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हवेली - 18

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अंकिता सुबह उठकर बहुत बेचैन थी। जुई और अंकिता एक ही कमरे में रहते हैं। बिना कोई कारण अंकिता की बेचैनी उसे समझ में नहीं आ रही थी। बहुत देर से वह इधर-उधर टहल रही थी। एक हाथ में दूसरे हाथ को मलते हुए कमरे में इस तरह घूमते अंकिता को दो घंटे से देख रही है जुई। किसी से कुछ नहीं कहती बस अपने आपमें बातें करती जा रही है। हमेशा शांत, सरल रहने वाली अंकिता को इस तरह बेचैन देखकर वह चुप कैसे रह सकती थी आखिर दोनों में गहरी दोस्ती जो है। जुई चुप रह नहीं पाई, आखिर पूछ ही लिया, “क्या बात है अंकिता? कुछ बेचैन-सी लग रही हो। अगर कोई परेशानी हो तो मुझे बता सकती हो शायद मैं तुम्हारी मदद कर सकती हूँ।"

"कुछ नहीं, मुझे किसी की मदद की कोई जरूरत नहीं, ओके।"

"अंकिता इसमें तुम इतना नाराज क्यों हो रही हो? मैंने क्या गलत कह दिया?"

"नहीं तुम कैसे गलत कह सकती हो गलत तो मैं हूँ।"

"फिर ये नाराजगी किस लिए ..."

कुछ क्षण चुप हो गई अंकिता फिर बोली, "सॉरी यार आई हेव सम टेंशन।"

"मुझे बता नहीं सकती?"

"छोड़ जाने दे, बताने लायक ऐसी कोई बात नहीं।"

"लेकिन फिर भी मुझे बता कर तो देख मन हल्का हो जाएगा।"

"कह रही हूँ ना ऐसी कोई बात नहीं है। बार-बार क्यों उस बात को लेकर बैठ जाती है। कह रही हूँ न अकेला छोड़ दो मुझे।" जुई चुप हो गई। वह अपने कमरे से निकलकर स्वागता के कमरे में चली गई। स्वागता रजाई ओढ़कर सोने जा रही थी। जुई को देखकर “अरे, जुई इस वक्त? सोई नहीं अभी तक? "

"मन नहीं किया तो आ गई।"

"क्यों क्या बात है? किसी की याद सता रही है क्या? बोल बोल।" आँख मारते हुए कहा।

"नहीं रे, मूड ठीक नहीं है।"

"अब तेरे मूड को क्या हो गया?"

"कुछ नहीं, ये बता अन्वेशा इतनी जल्दी सो गई ?"

"शायद।"

"मेंहदी दीदी नहीं दिख रही है।"

"फ्रेश हो रही है, सोने से पहले स्नान करने की आदत है, लेकिन तू बात टाल रही है, क्या बात है बता दीदी आ जाएगी। लव बॉय से बात नहीं हो पाई क्या?"

"अरे जा, और कोई बात नहीं हो सकती क्या ?"

"तो फिर बोल न, मुझे कैसे पता चलेगा ?"

"अंकिता है न, पता नहीं बहुत परेशान लग रही है और मैंने जब पूछा मुझ पर नाराज़ हो रही है। "

"बस, इतनी-सी बात।"

"ये इतनी-सी बात नहीं है। अंकिता को कभी भी ऐसी हालत में नहीं देखा। बहुत अच्छी तरह जानती हूँ मैं, आज अजीब-सा व्यवहार कर रही है।"

"तू खुद तो कह रही है वह परेशान है, तो कुछ नाराज़ हो गई तो क्या हो गया।"

"मुझे तो बता सकती है न यार।" कुछ क्षण चुप होकर बोलने लगी।

"वह हमेशा हर छोटी-छोटी बात मुझसे शेयर करती है, मगर आज मुझ पर ही नाराज़ होने लगी है, वह भी बिना कोई कारण...।" जुई को अंकिता का व्यवहार कुछ अजीब-सा लग रहा था। कुछ सोचते हुए अपनी उँगुलियों के नाखून चबाने लगी। मेंहदी बाथरूम के दरवाजे पर खड़ी सारी बातें सुन रही थी। जब वह स्नान पूरा करके बाहर आयी तो अंकिता का नाम सुनते ही वहीं रुक गई। दोनों की सारी बातें सुनकर उन्हें बिना डिस्टर्ब किये ही वह चुपचाप अंकिता के कमरे की ओर चल पड़ी। जब मेंहदी ने कमरे में प्रवेश किया तो कमरे में कोई नहीं था।

"अंकिता... अंकिता..! " कोई जवाब नहीं मिलने से कमरे से वापस जा ही रही थी कि मेंहदी की नजर बाल्कनी की तरफ गई। ऐसा लगा कि वहाँ कोई है। सोचते हुए उस ओर चल पड़ी मेंहदी ।

