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हवेली - 21

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अचानक ही अजनीश ने मेंहदी को रोक लिया। मेंहदी गुस्से से लाल होकर अजनीश की तरफ देखना भी मुनासिब नहीं समझा। तब अजनीश को सच बताना ही पड़ा। अजनीश पहले ही यह सब जानता था। जिस दिन अन्वेशा जेल की कोठरी में बेहोश पड़ी मिली उस दिन ही रघु काका ने हवेली की सारी बातों से सचेत कर दिया था। रात के वक्त बाहर न निकलने की ताकीद दी थी। मगर इस बात पर ज्यादा चर्चा न हो इसलिए अजनीश ने इस बात का जिक्र किसी से नहीं किया और खुद रात भर सजग रहता था। जब मेंहदी ने खुद इस बात की जानकारी दी, उसने अनजान बनकर इस बात को दबाने की कोशिश की ताकि बाकी बच्चे इस बात पर परेशान न हों।

जब अपनी बात सुनाकर अजनीश ने मेंहदी की तरफ देखा तब मेंहदी कोई और ही दुनिया में थी। एक कठपुतली जैसी अचेतन खड़ी है। हँसते हुए सारी बात कहने के बाद अजनीश ने जब छत की तरफ देखा वह दंग रह गया। वह पहले से जानता था, लेकिन जब आँखों के सामने इस सच्चाई को देखा तब उसकी हालत क्या थी आगे देखते हैं...

उसने जितनी बातें मेंहदी को सुनायी थी, सब कुछ एक पल में भूल गया। तब वह अच्छी तरह यह समझ गया कि कहना और सुनना जितना आसान होता है सच्चाई का सामना करना उतना आसान नहीं था। उसके पैरों तले जमीन जैसे खिसकने लगी थी। खुद को सँभालते-सँभालते वहीं सीढ़ियों पर बेहोश हो गया।

वहाँ का माहौल कुछ गरम था। महाराजा का चेहरा गुस्से से लाल हो गया था। वे कमरे में यहाँ से वहाँ घूम रहे थे। सुलेमा, सुषमा के कंधे पर मुँह छिपाकर चुपचाप रो रही थी। एक तरफ बेटी की खुशी तो दूसरी तरफ राज मर्यादा महाराजा की बात को इनकार करना तो कोई बड़े गुनाह से कम नहीं था।

पिताजी की बात मान लेना सुलेमा के लिए आसान नहीं था। पहले प्यार को भूलना भी तो आसान नहीं होता। सुलेमा प्यार में इतनी डूब गई थी कि सही-गलत की सोच उसके दिमाग से भी बाहर थी। क्यों नहीं... प्यार चीज ही ऐसी है। उसके सामने सही गलत कोई मायने नहीं रखता। बहुत समय से कबीर का कोई पता नहीं, ऐसे संदिग्ध क्षण में परिवार का सुलेमा की शादी को लेकर दबाव, सुलेमा के छोटे से दिल को हिलाकर रख दिया।

“महारानी मुमताज, कल राजस्थान के राजा मुहम्मद अजहरूद्दीन, अपने बेटे सहाजहुसैन के लिए सुलेमा का हाथ माँगने हमारी हवेली में तशरीफ ला रहे हैं। आप उनके स्वागत की तैयारी खुद करेंगी और सुलेमा को इसके लिए पूरा तैयार करेंगी। हाँ, कोई भी रुकावट हमें मंजूर नहीं है।" कठोर स्वर में कहकर वे वहाँ से रुखसत हो गए।

मेंहदी के कदम थम गए। मेंहदी के पीछे-पीछे अजनीश भी पीछे हट गया। सुलेमा को जैसे कोई मौत की सजा सुना दी। एकदम से वह "बाबा... बाबा....," कहते भूमि पर गिर पड़ी सुलेमा। रोते-रोते जमीन पर ही बैठ रही। जैसे आकाश से चंद्रमा टूटकर भूमि पर बिखर गया हो। रोते हुए वह अपने पिताजी के बढ़ते हुए पैरों को रोकने के लिए उन्हें जोर से पकड़ लिया।

"अब्बू जान, अब्बूजान, आप जो भी कहोगे मैं करूँगी पर ये शादी रोक दीजिए। अम्मी-अम्मी... आप कहो अब्बाजान से..." पुकारते हुए उनकी तरफ देखा। मगर महाराजा का कहा टालने की हिम्मत किसी मे न थी। निराशा और मायूसी के साथ एक-एक कर कमरे से निकल हो गये। मेंहदी की नज़र सुलेमा के चेहरे पर अटक गई। हताशा और निराशा चेहरे पर साफ-साफ दिख रही थी। आँखों में आँसू लिए काँपते होंठों के साथ जमीन पर निश्चल बैठ गई सुलेमा। '

“अन्वेशा, अन्वेशा...।” मेंहदी के होंठ बड़बड़ाने लगे। बेबसी और आश्चर्य से मेंहदी दंग रह गई। अजनीश भी आश्चर्य से भर उठता उससे पहले मेंहदी , "अजनीश यह अन्वेशा है हमारी अन्वेशा।" कहकर सहारा देने के लिए आगे बढ़ने लगी। अजनीश संशय में पड़ गया और क्या करें अब? जो सच्चाई को विश्वास नहीं कर रहा था आज वह सच्चाई उसके सामने खड़ी है और वह आज की सच्चाई से भी गहरी है।

