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कौए का घोसला

कौए का घोंसला

–ः लेखक :–

अजय ओझा


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कौए का घोंसला

'पापा, आज उस अंडे में से कौए के छोटे छोटे बच्चेनिकले । कुछ तो उडना भी सीखने लगे है । चलिए मेरे साथ, मैंआपको दिखाती हूँ ।' छत की सीढियाँ उतरते हुए सोनु एक ही सांसमें बडे उत्साह से बोली । मैं आँगन में झुले को स्थिर रखकर बैठा था ।छत की एक ओर से निकलती हुई पेड़ की घनी शाखाओंके बीच कौए ने अपना घोंसला बनाया था । पन्द्रह दिन पहले जब सोनुयहाँ आई तब शायद कौए ने अपना घोंसला पूरा बना लिया था।

'पापा, ये कौए घोसलें क्युं बनाते हैं?'

'जैसे हम घर बनाते हैं, वैसे। तेरी समझ में सब आजायेगा, जब तुम बज्ञ्ी हो जाओगी।' मैं उसे समझाता।

सोनु इस साल पाँचवीं कक्षा में जायेगी। वो हर सालपन्द्रह दिन के लिए यहाँ मेरे पास रहने आ सकती थी। उसके आने केदूसरे ही दिन दौज्ञ्ती हुई मेरे पास आके बोली, 'पापा, जलदीचलिए, कौए नेअंडेदिये हैं, जल्दी देखने चलिए।'

उसे घोंसले और कौए में तो दिलचस्पी थी ही, अब अंडेउसका नया आकर्षण केन्द्र बन गये। मैं उसके साथ अंडे देखने छत परगया। 'सोनु बेटे, तुम्हारी बात सही है, कौए ने घोंसले में अंडे रखेहैं। उससे दूर रहेना।' मैंने हसते हुए बताया। दिन में कई बार वह छतपर जाकर घोंसले को देख आती। अंडे का बारीक निरीक्षण करती।

सोनु की दिलचस्पी को देखकर मैं खुश हो उठता।पूरे साल में बस पंन्द्रह दिन के लिए ही सोनु यहाँ आपाती थी, इसलिए मैं उसके लिए अपनी छुट्टियाँ बचाके रखता। जबवह आती तो मैं उसीके साथ छुट्टियाँ बिताता। मैं उसे रोज़ घूमने लेजाता। इस पंन्द्रह दिन के दौरान उसका जन्मदिन न होनेके बावजूदकौए का घोंसलाभी मैं केक लाता। छत पर रंगीन गुब्बारे और रीबन लगाता। सोनु केककाटती और हम 'हेपी बर्थ–डे' मनाते । मैं इस बात का पूरा खयालरखता कि किसी बात पर उसका दिल छोटा ना हो ।

वह कौतुहल से भरे सवाल मुझे पूछती रहती,'पापा, अंडे कौन सेता है ?'

'कौए की बीवी ़ ़ ।' मैं जवाब देता हूँ ।

'तो फिर कौआ क्या करता है ?'

'बच्चे होने के बाद वह उनके लिए दाने लाता है ।'

'घोंसला कौन बनाता है ? कौआ या उसकी बीवी ?'

'दोनों ़ ़ ़ साथ मिलकर घोंसला बनाते हैं ।'

'घोंसला न हो तो पापा, अंडे का क्या होता फिर ?'

मैं उसके सामने देखता रहता । उसकी बातों में कभीकभी अपने अतीत में खो जाता । फिर मेरे दुःखों का साया सोनु को नछूए इस बात का मैं खयाल रखता । ये घर भी कभी खुशियों सेछलकता था । उस कौए से भी अधिक मशक्क्त से मैंने अपना घरबनाया था । आज वो खुशियाँ नहीं हैं । 'मकान' है पर वो 'घर' नहींहै । बचे है सिर्फ किश्तें और ब्याज । सबकुछ कहाँ, कब और किसतरह घोंसले के तिनकों की तरह बिखर गया इसका सोनु को क्याअंदाजा हो सकता है ?

