हवेली

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जंगल के बीचोंबीच एक पुरानी हवेली, जहाँ रात की स्तब्धता में कुछ चीख- पुकार सुनाई देती है। हवाओं की सनसनाती आवाजें उस हवेली से गुजरते हुए कुछ राज़ की बातें बयान करना चाहती हैं, लेकिन किसी अनजान शक्ति के दबाव में आकर उनकी आवाजें जैसे गले में ही दबकर रह जाती हैं। उस हवेली में छिपी कई राज़ की बातें उन मिट्टी, पत्थरों में दफन होकर रह गईं हैं। रात के अंधेरे में हवाओं के सनसनाहट के साथ घुँघरू की झंकार उस निस्तब्ध हवेली में गूँज उठती है। उस हवेली की लंबी दीवारों के पीछे कुछ अनचाही और अनसुनी सच्चाइयाँ, समय के साथ दफन हैं। जिनकी छटपटाहट उन सारी बातों को चीख-चीखकर कहने की कोशिश करतीं हैं। उस हवेली में गुज़रा हुआ कल, रात के अंधेरे में जागरुक हो उठता है। सालों पहले उस हवेली के सुख-दुख की भागी बन सामने खड़ा वह बरगद, आज भी मिट्टी में पैर फैलाए उस इतिहास का साक्षी बन खड़ा है। उस वृक्ष से बिखरा हुआ हर एक पत्ता, एक नई कहानी बयान करता है। उड़ते हुए धूल-मिट्टी के साथ-साथ सूखे पत्तों की सरसराहट उस स्तब्धता को और भी भयानक बना रही थी। इन सबसे दूर आकाश में काले बादलों के बीच अधखिला चाँद अपने अस्तित्व को बादल में छिपाते, माँ के आँचल में खेलते हुए एक बच्चे की तरह अँधेरे से आँखमिचौली खेल रहा था। काला घना अँधेरा, लम्बे-लम्बे देवदारु वृक्षों की बाँहों में से निकलकर धरती की गोद में समा रहा था। जंगल में हवा की सन-सन आवाज़, चमगादड़ के फड़फड़ाहट के साथ-साथ उल्लू के भयानक चीख़ हवा में लहराते-लहराते मेंहदी के कानों में गूँज रही थी। दूर कहीं नदी की बहती हुई धारा में चाँद की हल्की रोशनी का एक झलक उस कमरे में प्रतिबिंबित हो रहा था। नया परिसर और अजीबोगरीब आहटों से आँखों से नींद ओझल हो चुकी थी। पलकें भारी होने के बावजूद नींद का नामोनिशान नहीं थी। अस्त-व्यस्त पलंग पर पड़े-पड़े असहनीय महसूस होने से उठकर वह खिड़की के सामने आकर खड़ी हो गई।

Full Novel

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हवेली - 1

(...एक प्रेम कथा...) लेखिका : श्रीमती लता तेजेश्वर 'रेणुका' विभिन्न घटनाओं से गुजरती हवेली का सच" फोन पर अपरिचित था, “संतोष जी, मैं लता तेजेश्वर उड़ीसा से आयी हूँ। मैंने एक उपन्यास लिखा है, मेरी इच्छा है उपन्यास की भूमिका आप ही लिखें।” मैं लता जी के इस विनम्र आग्रह से अभिभूत थी। 'हवेली' पढ़ते हुए उनके ये विनम्र वाक्य मेरे साथ रहे। हिन्दी में उपन्यास लिखना एक अहिन्दी भाषी प्रदेश के व्यक्ति के लिए सचमुच चुनौती है। उपन्यास का शीर्षक 'हवेली' रोमांचक लगता है जैसे हम किसी खण्डहर बन चुकी हवेली में हों, जहाँ रात के सन्नाटे में ...Read More

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हवेली - 2

## 2 ## अमावास का गहरा अँधकार चारों तरफ फैला हुआ है। लंबे-लंबे वृक्षों के बीच गहन अँधकार और भयानक लग रहा था। उस रात के अंधेरे में उन जंगलों के बीच एक आदमी चुपचाप चलता जा रहा है। चेहरा उसका पसीने से भीगा हुआ से था, काँपते हुए होंठों को दाँत के बीच दबाये हुए अन्यमनस्क चला जा रहा है। भयभीत आँखें, लग रहा था जैसे उस जंगल में कहीं रास्ता भटक गया हो। बार-बार वह भयभीत नेत्र से इधर-उधर देख रहा था। कहीं कोई उसका पीछा तो नहीं कर रहा है। इस बात से अनजान था कि ...Read More

