीरे मैंने दूकान की जगह बढाकर दो शटर खडे करदिये । कारोबार के बढते, दोपहर के बाद के वक्त में एक नौकर भीरख लिया ।

२२ सितम्बर, बुधवार

आज शोभा अमूल दहीं लेने आई थी । पूरी सोसायटी मेंदूध के कईं ग्राहक हैं, पर दहीं के बहोत कम । मैं खास शोभा कीजरूरतों को ध्यान में रखते हुए दहीं के कप लाकर डीपफ्रीज़ में रखदेता।दोपहर के वक्त शहर का सेल्समेन आया । मैंने उसेपियर्स सोप, रामदेव के मसाले और टाटा नमक का ओर्डर लिखाया ।वह इस तरह दो–चार दिनों में आकर ओर्डर ले जाता और माल कीडिलिवरी भी रेग्युलर रूपसे करता रहता ।

२४ सितम्बर, शुक्रवार

आज दूकान में मन नहीं लग रहा था । पिछले दो दिनों सेशोभा कुछ लेने नहीं आई थी । हाँलाकि मुझे उससे क्या ? ग्राहक तोआयें और जायें, हमको तो अपने व्यापार से मतलब ।

दोपहर के बाद दूकान की कुछ सफाई करने में मनलगाया । मोमबत्तियों के बोक्स, टूथपेस्ट, विभिन्न साबु, फरसाणकी पेटियाँ, बेकरी आइटम्स, कोस्मेटिक्स आदि बिखरी चीजों कोंठीक जगह पर रख दीं । दूकान में नया काउन्टर बनाऊँगा तब सर्दी,सरदर्द और बुखार की साधारण दवाईयाँ रखने एक खास डरुोअर जरुरबनवाऊँगा । अलग कोर्नर हो तो कोम्बीफ्लेम, स्टोपेक, क्रोसिन,कालपोल जैसी दवाईयाँ ठीक से रखीं जा सकतीं है ।

२७ सितम्बर, सोमवार

कईं दिनों बाद आज शोभा आई । क्रेक क्रीम और विकोटरमरिक तो मैं हमेशा रखता हूँ, पर शोभा को फेर एण्ड लवली चाहिएथी, वो भी थी तो मैंने उसे दे दी । मेरा पूरा दिन अच्छा बीता ।

२८ सितम्बर, मंगलवार

सुखिया शोभा के घर के पास ही रहता था । वह मेरीदूकान का नौकर था । दोपहर बाद काम पे आता । उसने आज आतेही खबर दी कि शोभा को दो–एक दिन में लडकेवाले देखने आनेवालेहैं । खाली पेट ब्रुफेन की गोली खाने से जो कमजोरी आती है, वोमैंने ईस खबर के सुनते ही अनुभव की । सुखिया हर वक्त मेरे भावोंको देखता रहता, सो मैं तुरंत ही स्वस्थ दिखने की कोशिश करनेलगा । उसकी बात झूठ समझकर मनसे निकाल दी ।

१ अक्तुबर, शुक्रवार

चल रहे नवरात्रि के दिनों में काम का बोज बढ़ गया । इसवजह से मैंने सुखिया को फूलटाइम रख लिया । वह अब पूरा दिनकाम पर आने लगा । मैंने उसका पगार भी बढा दिया ।

२ अक्तुबर, शनिवार

आज छुट्टी का दिन और कल दशहरा होने के कारण आजके दिन दूकान में काफी ग्राहक आये । सुबह जब थोडी भीड़ थी, तबशोभा ने आकर कुछ चीजों का लिस्ट मुझे थमा दिया । खास यादनहीं, पर सुखिया जब उसके सामान का पेकींग कर रहा था तब उनचीजों में मेहंदी के कोन, नेइल पोलिश, विभिन्न बिन्दीयाँ, आदि केसाथ एक गिफ्टपेक भी था । उस गिफ्टपेक में क्या था ये मैंने सुखियासे पूछा नहीं । शाम को शोभा अपना सामान लेने आईं तब उसनेचोली–दामन पहना था । वह बहोत खूबसूरत लगती थीं । मैं उसकेसाथ बात करने लगता तो सुखिया मुझे घूरने लगता । तो मैने जरासामुस्कुराकर उसे सामान थमा दिया । उस वक्त हुए ऊँगलियों केस्पर्श को मैं यहाँ व्यापारी भाषा में नहीं लिख सकता ।दूकान बंद करते समय सुखिया ने बताया कि कल शायदशोभा की सगाई होनेवाली है । मैने उसकी बात को सुनी–अनसुनीकर दी । पर जाने–अनजाने वो मेरी नींद के गद्‌दे में एक चिंगारीछोडता गया ।