'कहो ना पापा,बिना घोंसले के बच्चों का क्या होता ?''कुत्ते खा जाते ़ ़ ।' सोनु की समझ में न आ पाया किमैंने गुस्से में आकर क्युं जवाब दिया । कभी–कभी दिल पर अंकुशबनाए रखना कितना मुश्किल हो जाता है ।

दूसरे दिन सोनु आँगन में खेलती थी । मैं झूले पर बैठउसके लिए गुब्बारे में हवा भरता था । पेड़ के नीचे खेल रही सोनुअचानक रोते हुए चीखने लगी, 'पापा ़ ़ , यहाँ ये क्या है ? ़ ़ ये तोअंडे ़ ़ ' मैं दौडा, जाकर देखा तो अंडे नीचे गिरकर टूट गये थे । मैनेकहा, 'हां बेटे, अंडे हैं, टूट चूके हैं अब ।' हम दोनों छत पर गये ।

वहाँ देखा तो घोंसला बिलकुल खाली । एक भी अंडा नहीं बचा था ।सब टूट गये ।

पेड़ पर एक कोयल चहक रही थी ।

सोनु उदास होकर बोली,'अंडे किसने नीचे गिरा दिये ?'मैंने समझाने की कोशिश की, 'तेज़ हवा के कारण अंडे गिरे होंगे ।'

उस दिन हमने जो केक ला रखी थी वो बिना कटे ही रहेगई । सोनु को चैन नहीं था इसलिए हमने जन्मदिन मनाया नहीं । मैंउसे बाहर घूमने ले गया । फिर भी दिनभर वो उदास ही रही । अंडेटूटने से मुझे कोई परेशानी नहीं थी, लेकिन सोनु बहोत दुःखी हुई,इस बात से मैं काफी परेशान हो गया ।

अगली सुबह छत से दौडकर सोनु मेरे पास आई, 'पापा,जलदी चलिए ।'

'क्या है ? क्या हुआ ?' मैंने पूछा ।

'घोंसले में कौए की बीवी ने नये अंडे रखे हैं । चलिएजल्दी, मैं आपको दिखाती हूँ ।' उसके स्पष्ट उच्चारणों में अदम्यउत्साह छलक रहा था ।

मुझे जबरदस्ती खींचकर छत पर ले गई । घोंसले में वाकईनये अंडे थे । अंडो में से होनेवाले बच्चों की माँ भी अपने पंख फैलाकरवहाँ बैठी थी, मनो वह अंडों की रखवाली कर रही थी। यह देख सोनुआनंदित हो उठी, सो मैं भी खुश हुआ । उस दिन हमने नये सिरे सेऔर अधिक आनंद से केक काटकर सोनु का और उन अंडों का भी'हेपी बर्थ डे' मनाया ।

फिर तो क्या था, रोज हम छत पर जाते । कौआ अपनीबीवी के साथ घोंसले में ना हो तो मैं और ज्यादातर सोनु ही घोंसलेका और अंडों का खयाल रखते । अधिक से अधिक समय हम छत परही बिताते ।

दिन बितते चले । पन्द्रह दिन तो यूं ही समाप्त हो चले ।आज सोनु के वापस जाने का दिन भी आ गया । सोनु को भी पता थाकि आज उसे जाना है । लेकिन उसे कौए के बच्चे को देखना था ।

कल भी उसने फिर पूछा था, 'पापा, अंडों में से बच्चे कब निकलेंगे ?मुझे देखने हैं ।'

़ ़ आखिर उसके ईंतजार का अंत भी हुआ । मैं स्थिर झूलेपर बैठा था कि सोनु दौडकर आई ओर बोली, 'अंडों में से बच्चेनिकले ़ ़ , कुछ उडते भी है ़ ़ , चलिए दिखाऊँ ।'

