Maa ka kankal - 2 books and stories free download online pdf in Hindi

माँ का कंकाल - भाग दो

माँ का कंकाल – भाग दो

“भूमि सुनो, मैं माँ का टिकट करवा रहा हूँ, माँ हमारे साथ चलेगी, उनको इस उम्र में यहाँ अकेले नहीं छोड़ सकते। फ्लैट की चाबी चाचा को दे देंगे, वो कभी-कभी आकर साफ-सफाई करवा दिया करेंगे, उनको कुछ पैसे दे जाएंगे और जैसे-जैसे जरूरत होगी वहाँ से भेज दिया करेंगे।” आकाश ये सारी बातें एक साथ बिना रुके कह गया और भूमि उसकी तरफ देखती ही रह गयी। भूमि बोली, “पहली बात तो यह कि चाचा नाराज होकर चले गए।” आकाश कहने लगा, “उसकी तुम चिंता मत करो मैं चाचा को जानता हूँ, मैं उनको मना कर ले आऊँगा। अब तुम दूसरी बात बताओ।”

भूमि ने कहा, “देखो आकाश, माँ को हम अभी अपने साथ नहीं ले जा सकते। वह घर मेरे मम्मी-पापा का है और वे किसी और को वहाँ रहने की इजाजत नहीं देंगे। अगर तुम मम्मी को साथ लेकर चलोगे तो तुम्हें मम्मी के अलग रहने का प्रबंध करना होगा जहां पर वे या तो अकेली रहेंगी या तुम्हें साथ में रहना पड़ेगा। मैं तो अपने मम्मी-पापा को छोड़ कर तुम्हारे साथ आने वाली हूँ नहीं, अतः तुम्हें मुझसे भी अलग रहना होगा, अगर मेरे साथ रहना चाहोगे तो माँ को अकेले छोड़ोगे और मुझस अलग माँ के साथ रहना है तो अमेरिका में रहने की बजाय यहाँ पर रहना ज्यादा ठीक है। माँ यहा रहेगी तो यहाँ तुम्हारे चाचा भी देखभाल कर सकते हैं उनको कुछ पैसे दे जाएंगे, बीच-बीच में तुम भी चक्कर लगाते रहना। देखो मेरा काम था तुमको समझाना, आगे जैसा तुम चाहो वैसा कर लो।”

आकाश को दुविधा में पड़ा देख भूमि ने यह और कह दिया, “अभी छोड़ जाते हैं माँ को यहीं पर, कुछ दिन बाद तुम आ जाना, अगर कोई समस्या देखोगे तो तुम ले आना अपने साथ अमेरिका, तब तक कुछ न कुछ प्रबंध भी हो जाएगा।”

यह बात आकाश के दिमाग में आ गयी और चाचा के पास विश्वास नगर जाकर उनसे भूमि के बर्ताव की माफी मांगी। आकाश चाचा को साथ लेकर आ गया और उनको सारी बातें समझा दीं, कुछ रुपए उनको देकर और माँ को दिलासा देकर आकाश व भूमि अमेरिका के लिए उड़ गए।

इतने बड़े फ्लोर में अकेलापन गोमती को काटने को दौड़ता था, आकाश रोज ही फोन करके हाल-चाल पूछ लिया करता था। कुछ दिन बाद आकाश तीसरे दिन बात करने लगा, फिर हफ्ते में एक बार और ऐसा करते करते यह स्थिति आ गयी कि महीने में एक-आध बार फोन कर लेता था।

चाचा कभी-कभार चक्कर लगाते रहते थे लेकिन वह भी काफी बूढ़े हो चुके थे, घर में कई चीजों की जरूरत पड़ती थी, डॉक्टर के पास भी जाना होता था, दवाई और घर का सामान भी लाना होता था। शुरू शुरू में गोमती ने एक नेपाली लड़का रख रखा था लेकिन कुछ दिन बाद वह भी गाँव चला गया। अब गोमती बिलकुल अकेली हो गयी थी, उसने आकाश से कहा भी था, “बेटा, अब मुझे ले जा यहाँ से।” आकाश ने तब तो हाँ कर दी लेकिन बाद में इस डर से फोन करने ही छोड़ दिया कि माँ फिर ले चलने के लिए कहेगी।

इस बीच चाचा भी बीमार रहने लगे और एक दिन वह भी गुजर गए। अब और कोई ऐसा खास आदमी नहीं बचा था जो गोमती की देखभाल कर सके। कुछ रिश्तेदार तो इसलिए दूर दूर रहते थे कि अपना लड़का तो अमेरिका भेज दिया अब सेवा हम करें, क्यों?