६ अक्तुबर, रविवार

आज रविवार, सो दोपहर बाद दूकान बंद । बिना वजहमुझे रह रहकर चोली–दामन पहने शोभा नजर आती रही । सवेरे सवेरेही शोभा का छोटा भाई आकर श्रीफल, साकरपडा, अबील–गुलाल,नाडाछडी और कपूरगोटी ले गया । उसके जाने के बाद मैंने सुखियाकी ओर देखा, वह मानो जवाब देने मेरी इस मायूस नजर का जैसेईंतजार कर रहा था, तुरंत ही बोला, 'मैंने कहा था ना ? आज शोभाकी सगाई है ।''तो हमें क्या लेना–देना ?' मेरे मुँह से नीकल पडा ।सुखिया पहले तो सहम गया, फिर मानो मन में हँसने लगा । पूजा कासामान तो सत्यनारायण की कथा में भी चाहिए; मैंने मनकोसमझाया । एक माणिकचंद गुटका का पाउच तोडा और खाकर दोपहरसे पहले ही दूकान बंद कर दी ।

११ अक्तुबर, सोमवार

आज सेल्समेन आया था । दीपावली त्यौहारों को ध्यानमें रखते हुए मठीया से लेकर लक्ष्मीजी के स्टीकर्स तक की सब चीजेंमैंने मँगवा लीं ।

२७ अक्तुबर, बुधवार

उत्सवो की भरमार गुजरने से फूरसत ही न मिली । एकदोबार शोभा आई थी । हाँलाकि अब उसका आना बहोत कम हो रहाथा । उसके बदन पर कुछ नये गहने दिखने लगे । दूकान के कामकाजमें सोचने का भी वक्त नहीं मिलता ।

१५ नवम्बर, सोमवार

आज 'बंध' का ऐलान था । मैंने सुखिया के साथ आधाशटर गिराकर दूकान की सफाई शुरू की । मैं स्टूल पर चढकर अनाजके डिब्बे पर लगीं धूल साफ कर रहा था कि मुँग से भरा एक डिब्बानीचे चावल के खुले बारदान पर धडाम से गिरा । मुझे जरा चोट लगीतो डेटोल लगाकर बैठ गया ।

तब अचानक मैंने सुखिया से पूछा, 'तूने बताया था किशोभा की सगाई हो गई, तो अब शादी भी होगी । कब है शादी ?'सुखिया जवाब देने के मूड़ में नहीं लग रहा था, फिर भीबोला, 'शादी तो सभी की होती है, शोभा की शादी भी कल है ।कल बारात आयेगी । मुझे तो न्यौता भी मिला है । मैंने सोचा आपकोमालुम होगा । और फिर शोभा की शादी में हमें क्या लेना–देना ?'आखरी शब्दों को वह जान–बूझकर व्यंग्य में नुकीले ढंग सेबोला । डेटोल की पीडा बढ़ गई ।

चावल के बारदान में बिखरे मुँग को छाँट रहे सुखिया कोमैंने कहा, ' रहने दे, अब ये छँटनेवाले नहीं हैं ।'वैसे देखा जाए तो सुखिया की बात भी सही थी । शोभाकी शादी हो तो हमें क्या लेना–देना ? ब्याहनेयोग्य लडकी होती हैतो उसका ब्याह तो होना ही है । फिर ?आधा शटर खुला देख सेल्समेन अंदर आया । मैंने उसेकहा, 'कछुआ अगरबत्ती, फिनाइल लिक्वीड बोटल, और अनाज मेंरखने की पारद गोलियाँ भेजो ।'

सुनते ही सुखिया मेरी ओर देखकर कुछ सोचने लगा । मैंसमझ गया, तुरन्त हँसकर बोला, 'घबरा मत, बेचने के लिए मँगवारहा हूँ, खाने के लिए नहीं ।'

१९ अक्तुबर, गुरुवार

पूरे एक साल बाद आज शोभा फिर दिखाई दी । आज वोदूकान पर आई थी । बिलकुल वैसी ही थी, शायद और खूबसूरत बनगई थी । बच्चों के गले में पहनने का एक लोकेट और जोन्सन एन्डजोन्सन का बेबी पाउडर ले गई ।

२६ अक्तुबर, बुधवार

दरमियान गुजरे लंबे समय के इस दौर में बाबुजी कादेहांत हो गया । सुखिया की भी अब तो शादी हो चुकी है । शोभा अबनहीं आती । लेकिन और कईं शोभा–एँ, कविता–एँ और मीना–एँआती–जाती रहती हैं । पर हमें क्या लेना–देना ? नया काउन्टर आचुका है ।

दूकान आज भी चलती है ़ ़ ़ ़ ़ ़ ़ ़

चलती ही रहती है ़ ़ ़ ़ ़ ़ ़ ़

बिलकुल वैसी ही ़ ़ ़ ़ ़ ़ ़ ़ ़