खुली बाल्कनी से वहाँ का सारा जंगल नजर आता है।

बाल्कनी की चारों तरफ दीवार बनी हुई है। कभी-कभी बाल्कनी में खड़े होकर जंगल को देखना अच्छा लगता है, लेकिन अंधेरे में खूबसूरत नजारा भी भयानक नज़र लगने लगता है। वह बाल्कनी, महल की दूसरी मंजिल पर है। बल्कनी के करीब आते ही मेंहदी ने देखा अंकिता उस दीवार पर चढ़ रही है। दीवार के उस पार ४० फुट की खाईं है, जिसमें पत्थर और कंकड़ के अलावा कुछ नहीं।

उस दीवार से जो भी कोई नीचे गिरेगा, उसका नामोनिशान तक नहीं रहेगा। सोचते ही मेंहदी काँप उठी। "अंकिता क्या कर रही है ? मरना है क्या?" कहते हुए भागकर पास आई।

"नहीं, दीदी पास मत आओ मैं कूद जाऊँगी।" कहते हुए अंकिता आगे बढ़ने लगी। स्वागता की सारी सहेलियाँ मेंहदी को दीदी कहकर बुलाती हैं।

"लेकिन क्यों अंकिता, जिंदगी कोई खेल नहीं है, जब चाहा खत्म कर दिया। जिंदगी बहुत कीमती होती है अंकिता। प्लीज रुक जाओ। गिर जाओगी।”

“नहीं मेरे पास मत आओ। मुझे मरने दो दीदी । "

"क्या बदनाम होकर मरना चाहती हो।" अंकिता ने आश्चर्य से मेंहदी की ओर देखा। "ऐसे क्या देख रही हो मैं सब कुछ जानती हूँ। अगर तुम अपने माथे पर कलंक लेकर मरना चाहती हो तो मैं नहीं रोकूँगी, लेकिन उसके बाद तुम्हारे घरवालों का क्या?"

तुम तो मर जाओगी लेकिन वे जो बदनाम होंगे उसका क्या? तुम्हारी हरकत से वे तो जीते जी मर जाएँगे। तुम मरना चाहती हो न ठीक है मैं नहीं रोकूँगी, लेकिन उससे पहले ये बताओ कल रात जो इंसान तुम्हारे साथ था वो कौन था। उसका नाम बता दो कौन है वह जो तुम्हारी मौत का कारण है। "

"अंकिता की आँखें पानी से भर आयी। "

"नहीं दीदी आप गलत समझ रही हो। आप जैसा सोच रही हो वैसा नहीं है।"

“तो फिर मुझे समझा दो कि मैंने क्या गलत सोचा और सही क्या है। जिसके लिए तुम अपनी जिंदगी खत्म करने पर तुली हो क्या इसके जिम्मेदार वह नहीं?" मेंहदी ने कठोर आवाज में पूछा। मेंहदी जानती थी कि अगर उसे मनाने की कोशिश की जाएगी तब वह अपनी बात को सच साबित कर सकती है। इसलिए वह अंकिता के प्रति कठोर शब्द इस्तेमाल न करते हुए बातों में ही उलझाकर अंकिता को खाई में कूदने से बचा लिया। फिर पीछे मुड़ कर चल पड़ी।

"दीदी रुक जाओ, प्लीज, मुझे कुछ कहने दो।” कहते हुए वह दीवार से नीचे उतर गई ।

“अपनी आत्मा से पूछो अंकिता तुम जो कर रही हो क्या व सही है?”

"दीदी प्लीज, ऐसे मत बोलो, मेरी बात सुन लीजिए।"

"कारण जो भी हो अंकिता तुम जो करने जा रही थी वह सही नहीं था और वह भी जो कल रात मैंने अपनी आँखों से देखा।" मेंहदी कुछ नरम हो गई। अंकिता मेंहदी का हाथ पकड़कर अपने कमरे में ले गई। वे दोनों अंकिता के कमरे में वापस आ गए। अंकिता चुपचाप खड़ी रही। वह समझ गई कि उस रात जब वह दूसरे कमरे में गई तब मेंहदी ने जरूर उसे देख लिया है। इसलिए वह ऐसे शब्द इस्तेमाल कर रही है। इसलिए उसे सब कुछ सच बताना ही होगा।

कुछ दिन पहले की बात है, जब वह कॉलेज से वापस घर आई घर में खुशी का माहौल था। सब खुश दिख रहे थे। हॉल में अंकिता का भाई राजू दिखाई दिया।

"राजू क्या बात है बोल घर को इतना क्यों सजाया जा रहा है ?" आठ साल के राजू को रोककर अंकिता ने पूछा "माँ, दीदी आ गई, बाबू जी दीदी आ गई।" कहते हुए राजू अंदर भाग गया।

“राजू मुझे बताकर तो जा।" पीछे से आवाज दी लेकिन अंकिता को सुनने वाला कोई नहीं था। वह सीधा किचन में गई। माँ पकौड़े बना रही थी। गिलास में पानी भरकर पीते हुए पूछा, "माँ, क्या बात है? सब बहुत खुश हैं, मुझे भी बताओ न क्या हो रहा है ।”

"तू आ गई अंकिता, जा जल्दी से तैयार हो जा, मेहमान आ रहे हैं।"

"तैयार तो हो जाऊँगी, मगर ये बता कौन आ रहा है ?"

