Kasbaai ladki ki prem katha books and stories free download online pdf in Hindi

कस्बाई लडकी की प्रेम कथा

कस्बाई लड़की की प्रेम कथा

नब्बे के दशक के शुरूआत में आयी एक मल्टी स्टारर फार्मूला फिल्म का संवाद था, जो झरने, पहाड़, हरियाली से भरे नितान्त रोमांटिक माहौल मे नायिका का हाथ अपने हाथ मे लेकर नायक बोलता है, श्३ण्ण्हमारे कबीलों के बीच पीढ़ियों से नफरत की जो नदी बह रही है, उस पर हम दोनों मिलकर मोहब्बत का एक पुल बनायेगें३ण्ण्श्

फिल्म ज्योति टाकीज में लगी थी और इस संवाद पर किशोर व युवा वर्ग के दर्शको ने जमकर तालियां ठोकी थी। लगभग इसी कालखण्ड में हमारे महाविद्यालय के कला संकाय (आर्ट फैकेल्टी) में भी एक ऐसी ही प्रेम कहानी का फिल्मांकन चल रहा था। लड़की एक अति सम्पन्न ब्राह्मण परिवार से ताल्लुक रखती थी। देखने में ष्चैदवी का चांद या आफताब होष् जो भी तुम खुदा की कसम लाजवाब हो३ण्ष् सरीखी। लड़का कालेज के ही भारी भरकम प्रोफेसर का नियमित रूप से जिम जाने वाला छरहरा, गोरा स्मार्ट पुत्र था और क्षत्रिय बिरादरी से संबद्ध था।

हमारे यहां हिन्दू धर्म की इन दो श्रेष्ठ जातियों के बीच कटुता व वैमनस्य का लम्बा इतिहास रहा है। कभी-कभी विशेषकर चुनावों के वक्त ये बहुत वीभत्स रूप धारण कर लेता है। जातीय विभेद को इस घृणित स्तर तक पहुंचाने मे वैसे तो दोनो जातियों की भागीदारी है। पर यदि तुलनात्मक दृष्टि से देखा जाय तो इसका सर्वाधिक श्रेय ब्राह्मण नेताओं को जाता है। क्षत्रियों की तुलना में ब्राह्मणों की आबादी कई गुना अधिक है। उनके मतों की एक जुटता चुनावी नतीजों का प्रभावित करने की क्षमता रखती है। सो, चुनावों की दस्तक होते ही चुरकी व जनेऊ वालो को लामबंद करने के लिए ये खद्दरधारी व उनके चमचे पिल पड़ते है। इस दरम्यान सार्वजनिक वार्तालाप में जागरूक ब्राह्मणों की जुबान पर क्षत्रियों की एकजुटता, बडबोलेपन, दबंगई, अहंकार, सत्ता सुख के लिए किसी भी स्तर तक गिर जाने की चारित्रिक कमजोरी आदि का धारा प्रवाह बखान होता है। कुछ पड़े-लिखे, बुद्धिजीवी मार्का ब्राह्मण तो अपनी बात की सत्यता को प्रमाणित करने के लिए इतिहास का सहारा लेने लगते है... जोधाबाई के पिता व भतीजे राजा मानसिंह की सत्ता लो लुपता का उदाहरण देने से वे कतई नही चूकते। हां, इस बीच राणा प्रताप का भूलकर भी वह स्मरण नही करते क्योकि इससे उनकी प्रमाणिकता के संदिग्ध हो जाने का खतरा जो होता है। दो-चार अपवादों को छोड़ दे, तो इस क्षेत्र के अधिकांश ब्राह्मणों की विपन्नता किसी से छिपी नही है और उन्हें इसके जग जाहिर होने का कोई अफसोस भी नही है। सो, क्षत्रिय बन्धुओ को उन्हें सामूहिक रूप से दरिद्र, पेटू, बिकाऊ, सुदामा अवतार आदि कहने का नैतिक अधिकार तो है ही। साथ ही लगे हाथ दो-चार अश्लील गालियां बोनस के तौर पर जोड़ देने में वे कोई गुरेज नही करते। परस्पर प्रतिद्वन्दी इन दोनो जातियों की तत्कालीन हैसियत व हनक का सटीक आकलन करने के लिए बस यही तथ्य काफी है कि राजनैतिक रूप से सुदृढ़ व संख्या बल मे मजबूत होने के बावजूद ब्राह्मण अपनी कटु भावनाओं को क्षत्रियों की अनुपस्थिति में व्यक्त करना ज्यादा मुफीद समझते है, जबकि क्षत्रिय भाई रौ मे आने के बाद अपनी बुरी भावनायें सार्वजनिक करते वक्त ब्राह्मणों की उपस्थिति की रंच मात्र परवाह नही करते।

