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हवेली - 7

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कँटीले, पथरीले रास्ते पर कुछ दूर जाने के बाद उन्हें एक चौड़ा पक्का रास्ता नजर आया, "हे, शायद लगता है हम लोग काफी नसीब वाले हैं, देखो रास्ता मिल गया।"

यहीं से कोई गाड़ी मिल जाए तो लिफ्ट लेकर हम हवेली तक पहुँच सकते हैं। " मानव ने सूचित किया। "कहीं ये वही रास्ता तो नहीं जहाँ से हम रास्ता भटक गए थे।" ध्यान से देखते हुए स्वागता ने कहा ।

"हो भी सकता है।" निखिल ने जवाब दिया। बहुत देर इंतज़ार के बाद उन्हें एक गाड़ी आती हुयी दिखाई दी। लिफ्ट लेकर सभी उसमें चुपचाप बैठ गए। आधा घण्टा रास्ता तय करने के बाद दूर से हवेली दिखने लगी।

अभिषेक ने अचानक कहा, "देखो हवेली दिख रही है, शायद यही वह हवेली है। हमारी मंजिल हमें मिल गयी। जहाँ हमारी बस रुकने वाली थी, सब वहीं पर हमारा इंतज़ार कर रहे होंगे।"

उनका सोचना गलत नहीं था। जब वे हवेली पहुँचे उन्हें देखकर सारे दोस्त और टीचर्स उनके चारों तरफ घिर गए। सारे किस्सा सुनकर चौंक गए। मेंहदी और अजनीश भी काफी वक्त बाद वहाँ पहुँचे। अन्वेशा और स्वागता को ठीक-ठीक देखकर दोनों ने चैन की साँस लिया।

उनके साथ हुआ हादसा सुनकर कुछ क्षण दंग रह गये। स्वागता से मिलकर मेंहदी ने उसे गले लगाया। जब कुछ बच्चों के गायब होने की खबर उसे मालूम हुई वह खुद स्वागता की तलाश में निकल पड़ी थी। अजनीश ने भी अन्वेशा के बारे में सब कुछ उनके घरवालों को फोन पर बताया। अन्वेशा सकुशल है जानकर खुश हुए, चंद्रशेखर के अनुरोध से अजनीश ने भी उनके वापस आने तक हवेली में रुकने का फैसला लिया।

हवेली में रुकने का सारा बंदोबस्त पहले से किया गया था। सब के रहने का इंतजाम भी किया गया था। सारे छात्र-छात्राओं के लिए, अलग-अलग कमरे भी दिए गए। सरकारी गेस्ट हाउस होने के कारण काफी सारे कमरे थे। हर एक कमरे में दो-तीन विद्यार्थियों के रहने की सुविधा की गई। चौकीदार से जितना कुछ हो सकता था खाने-पीने का इंतजाम किया, लेकिन बिजली न होने के कारण वह भी बेबस थे। सुबह तक कुछ न कुछ बंदोबस्त करने का वायदा कर वह वहाँ से चला गया।

सारे विद्यार्थी अपने-अपने बैग लेकर कमरे में प्रवेश करने लगे। मेंहदी वहीं खड़ी हवेली की सजावट देख रही थी। हवेली के प्रवेश द्वार पर बड़ा-सा हॉल था। हॉल के बीच बाघ की चमड़ी से बना एक बड़ा कार्पेट बिछाया गया है। प्रवेश द्वार के सामने ही हाथी के दाँत समेत उसका सिर टाँगा गया था। उसके नीचे एक बड़ा-सा सिंहासन रहा करता था। जो हीरे-मोती से सजाया गया था और राजा-महाराजा शान से बैठकर सभा के कार्य सँभालते थे मगर समय के साथ-साथ सरकार ने हीरे-मोती से जड़ा वह सिंहासन संग्रहालय में भेज दिया और उस जगह को खाली छोड़ दिया गया।

दीवारों पर जंगली पशुओं का डरावना चेहरा कमरे की शोभा बढ़ा रहा था। उन्हें देखने से यह लगता है कि जैसे वे अभी दीवार से निकलकर कच्चा खा जाएँगे। कुछ धातु से निर्मित मूर्तियाँ सजीव बने खड़ी थीं। पुराना हो तो क्या हुआ उस हवेली की चमक-दमक में आज भी राज-परिवार की ठाट-बाट नजर आती है। शीशों से बनी हवेली की दीवारें, उसके बीच शीशे का एक बड़ा झूमर, जिसकी रोशनी से हवेली के अंधेरे को मिटाकर आलोकित किया जाता था। वह आज भी चारों तरफ छोटे-छोटे शीशें से प्रतिबिंबित होकर हवेली के कोने कोने में उजाला फैला रही है। बिजली के अभाव में समय-समय पर बत्तियों से इस झूमर का उपयोग किया जाता है। मगर मौजूदा हालात में उन्हें ज्यादा देर इंतज़ार करने की जरूरत नहीं पड़ी, थोड़ी ही देर में बिजली भी आ गई ।

