Haweli - 20 books and stories free download online pdf in Hindi

हवेली - 20

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रात के ढाई बजे स्वागता की नींद खुल गई। देखा अन्वेशा बार-बार पलंग पर करवट ले रही है। "अन्वेशा तुम अभी तक सोई नहीं ?"

अन्वेशा ने कोई जवाब नहीं दिया। अपने आपमें कुछ बड़बड़ा रही थी। स्वागता को कुछ समझ में नहीं आया। “अरे अन्वेशा तुम्हें कुछ चाहिए क्या साफ साफ बताओ।” स्वागता की बात पर अन्वेशा ने नहीं कहा।

"कबीर मैं...मैं....." अपने आपमें बड़बड़ाने लगी।

“कबीर ये कबीर कौन है? जो मैं नहीं जानती।" स्वागता संदेह में पड़ गई।

"सुलेमा..., कबीर मुझे माफ कर दो।” मैं....

"ये सुलेमा फिर कौन है ?" स्वागता को कुछ समझ में नहीं आ रहा था।

उसने अन्वेशा को जगाने की कोशिश की मगर थोड़े ही देर बाद अन्वेशा शांत हो कर सो गई। स्वागता ने देखा मेंहदी कमरे में नहीं है। स्वागता मेंहदी को कमरे में अनुपस्थित देखते ही कमरे से बाहर आ गई।

"दीदी भी न इतने रात गये पता नहीं कहाँ चली गई।"

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मेंहदी के होश उड़ गए। जब उसने देखा कि कैलेंडर और आईने के बीच खड़ी मेंहदी की तस्वीर उस आईने में से गायब थी। उसकी जगह पर किसी और की तस्वीर होना और वह तस्वीर.....वह तस्वीर, जानी पहचानी..। वह कैसे हो सकता है? तस्वीर काफी पुरानी थी शायद उसने जो देखा है वह सही न हो, लेकिन उस तस्वीर के साथ-साथ किसी का चेहरा सामने आ जाता है। लेकिन ये कैसे हो सकता है ?

इस कश्मकश के साथ-साथ आईने के सामने होते हुए भी अपना प्रतिबिंब नजर न आना और उस कैलेंडर में तस्वीर... यह सब मेंहदी के लिए विश्वास करना मुश्किल था, लेकिन जो उसकी नज़र के सामने है उसे नज़रअंदाज करना भी मुश्किल है।

मेंहदी एक बात समझ गई, बीत गई उन घटनाओं का साया जैसे आज पर नहीं पड़ सकता वैसे ही कल की इन घटनाओं में मेंहदी का कोई अस्तित्व नहीं है। मेंहदी को कुछ-कुछ समझ में आने लगा, लेकिन इन सब का पता लगाना बहुत जरूरी है। ये सब घटनाएँ किसी न किसी तरफ इशारा कर रही हैं, लेकिन वह क्या है? आँखों के सामने है पर एक पर्दा पड़ा है जिसे मेंहदी की आँखे नहीं देख पा रही। इसके लिए पूरी सच्चाई जानना आवश्यक है। रघु काका की कही सभी बातें और उसके सामने घट रही घटनाएँ कुछ संकेत दे रही हैं । इससे पहले कि किसी को कोई नुकसान पहुँचे इस राज़ का पर्दाफाश करना पड़ेगा। अगर उसका संशय सही है तो किसी की जिंदगी खतरे में है।

मेंहदी को सारी हकीकत कहीं न कहीं जुड़ते हुए नज़र आने लगी। वह सारी कड़ियों को जोड़ने लगी। एक-एक कर हर वह घटनाओं को याद करने लगी। इन कड़ियों को इकट्ठा करते हुए एक-दूसरे से जोड़कर देखा। सारी घटनाएँ कुछ इशारा करती नज़र आई। मेंहदी का शरीर काँपने लगा। इससे पहले कुछ अनहोनी हो जाए, उसे आनेवाले बड़ी दुर्घटना को रोकना होगा।

मेंहदी को एक ख्याल आया। तुरंत जाकर अजनीश का दरवाजा खड़खड़ाया। अजनीश ने बाहर आकर देखा मेंहदी खड़ी थी।

"मेंहदी आप इतनी रात गए ?"

