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और सतसंग चलता रहा ।

और सतसंग चलता रहा ।

‘संत सतगुरु इस धरती पर भगवान हैं । वे ज्ञान व भक्ति का एक ऐसा प्रयाग हैं जिसमें कोई भक्त बिना किसी भेद-भाव के डुबकी मार सकता है ।

भक्तो, संत कबीर ने कहा है

जाति - पाति पूछे नही कोई

हरि को भजि तो हरि का होई ।

यहाँ कोई राजा रंक नहीं । कोई निर्बल नहीं । कोई अनाथ नहीं है । सब के साथ सर्वशक्तिमान प्रभू स्वयं खडे हैं । प्रभू के हाथ बहुत विशाल हैं । उनके आशीर्वाद की छत्रछाया सभी भक्तों पर समान रूप से हैं । प्रभू - दरबार सबके लिये खुला है । सुबह - शाम, जब भी किसी दुखिया को प्रभू की याद आये, वह यहां आ सकता हैं । कोई पाबंदी नहीं । प्रभू अपने सौ भक्तों में से भी पीडित को पहचान लेते हैं । उसके दर्द को अनुभव कर लेते हैं । प्रभू संवेदनशील हैं । वे एक क्षण के लिये भी अपने भक्त की पीडा बरदाश्त नहीं कर सकते । प्रभू का स्वरुप प्रकति के कण- कण में हैं पहुप बास ते पातरा ऐसा तत अनूप अर्थात प्रभू फूल में खुशबू की तरह बसे हैं । यहाँ सभी भक्तों के साथ बैठे हैं उनके दिलों में विराजमान हैं । मेरा आशीर्वाद यहाँ आये सभी भक्तों के साथ है । सबके कष्ट दूर होंगे बस आप सब इसी तरह से बाबा पर अपनी आस्था, विश्वास व सम्पर्ण की भावना बनाये रखना । परमात्मा को प्राप्त करके इस जन्म और मरण के चक्र से मुक्ति पाने का यही रहस्य है । मानव में अपने इष्ट को प्राप्त करने के लिये प्रेम - रस का उदगम होना अत्यंत आवश्यक है । प्रेम आत्मा - परमात्मा के मिलन - पथ की पहली सीढी है । सभी भक्तों का कल्याण होगा । इस संसार में प्रभू कई रूपों में अवतरित हुये हैं । उनके सभी रूपों में से कप्ण रूप सबसे उत्तम है । यह आत्मा व परमात्मा में प्रेम की भावना उत्पन्न करता है । प्रेम में आकर्षण है आलिंगन है । रस है । अमत है । अगर आप प्रभू को हासिल करना चाहते हैं तो आप सब भक्तों को लोक - लाज, मोह - माया तजकर मुझसे प्रेम करना होगा । मैं भगवान हु । इस प्रेम - मार्ग में शारीरिक पवित्रता की अपेक्षा मन की पवित्रता, आस्था व विश्वास आवश्यक है ।‘

‘ परदेसिया, तू है मेरा पिया

तुझ बिन तडपे जिया

ओ परदेसिया . . तू है मेरा पिया ।

घूंघट की आड में, दिलवर का दीदार अधूरा रहता है

जब तक न पडे साजन की नजर, श्रंगाार अधूरा रहता है ।

घूंघट की आड में, दिलवर ।‘

पीडाहरि बाबा परमात्मा की भक्ति में लीन होकर अपनी खास चेलियों के साथ मंच पर डांडिया खेलने लगते हैं ।

