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पिया रे...

पिया रे....

चलचित्र कथानक-१

रांचलपुर गाँवमें आज उल्लास और आनन्द का माहोल छाया हुआ था, क्योंकि पुरे गाँवको आज गाँवके जमीनदार "सुरमलजी" के यहाँ सादीमें जाना था। सुरमलजी की एकलौटी बेटी "रूपा" की आज सादी थी जो सुरमलजी काफी धामधुमसे करने वाले थे। पुरे गाँवको सुरमलजी के यहाँ सादीमें आमंत्रित किया गया था, पर गाँव के एक घर को उन्होंने न्यौता नहीं दिया और वो घर था गाँव के जमीनदार "शोख़िलाल" का। पुरानी दुश्मनी के कारन सुरमलजीने जानबुज कर शोख़िलालको आमंत्रित नहीं किया था।

सुरमलजी के आँगनमें मंडप खड़ा किया गया। पूरा मंडप फुलोसे सजाया हुआ था। सर्दियोंका मौसम चल रहा था, दोपहर के बारह बजे हुए थे फिरभी सूरज की गर्मीको चिरती हुई हवा चारो तरफ ठंड फैला रही थी। गाँवके लोगोका आना सुरु हो गया था, दावत जोरो से चल रही थी, बारात आ चुकी थी, पंडित कन्या के आगमन की राह देख रहे थे। सुरमलजी अपनी बेटी रूपा को लेकर घर से मंडप की और प्रस्थान कर रहे थे। दुल्हन बनी रूपा खूबसूरत दिख रही थी, उसने लालरंग की चुनर पहनी हुई थी, महेंदी और लाल कंगन उसके कोमल और गोरे हाथोमे जच रहे थे। माथे की बिंदी, नाक की नथुनी, कानो के जुमखे, पैरो में घुंघरू पहने दुल्हन बनी रूपा के सर पर पलभर में ही सिंदूर लग गया। रूपा पराई हो चुकी थी।

डोली में बैठी रूपा अब दूसरे गाँव, दूसरे लोगो के बिच, दूसरी बस्ती में अपना नया परिवार बसाने जा रही थी। सुरमलजी की आँखों में आंसू थे, दिल पे पत्थर रख उन्होंने अपनी एकलौती बेटी को बिदा किया। रूपा के साथ साथ पूरा गाँव रो रहा था। रूपा की सादी, बिदाई की रस्म दूर से कोई देख रहा था, वो था "रामु", जो बिना न्योतेके रूपा को एक नजर देखने आया था। रामु की ख़ुशी, रामु की जिंदगी इस वक़्त किसी और के हाथोमें जा रही थी और रामु कुछ कर नहीं सका। रामु, रूपा को दिलोजान से प्रेम करता था और रूपा की ख़ुशी में ही खुदकी ख़ुशी समझता था।

ढलती हुई संध्याके दौरान पीपल के पेड़ के निचे बैठा रामु, उदास आँखों से आसमान की और देख रहा था, उसकी आँखे आसमान के सामने स्थिर होने लगी। धीरे धीरे आसमान उसकी आँखोसे दूर होता जा रहा था और वो अपने भूतकाल में खोने लगा।

चलचित्र कथानक-२

गाँव रांचलपुर के दो "शाहूकार" जो पैसो के बदले ज़मीन गिरवी रखते थे, धीरे धीरे शाहूकार में से जमीनदार बन बैठे थे। जिसमे एक "रामु" के पापा "शोख़िलाल" और दूसरे "रूपा" के पापा "सुरमलजी" थे। दोनों के पास पैसो की कोई कमी नहीं थी। दोनों का धंधा भी एक ही था, जिससे अच्छि खासी कमाई हो जाती थी, साथमे पुश्तो की मिलकतो का ढेर भी। एकदूसरे में जो दुश्मनी थी वो सुरुआत से तो नहीं पर एकदूसरे की भूल के कारन हुई थी।

वैसे रांचलपुर कोई बड़ा गाँव नहीं था। गाँव में सिर्फ तिन पक्के मकान थे और बाकि कच्चे मिट्टी और गोबर से लेपकर बनाए हुए जोपड़े थे। गाँव के प्रवेशद्वार से सुरुआत में ही पहला घर गाँव के मुखिया(सरपंच) "दलजीभाई" का था, सीमेंट कांक्रीट से बना पूरा पक्का मकान। दलजीभाई के घर के बाद दो कच्चे जोपड़े और उसके बगलमें शोख़िलाल का दो माले का पक्का मकान था। मकान के आँगन में बडा अहाता (बाडा) किया हुआ था, जिसमे तुलसी के साथ साथ गुलाब और मोगरे के पौधे लगाए हुए थे। आँगनमें दरवाजे के बगलमें एक बड़ा सा झुला था जिसपर बैठे बैठे शोख़िलाल हुक्का फूँक रहे थे, वही गाँव के मुख्या आ पहुँचे। गाँव के मुख्या को देख शोख़िलाल......

अरे "दलजी भाई" आइए आइए, साम के वक़्त कहा को घूमने निकले?

