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अनकही कविताएँ

मेरी अनकही कविताएँ

डॉ दीपक सिक्का

जीवन

ऐ मेरे जीवन,

मुझको बता तू कौन है।

तू क्या है,

तू क्यों इतना मौन है।।

तेरा क्या आस्तित्व है,

क्यों तू इतना अनमोल है।

सबका प्यारा,

आखिर तू कौन है।।

अनुभवों का समुद्र है, कि,

इच्छाओं का घर है।

सबका प्यारा,

आखिर तू कौन है।।

क्यों तू कभी हँसी,

और कभी कठोर है।

सबका प्यारा,

आखिर तू कौन है।।

समय का चक्र,

तू कुदरत का अजब खेल है।

सबका प्यारा,

आखिर तू कौन है।।

तू हँसता हैं,

पर फिर भी उदास है।

सबका प्यारा,

आखिर तू कौन है।।

सपनों का घर,

तू भावनाओं का मेल है।

सबका प्यारा,

आखिर तू कौन है।।

एक पल सुख,

तू अगले पल दुःख है।।

सबका प्यारा,

आखिर तू कौन है।।

किसी की कृतज्ञता,

किसी का अपमान तू है।

सबका प्यारा,

आखिर तू कौन है।।

तू ही विश्वास है,

और अविश्वास भी तू है।

सबका प्यारा,

आखिर तू कौन है।।

तू सत्य है,

पर असत्य भी तू ही है।

सबका प्यारा,

आखिर तू कौन है।।

अटल, अडिग सा,

क्यों तू इतना अनमोल है।

सबका प्यारा,

आखिर तू कौन है।।

मृत्यु से डरनेवाला,

तू क्यों इतना मौन है।

सबका प्यारा,

आखिर तू कौन है।।

तेरा क्या आस्तित्व है,

क्यों तू इतना अनमोल है।

सबका प्यारा,

आखिर तू कौन है।।

***

एक लम्हा

कोई लम्हा तुम्हें लाएगा ये सोचा ना था,

कोई लम्हा हमें सताएगा ये सोचा ना था।

कोई लम्हा हसीन बन जाएगा ये सोचा ना था,

कोई लम्हा हमें तडपाएगा ये सोचा ना था।।

जिस लम्हें की खातिर गुजार दिए जिंदगी के 29 साल,

वही लम्हा जिंदगी बन जाएगा ये सोचा ना था।

रोया करता था तकदीर पर अपनी हर लम्हा,

कोई लम्हा तकदीर से मिलाएगा मुझे सोचा ना था।।

कहते हैं कि हर लम्हें की बात अलग है,

ये बात सच होगी सोचा ना था

एक हसीन ख्वाब सा छाएगा कोई लम्हा,

सपने बन कर बरस जाएगा सोचा ना था।।

दो अंजान दिलों को मिला जाएगा कोई लम्हा,

हमें एक कर जाएगा सोचा ना था।

इस भीड़ से भरी दुनिया में,

सहारा बन कर आएगा सोचा ना था।।

मन के मरूस्थल में प्यार बनकर आएगा कोई लम्हा,

और हमें जीना सिखाएगा कोई लम्हा।

दो रूह एक कर जाएगा कोई लम्हा,

जीवन का रंग बदल जाएगा सोचा ना था।।

मन की प्यास बुझा जाएगा कोई लम्हा,

दिल को सुकून दे जाएगा कोई लम्हा,

जीवन को नई राह दिखाएगा कोई लम्हा,

ये सोचा ना था ये सोचा ना था।।

***

मेरी कसक

कई दिनों के बाद आज फिर,

वो कसक सी छाई है।

मन में है उन्माद उठा सा,

दिल में उसकी परछाई है।

जब से देखा है उसको,

वो नयनों में मेरे छाई है।

मन में है उन्माद उठा सा,

दिल में उसकी परछाई है।

मेरी महबूबा है वो,

ये बात जुबँा पे आई है।

मन में है उन्माद उठा सा,

दिल में उसकी परछाई है।

मेरी बात सुनकर,

वो भी थोडा मुस्कुराई है।

मन में है उन्माद उठा सा,

दिल में उसकी परछाई है।

कह दिया है मैंने उससे,

कि वो ही मेरी हमराही है।

मन में है उन्माद उठा सा,

दिल में उसकी परछाई है।

उसकी हाँ में ही तो मेरी,

सारी खुशियाँ समाई हैं।

मन में है उन्माद उठा सा,

दिल में उसकी परछाई है।

जल्दी से वो हाँ करदे,

बस ये ही इच्छा समाई है।

मन में है उन्माद उठा सा,

दिल में उसकी परछाई है।

***

सुंदरी