कुछ ही समय बाद टेबल पर सब इकट्ठा हुए। रात के नौ बजकर चालीस मिनट हो चुके थे। खाने में ज्यादा कुछ बनाने के लिए वक्त कम था। सारे लोग भूख से बेहाल हो रहे थे। सारा दिन थकान के कारण किसी में खाने के लिए इंतज़ार करने की क्षमता नहीं थी। जो मिले खाकर आराम करने के ख्याल में थे। तब तो सब खाने की टेबल पर बैठकर खाने का इंतज़ार करने लगे।

रोटी और सब्जी बन ही गई थी, साथ-साथ कुछ मीठा भी बन रहा था, लेकिन उससे पहले ही सब खाना खाने को तत्पर हो उठे थे। फातिमा मैम ने खाना परोसने की जिम्मेदारी ले ली। महाराज, जो इन सबके लिए खाने का बंदोबस्त कर रहे थे वे फातिमा मैम को भी बैठने को कहने लगे, लेकिन फातिमा मैम खुद अपने हाथों से एक-एक को परोसने लगी।

नीलिमा को खूब मजा आ रहा था, “मैम बहुत भूख लगी है, पहले मुझे खाना दे दीजिए ना ।"

अभिषेक, "अगर ऐसी बात है तो पहले हमें खाना मिलना चाहिए हम इतना दूर चलते-चलते बहुत थक गये। "

“ठीक है, आप सब झगड़ा मत करो, सबको खाना मिल जाएगा। पहले भगवान की प्रार्थना करो फिर खाना मिलेगा।" फातिमा मैम के कहने पर सब दो मिनट आँखें बंदकर प्रार्थना करने लगे। जब आँखें खुली तब तक खाना परोस दिया गया। सब खाना खा ही रहे थे कि अचानक फिर से बिजली गुल हो गयी। ऐसा होना वहाँ पहली बार नहीं था। पुरानी हवेली होने से अक्सर वहाँ बिजली गुल रहती थी। कुछ निवाला पेट में गया ही नहीं कि बिजली चले जाना सबको निराश कर दिया। इतने में घबराइए मत जल्द ही कुछ बंदोबस्त करता हूँ, कहकर चौकीदार वहाँ से चला गया।

अभिषेक को अँधेरे से बहुत डर लगता है। ये बात जुई अच्छी तरह से जानती है। इस अँधेरे का फायदा उठाते हुए धीरे से अभिषेक के पास जाकर एक चिमटी काटकर चुपचाप अपने स्थान पर बैठ गई। अभिषेक खड़े होकर जोर-जोर से चिल्लाने लगा। चूहे ने काट लिया।

"चूहा! नहीं यहाँ कोई चूहे नहीं रहते हैं।” चौकीदार लालटेन लेकर आया और झूमर की सारी बत्तियाँ जला दी। अँधेरा मिट गया। रोशनी से सारा कमरा आलोकित हो गया। यह दृश्य खूब मनमोहक लग रहा था।

"हाँ, हवेली के नीचे के हिस्से में चूहे जरूर हैं, मगर इस जगह पर नहीं, आपके साथ जरूर कोई शरारत की होगी।"

जुई ने फिर से शरारत करनी शुरू कर दी। अभिषेक को आड़े आँख से देखते हुए कहा, "चौकीदार काका कहते हैं कि पुरानी हवेली में भूत-प्रेत रहते हैं। कहीं ऐसा तो नहीं कि ये भूत का काम हो। अभिषेक, मेरा मतलब है हममें से किसी को अगर नुकसान पहुँचाए तो..." नाटकीय ढंग से आँखों को गोल-गोल घुमाते हुए कहा।

"नहीं बेटा ऐसा कुछ नहीं। मगर हाँ, किसी कारण अगर किसी की कोई इच्छा अपूर्ण रह जाती है तो कहते हैं अक्सर वे कभी-कभी एक परछाईस्वरूप लोगों को नज़र में आ जाते हैं, लेकिन वे हमेशा लोगों को चोट नहीं पहुँचाते इसलिए उनसे डरने की कोई जरूरत नहीं। अब, सब निश्चिंत होकर सो जाइए।"

"क्या यहाँ भी......।" आगे कुछ पूछने का साहस किसी में नहीं था। बड़ी-बड़ी आँखों से चारों तरफ नज़र घुमाते हुए चुप हो गई जुई।