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हवेली - 3

## 3 ## सुबह जब अन्वेशा की आँख खुली,घड़ी में आठ बज चुके थे। उसने अपने कमरे से निकलकर आई। घर में ऊपर का कमरा अन्वेशा ने अपने लिए चुना था। सीढ़ी के बाएँ तरफ राहुल का कमरा और फिर मास्टर बेडरूम है। हॉल के दूसरी ओर गेस्ट हाउस है। हॉल के बीचोंबीच ऊपर जाने के लिए सीढ़ी घर की दोनों तरफ फैली हुई थी। सीढ़ियों के ठीक सामने मुख्य दरवाजा और मध्य भाग में सोफा रखा हुआ है। घर के हर छोटे-मोटे काम के लिए हर वक्त नौकर हाजिर रहते हैं। बँगले के एक कोने में नौकरों के ...Read More

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हवेली - 4

## 4 ## पुणे शहर से 200 किलोमीटर दूर जंगल की ओर बढ़ती एक सूनी-सी सड़क। सड़क के दोनों सूखे मैदान और कंटीले पौधों से भरा रास्ता। उस रास्ते पर कुछ दूर जाने के बाद बस एक कच्चे रास्ते में सफर करने लगी। दोनों तरफ लंबे-लंबे वृक्ष खड़े और साथ-साथ ऊबड़-खाबड़ रास्ते। लग रहा था बस कहीं जंगल के भीतर प्रवेश कर रही है। जैसे-जैसे बस आगे बढ़ती गई जंगल और भी घना होने लगा। सूरज की रोशनी को भी जंगल के अंदर प्रवेश करते इन वृक्षों के बीच से गुजरना पड़ रहा था। कहीं-कहीं उल्लू की कुडु-कुडु आवाज ...Read More

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हवेली - 5

## 5 ## अजनीश, बैंक पहुँचा पैसे निकालने थे। माँ की चिट्ठी उसे परेशान कर रही थी। अचानक बाबूजी तबियत खराब होने से अस्पताल में भर्ती करना पड़ा। बड़े उम्र की लंबी बीमारी के बाद कुछ ही दिन पहले घर लौटे थे। दवाई के खर्चे के साथ-साथ अस्पताल का खर्चा अजनीश को बहुत भारी पड़ रहा था। कोई हाथ बँटाने वाला नहीं था । छोटा भाई जिसने अभी-अभी कॉलेज में पहला साल पूरा किया है पढ़ाई के साथ-साथ छोटे बच्चों की ट्यूशन लेकर अपना ख़र्चा बहुत मुश्किल से जुटा पाता है। करे भी तो क्या करे, नयी नौकरी होने ...Read More

6

हवेली - 6

## 6 ## अनमने सी मेंहदी बस में बैठी। तीन बजे उसे पता चला कि कॉलेज से निकली बस स्वागता गायब है और उसके साथ कुछ और दोस्त भी। इस खबर से वह जरूर परेशान हुई लेकिन अपनी माँ से इस बात को छुपा कर रखा। उसने अपने स्कूल के कुछ एमरजेंसी मीटिंग का बहाना कर सूटकेस में कुछ कपड़े डाल कर घर से निकल पड़ी। समय शाम चार बजे थे। स्वागता का बस से अलग हो जाना उसे परेशान कर रही थी। ठंडी हवा चेहरे पर गुदगुदा रही थी। खिड़की के पास बैठी मेंहदी के बाल हवा में ...Read More

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हवेली - 7

## 7 ## कँटीले, पथरीले रास्ते पर कुछ दूर जाने के बाद उन्हें एक चौड़ा पक्का रास्ता नजर आया, शायद लगता है हम लोग काफी नसीब वाले हैं, देखो रास्ता मिल गया।" यहीं से कोई गाड़ी मिल जाए तो लिफ्ट लेकर हम हवेली तक पहुँच सकते हैं। " मानव ने सूचित किया। "कहीं ये वही रास्ता तो नहीं जहाँ से हम रास्ता भटक गए थे।" ध्यान से देखते हुए स्वागता ने कहा । "हो भी सकता है।" निखिल ने जवाब दिया। बहुत देर इंतज़ार के बाद उन्हें एक गाड़ी आती हुयी दिखाई दी। लिफ्ट लेकर सभी उसमें चुपचाप बैठ ...Read More