खैर, जाति- बिरादरी के बीच की तनातनी व कटुता की जरा परवाह किये बिना वो दोनो प्रेम की सीढ़िया चढ़ते जा रहे थेे। एक ऐसे रूढ़िवादी, परम्परागत कस्वाई माहौल मे, जहां प्रेम करना जघन्य अपराध करने के समतुल्य हो और लड़कियो के लिए तो प्रेम में पड़ना उनके चरित्रहीन होने की शत प्रतिशत गारन्टी हो। उन दोनो की हिम्मत काबिलेदाद थी। उनकी प्रेम कहानी की चर्चा कैम्पस के छात्रो की जुबान रहती थी। हर मुद्दे पर शोध करने के शौकीन कुछ छात्र इस पर बड़ी बारीक नजर गड़ाये थे और मामले में प्रगति के नाम पर रोज नयी-नयी जानकारियां उपलब्ध कराते थे... लाइब्रेरी के फलां कोने में लड़के ने लड़की प्रेम-पत्र थमाया, जिसे शरमाकर किताबों के बीच रख लिया उसने। फस्र्ट जनवरी (अफसोस कि तब तक वेलेन्टाइन डे आस्तित्व में नही आया था) की सुबह लड़के ने लड़की को ताजा गुलाब‘ पेश किया, जिसे उसने बडी अदा से मुस्करा कर ग्रहण किया। एक रोज लड़की कालेज गेट पर रिक्शे से उतर रही थी, तो ढिठाई की हदे पार करते हुए लड़के ने उसे जोरदार फ्लाइंग किस ठोका.... पगैरह... वगैरह...पढ़ाई के दबाव व थकान के बीच हमे उन खुफिया लड़को का बडी ब्रेसबी से इंतजार रहता। उनकी बाते बड़ी भली लगती। कुछ-कुछ जादुई सी। हम तरोताजा हो जाते और अनायास ही गुनगुना उठते-श् ३ण्ण् मेरी जिन्दगी मे आते तो कुछ और बात होती, ये नसीब जगमगाते तो कुछ और बात होती३ण्ण्श्

धीरे-धीरे बात कालेज कैम्पस से बाहर निकलउनके घरों तक जा पहुंची। लड़के के परिवार के लिए ये खबर अप्रत्याशित न थी क्योकि उसका आवास प्रेम प्रसंग के केन्द्र बिन्दु रहे कालेज कैम्पस से सटे टीचर्स कालोनी मे था। सम्भवतः लडके ने उपरोक्त प्रेम सम्बन्ध विकसित करने की मौन स्वीकृति परिवार से प्राप्त कर रखी थी और इस मोर्चे पर खुद को काफी होशियार भी साबित कर रहा था। हां, लड़की के घर वालों ने उसके इस कदम का ब्यापक विरोध किया। खानदान की इज्जत प्रतिष्ठा की दुहाई देने से लेकर मान मनौवल तक हर नुस्खे को आजमाया गया। एक सीमा में रहकर थोडी बहुत यातनाएं भी दी गयी। पर कहते है कि प्रेम की आंधी बडे से बडे अड़चन के पहाड़ को तिनके के माफिक उड़ा ले जाती है। अन्ततः घर वाले लड़की की जिद के आगे थोडा नरम पडे और भारी मन से ही सही इस बहुचर्चित हो चुके सम्बन्ध को सामाजिक मान्यता देने के बारे मे विचार होने लगा।