आकाश ने फोन करना भी बंद कर दिया, गोमती अकेली भयंकर अवसाद में घिर गयी और इस अवसाद के कारण ही उसको एक दिन लकवा मार गया। घर बंद था, गोमती न उठ सकती थी, न बोल सकती थी, जहां फर्श पर गिर गयी थी बस वहीं पड़ी पड़ी कभी बेहोश हो जाती और कभी होश में आ जाती। बीच बीच में गोमती अर्द्ध मूर्छित अवस्था में सपने में बचपन के आकाश को उसके साथ खेलते देखती। कभी कभी उसको राघव दिखाई देता और कहता, “चल गोमती, यहाँ से चल, यहाँ तो तू बहुत दुख झेल रही है, मैं तुझे लेने आया हूँ” और गोमती कहती, “मैं अपने नन्हें आकाश को छोड़ कर यहाँ से नहीं जाऊँगी।”

न कोई डॉक्टर को दिखाने वाला था, न कोई दवा देने वाला था और न ही कोई खिलाने वाला। दवाई और खाने के बिना पूरा शरीर सूख कर ढांचा होता जा रहा था। घर अंदर से बंद था, पड़ोसी भी ध्यान नहीं रखते थे कि उनके पड़ोस में कोई भयंकर मौत मर रहा है, सब अपने में मस्त थे। फोन भी बंद हो चुका था, अब आकाश फोन मिलाता तो फोन नहीं मिलता था, जब फोन नहीं मिला तो आकाश को चिंता होने लगी। उसने चाचा को फोन किया लेकिन वहाँ से खबर मिली कि चाचा तो गुजर चुके हैं।

आकाश की चिंता बढ़ती जा रही थी। आकाश ने पुलिस को फोन करके सारी बात बताई और अपनी माँ के बारे में पता करने को कहा। पुलिस ने भी कोई खास ध्यान नहीं दिया बस लीपा पोती करके छोड़ दिया, जबकि दिल्ली पुलिस का नारा है, “दिल्ली पुलिस - बुजुर्गों की साथी”

अब आकाश को किसी अनहोनी की चिंता सता रही थी लेकिन फिर भी वह दिल्ली नहीं आ रहा था। देखा जाए तो आकाश की चिंता भी सही थी क्योंकि अनहोनी तो हो ही चुकी थी, एक माँ, बुजुर्ग माँ अपने बेटे की प्रतीक्षा में तिल तिल करके मर चुकी थी, शरीर तो उसका उसकी साँसों के साथ ही तिल कर समाप्त हो चुका था, अब मर कर तो एक कंकाल बचा था।

इसके बाद भी आकाश को अमेरिका से दिल्ली आने में तीन साल लग गए। तीन साल बाद जब वह अपने घर वापस आया दरवाजा खोल कर अंदर गया तो देखा, फर्श के बीचों-बीच एक कंकाल पड़ा था, जिसके दोनों हाथ फैले हुए थे, पास में ही एक मोबाइल फोन पड़ा था जो कि बंद था। यह आकाश की माँ का कंकाल था जिसने अपने इकलौते बेटे को बड़े लाड़-प्यार से पाला था, यह उसी माँ का कंकाल था, जो आकाश के अमेरिका जाने पर बहुत खुश हुई थी और पूरे मोहल्ले में मिठाई बांटी थी और बड़े गर्व से कहा करती थी मेरे बुढ़ापे की लाठी है मेरा आकाश।

आकाश फूट-फूट कर रोने लगा आज उसको आत्मग्लानि हो रही थी लेकिन इन सब का तो कोई अर्थ नहीं रह गया था क्योंकि उस भयंकर दर्द को, उस अकेलेपन की पीड़ा को तो उस गोमती ने अकेले ही सहा था।