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हवेली - 8

## 8 ## चारों तरफ सन्नाटा राज़ कर रहा था। सारे विद्यार्थी अपने-अपने कमरे में आराम कर रहे थे। की सारी बत्तियाँ बंदकर चौकीदार जा चुका था। अन्वेशा पलंग पर अस्त-व्यस्त सोई हुई है। यह बताना मुश्किल है कि वह नींद में है या नहीं, वह नींद में बड़बड़ा रही थी। जैसे वह किसी से बात कर रही हो या कोई उसे पुकार रहा हो। एक अनजान-सी पुकार उसे व्यस्त कर रही थी। वह न चाहते हुए भी उस पुकार को नज़रअंदाज नहीं कर पा रही थी। शायद इस वजह से वह कुछ परेशान लग रही थी। वह तय ...Read More

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हवेली - 9

## 9 ## अभिषेक, अजनीश और मानव ने एक-एक कर सबके कमरे देखा सभी गहरी नींद में सोये हुए अन्वेशा कहीं नज़र नहीं आ रही थी। सभी लोग बरामदे में इकट्ठे हुए। वहाँ से सीढ़ियाँ उतरकर एक खुला हुआ दरवाजा देखकर वहाँ से नीचे जाने का फैसला किया। अंधेरे में एक साथ हाथ पकड़े सीढ़ियों से नीचे उतरने लगे। अचानक ही पीछे से आवाज आयी। "आप लोग यहाँ क्या रहे हैं ? नीचे कहाँ जा रहे हैं ?" सबने एक साथ पीछे मुड़कर देखा। वहाँ वॉचमैन खड़ा था। उस वक्त चौकीदार को वहाँ देखकर सबने आश्चर्य हुए। अजनीश ने ...Read More

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हवेली - 10

## 10 ## मेंहदी का शक दूर हो गया। वह भी खुशी-खुशी सबके साथ शामिल होने के लिए राजी गई। पूर्णिमा चाय नाश्ते पैक करके वह भी सबके साथ चलने को तैयार हुई। हवेली के पीछे नदी की तरफ सभी चलने लगे। पत्थरों को काटते हुए नदी सरगम गा रही थी।दूर पहाड़ से नीचे गिरते हुए जलप्रपात,सूर्य की झिलमिलाती हुई रंगीन किरणें उस जलप्रपात में घुलकर और भी शोभायमान दिख रहीं थीं। सूर्यरश्मि जलतरंगों में प्रतिबिंबित होकर दूर हवेली में अपनी सुंदरता निखार रही थी। जंगल के बीचोंबीच नदी का प्रवाह, जंगल के प्रशांत वातावरण को आल्हादकारी बना रहा ...Read More

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हवेली - 11

## 11 ## हवेली की पुरानी दीवार पर टँगी हुई घड़ी रात के एक बजने की सूचना दे रही घड़ी की ठन-ठन आवाज से मेंहदी की नींद खुल गई। कमरे में बेड लाइट जल रही थी। ब्लैंकेट हटाकर मेंहदी पलंग पर उठकर बैठ गई, गला सूख रहा था। टेबल पर से पानी का जग उठाकर देखा तो जग खाली था। 'अरे रात को पानी भर के तो रखा था, इतनी जल्दी खत्म हो गया। लगता है अब बाहर से ही लाना पड़ेगा।' खुद से बुदबुदाई। लेकिन अकेले इतनी रात को रूम से बाहर जाना ठीक नहीं समझा। बहुत प्यास ...Read More

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हवेली - 12

## 12 ## सुबह सात बजे का समय है। दूसरे दिन जंगल में जाने की तैयारियाँ चल रही थी। सुनील और फातिमा मैम आगे का प्रोग्राम तैयार कर चुके थे। नाश्ता खत्म कर नौ बजे निकलने का प्रबंध किया गया था। जंगल की सुंदरता को देखकर सारे विद्यार्थी खुश थे, लेकिन आज इन सबके साथ पढ़ाई भी आंशिक रूप में शामिल थी। कुछ नये-पुराने वृक्ष के गुण और उनकी आयुर्वेदिक उपयोगिता के साथ-साथ उनकी उपलब्धता के बारे में आज जानकारी हासिल करना विद्यार्थियों के प्रसंग में था। स्वागता और अन्वेशा भी बहुत खुश थीं। वे जंगल की रोमांचक जगह ...Read More