३ण्ण् लड़की खुशी के मारे फूले नही समा रही थी। उसकी शादी, वो भी परिवार की सहमति से......खुली आंखों से देखा गया सपना सच की शक्ल अख्त्यिार कर सामने आ खडा़ हुआ, तो एक पल को तो उस पर विश्वास ही नही हुआ। अपने प्रेम सम्बन्ध के सार्वजनिक होने के बाद से वह काफी तनाव में जी रही थी। घर मे हमेशा एक घुटन भरी चुप्पी छायी रहती। मम्मी-पापा, छोटा भाई कोई भी उससे सीधे मुंह बात करने को तैयार नही। उनमे सबसे उखडा तो छोटा भाई अंकित था, जो कभी अपनी छोटी-छोटी फरमाइशे पूरी कराने के लिए उसके पीछे-पीछे लगा रहता था। ऐसा नही है कि लड़की भाई की मनः स्थिति नही समझती अंकित का तनाव भरा चेहरा देखकर वह बहुत आहत होती। उसे पता था कि उसकी वजह से उसके अंकित को कितना सामाजिक उपहास झेलना पड़ता होगा। महानगरो मे भले अंतजातीय विवाह को काफी हद तक सामाजिक मान्यता मिल गयी है, परन्तु छोटी जगहो पर आज भी ऐसे विवाह आसानी से हजम नही होते। काफी दिनो तक ऐसी शादिया लोगो मे हंसी-ठिठोली व मनोरंजन का विषय बनी रहती है। उन दिनो लड़की के हालत ऐसे थे कि घर में कही सब लोग बैठ कर बात-चीत कर रहे हो और वह अचानक पहुच जाये तो जैसे रंग मे भंग सा पड़ जाता। सब गूंगे बनकर बैठ जाते। अपनी झेंप मिटाने की गरज से मेज पर पड़ा अखबार उठाकर वह एक झटके मे दूसरे कमरे मे आ जाती। अनमने ढंग से अखबार पर नजर डालती तो, तो सहम जाती..... आनर किलिंग- भाई ने बहन की गला घोंट कर हत्या की......प्रेमी-प्रेमिका के शव पेंड पर लटके मिले- हत्या की आशंका! न जाने क्यो, लड़की को दूरदराज की उन दिवंगत आत्माओ से अपना एक सा रिश्ता सा महसूस होता और फिर वह बेहद उदास हो जाती। ऐसे दमघेटू वातावरण से निजात पाना लड़की के लिए नया जीवन मिलने जैसा था।

इन्गेजमेन्ट की तारीख निश्चित हो चुकी थी- घर मे बिना शोर-शराबे के उसकी तैयारियां चल रही थी। कैटर्स की व्यवस्था, डिनर का मैन्यू फाइल करना, खास मेहमानो की लिस्ट, कोठी की सजावट का इंतजाम, कपउे-गहनो की खरीददारी इत्यादि का काम धीरे-धीरे तेजी पकड़ रहा था। मर्जी के खिलाफ इकलौती बेटी के अन्र्तजातीय विवाह करने की तीखी टीस धीरे-धीरे मंद पड चुकी थी। घर मे उत्सव का माहौल बन रहा था। लडकी पहले जो छिप-छिपाकर करती थी, अब खुलेआम करने लगी। दिन भर उसके कान फोन की बेल पर टिके रहते। फोन बजता, तो सबसे पहले दौड कर वही उठाती। फिर घन्टो उससे चिपकी रहती। फोन रखने के बाद वह अक्सर गुनगुनाने लगती, श् ३ण्ण् अब मुझे रात दिन तुम्हारा ही खयाल है३ण्ण्श्