सामने पंक्तिबद्ध बैठे सभी भक्त हाथ जोडकर कर श्रद्धा भाव से गाने लगते हैं -

‘परदेसिया, तू है मेरा पिया

तुझ बिन तडपे जिया

ओ परदेसिया . . तू है मेरा पिया ।‘

मंच के ठीक सामने लगी पंक्तियों में सबसे पिछली पंक्ति में बैठी ताई बडे ध्यान से बाबा जी के प्रवचन सुन रही थी । भक्तों के गाने व जयघोष की तेज आवाज में प्रवचन ठीक से सुनाई नहीं दे रहा था । उसने साथ आई धोबिन फुलिया से पूछा - ‘री फुलिया, क्या हम बाबा के सामने सबसे अगली लाइन में नहीं बैठ सकते ?‘ ‘काहे नाहीं बैठ सकते ताई पर सुना है कि प्रभू के सामने सबसे अगली लाइन में वही भक्त बैठ सकता है जो कठोर तपस्या व त्याग करने का बूता रखता हो ।‘ ‘ तपस्या तो ठीक है पर त्याग त्याग किस चीज का ! प्रभू तो स्वयं मालामाल हैं । उन्हें किस चीज की आवश्यकता ? ताई ने हैरानी से पुछा ।‘ ‘मेरा मतलब यह है कि जो सांसारिक मोह - माया का बंघन त्याग के प्रभू के चरणों में अपना तन - मन - धन सब कुछ समर्पित करने का प्रण लेता है वही प्रभू के चरणों में स्थान पाने का अधिकारी हो सकता है ।‘ ‘ वैसे मुझे ज्यादा तो नहीं मालूम पर, मेरी सखी, साघ्वी मयूरी कह रही थी कि प्रभू के सामने अगली लाइन में समाज व परिवार से तिरष्कत व पीडित भक्तों को ही बैठाया जाता है ताकि प्रभू का आशीर्वाद रूपी फल सीधे उनकी झोली में गिरे और उनकी पीडा दूर हो ।‘ ताई को अपनी पीडा का आभास होने लगा । नंदिनी के बापू व उसके पति सुधाकर पांडे के स्वर्गवासी होते ही उस पर मुसीबतों का पहाड टूट पडा । जिन बेटों को पाने के लिये उसने उपवास किये । देवी - देवताओं की अराधना की । दूर पहाडों पर बने मंदिरों में जाकर मनौतियां मांगी । जिनको दूध पिलाकर बह हाड - मास हो गई आज वही उसकी एकमात्र पूंजी यह घर हथियाना चाहते हैं । अपनी सगी मां व मानसिक -रुप से अपंग अपनी असहाय बहन नंदिनी को बेघर करने पर तुले हुये हैं । दाने - दाने को मोहताज कर दिया है । बहुयें भी उस बेचारी पर अत्याचार करने से बाज नहीं आतीं । बडे की बहू रीटा तो बडी निर्दयी है अभी कल ही की तो बात है सुबह जल्दी उठकर बिटटू को तैयार न कर पाने व स्कूल की बस छूट जाने पर रीटा ने नंदिनी को इतना मारा कि वह बेहोश हो गई । वो तो भला हो प्रोफेसर साहब का जिन्होंने घर का गेट फांदकर उसे बचाया नही तो वह उसे मार ही डालती पर, गलती उसकी अपनी ही है जो मंदिर जाते हुये उसने नंदिनी को नहीं जगाया । मैं भी क्या करुं मां हू न । बेचारी सारा - सारा दिन घर का काम करती रहती है । खाने को भी ढग से नहीं मिलता । इस पर वह दो घडी सो भी न पाये । मुझसे उसका दुःख नहीं देखा जाता । बेचारी चीथडों में लिपटी रहती है । छोटे की विमला रानी भी कम नहीं है । उसकी नजर नंदिनी के गहनों पर है । कल कह रही थी मम्मी तुम नंदिनी की चिंता बिल्कुल न करो । यह मेरी छोटी बहन की तरह है वो तो कल मैं अपने मायके गई हुई थी वरना क्या मजाल कोई उसकी तरफ आंख उठा कर देख भी ले । जीना हराम न कर दू तो पहलवान तिवारी की बेटी नहीं यही विमला मुझसे दो महीने तक नहीं बोली थी जब करवाचैथ पर मैंने उसे नंदिनी के गहने देने से मना कर दिया था । खोखला प्यार है केवल दिखावा है सब जानती हु सब के सब धन के लोभी हैं मक्कार है । सूअर का बाल है इनकी आंखों में । वो तो जाते हुये ‘ये‘ यह घर मेरे नाम कर गये वरना ये हमें कब का दूध में मक्खी की