"रुक जाओ, मेंहदी ये अन्वेशा नहीं है, यह सुलेमा है। हमारा अतीत है इसे मत रोको। जो हो चुका है उसे तुम या मैं नहीं रोक सकते। यह सब तुम्हारा भ्रम है। अन्वेशा को कुछ नहीं होगा।”

"हाँ जो हो चुका है उसे रोक नहीं सकते लेकिन जो हमारे आँखों के सामने हो रहा है उसे सहारा तो दे सकते हैं ।" कहकर आगे बढ़ने लगी मेंहदी । अजनीश ने मेंहदी का हाथ थाम लिया। "नहीं जो हो रहा है उसे होने दो। अतीत में हमारा कोई अस्तित्व नहीं है। इसलिए हम कुछ नहीं कर सकते, चलो यहाँ से ।”

"नहीं, आपको जाना है तो जाओ अजनीश, मुझे छोड़ दो।"

"ये सुलेमा नहीं अन्वेशा है, मुझे उसे हर हाल में रोकना है। तुम देखते नहीं हमारे सामने बैठ गिड़गिड़ा रही है। अगर हम ऐसे ही छोड़ देते हैं तो जो होगा में खुद को कभी माफ नहीं कर पाऊँगी। अन्वेशा को भी शायद इसी दौर से गुज़रना पड़े। रोको अजनीश उसे रोको अजनीश के कॉलर पकड़कर पागल जैसे चिल्लाने लगी मेंहदी । "

"तुम पागल तो नहीं हो गई मेंहदी , खुद को इतना कष्ट मत दो। हमारा होना न होना उन्हें कोई मायने नहीं रखता। जो हो रहा है इसमें हमारा कोई हाथ नहीं। चलो यहाँ से..."

"सुलेमा, आँखें पोछते हुए उठकर खड़ी हुई अब उस नजर में कोई दुख नहीं था। न ही वह परेशान नज़र आ रही थी। उसकी आँखें स्थिर निश्चल थी, जैसे किसी फैसले का वक्त आ चुका हो। चुपचाप वह आधी टूटी हुई दीवार की तरफ जाने लगी। सुलेमा की नज़र बिल्कुल शांत थी। एक नज़र दरवाजे की तरफ देखा, मेंहदी और अजनीश खड़े हुए थे। जैसे वह मेंहदी की तरफ देख रही हो। एक अनजानी-सी मुस्कान की झलक उन होंठों पर खिल गई। जैसे कि जिंदगी के जीत जाने की मुस्कान, खुदा को सलाम कहते हुए एक आखिरी मुस्कान, फिर टूटी हुई दीवार के तरफ जल्दी-जल्दी कदम बढ़ाने लगी। मेंहदी के देखते ही देखते सुलेमा दीवार से नीचे...

“मेरा हाथ छोड़ो अजनीश मुझे उसे बचाना है।" अपने हाथ को अजनीश से छुड़ाकर ज़ोर-ज़ोर कदम से दीवार की तरफ दौड़ी।

“रुक जाओ सुलेमा रुक जाओ ।”

मेंहदी जोर से चिल्लाते हुए एक ही झटके में उन हाथों को पकड़ने की कोशिश की और उसका हाथ थाम लिया। झटका इतना जोर था कि मेंहदी अपने आपको सँभाल नहीं पाई। सुलेमा को बचाते बचाते वह खुद दीवार से टकरा गई। अजनीश अगर समय पर मेंहदी को पकड़ नहीं लेता तो मेंहदी भी दीवार से नीचे खाई में......'ओह' ।

जब मेंहदी की आँखें खुली तो उसके हाथ में अन्वेशा का हाथ था। दीवार से गिरती हुई अन्वेशा को बचा लिया था उसने। अन्वेशा बेहोश हो गई थी।

चेतना शून्य मेंहदी की नज़र कुछ और ही देख रही थी। उस खाई में धीरे से हाथ हिलाते हुए सुलेमा का वही मुस्कराता हुआ चेहरा सफेद लिबास में धीरे-धीरे मेंहदी के हाथों से निकलकर उस खाई में नीचे की तरफ फिसलता रहा। जैसे कि वह मेंहदी से आखिरी विदाई ले रही हो। शायद मेंहदी उस मुस्कराहट को जिंदगी भर भूल नहीं पाएगी।

मेंहदी ने जब नीचे देखा अन्वेशा उसके हाथ में लटकती दिखाई दी, लेकिन मेंहदी कुछ और ही देख रही थी। अजनीश और स्वागता मिलकर अन्वेशा को मेंहदी के हाथ से निकालकर ऊपर ले आए। कुछ देर बाद अन्वेशा होश में आ गई। मेंहदी बहुत देर तक उस खाई की ओर देखती रही। अजनीश और स्वागता, अन्वेशा और मेंहदी को कमरे में ले आए। अजनीश को ये समझ में नहीं आ रहा था कि सुलेमा की जगह अन्वेशा कैसे पहुँची। मेंहदी इस बात पर घबरा गई थी कि अगर जरा-सी भी देर हो जाती तो सुलेमा की जगह अन्वेशा खाई में गिर चुकी होती, मेंहदी जिंदगी भर खुद को माफ नहीं कर पाती।