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कसर

ज़िंदगी की किताब के पन्ने फिसलते वक्त के साथ साथ पलटते चले जा रहे है। ये घर, ये गली या सिर्फ ये शहर नही सारी दुनिया भाग रही है। सुबह की शुरुआत आँख मलते होती है लेकिन रात होते होते हम हाथ मलते रह जाते है कि एक दिन और कट गया मगर जिया नही गया। हर कोई बस भाग रहा है। पर सब भाग क्यों रहे है? जाना कहाँ है? ऐसे ख़्याल कभी - कभी नीलिमा को गुदगुदा जाते है। मुम्बई की बारिश और हाथ मे चाय का कप लिए गैलरी में खड़े अपनी ही ख़्यालों में दौड़ते - भागते लोगों के बारे में कुछ सोच ही रही थी कि अजय के फ़ोन ने उसकी तन्द्रा भंग की। 'नीलू, सुनो ना यार बारिश हो रही है। शाम को अगर पकोड़े मिल जाते तो अच्छा होता, नही?' , 'बिल्कुल! मैं भी सोच ही रही थी कि पकोड़े बनाये जाएं। अच्छा सुनो, कल रोहन के स्कूल में पेरेंट्स मीट है। आप आज ऑफिस का काम करके आना कल आपको देर हो जाएगी।', 'अरे यार नीलू, तुम चली जाओ ना। पेरेंट्स मीट ही तो है। तुम जाओ मैं जाऊँ एक ही बात है। और फिर हमारा रोहन तो होशियार है। इस बार भी उसने टॉप ही किया होगा। अब मैं रखता हूँ बहुत काम है। बाय।' नीलू का जवाब सुने बगैर अजय का यूँ फ़ोन काट देना पहली बार नही था। ना जाने कितने समय से चल रहा था ये सब। अजय के पास वक़्त ही नही था नीलिमा और रोहन के लिए। अब तो वो दोनो माँ बेटे ये बात मान चुके थे कि अजय के लिए पहले ऑफिस का काम था बाद में परिवार। नीलिमा ने बहुत कोशिश की अजय को समझाने की कि रोहन के साथ थोड़ा वक़्त बिताया जाएं लेकिन कोई फायदा ना हुआ। बेचारी हर बार अपना मन मसोसकर रह जाती। करे भी तो क्या? एक वक़्त के सिवा अजय उन दोनों को सबकुछ दे रहा था। नियति मानकर दोनो माँ - बेटे एक दूसरे के साथ ही वक़्त बिता लिया करते। और ये कहानी सिर्फ़ नीलिमा की तो है नही। इस देश मे करोड़ो लोग अजय की तरह है जो अपने परिवार को वक्त के सिवा सबकुछ दे रहे है। नीलिमा फिर से ख़्यालों में खो गयी थी कि रोहन की आवाज़ आई, 'मम्मा, मैं नीचे खेलने जा रहा हूँ अपने दोस्तों के साथ।', 'रोहन रुको, बाहर बारिश हो रही है बेटा। भीग जाओगे सर्दी लग जायेगी।' रोहन नीलिमा की बात सुनने से पहले ही जा चुका था। नीलिमा परेशान होकर उसके पीछे गयी। रोहन अपने दोस्तों के साथ में बारिश में बास्केटबॉल खेल रहा था। नीलिमा ने रोहन को ज़ोर से डाँट लगाई और अपने साथ चलने को कहा। मगर बास्केटबॉल खेलते वक़्त रोहन किसीकी नही सुनता। पढ़ाई लिखाई में होशियार रोहन अब बास्केटबॉल से दिल लगा बैठा था। नीलिमा ने और ज़ोर से डाँट लगाई तब जाकर रोहन वापिस घर आया। लेकिन वापिस आने तक रोहन पूरा भीग चुका था। 'मम्मा क्या यार। कभी तो मन की करने दिया करो। छोटा बच्चा नही हूँ मैं। कल 10th के रिजल्ट्स है। और आप हो कि अभी भी मुझे बच्चा समझती हो।', 'खेलने को मना नही कर रही हूँ। बारिश में खेलने को मना कर रही हूँ।', 'मम्मा यु नो आई लव बास्केटबॉल फिर भी?', ' अरे हाँ बाबा मालूम है मुझे। सब मालूम है। अब जल्दी से जाकर कपड़े बदल लें। मैं पकोड़े बना रही हूँ। पापा भी आते होंगे। तुझे ऐसे देखेंगे तो मुझे डाँट पड़ेगी।' नीलिमा ने हँसते हुए कहा। 