जब वो घर से निकलती है,

ठंडी हवाएँ चलती हैं।

मन अंगडाइयाँ लेता है,

और हल्की धूप चमकती है।

सजती है ना संवरती है,

पर फिर भी सुंदर लगती है।

चारों और की निगाहे बस,

उस पर ही आकर टिकती हैं।

चांद से सुंदर चेहरा उसका,

झील से गहरी आँखें हैं।

अप्सराएँ भी देख के उसको,

उसकी गाथा गाती हैं।

मृगनयनी, मनभावन है वो,

कैसे कहूँ, मेरी चाहत है वो।

मेरी सांसों में तो हरदम,

उसकी यादें चलती है।

कोयल से मीठी वाणी उसकी,

कर्णों में रस झलकाती है।

सुन­सुन कर के वाणी उसकी,

धरा भी नाचती­गाती है।

दूध से गोरे गाल है उसके,

शर्म से लाल हो जाते है।

जब भी कभी किसी समय वो,

मेरे सामने आती है।

शालीनता का घूघंट लिए,

वो रोज सुबह टकराती है।

मन उदास हो जाता है,

जब शाम को वो चली जाती है।

मेरे मन की गहराइयों में,

जब वो गोते खाती है।

मन अंगडाइयाँ लेता है,

और शाम हँसी हो जाती है।

उसके माथे की लकीरें,

जब भी याद हो आती हैं।

उसकी अदाओं की तस्वीरें,

मन में उन्माद मचाती हैं।

जब भी अपने दिल का हाल,

मैं उसको बतलाता हूँ।

वो मजाक समझती है,

और मैं खामोश हो जाता हूँ।

मेरे मन की गहराइयों को,

वो तो खूब समझती है।

पर ना समझने का नाटक करके,

मन ही मन में हँसती है।

ऐसी नटखट भोली है वो,

मुझको नाच नचाती है।

अपनी इन्हीं अदाओं से वो,

मेरे मन को भाती है।

उसके लिए मेरी चाहत,

अब भी अधूरी है।

क्योंकी उसके मेरे मन में,

अब भी एक दूरी है।

ये दूरी भी एक दिन,

यारों दूर हो जानी है।

मेरा मन ये कहता है कि,

एक दिन पास वो आनी है।

अब तो जल्दी से ये बात,

उसको भी समझानी है।

क्योकिं उसकी रजा के बिन,

अधूरी अपनी कहानी है।

मेरे मन का नूर है वो,

और मेरी जिंदगानी है।

मेरे कर्णों को तो बस,

सुननी उसकी हामी है।

***

एक हँसी शाम

आज वो मेरी,

हँसी शाम होगी,

हाथ में हाथ होगा,

धडकन भी जंवा होगी।

आज वो यारों,

मेरे साथ होगी।

लगता है आज कोई,

नई बात होगी,

आज उसके पहलू में,

मेरी रात होगी।

आज वो यारों,

मेरे साथ होगी।

शर्माती सी हँसी,

उसकी लाजवाब होगी।

उसकी हर अदा,

हर सवाल का जवाब होगी।

आज वो यारों,

मेरे साथ होगी।

आँखों में उसकी,

मेरी तस्वीरे आम होगी।

शर्म से गालों की,

लाली और लाल होगी।

आज वो यारों,

मेरे साथ होगी।

हाथों में उसके,

मेरी शाम होगी।

मेरी उम्र भी अब,

उसके नाम होगी।

आज वो यारों,

मेरे साथ होगी।

वफा का ऐसा,

लिए जाम होगी।

जिसके सुरूर में,

मेरी सुबह शाम होगी।

आज वो यारों,

मेरे साथ होगी।

पलकों में उसकी,

शर्मों हया होगी।

जुबाँ पे भी उसकी,

सिर्फ मेरी दास्तां होगी।

आज वो यारों,

मेरे साथ होगी।

दिल में उसके सिर्फ,

मेरी आरजू होगी।

मोहब्बत की वो तो,

घडी कमाल होगी।

आज वो यारों,

मेरे साथ होगी।

धरती भी उस पल,

आकाश के नाम होगी।

चाँद की चांदनी,

से रोशन वो शाम होगी।

आज वो यारों,

मेरे साथ होगी।

सांसों में गर्मी की,

ऐसी आग होगी।

जलकर के उसमें वो,

मेरे नाम होगी।

आज वो यारों,

मेरे साथ होगी।

वृक्षों की किलकारियाँ,

भी साथ होंगी।

मेघों से जलतरंग की,

बरसात होगी।

आज वो यारों,

मेरे साथ होगी।

एक साथ जीने की,

ऐसी प्यास होगी।

के फिर न कभी,

जुदाई की बात होगी।

आज वो यारों,

मेरे साथ होगी।

***