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हवेली - 13

## 13 ## दूर किसी मंदिर की घंटी की आवाज सुनाई दी। नाश्ता करते हुए मेंहदी इधर-उधर देखने लगी। तुमने सुना मंदिर की घंटी की ध्वनि आ रही है।” "हाँ, दीदी मैंने सुना।" "इस जंगल में भी मंदिर है, आश्चर्य की बात है न ?” "इसमें आश्चर्य होने वाली क्या बात है? जैसे हवेली में लोग रहते थे, वैसे ही उनकी पूजापाठ के लिए मंदिर भी हो सकता है न ।” अन्वेशा ने जवाब दिया। "लेकिन बुद्धू हवेली में जो रहते थे वे मुसलमान थे। यहाँ मुसलमान राजा रहा करते थे।" स्वागता ने अन्वेशा की बात को काटते हुए ...Read More

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हवेली - 14

## 14 ## रात के बारह बजे, बारिश अभी थमी नहीं थी। मेंहदी अपने कमरे में टहल रही थी, खूब व्याकुल था। कुछ हालात और कुछ नजारों ने मेंहदी की आँखों से नींद चुरा ली थी। वह बहुत देर तक कमरे में टहलती रही। आँखों से नींद गायब हो चुकी थी। डायरी खोलकर कुछ लिखना चाहा। मगर दिमाग साथ नहीं दे रहा था। कलम बंदकर फिर सोच में डूब गई। स्वागता नींद में थी। मगर अन्वेशा पलंग पर छटपटा रही थी। चेहरा कुछ परेशान, पसीने से सारा मुँह भीग रहा था। जैसे कुछ बुरा सपना देख रही हो। बेचैनी ...Read More

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हवेली - 15

## 15 ## एक लंबा-सा कमरा, बीच में एक बड़ा सा टेबल। टेबल तरह-तरह के व्यंजनों से सजाया गया टेबल को बड़े ही शान से ध्यानपूर्वक सजाया गया है। टेबल के पास खड़े होकर एक बुजुर्ग महिला इशारे से कुछ बता रही है और बाकी लोग उनके इशारे के मुताबिल टेबल को सजा रहे हैं। वह वृद्धा हवेली की अनुभवी परिचारिका है। उनके इशारे के बिना इधर का पत्ता भी उधर नहीं होता। वह खासकर राजमाता की देखभाल करती थी। सुना है कि वे राजमाता की शादी में दहेज में उन्हीं के साथ इस राजमहल में आईं थीं । ...Read More

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हवेली - 16

## 16 ## कबीर एक सुंदर-सुशील नौजवान था। वह शहर में रहकर पढ़ाई करता था। वह अपनी रोजी-रोटी के बच्चों के ट्यूशन लिया करता और उसी कमाई से अपना खर्चा चलाया करता। कभी-कभी कुछ पैसे अपने घर भी भेज दिया करता। इस वजह से उसके परिवार को दो हाथ सहारा मिल जाता था। एक माली का बेटा होते हुए भी पढ़ाई-लिखाई में वह बहुत होशियार था। सुरैय्या को अपने बीवी-बच्चों के लिए दो वक्त का खाना जुटा पाना मुश्किल था। उसने अपने बेटे को शहर भेजने के लिए भी अपनी छोटी-सी जमीन गिरवी रख दी। बच्चों की पढ़ाई के ...Read More

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हवेली - 17

## 17 ## समय के साथ-साथ सुलेमा और कबीर के बीच की नजदीकियाँ बढ़ने लगीं। सुलेमा के परिवार वालों कबीर और सुलेमा की दोस्ती से ऐतराज नहीं था। कबीर बाग से फूल लाकर हवेली के कोने-कोने में सजाता और साथ-साथ सुलेमा भी कबीर की मदद करती, उन दोनों में गहरी दोस्ती कायम होने लगी। सुलेमा को कबीर का हवेली में आना-जाना अच्छा लगता था। सुलेमा की खिलखिलाती हँसी कबीर में एक नया जोश भर देती। सुलेमा की खुशी के लिए कुछ भी करने को हर दम तैयार रहता था। कबीर का अक्सर हवेली में आते-जाते रहना सुरेय्या को बिल्कुल ...Read More

