आभासी रिश्ता
आशीष कुमार त्रिवेदी
देवराज ने अपने फेसबुक एकांउट से लॉग आउट कर लैपटॉप रख दिया। खाना बना कर कुक डाइनिंग टेबल पर रख गई थी। ज़ोर की भूख लगी थी। लेकिन अभी तक नहाए नहीं थे। वह नहाने चले गए।
इधर बहुत सा समय फेसबुक पर बीत जाता था। पहले वह फेसबुक और दूसरी सोशल साइट्स के पक्ष में नहीं थे। उनका तर्क था कि इस आभासी दुनिया से भी भला कुछ हासिल हो सकता है। इन सब की वजह से रिश्तों में दूरियां बढ़ रही हैं। लेकिन बेटी अक्सर कहती थी "पापा आप सोशल मीडिया पर क्यों नहीं आते। हम आप से आसानी से जुड़ सकते हैं। आप भी दुनिया से जुड़ सकते हैं।"
"क्या करना है दुनिया से जुड़ कर। रही बात तुम्हारी तो फोन पर बात हो जाती है।"
"एक बार फेसबुक पर एकांउट खोल कर तो देखिए। आप अकेले रहते हैं। लोगों से जुड़ेंगे तो मज़ा आएगा। अच्छा ना लगे तो मत इस्तेमाल कीजिएगा।"
पत्नी की मृत्यु बहुत पहले ही हो गई थी। एक बेटी थी। वह भी अपने कैरियर और परिवार में व्यस्त थी। वह अकेले रह गए थे। दोस्तों के साथ कितना वक्त बिता सकते थे। फिर उनके अपने परिवार थे। कई बार मित्रों ने भी उन्हें फेसबुक पर आने का प्रस्ताव दिया था।
छह महीने पहले उन्होंने फेसबुक पर एकांउट खोल ही लिया। कुछ दिन तो चीज़ों को समझने में लगे। लेकिन जब कुछ अभ्यस्त हो गए तो उन्हें अच्छा लगने लगा। उन्हें महसूस होने लगा कि जैसा वह सोंचते थे वैसी बुरी नहीं है यह आभासी दुनिया। कई नए लोगों को जानने समझने का मौका मिलता है। सबसे बड़ी बात स्वयं की अभिव्यक्ति का अच्छा मंच मिलता है यहाँ। कुछ अवांछित तत्व भी मिल जाते हैं। पर समझदारी से काम लें तो उनसे बचा जा सकता है।
फेसबुक पर देवराज लेखकमंच नामक एक साहित्यिक समूह
में शामिल हो गए थे। यहाँ कई लोगो की रचनाएं पढ़ने को मिलती थीं। उनसे प्रेरित होकर उनके भीतर कई सालों से मौन बैठा कवि भी मुखरित हो उठा। कल रात देर तक जाग कर उन्होंने ने एक कविता लिखी और सुबह होते ही ग्रुप में पोस्ट कर दी। उसके बाद वह रोज़ की तरह सैर पर निकल गए। लौटे तो एक मित्र आए हुए थे। उनके साथ बातचीत में काफी समय गुजर गया। देवराज जानने को बेचैन थे कि उनकी पोस्ट पर लोगों की क्या प्रतिक्रया रही। मित्र के जाते ही उन्होंने पुनः लॉगइन किया। उनकी पोस्ट पर बीस लाइक और चार टिप्पणियां थीं। एक टिप्पणी ने उनका ध्यान अपनी तरफ खींच लिया।
'बहुत खूब आपकी इन पंक्तियों में तो जीवन का सार समाया हुआ है।'