' ़ ़ चलिए ना पापा, कब से बुलाती हूँ ? ़ ़ क्या सोचतेहै ? पापा, चलिए ना ़ ़ , कौए के छोटे–छोटे बच्चे देखने ़ ़ ।'

वह मेरा हाथ झंकोरती हुई मानो गिडगिडाने लगी थी । मैंझटके से खडा हो गया । वह मेरा हाथ पकडकर त्वरित गति से छत परमानो खींचती हुई ले गई । बच्चे को देखकर सोनु आनंद से कूदनेलगी । मैं बेहद खुश हुआ ।

घोंसले में रूपेरी पंख फडफडाते बच्चे अपनी छोटी–सीचोंच को खोलते–बंद करते थे । उनकी निर्दोष क्रीडाएँ देखकर मैं तोखो गया । उन्हें देखने में सोनु लीन हो गई ।

'क्या खूबसूरत है, नहीं पापा ?' वह बोली, 'लेकिनपापा, उसका काला रंग क्युं कौए जैसा नहीं है ?'

'क्यों कि ये कौए के बच्चे नहीं है ।' मैंने कहा ।'तो ़ ़ फिर ़ ़ ?' सोनु विस्मय अनुभव करने लगी ।

'ये कोयल के बच्चे हैं ।' मैंने सोचा, अब सोनु को बतादेने में कोई हर्ज नहीं ।

सोनु सोच में पड़ गई, मानो मेरा उत्तर उसके कानों मेंहौले–हौले उतर रहा था । फिर बोली, 'ऐसा ़ ़ ? एैसा कैसे होसकता है, पापा ?'

कौए के अंडे तो उस दिन ही कोयल ने धक्का देकर नीचेगिरा दिये थे और दूसरे ही दिन अपने अंडे वहाँ रख दिये थे । कौए कोऐसी किसी बात का पता नहीं होता, सो वह खुद के ही अंडे समझकरउन्हें भी सेता है और खयाल भी रखता है । फिर कोयल के बच्चेनिकलते ही उड़ जाते है ।' मैंने पूरी सच्चाई सोनु के पास बयान करदी ।

'तो पापा, कोयल घोंसला नहीं बनाती ?' सोनु केसवाल और गहरे होते जा रहे थे । उसका कौतुहल अभी खत्म नहींहुआ था ।

'नहीं, कोयल आलसी, कामचोर, स्वार्थी व बेपरवाहोती है ।' न जाने क्युं मेरी आवाज बैठती जा रही थी, ' ़ ़ पर येसब तुम्हें बाद में जब आगे पढाई करोगी तब सब कुछ समझ में आजायेगा । ़ ़ अब नीचे उतरो, तुम्हारे जाने का समय हो रहा है ।'

मेरे उत्तर से सोनु को संतुष्टि हुई या नहीं ये मैं नहीं जानसका । वह अब तक कोयल के बच्चे को देख रही थी । उसे अब भीकुछ पूछना था पर न पूछ सकी ।

बाहर नीचे से कार का होर्न सुनाई दिया । सुनते ही सोनुबोल उठी, 'चलिए पापा, अब नीचे, ़ ़ मम्मी मुझे लेने आ गई ।'

बच्चों समेत घोंसले को छत पर छोडकर हम नीचे उतरे ।दरवाजे पर कार खडी थी । सोनु का सामान लेकर मैं उसे कार तकछोडने गया । वह कार में बैठ गई । कार स्टार्ट हुई । मैने अपनाबोझिल हाथ उपर किया, सोनु गई ़ ।़ ़ कानूनन हुए फैसले और समझौते के मुताबिक अब अगले साल फिर एक बार सोनु इस घोंसले में रहने जरूर आयेगी ़ ़ ,

़ ़ पन्द्रह दिन के लिए ़ ़ ।