काका ने लालटेन को टेबल पर रखते हुए कहा, "डरने की कोई बात नहीं है, आप सब खाना खाकर सो जाइएगा। अंधेरे में इधर-उधर मत घूमा करो, आपको जो भी दिखाना है, सुबह होते ही मैं खुद सारी हवेली घुमा दूँगा, अगर किसी कारण डर लगे तो कमरे की बत्ती जलाकर सो जाइए और रात को कमरे से बाहर मत निकलना। ध्यान रखें कि अँधेरे में बाहर मत निकलें, बाहर जाने से पहले बत्तियाँ रोशन कर लीजिए। अब मैं चलता हूँ। अगर किसी बात की जरूरत पड़े तो मुझे बुला लीजिएगा। चौकीदार काका वहाँ से चले गये।” इन सारी बातों को सुनने के बाद जुई भी चुप हो गई। वह खुद भी इस बात से सहम गई। आगे बात न बढ़ाकर चुपचाप खाना खाकर वहाँ से निकल गई।

सभी अपने-अपने कमरे में चले गये। अन्वेशा और स्वागता भी कमरे में आ गए। मेंहदी ने उन्हीं के साथ उसी कमरे में ही अलग पलंग का इंतजाम करवा लिया। खाना खाकर अपने-अपने बिस्तर पर सोते ही न जाने कहाँ से नींद आँखों को छू गई। दोनों गहरी नींद में सो गये।

सारे दिन के थकान के बावजूद पलंग पर पड़े-पड़े मेंहदी को नींद नहीं आ रही थी। सोने से पहले सारे दिन की बातें उसे डायरी में लिखने की आदत है। रोज की तरह आज भी उसने अपनी डायरी लेकर लिखना शुरू किया। लिखते-लिखते अजनीश की याद आ गई। कलम को होंठों के बीच दबाकर सोच में पड़ गई। अजनीश से मुलाकात, उनके बीच नोकझोंक और उसकी बातें, सब याद कर एक अनजान मुस्कान होठों पर खिल गई। हवेली और इससे संबंधित सारी बातें लिखते-लिखते बहुत समय बीत गया। कलम को बंदकर खिड़की के पास आकर खड़ी हुई मेंहदी ।

काला घना अंधेरा, लंबे-लंबे देवदारु वृक्षों की बाँहों में से निकलकर धरती की गोद में समा रही थी। नीले आकाश में चौथ की चंद्रमा कुछ जगह आलोकित कर रहा था। जंगल की सन-सन, चमगादड़ की फड़फड़ाहट के साथ-साथ उल्लू की भयानक चीख़ हवा में लहराते-लहराते कानों में गूँज रही थी। दूर कहीं नदी की बहती हुई धारा में चाँद की हल्की-सी रोशनी की झलक प्रतिबिंबित होकर कमरे में नतमस्तक हो रही थी। नया परिसर और अजीब-अजीब सी आहटें आँखों से नींद ओझल कर चुकी थी।

अस्त व्यस्त पलंग पर पड़े-पड़े मेंहदी को असहज महसूस हो रहा था। जंगली फूलों की खुशबू, साथ-साथ ताजी सुगंधित हवा तन और मन को प्रफुल्लित कर रही थी। इस प्रकृति के गोद में आकर जैसे खुद में खो गई है। कहाँ शहर की चहल-पहल और कहाँ यह सुनसान इलाका जो आज तक लोगों की भीड़ से बचा हुआ है। इस इलाके ने प्रकृति का खजाना समेट रखा है। शहर की भागदौड़ वाली जिंदगी में एक घूँट ताजी हवा भी मुनासिब नहीं होती थी और अचानक ही एक व्यस्त जिंदगी से आजाद होकर एकांत इस जंगल में, एक अनोखा एहसास, उसके मन में लाखों सवाल खड़े कर रहा था। जिस तरफ नज़र गयी देखा, एक अजीब-सा सन्नाटा, न कोई घर, न कोई चहल-पहल, दूर-दूर तक खाली पेड़-पौधे नज़र आ रहे हैं। यहाँ कुछ भी हो जाए इसी जंगल में दफन होकर रह जाएगा दुनिया को खबर तक नहीं होगी।

इससे पहले भी इस हवेली के बारे में कई सारी कहानियाँ सुनने में आयी है लेकिन इस हवेली को देखने और इसके बारे में जानने का अवसर आज ही प्राप्त हुआ। एक ठंडी हवा का झोंका शरीर को छू गया एक पल मेंहदी सिहर उठी। सारे शरीर में एक कंपन सा महसूस हुई। एक सूखा पत्ता कहाँ से उड़कर उसके चेहरे पर आकर रुक गया। अचानक एक नहीं कुछ पत्तों की सरसराहट, शायद किसी के चलने की आवाज है। उसने खिड़की से नीचे की तरफ झाँकने की कोशिश की, इतनी रात गए कौन हो सकता है ? जो इस सुनसान हवेली में आना चाहेगा। एक काला पोशाकधारी हाथ में टॉर्च लिए हवेली की तरफ बढ़ रहा था।