18

हवेली - 18

## 18 ## अंकिता सुबह उठकर बहुत बेचैन थी। जुई और अंकिता एक ही कमरे में रहते हैं। बिना कारण अंकिता की बेचैनी उसे समझ में नहीं आ रही थी। बहुत देर से वह इधर-उधर टहल रही थी। एक हाथ में दूसरे हाथ को मलते हुए कमरे में इस तरह घूमते अंकिता को दो घंटे से देख रही है जुई। किसी से कुछ नहीं कहती बस अपने आपमें बातें करती जा रही है। हमेशा शांत, सरल रहने वाली अंकिता को इस तरह बेचैन देखकर वह चुप कैसे रह सकती थी आखिर दोनों में गहरी दोस्ती जो है। जुई चुप ...Read More

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हवेली - 19

## 19 ## हवेली के सारे लोग खाना खाकर अपने कमरे में विश्राम करने जा चुके थे। नौकर भी का काम खत्म कर बिजली बंदकर अपने क्वार्टर में चले गए। रात दस बजे के बाद नौकरों को हवेली में रुकने की इजाजत नहीं था। इसीलिए चौकीदार के अलावा और कोई यहाँ टहलने का भी साहस नहीं कर सकता। सारी हवेली में सुनसान रात का सन्नाटा मचा हुआ था। उस सुनसान रात में डाइनिंग हॉल में अचानक ही एक लाल बत्ती जल उठी। मेंहदी अंकिता के कमरे से निकलकर अपने कमरे में आ गई। सोने से पहले मेंहदी को देर ...Read More

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हवेली - 20

## 20 ## रात के ढाई बजे स्वागता की नींद खुल गई। देखा अन्वेशा बार-बार पलंग पर करवट ले है। "अन्वेशा तुम अभी तक सोई नहीं ?" अन्वेशा ने कोई जवाब नहीं दिया। अपने आपमें कुछ बड़बड़ा रही थी। स्वागता को कुछ समझ में नहीं आया। “अरे अन्वेशा तुम्हें कुछ चाहिए क्या साफ साफ बताओ।” स्वागता की बात पर अन्वेशा ने नहीं कहा। "कबीर मैं...मैं....." अपने आपमें बड़बड़ाने लगी। “कबीर ये कबीर कौन है? जो मैं नहीं जानती।" स्वागता संदेह में पड़ गई। "सुलेमा..., कबीर मुझे माफ कर दो।” मैं.... "ये सुलेमा फिर कौन है ?" स्वागता को कुछ ...Read More

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हवेली - 21

## 21 ## अचानक ही अजनीश ने मेंहदी को रोक लिया। मेंहदी गुस्से से लाल होकर अजनीश की तरफ भी मुनासिब नहीं समझा। तब अजनीश को सच बताना ही पड़ा। अजनीश पहले ही यह सब जानता था। जिस दिन अन्वेशा जेल की कोठरी में बेहोश पड़ी मिली उस दिन ही रघु काका ने हवेली की सारी बातों से सचेत कर दिया था। रात के वक्त बाहर न निकलने की ताकीद दी थी। मगर इस बात पर ज्यादा चर्चा न हो इसलिए अजनीश ने इस बात का जिक्र किसी से नहीं किया और खुद रात भर सजग रहता था। जब ...Read More

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हवेली - 22 - अंतिम भाग

## 22 ## सुबह सात बजे हवेली से बस निकली। बस में सारे छात्र-छात्राएँ अपनी सीट पर बैठे हुए अन्वेशा, स्वागता एक सीट पर और मेंहदी एक खिड़की के पास बाहर देखते हुए चुपचाप बैठी हुई है। स्वागता, अन्वेशा के साथ होकर भी उसकी नजर मेंहदी पर थी। वह अपनी बहन को अच्छी तरह समझती है। जब वह मुंबई वापस लौटने के लिए बस में बैठ रहे थे तब स्वागता मेंहदी के पास बैठने के लिए जिद कर रही थी, लेकिन मेंहदी ने उसे अन्वेशा के साथ रहने को कहा। वह भी खुद कुछ समय अकेले रहना चाहती थी। ...Read More