“हाँ, आप कुछ समय के लिए मेरे साथ आ सकते हैं ?"

"हाँ क्यों नहीं, मगर इस वक्त ?"

"चलिए मैं आपको कुछ दिखाना चाहती हूँ।"

"बताइए क्या बात है ?"

"नहीं ऐसे नहीं चलिए मेरे साथ।"

"ठीक है मैं अभी आया।"

अंदर जाकर खाली कँधे पर टॉवल लपेटकर एक टॉर्च भी साथ ले आया। दोनों बाहर आ गए। मेंहदी,अजनीश को उस कमरे में ले आई जहाँ उसने पुराना कैलेंडर देखा था। कुछ देर पहले देखी हुई सारी बात को एक ही साँस में बता दिया। मगर उसे निराश ही होना पड़ा, जहाँ वह कैलेंडर देखा था वह जगह खाली पड़ी थी। वह आईने में खुद की तस्वीर बखूबी देख पा रही थी। वहाँ कुछ भी ऐसा नहीं था जो अपनी बातों की सच्चाई का सबूत दिखाकर अजनीश को विश्वास दिला सकती थी।

अजनीश को अपनी नींद छोड़कर बाहर आने पर खुद पर ही गुस्सा आया।

"देखिए मेंहदी जी, आप एक लेखिका हैं, हो सकता है आपकी यह कल्पना आपको हकीकत लग रही है। प्लीज मेरी बात मानिए अब जाकर सो जाइए। सुबह उठकर बात करेंगे।"

“अजनीश मैं, मैं सच कह रही हूँ, यहाँ कैलेंडर था। तुम, तुम मुझ पर विश्वास कर रहे हो न? अभी-अभी मैंने यहीं पर देखा था।"

"हाँ, हाँ, मैं आप पर पूरा विश्वास कर रहा हूँ। अब यहाँ से चलिए और सो जाईए आपकी नींद अभी पूरी नहीं हुई आराम से सो जाइए, सुबह बात कर लेंगे। अब रात के चार बजने वाले हैं चलिए यहाँ से। सुबह हम सब वापस जा रहे हैं आप को पता है ना।"

"तुम मेरी बात को टाल रहे हो अजनीश, तुमको मुझ पर विश्वास नहीं है, जाओ तुम सो जाओ।" मेंहदी अनजाने में गुस्से में आ कर आप की जगह तुम कहकर संबोधन करने लगी। "मुझे नहीं सोना और हाँ मेरी वजह से तुम्हारी कीमती नींद बरबाद हो गयी। सॉरी माफ कर दो। अब जाओ चैन से सो जाओ। मैं यहाँ ठीक हूँ। मुझसे गलती हो गई कि मैंने तुमको यह सब बताया। तुमको अपना अच्छा दोस्त माना, सॉरी, तुम इस काबिल ही नहीं हो कि कोई भी प्रॉब्लम तुमसे शेयर किया जाए।” गुस्से में बाहर निकलकर खुली हवा के लिए छत पर जाने लगी। अजनीश यह सुनकर चुप रहा, उसे मेंहदी के गुस्से में भी तुम कहकर पुकारना अच्छा लगा।

"मेंहदी रुक जाइए। प्लीज़। मेरा मतलब यह नहीं था, प्लीज़ रुक जाइए।" अजनीश की नींद पूरी तरह से उड़ चुकी थी। वह मेंहदी को रोकने की कोशिश करने लगा मगर मेंहदी सुनने के लिए बिल्कुल तैयार नहीं थी। वह छत की तरफ बढ़ने लगी, पीछे-पीछे अजनीश भी।