जैसा कोई फिल्मी गाना। दिन मे कई बार उसकी सुरमई आंखे कलेण्डर में छपी तारीख पर जाकर टिक जाती। उसके एक-एक पल महीनो की तरह बीत रहे थे। रहते करते वह बहुप्रतीक्षित दिन भी आ गया। कोठी के साथ-साथ उसके सामने पडने वाले बगीचे के पेड-पौधों को बिजली की चमकीली झालर से बडे ही आकर्षक ढग से सजाया गया था। वर पक्ष के आगमन पर पिता ने खुले दिल व बडी गर्मजोशी से सबका स्वागत किया। लडके के क्रीम कोट पैंट पर रेड कलर की टाई बेहद फब रही थी। किसी राजकुमार जैसा दिख रहा था वह। पर लडकी जब बाहर आयी तो जिसने भी उसे देखा, ठगा खडा रह गया। लाइट पिंक कलर के लहंगा चुनरी में वह आसमान से उतरी परी जैसी दिख रही थी। इन्गेजमेन्ट की रस्में शुरू हुई....... पहले लडके ने लडकी को हीरे की अंगूठी पहनाई और फिर लडकी ने लडके को। बच्चों ने पुष्प वर्षा की और बडों ने सुखमय दाम्पत्य जीवन का आर्शीवाद दिया। वीडियोग्राफी, फोटोग्राफी निबटने के बाद देर रात तक खाना-पीना चला। पंडित जी ने शादी की तारीख निकाली, जो लगभग दो महीने बाद पड रही थी। लडके वाले अपनी सेवा-सुश्रुण से प्रभावित खुशी-खुशी घर लौटे। कट्टरपंथी सोच रखने वाले कुछ बाह्मण रिश्तेदारों ने जरूर इस समारोह का बहिष्कार किया, पर इसकी रौनक पर उसका कोई खास असर न हुआ। हमारे पुरातनपंथी कस्बे के लिए यह एक ऐतिहासिक क्षण था, जब दो जातियों के बीच बहने वाली नफरत की नदी पर मोहब्बत का पुल बनकर तैयार खडा था। उसके लोकार्पण की तिथि भी निश्चित हो चुकी थी।

एक सुबह लडकी ने पिता को उखडा-उखडा देख पूछा, ‘‘क्या बात है ...... पापा..... आप कुछ परेशान से दिख रहे है....’’ अब क्या कहू बेटे....... बात कुछ मेरे समझ में नही आ रही है.......... अभी कुछ देर पहले प्रोफेसर साहब का फोन आया था...... बहुत बदले-बदले अंदाज में बात कर रहे थे और फिर कुछ ही देर में बडे छिछले स्तर पर आ गये...... कहने लगेे कि हमें दर्जन भर सूट लेन्थ देने होगें और रेमण्ड कम्पनी के ही देने होगे...... यहाॅ तक तो ठीक था पर बाद में कहने लगे कि सूट की सिलाई का खर्चा भी हमें ही देना होगा....... अब हम से जो हो सकेगा करेगे...... अपनी तरफ से कोई कसर थोडे ही छोडेगें, पर इस तरह की बातें........ मोलभाव वो भी लव मैरिज में...... मेरे तो कुछ समझ में नही आ रहा........’’

लडकी को सहसा अपने कानों पर विश्वास ही न हुआ। फिर उसने सोचा कि हो सकता है, किसी रिश्तेदार ने भडका दिया हो और पापा का ’कास्ट-काम्पलेक्स’ फिर से डेवलेप हो गया हो। अब वह इधर-उधर की लगाने की हद तक उतर आये हो। उसे अपनी मोहब्बत पर पूरा भरोसा था, फिर भी मन के एक कोने में कुछ उथल-पुथल तो जरूर शुरू हो गयी थी। पापा के लाॅन में बैठते ही उसने फोन मिलाया। ‘‘......हाय..... कैसी हो, डियर।’’ उधर से चुहलबाजी से भरी लडके की आवाज आयी।

‘‘.....ठीक ही हूॅ.......ये बताओ कि सुबह-सुबह तुम्हारे डैडी का फोन आया था मेरे पापा के पास...... दहेज में हमारी ओर से तुम्हारे गरीब रिश्तेदारों को जो सूट-लेन्थ दिये जायेगें, उसकी सिलाई मांग रहे थे...... मैं समझ नही पाई इसका मतलब..... क्या तुम्हारी जानकारी में हो रहा है ये सब.....’’ लडकी ने जोर देकर पूछा।

‘‘.....कूल डाउन......डियर.......देखो ऐसा है कि मैं घर का सबसे बडा बेटा हू और इस शादी को लेकर डैडी के बहुत सारे अरमान है.... उन्हें घरवालों, रिश्तेदारों सभी को सन्तुष्ट करना है..... वह गलत नहीं कह रहे..... अरे भाई, वो ठहरे लडके वाले..... अब उनकी कुछ तो लडकी वालों को झेलनी ही पडेगी....’’