तरह इस घर से निकाल बाहर कर चुके होते । खैर कोई बात नहीं परमात्मा के घर देर है अंघेर नहीं बस, प्रभू मेरी कोमल मासूम बच्ची को ठीक कर दें । उसका हकलाना और नींद में चलना बंद हो जाये तो मैं अपनी नंदिनी की शादी करके सदा के लिये यहीं प्रभू के आश्रम में ही आ जाउंगी उसने अपने आंसू पोंछ लिये । नुक्कड वाली पनवाडिन रेखा कह रही थी कि ताई पीडाहरि बाबा के पास हर मजर् की दवा है । उनके पास अनेक सिद्धियां हैं । बाबा जी मनुप्य तो क्या पशुओं तक के शारीरिक दोषों को दूर कर देते हैं । पडोस की मिसराइन के बच्चा नहीं हो रहा था । ब्याह को सात साल हो गये थे । उसने कोई दवा - दारु नहीं छोडी । डॉक्टर, पंडित, मौलवी सभी को दिखाया लेकिन कोख जस की तस बंजर ही रही । बेचारी बडी परेशान थी दो - दो बार आत्महत्या की कोशिश कर चुकी थी । घर के बडे - बूढे सभी ताने देते थे । मुझसे उसका दुःख देखा नहीं गया । मैं उसे बाबा के पास ले आई और बाबा के आशीर्वाद से पिछले महीने से वह पेट से है । और तो और वो तुम्हारे पडोसी ननकउ का बेटा बिलेसर देखा था बाप को कैसे पीटता था दोनों मे एक क्षण के लिये भी नहीं बनती थी । बाबा की शरण में आते ही दोनों में इतना प्यार पैदा हो गया अब हर हफते विलेसर खुद अपने लगडे बाप को पीठ पर लाद कर सतसंग छोड जाता है । धन्य हो महाराज ताई ने हाथ जोड लिये । ‘ताई चलो सतसंग खतम हो गया । फुलिया ने ताई का हाथ पकडकर उठाते हुये कहा ।‘ ‘ हूं क्या सतसंग खतम हो गया पर मुझे तो बाबा से मिलना है ! नंदिनी के बारे में बात करनी है ! ताई ने जैसे नींद से जागते हुये हडबडी में कहा ।‘ ‘ताई अब कल आयेंगे । मेरी साघ्वी मयूरी से जान - पहचान है । तू घबरा न मैं उससे मिलकर प्रभू से मिलने की कोई तरकीब निकालती हु लेकिन इसके लिये कुछ भेंट का इंतजाम करना होगा ।‘ ‘कैसी भेंट फुलिया प्रभू तो स्वयं त्यागी हैं । मोह - माया के बंधन से परे हैं । ताई ने प्रभू के निष्छल स्वरुप का बखान करते हुये कहा ।‘ ‘वो तो ठीक है ताई लेकिन, साघ्वी मयूरी का कहना है कि प्रभू चरणों में खाली हाथ जाने से बरक्कत नहीं होती । मनोरथ सफल नहीं होता । मानव को अपना सब कुछ अपने अराध्य की सेवा में न्योछावर कर देना चाहिये और फिर वह कुछ उपहार लिये बिना मेरा काम थोडे ही करेगी । गांव में उसे अपने छोटे भाई को पढाने के लिये हर महीने कुछ न कुछ भेजना पडता है । ताई तू केवल दो हजार का प्रबंध कर ले बाकि मैं देख लूंगी । फुलिया ने सीधे - सीधे एक साथ सब कुछ कह दिया ।‘ ‘ ठीक है कोई बात नहीं अपनी बेटी नंदिनी के लिये मैं कुछ भी कर सकती हु पर, कल प्रभू - दर्शन तो हो जायेंगे न ! ताई बात पक्की कर लेना चाहती थी ।‘ ‘हां हां क्यों नहीं मैं आज ही मयूरी से बात करुंगी पर, तू कल सुबह सतसंग शुरु होने से कम से कम दो घंटे पहले ठीक आठ बजे पनवाडिन की दुकान के पास मिलना । दोनों एक साथ आश्रम चलेंगे ।‘ उस दिन पूरी रात ताई को नींद न आई । रह - रह करवटें बदलती रही । आज साक्षात प्रभु की झलक पाकर उसे विश्वास हो गया था कि वे उसकी फूल सी कोमल बेटी को अवश्य अच्छा कर देंगे । प्रभू की कपा व मंत्र - जाप से वह हकलाना व नींद में चलना छोड देगी और फिर सुंदर सा राजकुमार देखकर वह अपनी नंदिनी की शादी कर देगी । ताई ने साथ लेटी हुई नंदिनी का माथा चूम लिया । नंदिनी ने प्यार से अपनी मां के गले में बाहें डाल दीं ।