टिप्पणी किसी शारदा साहनी ने की थी। देवराज को टिप्पणी पसंद आई। वह शारदा के प्रोफाइल पर गए। उनके बारे में नाम के अतिरिक्त अन्य कोई जानकारी नहीं थी। पर देवराज के मन में उन्हें जानने की इच्छा थी। अतः कुछ संकोच के साथ उन्होंने 'ऐड फ्रेंड' का बटना दबा दिया। उसके बाद लॉगऑउट कर नहाने चले गए।
लंच करते हुए देवराज सोंच रहे थे कि शारदा उनकी मित्रता कबूल करेंगी या लगीं। प्रोफाइल चित्र में वह आसमानी रंग की साड़ी पहने हुए कुर्सी पर बैठी थीं। उम्र तकरीबन साठ के आस पास होगी। उनके पीछे कुछ गमले दिख रहे थे। शायद बागबानी का शौक हो। वैसे कुछ ही समय में देवराज के कई फेसबुक दोस्त हो गए थे। उन्होंने इससे पहले भी कई फ्रेंड रिक्वेस्ट भेजी थीं। किंतु किसी को भी लेकर वह इतने उतावले नहीं थे।
लंच के बाद देवराज आराम करने लगे। शाम को कुछ आवश्यक काम से बाहर जाना पड़ा। देवराज स्मार्टफोन नहीं रखते थे। वह लैपटॉप का ही प्रयोग करते थे। अतः लॉगइन करने में रात के नौ बज गए। नोटीफिकेशन देख कर पता चला कि शारदा साहनी ने उनकी दोस्ती स्वीकार कर ली है। उनके नाम के सामने चमकती हरी बिंदी दर्शा रही थी कि वह उस समय ऑनलाइन थीं। देवराज ने मैसेज किया 'नमस्ते'। उधर से भी जवाब आया। फिर करीब डेढ़ मिनट तक कोई संदेश नहीं आया। देवराज को लगा कि शायद आगे बात नहीं करना चाहती हैं। वह मैसेज बॉक्स बंद करने वाले थे कि तभी संकेत मिला कि उधर से कोई संदेश टाइप किया जा रहा है। कुछ ही क्षणों में संदेश सामने था।
शारदा : आपने मुझे मित्रता के योग्य समझा इसके लिए आभार
देवराज : आपका स्वागत है
शारदा : आप बहुत अच्छा लिखते हैं। मैं जल्दी किसी की पोस्ट पर प्रतिक्रया नहीं देती।
देवराज : धन्यवाद, वैसे बहुत दिनों के बाद लिखा था।
शारदा : बुरा मत मानिएगा पर टाइपिंग में मात्राओं की गलतियां थी।
देवराज जवाब देते उससे पहले ही एक और मैसेज आ गया।
शारदा : उम्मीद है आप अन्यथा नहीं लेंगे।
देवराज : आप शायद हिंदी की टीचर हैं।
शारदा : जी सही पहचाना। केंद्रिय विद्यालय से कुछ ही महीने पहले रिटायर हुई हूँ।
संवाद फिर से रुक गया। कुछ समय बाद मैसेज आया।
शारदा : आप के साथ बात कर अच्छा लगा। उम्मीद है आगे भी आपकी रचनाएं पढ़ने को मिलेंगी।
शुभरात्रि
देवराज : शुभरात्रि
देवराज फिर से लॉगआउट करके सो गए।
आठ माह बीत गए। शारदा फेसबुक पर देवराज की पहली ऐसी दोस्त थीं जिनके साथ उनकी मैसेजिंग होती थी। शरुआत में सिर्फ हालचाल लेने वाले संदेशों का ही आदान प्रदान होता था। फिर बातचीत कुछ और आगे बढ़ी। अब दोनों के बीच व्यक्तिगत जानकारियां भी साझा की जाने लगीं। देवराज ने अपने विषय में बताया। शारदा के जीवन के विषय में भी कई बाते पता चलीं। वह