"बस, टहलने निकला हु, गाँव का मुख्या जो बना हु!, ईसी बहाने थोडा व्ययाम भी हो जाएगा"- दलजी भाई धीमी सांसो से मुस्कुराते हुए बोले।

"अरे तो मुझे भी बुला लेना चाहिए ना!, मैं भी तो घरमें युही बैठे बैठे 'रामु' की माँ को परेशान करता रहता हूं"- शोख़िलाल ने थोड़े रंगीन मिजाज में दलजी भाई को कहा और दोनों मुस्कुराते हुए झुले झुलने लगे।

  • चलचित्र कथानक-३
  • शोख़िलाल अपनी पत्नी को पुकारते हुए, "अरे ओ रामुकी माँ, मुख्या आए है कुछ चाय पानी का बंदोबस्त करो।"
  • दोनों (शोख़िलाल और दलजी भाई) अपनी बातो में व्यस्त हो जाते है।
  • "हा, तो दलजीभाई क्या खबर है?"_शोख़िलाल ने सुरुआत की।
  • "वो 'रामजी पटेल' को तो आप पहचानते ही होंगे?"_दलजीभाई ने शोख़िलाल को पूछा।
  • "हा, हा, क्यों नहीं, बिलकुल, अच्छे से!"_शोख़िलाल ने प्रत्युत्तर दिया।
  • "हा तो उनकी जमीन का एक टुकड़ा जो आपके पास गिरवी है वो सुरमलजी ने रामजी पटेल से खरीद लिया है, कल आप जमीन के कागजात लेकर घर आ जाना, वे दोनों (सुरमलजी और रामजी पटेल) भी मेरे घर ही आएँगे। वही आपकी जो रकम निकलती है वो रामजी पटेल आपको चूका देंगे और आप उन्हें उनकी जमीन के कागज़ात मेरी मौजूदगी में लौटा देना, ताकि रामजी अपनी जमीन सुरमलजी को बेच सके।"
  • शोख़िलाल को खूब गुस्सा आया, पर मुख्या के सामने चुप रहे, मुख्या की हा में हा मिलाते हुए उन्होंने चाय की चुस्की लागई।
  • "चलिए शोख़िलाल अब मैं निकलता हु, कल मिलते है।"_चाय पीकर दलजी भाई अपने घर की और रवाना हुए।
  • दलजीभाई तो रवाना हो गए पर, शोख़िलाल के दिमाग में सुरमलजी के खिलाफ ज़हर गोलते गए। और तभी से शोख़िलाल की और सुरमलजी की दुश्मनी की सुरुआत हो गई, शोख़िलाल की एक कमाई बंद हो रही थी और सुरमलजी एक और नई जमीन के मालिक बन चुके थे, जो शोख़िलाल बर्दास्त नहीं कर सके।
  • चलचित्र कथानक-४
  • सुरमलजी के घर का आँगन भी शोख़िलाल के आँगन की तरह पूरा कम्पाउंड किया हुआ था जिसमे रोजाना खाने की सब्जियां जैसी की भिन्डी, टमाटर, बैंगन, और एक बड़ा सीताफल का पैड लगा हुआ था। झुले की जगह कम्पाउंड के चारो और लकड़े की मेज़ लगाई रखी थी जिसपर रोज साम सुरमलजी बैठ कुदरती सौंदर्य का मजा लिया करते थे। घर में कुल मिलाकर पाँच सदस्य रहते थे, सुरमलजी, उनकी पत्नी हीराबाई, उनकी बेटी रूपा और दो नौकर।
  • "रूपा, अरे ओ रूपा"_'कहा चली गई ये लड़की भी?, सुरमलजी की पत्नी "हीराबाई" रूपा को इधर उधर ढूँढ़ते हुए जोरों से चिल्ला रही थी, उतने में सुरमलजी आ पहुचे।'
  • "क्या होगया रूपा की माँ, क्यों इतनी जोरशोर से चिल्ला रही हो?"
  • "अरे ये रूपा अभी इधर ही घूम रही थी, पता नहीं कहाँ चली गई!"_ हीराबाई ने जवाब दिया।
  • "यही कही होगी, आ जाएगी, काम क्या है?"_सुरमलजी ने निश्चिंत होते हुए जवाब दिया।
  • "पूरा गाँव ढूंढलू फिरभी नहीं मिलेगी, आपको बतादु की यह सब आपके लाड़ प्यार का ही नतीजा है, लड़की को इतनी छूट अच्छी नहीं है।"_ हीराबाई थोड़े कड़क मिज़ाज में सुरमलजी पर मीठा गुस्सा जताते हुए.......
  • "अरे रूपा की माँ, अपनी रूपा तो अभी नादान है, उसकी तो अभी हँसने खेलने की उम्र है, खामखा फ़िक्र करती फिरती हो तुम!"
  • "आ हा हा हा......, नादान है?, १७साल की हो चुकी है और तुम कह रहे हो नादान है, कल चलकर सादी की बात आएगी, लड़की ससुराल जाएगी और वहा घर के कामकाज ठीक से ना कर पाई तो ससुराल वाले क्या कहेंगे?, ऊँगली तो मुझपर ही उठेगी ना!"
  • सुरमलजी बिंदास्त मिज़ाज में........, "रूपा की माँ, करो जैसा तुम्हे ठीक लगे, में चला अंदर रूम में, थोडा आराम कर लेता हु।"