सुबह ताई मुह अंधेरे ही उठ गई । घडी में देखा पांच बजकर बीस मिनट हुये थे । ताई ने जल्दी - जल्दी घर का सारा काम - काज निपटाया और साढे छः बजे तक वह नहा - धो कर तैयार हो गई । आज उसकी बूढी हडडियों में न जाने कहां से इतनी शक्ति आ गई थी कि वह आज बडे से बडा पहाड भी धकेल सकती थी । उसने अपना लाल रंग का छोटा सा पर्स उठाया खोल कर देखा । पेंशन के पूरे पांच हजार रुपये पडे थे । ताई ने एक - एक हजार के दो नोट अपनी साडी के पल्लू में बांधे और घर से निकल आई । गांव की छोटी - छोटी गलियों से होते हुये वह पनवाडिन रेखा की दुकान के पास पहुंची । उजाला होने लगा था । वहीं बरगद के पेड के पास खडे होकर वह फुलिया का इंतजार करने लगी । सडक के दोनों ओर जंगल - पानी के लिये जाने वाले लोगों का आना - जाना शुरु हो गया था । लगभग बीस मिनट इंतजार करने के बाद फुलिया हांफते हुये वहां पहुंची । उसके चेहरे पर हवाइयां उड रही थीं । ताई ने पूछा - ‘फुलिया, आधा घंटा हो गया यहां खडे - खडे । तू कहां रह गई थी ।‘ फुलिया ने हांफते हुये कहा - ‘ताई आज तो गजब हो गया था । पिंकी के पापा जाग गये थे तुम्हें तो मालूम ही है कि वे साधू-संतों से कितनी नफरत करते हैं । उन्हें पीडहरि बाबा के चमत्कारों पर जरा भी विश्वास नहीं है। परसों कह रहे थे लम्पट है साला । हमेशा औरतों के पीछे रहता है मक्कार है त्रांत्रिक क्रियाओं व झाड - फूंक से मासूम गाांव वालों में अंधविश्वास फैलाता है डरा - धमकाकर भोले - भाले लोगों की जमीनें हडपता है । अपहरण करता है । अपने फायदे के लिये हत्याएं तक करने में भी उसे गुरेज नहीं । गांजा अफीम और वो क्या कहतें हैं मर्दाना शक्ति बढाने के नाम पर नकली दवाओं का व्यापार करता है । सुना है आश्रम के पैसों को सूद पर चढाया हुआ है । यह आश्रम नहीं चोरी, डकैती, अपहरण, लूट और बाबा की अययाशी का अडडा है । खबरदार, जो वहां गई । फुलिया तू देख लेना एक दिन यह पाखंडी बाबा कानून की गिरफत में ऐसा फंसेगा कि इसका अगला - पिछला सब निकल जायेगा । आज जो पालीटिशियन वोटों के लालच में इसके साथ खडे हैं कल सब इससे कन्नी काट लेंगे । भगवान के घर देर है अंधेर नहीं । पाप का घडा एक न एक दिन अवश्य फूटता है ।‘ ताई डर गई । उसकी आंखों में बाबा का खौफ साफ दिखाई देने लगा । फुलिया ने शिकार हाथ से फिसलता हुआ देखकर बात पलटते हुये कहा - ‘ओह हो ताई ! तुम बेकार में डर रही हो । कहीं ऐसा थोडे ही होता है । तुम घबराओ नहीं ये तो इनके दोस्त विक्रम की लगाई हुई आग है जिसे दो महीने पहले आश्रम में चोरी के आरोप में पुलिस ने पकडा था । पीडाहरि बाबा तो साक्षात भगवान हैं । देखा नहीं था कितना तेज था माथे पर । चेहरे पर अपार शांति व सुकुन लिये सतसंग में जब वे प्रवचन देते हैं तो ऐसा लगता है जैसे फूल झर रहे हों । प्रभू पीडित को देखते ही जान जाते हैं कि उसे क्या पीडा है । धन्य हो महाराज । श्रद्धा स्वरुप फुलिया दोनों हाथ जोडते हुये कहा ।‘ बाबा के प्रति फुलिया की श्रद्धा भावना देखकर ताई के चेहरे पर एक बार फिर से उम्मीद की रेखा उभर आई - ‘फुलिया, तू बातें ही करती रहेगी या चलेगी भी । आठ बजने को हैं । अभी तूझे मयूरी से भी मिलना है ।‘ फुलिया ने ताई का हाथ पकडते हुये कहा - ‘ताई, तू इसकी चिंता छोड दे । मेरी मयूरी से कल ही बात हो गई है । आज तू प्रभू से अवश्य मिल पायेगी पर तू पैसे तो लाई है न ! मयूरी उधार बिल्कुल नही करती ।‘ ‘हां - हां क्यों नहीं । यह ले दो हजार रुपये, ठीक से गिन ले पूरे दो हजार हैं । ताई ने साडी के पल्लू में बंधे रुपये खोल कर देते हुये कहा ।‘ ‘ क्यों शर्मिंदा कर रही हो ताई मैं क्या तुम्हें नहीं जानती। सारी दुनिया फरेब कर सकती है पर तुम कभी नहीं । फुलिया ने रुपये ब्लाउज के अंदर रखते हुये ताई पर अपना विश्वास जताया ।‘ इस तरह इधर - उधर की बातें करते हुये दोनों आश्रम पहुंच गये । आश्रम के बाहर शांति थी । चारों ओर अगरबत्ती व धूप की खुशबू आ रही थी । टैंट में बाबा का विशाल मंच और उस पर रखे हुये झूले के ठीक सामने दरियां बिछ रही थीं । सामने लगे पर्दों पर बाबा की फोटो बनाई गई थी । सतसंग आरम्भ होने में अभी काफी समय था । लिहाजा, इक्का - दुक्का भक्त ही नजर आ रहे थे । ताई इस भव्य सतसंग स्थल की सजावट देखकर चकाचैंध थी । कल सतसंग में वह लगभग दो लाख श्रद्धालुओं के पीछे बैठी थी इसलिये संतसंग स्थल की भव्यता को न देख पाई थी ।