अविवाहित थीं। उन्हें पढ़ने, खाना बनाने तथा स्केचिंग का शौक था। किंतु जो चीज़ दुनिया में उन्हें सबसे अधिक प्रिय थी वह थी बागबानी। बागबानी करते हुए वह सब कुछ भूल कर उसी में लीन हो जाती थीं। पौधों की बच्चों की तरह देखभाल करती थीं। जब उनमें फूल आते तो ऐसे खुश होतीं जैसे माता अपने बच्चे की उपलब्धि पर खुश होती है। एक बार उन्होंने अपने छोटे से गार्डन का एक वीडियो बना कर देवराज को मैसेज किया था।
कई बार कुछ गंभीर विषयों पर दोनों के बीच मैसेज के माध्यम से लंबी चर्चा भी होती थी। देवराज ने अब नियमित तौर पर लिखना आरंभ कर दिया था। लोग अब उनकी कविताओं को बहुत पसंद करते थे। इसमें शारदा का बहुत बड़ा योगदान था। अपनी हर कविता को समीक्षा के लिए सबसे पहले शारदा को ही दिखाते थे। वह भी पूरी लगन से उसकी समीक्षा करती थीं। आलोचना और तारीफ दोनों का ही संतुलन बनाए रखती थीं। वह सदैव ही उनका उत्साह बढ़ाती रहती थीं।
जीवन में पहली बार कोई देवराज को लेखन के लिए प्रेरित कर रहा था। पहले भी वह कविताएं लिखते थे। दफ्तर से लौटने के बाद अपनी डायरी लेकर लिखने बैठ जाते थे। एक बार वह रात में बैठे लिख रहे थे। तभी पत्नी ने टोंका "आप यह देर रात तक क्या लिखा करते हैं।"
उन्होंने अपनी डायरी उसकी तरफ बढ़ा दी। उसने एक दो पन्ने पलटे और डायरी वापस करते हुए बोली "कविताएं लिखते हैं। कहीं छपें तो कोई बात हो। कुछ पैसे तो मिलेंगे।"
उनका उत्साह खत्म हो गया। उन्होंने फिर कभी वह डायरी अपनी पत्नी को नहीं दिखाई। उसके बाद तो ज़िंदगी ने ही उन्हें इतना उलझा दिया कि लिखने का समय ही नहीं मिलता था। बेटी ने अभी किशोर वय में कदम ही रखा था कि पत्नी का देहांत हो गया। उन्हें माता पिता दोनों की ही भूमिका निभानी पड़ी। उसके बाद तो आदत ही छूट गई।
अब जब से पुनः लिखना आरंभ किया था तो लगता था जैसे कि उनके व्यक्तित्व का खोया हुआ हिस्सा फिर से मिल गया हो। पहले सिर्फ फेसबुक पर लिखते थे। उसके बाद कुछ वेब पत्रिकाओं के लिए लिखने लगे। अभी एक मासिक पत्रिका में उनके द्वारा भेजी गई दो कविताएं प्रकाशन के लिए चुनी गई थीं। जब उन्होंने यह खबर शारदा को दी तो वह बहुत खुश हुईं।
शारदा के साथ दोस्ती के बाद ही देवराज यह समझ पाए कि उनके जीवन में एक गहरा खालीपन था। जिससे वह परेशान तो थे किंतु समझ नहीं पा रहे थे कि यह है क्या। उन्हें एक ऐसे व्यक्ति की ज़रूरत थी जिसके साथ वह खुल कर अपने मन की बात कर सकें। जब से शारदा के साथ दोस्ती हुई थी वह खालीपन बहुत हद तक भर गया था। वह अपने मन की बहुत सी बातें उनके साथ साझा कर लेते थे। शारदा के कहने से ही उन्होंने आई फोन खरीद लिया था। अब फोन पर भी बात होती थी। देवराज ने एक दो बार वीडियो चैट के लिए कहा किंतु शारदा टाल गईं। देवराज ने भी अधिक ज़ोर नहीं दिया। अब वह पहले से अधिक खुश रहते थे।