लडके की बात सुन एकबारगी लडकी सिर से पाव तक मारे क्रोध के कांप उठी। जिस रूमानी कल्पना लोक में वह इन दिनों जी रही थी, ये छिछलापन उससे बहुत परे था। चाहकर भी वह खुद को रोक न पायी और फोन पर ही फट पडी,

‘‘भाड में जाओ तुम.... भाड में जाये तुम्हारे डैडी और भाड में जाये में प्यार-व्यार..... अब शादी ही नहीं करनी मुझे तुमसे......एवरीथिंग इज फिनिस्ड..... आज के बाद से मुझसे बात करने की कोशिश मत करना........’’ इतना कहते-कहते उसकी आवाज हिचकियों में खो गयी और फोन काट दिया उसने। लडका एकदम सकते में आ गया। उसने लडकी से बात करने की कई बार कोशिश की, पर वह फोन पर नहीं आयी। वह घर गया तो लडकी ने उससे मिलने से साफ इन्कार कर दिया। माॅ ने लडकी को समझाने की कोशिश की तो उसने कमरे का दरवाजा अन्दर से बन्द कर लिया। बिस्तर पर पडी देर-देर तक फूट-फूटकर रोती रही। आंसुओ की शक्ल में दर्द कतरा-कतरा कर बहता रहा। विडम्बना ही है कि अभी कुछ दिन पहले जिस बात के लिए लडकी ने घर में अनशन सा छेड रखा था, अब वही बात उसे घरवाले समझाते, पर वह उस पर कान न देती। बस टुकुर-टुकुर देखा करती। पागलों सी, उसकी हंसी, ठहाको, गाने-बजाने, चहल-कदमी से गुलजार रहने वाली भव्य कोठी अब जैसे मातम की धुंध से भर गयी थी। अधिकतर वह अपने कमरे में बन्द रहती। खाना-पीना तक छूट गया था उसका। माॅ उसकी ये हालत देख छटपटाती रहती। मौका पाते उसे घेरकर बैठ जाती। समझाने लगती पर वह बुत बनी बैठी रहती। इस बीच लडके ने भी हर सम्भव स्रोत से उसे मनाने की कोशिश की। पर नाकाम रहा। लडकी उसकी कोई सफाई सुनने को तैयार न थी। दरअसल सीधी-सरल दिखती ये प्रेम कहानी एकबारगी बेहद पेचीदगी का शिकार हो गयी थी। एकाएक रिश्ते में विश्वास का घोर संकट आन खडा हुआ था। विश्वास की दीवार होती ही ऐसी है, जब गिरती है तो अररा कर गिरती है। फिर वहाॅ कुछ भी बचता, स्मृतियों के गुबार के सिवा।

एक सुबह लडकी अपने कमरे में बेड पर अचेत मिली। कुछ समय पहले उसके नाक से निकला खून जमकर काला पड गया था। आनन-फानन में उसे अस्पताल पहुॅचाया गया। डाॅक्टरों ने उसकी ऐसी अति गम्भीर अवस्था का कारण दिमाग की नस फट जाना बताया-सीवियर ब्रेन हेमरेज। वह कोमा में जा चुकी थी। अस्पताल के आई.सी.यू. में उसका इलाज चल रहा था पर डाॅक्टरों के चेहरे पर पल-पल बढ रही हताशा बता रही थी कि इस केस में उसके करने के लिए कुछ खास बचा नही है। जिन्दगी और मौत का फासला धीरे-धीरे कम से कमतर होता जा रहा था।

......कस्बे का इतिहास बदलने चली वह लडकी अब खुद इतिहास बनने के मुहाने पर खडी थी।

- प्रदीप मिश्र