‘ताई, तू यहां दरी पर बैठ मैं बाबा से तेरी मीटिंग फिक्स करा के आती हु फुलिया ने प्रोफेशनल अंदाज में कहा ।‘ ‘ठीक है फुलिया पर तू जल्दी आना सतसंग शुरु होने में बस अब आधा घंटा ही रह गया है । ताई ने वहीं दरी पर बैठते हुये कहा ।‘ ‘तू चिंता न कर ताई । तू अब प्रभु के दर पर है आज तेरी पीडा का अंत अवश्य होगा ।‘ फुलिया आश्रम से लगभग दो सो गज पर दायीं ओर बनी अनेक कुटियाओं में से एक कुटिया के दरवाजे पर जाकर ठिठक गई । कुटिया के भीतर से पीडहरि बाबा की कडक आवाज आ रही थी - ‘चोर साले सब के सब चोर । इन्हें मोटी पगार चाहिये । आश्रम की गाडियों से तेल चुरा कर बेचते हैं । भक्त लाने के एवज में मोटा कमीशन चाहिये । देते हैं तुम्हें कमीशन चटटाक चटटाक

थप्पडों की आवाज आने लगती है । कमीशन मांगेगा तू सूअर कमीशन चाहिये ये ले चटटाक ये ले धडाक घूंसों की आवाज आने लगी । शमशेर बहादूर दीदार सिंह जाओ दुःखभंजन कुटिया में ले जाकर इनका इलाज करो । ज्यादा चर्बी चढ गई है । साले फ्र्र्री का माल उडा - उडा कर भैंसे होते जा रहे हैं ।‘ फुलिया ने देखा दो दैत्य सरीखे गुंडे ड्राइवर रामशब्द और आश्रम में काम करने वाले रसोइये बंसी को कॅालर से पकडकर धसीटते हुये दरवाजे से निकले । फुलिया यह सब देख - सुन कर एकबारगी कांप गई । वह अब तक आश्रम के लिये चार भक्त ला चुकी थी लेकिन कमीशन उसे केवल एक का ही मिला था । वह सोचने लगी हाय अब वह बाबा से अपना कमीशन कैसे मांगेगी । बाबा गुस्से में हैं । भक्त फुसला कर लाने के लिये कितने पापड बेलने पडते हैं पर कुछ भी हो आज वह अपना कमीशन ले कर रहेगी । हिम्मत करके वह कुटिया के भीतर दाखिल हो गई । बाबा अपने सेवकों से घिरे थे । वह एक ओर कोने में साध्वी मयूरी के पास हाथ जोडकर खडी हो गई । बाबा ने अपने सेवकों को समझाते हुये कहा - ‘इस आश्रम को ऐसे जूनूनी अनुयायियों की आवश्यकता है जिनमें आग हो । चीते जैसी फूर्ति हो और हाथियों जैसा बल हो । ऐसे चोरों और मरियल गधो की यहां तनिक भी आवश्यकता नहीं है । चल मीनू मेरी मालिश कर दे संतसंग का टाइम हो रहा है । पीडाहरि बाबा ने साध्वी मीनू की ओर इशारा करते हुये कहा ।‘ ‘ अरे राधे, तुने हमारे नहाने वाले पोंड में फ्रेश गुलाब जल भरा की नहीं बाबा ने सेवक राधे को अवाज लगाई ।‘ ‘अभी भर कर ही आ रहा हु प्रभू आपकी आज्ञानुसार केसर युक्त साबुन भी रख दिया है । राघे ने कुटिया में प्रवेश करते हुये कहा ।‘ ‘ ठीक है । बाबा साघ्वी गुंजन के सहारे उठ खडे हुये ।‘ ‘प्रभू की जय हो मैं आपकी दासी मयूरी और इसे तो आप जानते ही हैं - एस. ए 1474 देवीगंज वाली फुलिया ।‘ बाबा ने पीछे घूमकर देखा काला रंग, मोटा शरीर, अनघड नयन - नक्श वाली फुलिया बाबा ने मुंह फेर कर झल्लाते हुये कहा - ‘इसे क्या हुआ है ? हर महीने अपना कमीशन तो ले जा जाती है और क्या चाहिये इसे ?‘ ‘प्रभू यह एक मालदार भक्त लाई है । उसके पास देवीगंज में आलीशान कोठी है ।‘ ‘हू क्या कष्ट है उसे बाबा को भक्त में दिलचस्पी पैदा हुई ।‘ ‘प्रभू उसे कोई कष्ट नहीं है । वह तो अपनी पंद्रह साल की बेटी जिसे नींद में चलने की बीमारी है के इलाज के लिये यहां आई है ।‘ ‘हू ठीक है । उसका इलाज अवश्य किया जायेगा । सतसंग में तुम उसे सबसे अगली पंक्ति में बैठा देना देख लेंगे । पीडाहरि बाबा कुटिया से बाहर निकल गये ।‘ फुलिया ने मुस्कराते हुये एक हजार का एक नोट साघ्वी मयूरी को दिया और लगभग भागती हुई वापिस ताई के पास पहुंची - ‘ताई सब फिक्स हो गया । अब तू यहीं प्रभू के मंच के पास सबसे अगली पंक्ति में बैठ प्रभू तेरा कल्याण करेंगे । मैं चलती हूं ये उठ गये होंगे और तुझे तो इनका पता ही है । आसमान सिर पर उठा लेंगे । फुलिया ने चलते हुये कहा ।