उन दोनों की दोस्ती का एक वर्ष पूरा होने की सूचना उन्हें फेसबुक से मिली। उन्होंने शारदा को मैसेज किया।
देवराज : मुबारक हो। आज हमारी मित्रता का एक साल पूरा हो गया।
शारदा : आपको भी बधाई।
देवराज : मेरे लिए आपकी मित्रता अनमोल है।
शारदा : मेरे लिए भी इसका बहुत मूल्य है।
देवराज के मन में एक खयाल आया। उन्होंने मैसेज भेजा।
देवराज : इस एक साल में हमने अपने मन की ना जाने कितनी बातें साझा की हैं। लेकिन कभी एक दूसरे को देखा नहीं। क्या हम आज वीडियो चैट पर मिल सकते हैं।
कुछ पलों के बाद जवाब आया।
शारदा : आधे घंटे में मैं वीडियो कॉल करती हूँ।
देवराज कॉल की प्रतीक्षा करने लगे। पच्चीस मिनट बाद दोनों वीडियो कॉल पर एक दूसरे को पहली बार देख रहे थे। शारदा का चेहरा मुर्झाया सा था। वह बहुत कमज़ोर लग रही थीं। देवराज ने कभी उनके इस रूप की कल्पना नहीं की थी। उन्हें धक्का सा लगा। उनके हावभाव से शारदा समझ गईं।
शारदा : क्या हुआ? यही सोंच रहे हैं कि तस्वीर और वास्तविकता में बहुत अंतर है।
देवराज : आप बहुत कमज़ोर लग रही हैं।
शारदा : इन दिनों स्वास्थ कुछ ठीक नहीं है।
देवराज : क्या हुआ?
शारदा : कुछ खास नहीं बस मौसम बदलने के कारण मामूली समस्या है।
देवराज : देखने से मामूली नहीं लगता। डॉक्टर को दिखाया।
देवराज की आवाज़ में अपने लिए छिपी फिक्र को शारदा ने महसूस किया।
शारदा : आप परेशान ना हों। डॉक्टर ने कहा है सब ठीक हो जाएगा।
देवराज को तसल्ली नहीं हो रही थी। वह बार बार ज़ोर दे रहे थे कि वह ठीक से अपना इलाज करवाएं। शारदा भी समझा रही थीं कि वह अपना खयाल रख रही हैं। इस सब के दौरान देवराज की नज़र शारदा के पीछे लगे एक फोटो फ्रेम पर पड़ी। फोटो का चेहरा जाना पहचाना लग रहा था।
देवराज : यह आपके पीछे लगी फोटो किसकी है। ऐसा लगता है जैसे कहीं देखा है।
शारदा : वह मेरी बेटी स्नेहा है। मैंने उसकी कुछ पिक्स पोस्ट करी थीं। वहीं देखा होगा।
देवराज के मन की दुविधा को शारदा समझ गईं।
शारदा : मैंने स्नेहा को गोद लिया है। मेरी मेड की बेटी है। बचपन से ही मैंने इसकी पढ़ाई का जिम्मा ले रखा था। इसकी माँ के मरने के बाद मैंने कानूनी तौर पर गोद ले लिया।
देवराज : बहुत नेक काम किया आपने। कहाँ है स्नेहा?
शारदा : इंजीनियरिंग कर रही है। मुंबई में है।
देवराज : आप एकदम अकेली हैं?