'हाँ तो इसके सिवा पापा और करते भी क्या है? वो आपसे सीधे मुँह बात करते कब है? उनकी ज़िंदगी मे हमारी कोई अहमियत है भी या नही पता नही।' अजय के ऐसे बर्ताव का रोहन पर गलत असर पड़ता देख नीलिमा को बहुत दुःख हुआ। उसने बात सम्भालनी चाही, 'बेटा, पापा हमारे लिए कितनी मेहनत करते है थक जाते है बेचारे दिनभर इसीलिए हो जाता है कभी कभी।', 'मम्मा, विश्वास नही हो रहा है मुझे? कभी कभी? वो आख़िरी बार कब मेरे स्कूल में आये थे आपको पता भी है? ना पेरेंट्स मीट में और ना ही एन्युअल डे पर। मुझे भी याद नही आ रहा है। कल भी नही आ रहे होंगे।' कमरे में सन्नाटा पसर गया। फिर से रोहन की आवाज़ गूंजी, 'बोलो, नही आ रहे है ना वो?' नीलिमा ने बस ना में सर हिला दिया। रोहन कमरे में जा चुका था। नीलिमा किचन में खाने की तैयारी में लग गयी। रोहन का बर्ताव देखकर नीलिमा बहुत अचंभित थी। ये हो क्या रहा था वो खुद समझ नही पा रही थी। शांत सौम्य स्वभाव का रोहन आज इतना उग्र कैसे? इसी विचार में शाम निकल गयी। रात आ गयी। घड़ी में 9 बज रहे थे। डोरबेल बजी। अजय दरवाज़े पर खड़े उसके खुलने का इंतज़ार कर रहा था। नीलिमा ने दरवाज़ा खोला। अजय अंदर आया। नीलिमा ने रोहन को आवाज़ लगाई और सब साथ खाने बैठे। शाम की बात से रोहन वैसे भी उदास था। उसने कुछ नही कहा और आकर सीधे डाइनिंग एरिया में चला गया। अजय ने हमेशा की तरह कोई ध्यान नही दिया। सब ख़ामोशी से खाना खा रहे थे कि अचानक रोहन बोला - 'तो पापा कल आप स्कूल आ रहे है ना?', अजय ने कोई जवाब नही दिया और पकोड़ो में कमी निकालने लगा। 'पापा मैं आपसे कुछ पूछ रहा हूँ। मुझे जवाब दीजिये आप कल स्कूल आ रहे है या नही?' अजय ने फिर रोहन की बात को नज़रअंदाज़ करते हुए नीलिमा से पानी मांगा। रोहन टेबल उठकर जाने लगा तभी अजय ने कहा - 'तुझे पता है मैं नही आऊँगा तो फिर हर रिजल्ट के पहले पूछकर अपना वक़्त क्यों बर्बाद करता है।' ,'पूछ लेता हूँ कि शायद कभी हाँ सुनने को मिले और आप आ जाओ। पर आप आते कहा हो? आपको मुझसे मतलब ही क्या है? आख़िरी बार आप स्कूल कब आये थे आपको पता भी है?', 'देखा नीलू तुमने कैसे ज़बान चला रहा है अपने बाप के सामने। देखने को इतना बड़ा हो गया लेकिन तमीज़ नाम की चीज़ नही है। कल 9th का रिजल्ट आनेवाला है लेकिन अक्ल चौथी के बच्चे जैसी है। क्या कसर रह गयी थी मेरी परवरिश में?', 'पापा, वैसे तो मेरे पास सब है। अच्छे कपड़े है। अच्छे वीडियो गेम्स है। अच्छा फ़ोन है। अच्छे स्कूल में पढ़ता हूँ। लेकिन पापा 9th में नही 10th में। कल 9th का नही, 10th का रिजल्ट आनेवाला है। बस यही कसर रही।' भीगी आँखें ओर लड़खड़ाती आवाज़ में रोहन ये सब कहकर जा चुका था। अजय ने नीलिमा को देखकर नज़रे झुका ली। सब समझ गए थे कि कसर कहाँ रह गयी थी। अजय उस रात ठीक से सो ना सका। सुबह उठकर जल्दी तैयार होने लगा। उसने नीलिमा ओर रोहन के लिए नाश्ता भी बना लिया था। नीलिमा सब देखकर हैरान थी। 'इतनी सुबह - सुबह ये सब क्या रहे है आप?', 'मुझे रोहन के साथ स्कूल जाना है बाकी का काम तुम देख लेना। आज ऑफिस से छुट्टी ले ली है। आकर शॉपिंग चलेंगे फिर मूवी ओर फिर डिनर बाहर ही करेंगे।' अजय एक साँस में सब कुछ कह चुका था। अजय को देखकर रोहन ने आश्चर्यचकित होकर नीलिमा से धीमे स्वर में पूछा - ' मम्मा, ये पापा को हो क्या गया है? ये कर क्या रहे है?', 'कसर पूरी कर रहे है बेटा।' मंत्रमुग्ध नीलिमा ने हल्की मुस्कान बिखेरते हुए कहा।