‘ बाबा के एकबारगी हां ने बकाया कमीशन न मिलने का दुःख कुछ कम कर दिया था । संतसंग ठीक दस बजे आरंभ हुआ । इस दौरान बाबा ने प्रसाद के रुप में गेंदे का एक फूल ताई की झोली में फेंका । ताई धन्य हो गई । वहीं माथा निवाकर, ताई ने प्रभू के आशीर्वाद को कबूल किया । बाबा ने अगली पंक्ति में बैठे कुछ अन्य पीडितों की झोली में भी प्रसाद स्वरुप गेंदे के फूल गिराये । सतसंग समाप्त होते ही प्रसाद धारण किये हुये सभी भक्त, प्रभू सेवकों की टोली के साथ आश्रम के दायीं ओर पीपल के पेड से सटी कुटिया की ओर चल पडे । भक्तों के अनुसार यहां पीपल के पत्तों से ढकी इस कुटिया में प्रसादधारी पीडित भक्त, प्रभू से सीधे संवाद कर सकते हैं । यहां सभी की पीडा दूर की जाती है । अन्य भक्तों की तरह ताई भी कुटिया के सामने बिछी दरी पर बैठ गई । कुटिया के दरवाजे से केसर युक्त अगरबत्ती की खुशबू आ रही थी । कुटिया के दरवाजे के आगे सफेद रंग का एक झीना परदा लटक रहा था । बाबा को कोई छू नहीं सकता था । साध्वी गौरी ने वहां बैठे सभी भक्तों को बताया कि यह संवाद कुटिया है । यहां कोई परदा नहीं है । यहां सब कुछ खुला है । यहां इशारों की कोमल भाषा का प्रयोग किया जाता है । इसलिये भक्त अपने मन की सभी शंकायें एक ओर रखकर एकाग्रचित्त हो प्रेमपूर्वक प्रभू की भक्ति में आस्था व विश्वास बनाये रखें । प्रभू साक्षात आपके समक्ष विराजमान हैं । भक्तजन निःसंकोच भाव से अपनी व्यथा प्रभू के समक्ष रख सकते है। प्रभू के आशीर्वाद से सबकी पीडा दूर होगी । उजले सफेद रंग का चोगा, गले में रुद्राक्ष, सिर पर सफेद रंग की पगडी तथा पगडी के एक कोने पर मोर पंख लगाये पीडाहरि बाबा ने धीरे से अपनी आंखें खोली और सामने बैठी 24 - 25 वर्ष की एक गौरवर्ण युवती की ओर इशारा कर के उसे अपने पास बुलाया । बाबा ने उसकी आंखों में देखते हुये कहा - ‘तेरे परिवार में संकट है । तेरा पति तेरे वश में नहीं है । वह शराब पीकर तुझे पीटता है । सब तेरे पिझले कर्मों का फल है । शुक्रवार शाम सूरज ढलने पर मेरी ‘उद्धार कुटिया‘ में आ जाना । तेरा कल्याण होगा । युवती बाबा के समक्ष हाथ जोड, सिर निवा के चली जाती है । तेरा बेटा कार एक्सीडेंट में घायल हो अस्पताल में जिंदगी और मौत के बीच झूल रहा है । घबरा मत माई । पूजा - अर्चना पर विश्वास रख । सब ठीक हो जायेगा । प्रभू बच्चे को अवश्य बचायेंगे । बुधवार को सुबह पांच बजे 10 ग्राम के पांच सिक्कों व हवन सामग्री के साथ ‘यज्ञ कुटिया‘ में आ जाना, उपचार किया जायेगा ।‘ एक के बाद एक भक्तजन अपनी पीडा का इलाज पाकर जाते रहे । सबसे अंत में पीडाहरि बाबा ने ताई को बुलाया । ताई हाथ जोड, बाबा के सामने बैठ गई । उसकी आंखों से आंसू बहने लगे । बाबा ने कहा - ‘चिंता मत कर माई । तेरी बेटी नंदिनी अवश्य अच्छी होगी । उसे इंद्र सा राजकुमार मिलेगा । हम स्वयं साधना करेंगे । अनुष्प्ठान करेंगे । तू एक सप्ताह के लिये उसे आश्रम छोड दे । प्रभू पर विश्वास रख बाकी साध्वी गौरी तुझे समझा देगी । तेरा कल्याण होगा । ताई को आशीर्वाद देकर पीडाहरि बाबा कुटिया में ही अंर्तध्यान हो गये ।‘ गौरी ने एकांत में ले जाकर ताई को समझाते हुये कहा - ‘माई तेरी बेटी का सौभाग्य है कि प्रभू स्वयं अनुष्ठान कर रहे हैं । यह साधारण अनुष्ठान नहीं बल्कि महा अनुष्ठान है । इसके आयोजन में कम से कम लगभग बीस लाख रुपये लग जायेंगे । कई देवताओं को प्रसन्न करना होगा । तू कल तक रुपयों का इंतजाम कर ले ।‘ ‘ पर, साध्वी जी, मेरे पास तो इतने रुपये नहीं हैं । इनके जाने के बाद, ग्रेचूटी के सारे पैसे नंदिनी के इलाज में लग गये । मेरे पास तो सब कुछ मिलाकर सत्तर हजार रुपये ही हैं ताई रो पडी ।‘