"तुझे देखने लड़के वाले आ रहे हैं।" पानी अंकिता के गले में ही अटक गया और अंकिता जोर-जोर से खाँसने लगी। पानी नाक और मुँह में चला गया। माँ घबराकर सिर और पीठ पर थपथपाने लगी।

"अरे बेटा सँभाल के।" कुछ देर में अंकिता ने अपने आपको सँभाल लिया। लड़के वाले आए और चले भी गये। क्या बात हुई, क्या कहा, कुछ भी अंकिता की समझ में नहीं आ रही थी। एक कठपुतली की तरह उसे जो कहा जाता था वह करती जा रही थी। अंकिता के मन में क्या है? उससे किसी ने पूछा तक नहीं। अंकिता को जब सब बधाई देने लगे, तब वह होश में आयी। तब तक सारे रिवाज पूरे हो चुके थे। दूसरे ही दिन वह जब कॉलेज आई उसके चेहरे का रंग उड़ गया था। वह किसी को ढूँढने लगी थी। जब लाईब्रेरी के एक कोने में सौरभ को देखा उसका हाथ पकड़कर उसे बाहर खींच लाई। पिछली रात को जो भी हुआ, सारी बात बताई। सौरभ का चेहरा म्लान पड़ गया। दोनों टेंशन में दिख रहे थे।

"मेंहदी बीच में ही पूछ बैठी, ये सौरभ कौन है?"

"मेरी ही क्लास में पढ़ता है और हम दोनों एक-दूसरे के बिना जिंदगी जीना भी नहीं चाहते। "

"तो वह शख्स कौन था, जो तुम रात को मिलने गई थी?"

अंकिता बहुत देर तक चुप रही।

"वह सौरभ था।"

"लेकिन सौरभ तो आपके साथ नहीं आया था।"

“हाँ वह अकेले ही सबकी नज़र से छुपकर हमारे आने के बाद यहाँ पहुँचा।"

“फिर तुम अपना जान देने को क्यों तैयार हुई थी। क्या तुमने ऐसा कुछ किया है जिससे तुम्हारे घरवाले शर्मिंदगी महसूस करें।"

"नहीं, नहीं मैं अपना हद बिल्कुल समझती हूँ।"

“फिर आत्महत्या करने को क्यों सोचा?"

"सौरभ और में एक-दूसरे को चाहते हैं, उसके बिना किसी और के साथ जिंदगी बिताने को में सोच भी नहीं सकती।”

“क्या सौरभ भी तुम्हें उतना ही चाहता है जितना तुम उसे चाहती हो ?"

"शायद, हाँ.....। वह भी मेरे बिना जीने को सोच भी नहीं सकता।"

“इस कारण जान दे देना कोई गर्व की बात नहीं है। अगर तुम्हारा प्यार सच्चा है और सौरभ भी तुम्हें उतना ही चाहता है जितना की तुम, तो इस बात को घरवालों को बताकर सुलझाना चाहिए न कि...”

"अगर हमें हमारे परिवारवालों ने इजाजत नहीं दी तो...?"

"पागल मत बनो, हर समस्या का समाधान जान देना नहीं होता ।"

"मेरे पास और कोई रास्ता नहीं था।"

“लेकिन तुम्हारी यह कोशिश तुम्हें और तुम्हारे परिवार को बदनामी के अलावा कुछ नहीं देगी। फिर भी अगर तुम यही चाहती हो तो ठीक है, मैं तुम्हें नहीं रोकूँगी, लेकिन एक बार अपने घरवालों से बात करके तो देखा होता। मैं जानती हूँ वे बिल्कुल समझेंगे। अगर फिर भी किसी कारण वे नहीं समझते हैं, तो मैं वादा करती हूँ मैं तुम्हारा साथ दूँगी।"

अंकिता इस बार रो पड़ी। मेंहदी ने अपने काँधे का सहारा देकर उसे रोने दिया। कहते हैं रोने से दिल हल्का हो जाता है। बहुत देर बाद अंकिता चुप हुई।

"ठीक है, अब सो जाओ, सुबह बात करेंगे, काफी रात हो चुकी है। पागल जैसी बात करके जान देने की कोशिश मत कर, सुबह आराम से बैठकर इसका हल निकालेंगे और भूलना मत मैं तुम्हारे साथ हूँ। अगर कोई भी बात तुम्हें परेशान करती है तो बेझिझक मुझे बता देना। मैं जाकर जुई को भेजती हूँ ठीक है।" अंकिता ने अच्छी बच्ची की तरह ‘हूँ’ कहकर सिर हिलाया।