मेंहदी ने टेबल के ऊपर रखी हाथ घड़ी को उठा लिया। वक्त रात के एक बजने में अभी दस मिनट बाकी है। अचानक उसके पीछे दरवाज़ा बंद होने की आवाज से चौंक गई। उसने दरवाज़े की तरफ देखा, दरवाज़ा आधा खुला हुआ था। मेंहदी ने याद करने की कोशिश की। कमरे में आने के बाद उसने खुद अच्छी तरह से दरवाज़े को अंदर से बंद किया था। फिर यह दरवाजा किसने खोला? उसने पलंग की तरफ देखा पलंग पर रजाई लपेटे स्वागता आराम से सो रही है। इतने सारे संकट एक के बाद एक जूझने के बाद कुछ ही देर पहले चैन से सो गई है। अन्वेशा भी तो.......

मेंहदी की सोच यहीं पर रुक गई, 'अरे अन्वेशा का बेड तो खाली है। इतने रात गये अकेले कहाँ गई होगी?'

उसने दरवाजे की तरफ चलकर देखा, दरवाजा खुला हुआ है। बाहर झाँककर देखा तो अँधेरे में कुछ नज़र नहीं आया। फिर भी आवाज़ दी। “अन्वेशा.... अन्वेशा........।"

कोई जवाब नहीं मिला। वह पीछे आ गई। शायद अन्वेशा बाथरूम में होगी। सोचते हुए बाथरूम का दरवाजा खड़खड़ाया। कोई आवाज नहीं, दरवाजा बाहर से बंद है। फिर अन्वेशा अकेले अंधेरे में कहाँ जा सकती है, सोचते हुए दो मिनट खड़ी रह गई। किससे पूछूँ, अकेले बाहर जाने से डर तो लग रहा था, फिर भी दरवाजा खोलकर बाहर झाँकने का यथासंभव प्रयास किया।

अन्वेशा को आवाज़ दी पर आवाज़ प्रतिध्वनित होकर वापस लौट आई। उसे अकेले बाहर जाने की हिम्मत नहीं हो रही थी। उसने लौटकर पलंग पर सोई हुई स्वागता को जगाने की कोशिश की, लेकिन थकावट से गहरी नींद में सो रही स्वागता को उठाना मुश्किल था। स्वागता को जगाने के अलावा उसके पास कोई रास्ता नहीं था। “स्वीटू उठ, स्वीटू....."

मेंहदी स्वागता को प्यार से स्वीटू कहकर बुलाती है।

स्वागता रजाई कसकर पकड़कर इधर से उधर पलटकर सो गई। मेंहदी ने जोर-जोर से हिलाते हुए जगाने की कोशिश की, “क्या दीदी आप भी इतने रात गये? प्लीज़ सोने दो न, बहुत नींद आ रही है, पलटकर सो गई। "

"स्विटु.... स्वागता..., स्वागता उठ...." उठाने की कोशिश नाकामयाब होने पर उसने टेबल पर से मग उठाकर पानी स्वागता के ऊपर डाल दिया। स्वागता एकदम उछलकर बैठ गई।

"क्या हुआ दीदी इतने रात गये क्या हुआ, क्यों जगा रही हो ?"

"तू पहले ये बता अन्वेशा कहाँ है ?"

"क्या दीदी यह पूछने के लिए मुझे उठाया, अन्वेशा तो यहीं पर मेरे साथ सोयी है ना", अन्वेशा को पलंग पर न पाकर स्वागता की आँखें बड़ी-बड़ी हो गयी।

"लेकिन, दीदी आप भी न...., बाथरूम में होगी, सो जाईए न दीदी वह आ जाएगी।" स्वागत, बाथरूम का दरवाजा खुला है और अन्वेशा कहीं भी नहीं है। "

"तू उठ और चल मेरे साथ, "कहाँ ?" रजाई से बाहर निकलते हुए पूछा ।

"अन्वेशा को ढूँढने।"

पास वाले कमरे में अभिषेक और मानव सो रहे थे, दोनों ने उन्हें जगाया। टॉर्च लेकर वे दोनों बाहर निकले सारे कमरे की बत्तियाँ जलाई। अंकिता के कमरे में देखा, अन्वेशा वहाँ भी नहीं थी। बाकी सबको जगाना ठीक नहीं समझा। इनकी आवाज से निखिल जाग गया। “अभि, तुम सब इस समय यहाँ क्या कर रहे हो ?"

"अन्वेशा..... अभिषेक ने दो पल में अन्वेशा के गायब होने की खबर दे दिया।" यह बात जानकर निखिल दंग रह गया।

अजनीश, अभिषेक एक तरफ, मानव और निखिल दूसरे तरफ, बँगले की चारों तरफ चप्पा-चप्पा ढूँढा, लेकिन अन्वेशा कहीं नहीं मिली।