‘ तो ठीक है, तू ऐसा कर, अपना घर आश्रम के नाम कर दे । मैं प्रभू से बात करुंगी । गरीबों की मदद के लिये प्रभू सदैव तैयार रहते हैं । साध्वी गौरी ने ताई को उपाय बताते हुये कहा ।‘ ‘लेकिन, मेरे चार बेटे, बहुये व उनके बच्चे भी मेरे साथ ही रहते हैं सब के सब बेचारे बेघर हो जायेंगे ताई ने रोते हुये साडी का एक छोर अपने मुंह में खोंस लिया ।‘ ‘तू इसकी चिंता बिल्कुल न कर माई । तेरे बेटे कोई न कोई काम तो अवश्य ही करते होंगे । सब मिलकर आश्रम का कजर् चुका देना । और फिर हम तुझे या तेरे परिवार का घर से थोडे ही निकाल रहे हैं । जब तू हमारे पैसे दे देगी हम पुनः तेरा घर तेरे नाम कर देंगे वैसे तो सब मोह - माया है । तेरा - मेरा कुछ नहीं हैं सब प्रभू का है । बस तू कल घर के पेपर आश्रम के नाम कर दे और परसों सुबह तडके पांच बजे अपनी बेटी को अनुष्ठान के लिये आश्रम छोड जा । प्रभू तेरा भला करेंगे । साघ्वी गौरी संवाद कुटिया के भीतर चली गई ।‘ ताई भारी मन से घर की ओर चल दी । आज उसके चेहरे पर कल जैसी खुशी नहीं थी । घर पहुंचकर ताई ने संदूक से घर के पेपर निकाल कर अपने झोले में डाल लिये और बिस्तर पर लेट गई पर नींद उसकी आंखों से कोसों दूर थी । करवटें बदलते हुये वह सारी रात बेटी नंदिनी और अपने परिवार के बारे में सोचती रही । उसका मन किसी भी तरह से अपना घर आश्रम के नाम करने को राजी नही हो रहा था पर क्या करे, बेटी नंदिनी के दुःख के आगे वह बेबस थी । अगले दिन सुबह ही वह अपना घर आश्रम के नाम कर आई । एक के बाद एक दिन बीतते गये और आज इतवार है आठवां दिन आज वह नंदिनी को आश्रम से लेने जा रही है । घर से निकल कर उसने ओटो को आवाज दी । ओटो वाले ने उसके पास आकर पूछा - ‘कहां जाना है माई । मुकामगंज पीडाहरि बाबा के आश्रम ताई ते बिना मोल - भाव किये ओटो में बैठते हुये कहा ।‘ ‘बीस रुपये लगेंगे माई । ऑटोवाले ने बाद में झिकझिक से बचने के लिये पहले से ही अपना रेट बताते हुये कहा ।‘ ‘ ठीक है दे दूंगी, पर तू जरा जल्दी चल । ताई को आज पैसे की परवाह नहीं थी ।‘ आज उसकी मुराद पूरी होने वाली थी । ऑटोवाले ने ओटो स्टार्ट करके ओटो चौथे गियर में डाल दिया । दस मिनट में ही वे आश्रम के गेट पर थे ।

पर यह क्या । पूरे आश्रम को पुलिस ने क्यों घेरा हुआ है । ओटो से उतरकर ताई ने सामने खडे रिक्शावाले से पूछा - ‘भैया, आश्रम में पुलिस क्यों आई है ?‘ रिक्शावाले ने इशारा करते हुये बताया - ‘माई, यहां वो सामने अनुष्ठान भवन की सैकिंड फलोर से कूद कर एक लडकी ने जान दे दी है वह देख उसकी लाश पुलिस शिनाख्त कर रही है । लोग कह रहे हैं कि बाबा इससे जबरदस्ती करना चाहते थे बेचारी ने कूद कर अपने प्राण दे दिये । साला लंपट बाबा, रात से ही फरार है ।‘ आश्रम के बाहर बैठे रहने वाले भिखारी रधिया ने कहा - ‘मेरी बीवी लक्ष्मी को भी बाबा ने ही गायब किया है ।‘ आश्रम के प्रांगण में हजारों की तादात में खडे बाबा के समर्थक बाबा का निर्दाेष साबित करने में लगे हुये थे । साघ्वी मयूरी कह रही थी - ‘बाबा बेकसूर हैं उन्हें साजिश के तहत फंसाया जा रहा है ।‘ साधू राम गोपाल एक टी.वी चैनल को अपना ब्यान देते हुये कह रहे थे - ‘सदैव भक्तों का भला सोचने वाले प्रभू ऐसी घिनौनी हरकत कभी नहीं कर सकते । यह सब विरोधियों की चाल है । वे हमारे धर्म का कबाडा करना चाहते है।‘ सेवक रामदीन ने कहा - ‘देख लेना बाबा बेकसूर साबित हो्रगे । जो बाबा को सतायेगा खडे - खडे भस्म हो जायेगा । बोलो पीडाहरि बाबा की जय ।‘ बाबा के समर्थकों का हुजूम बाबा के समर्थन में जयघोष के नारे लगाता हुआ आश्रम के मेन गेट की ओर आ गया । वहां खडे लोगों की बातों को अनसुना कर ताई पागलों की तरह भीड को चीरती हुई लाश के एकदम करीब पहुंच गई - ‘अरे यह तो नंदिनी है मेरे बेटी क्या हुआ मेरी बेटी को ? रोते हुये ताई ने नंदिनी के सिर को अपनी गोद में रख लिया ।‘ ‘यह आपकी बेटी है ? सामने खडे इंस्पैक्टर ने कहा ।‘ ‘हां साहब, यह मेरी लाडली है मेरी बच्ची नंदिनी इंस्पैक्टर साहब क्या हुआ मेरी बच्ची को ?‘ ‘आपकी बेटी ने अनुष्ठान भवन की खिडकी से कूद कर जान दी है लेकिन हमें मालूम है कि यह आत्महत्या नहीं कोल्ड ब्लडिड मर्डर है । आप घबराइये नहीं दोषी को अवश्य सजा होगी । बाबा पुलिस के हाथों बच नहीं सकता । लाश को पोस्टमार्टम के लिये गाडी में रखवाते हुये इंस्पैक्टर ने कहा । ‘ गाडी रवाना हो गई । ताई वहीं बाबा के चबूतरे पर सिर पटक - पटक कर बेहोश हो गई ।

‘ मौन रहने से आत्मिक शक्ति प्राप्त होती है -

मैत्री करुणा मुदितोपेक्षाणाः अर्थात उंचे रसूखदार लोगों से मित्रता करने से सुख की प्राप्ति होती है । ‘

आश्रम से संतसंग की आवाजे आने लगी और सतसंग चलता रहा ।

डॉ. नरेंद्र शुक्ल

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