शारदा : एक मेड साथ रहती है।
बहुत देर तक बात होती रही। अंत में देवराज ने अपना ध्यान रखिएगा कह कर कॉल काट दी। देर रात तक वह शारदा के विषय में सोंचते रहे। वह कई दिनों से अनुभव कर रहे थे कि कुछ गड़बड़ है। उनके मैसेज के जवाब देर से मिलते थे और बहुत संक्षिप्त होते थे। शारदा अब बहुत कम ऑनलाइन मिल पाती थीं। फोन भी नहीं उठ रहा था। उन्हें लगा था शायद कोई व्यस्तता होगी। लेकिन आज वह बकत ही मुर्झाई हुई थीं। आवाज़ से लग रहा था कि बहुत बीमार हैं। जरूर कुछ गंभीर बात है। लेकिन उनके लाख कुरेदने पर भी शारदा यही कहती रहीं कि सब ठीक है।
अगली सुबह उठते ही उन्होंने मैसेज भेजा।
देवराज : सुप्रभात ? कैसी हैं? खयाल रखिएगा।
ब्रेकफास्ट करते हुए उन्होंने चेक किया कि क्या जवाब आया। कोई जवाब नहीं आया था। उन्हें कुछ फिक्र हुई। उन्होंने एक और मैसेज भेजा।
देवराज : तबीयत ज्यादा खराब है क्या? मैसेज पढ़ते ही जवाब दीजिए।
शाम को भी कोई जवाब नहीं आया। उन्होंने कॉल किया। उसका भी कोई जवाब नहीं मिला। देवराज को लगा तबीयत ज्यादा बिगड़ गई है। एक दो दिन रुक जाएं। दो दिन बाद उन्होंने फिर संपर्क करने का प्रयास किया। किंतु असफल रहे। जैसे जैसे समय बीतता गया उनकी फिक्र बढ़ने लगी।
दस दिन बीत गए और शारदा का कोई समाचार नहीं मिला। देवराज को अनहोनी की आशंका सता रही थी। वह किसी भी तरह शारदा के विषय में जानना चाहते थे। लेकिन फेसबुक तथा फोन के अलावा और कोई संपर्क सूत्र नहीं था। दोनों ही इस समय काम नहीं आ रहे थे। वह कोई उपाय सोंच रहे थे। तभी उन्हें स्नेहा का ध्यान आया। वह जरूर शारदा के साथ फेसबुक पर जुड़ी होगी। देवराज ने फौरन लॉगइन किया। शारदा के प्रोफाइल पर जाकर उनकी फ्रेंड लिस्ट देखी। वहाँ स्नेहा मिल गई। उन्होंने स्नेहा को मैसेज भेजा।
देवराज : स्नेहा मैं शारदा जी का फेसबुक मित्र हूँ। हम अक्सर एक दूसरे को मैसेज करते थे। पिछली बार जब हमने वीडियो चैट की थी वह बहुत बीमार दिख रही थीं। इधर कई दिनों से उनका कोई हाल नहीं मिला। जैसे ही यह मैसेज पढ़ो मुझे इस नंबर पर कॉल करो।
देवराज ने अपना फोन नंबर लिख दिया। वह स्नेहा की कॉल का इंतज़ार करने लगे। दिन भर कोई कॉल नहीं आई। रात करीब आठ बजे स्नेहा ने फोन किया।
"हैलो अंकल मैं स्नेहा।"
"बेटा कई दिनों से शारदा जी का कोई समाचार नहीं मिला। कैसी हैं वह।"
"सॉरी अंकल पर अब वह इस दुनिया में नहीं हैं।"
सुन कर कुछ क्षणों के लिए देवराज की आँखों के सामने अंधेरा छा गया। वह कुछ बोल नहीं सके।
"मैं खुद इतनी परेशान थी कि आपको सूचित करना भूल गई।"
देवराज ने स्वयं को संभाला।
"कब हुई मृत्यु। क्या बीमारी थी।"
"अंकल एक हफ्ता हो गया। उन्हें कैंसर था।"
"पर शारदा जी ने कभी नहीं बताया।"
"अंकल मुझे अभी फोन रखना होगा। पर मुझे आपको बहुत कुछ बताना है। क्या आप अपनी ईमेल आइडी मैसेज कर देंगे।"
"ठीक है बेटा।"
शारदा की मौत की खबर से देवराज बुरी तरह टूट गए। उन्होंने फेसबुक से नाता तोड़ दिया। कहीं आते जाते भी नहीं थे। बेटी ने फोन किया तो उससे भी ठीक से बात नहीं की। बहुत पूंछने पर भी उसे कुछ नहीं बताया। आभासी दुनिया में जुड़ा यह रिश्ता उनके वास्तविक जीवन में गहराई से जुड़ गया था।
चार दिन बाद उन्हें याद आया कि स्नेहा ने उन्हें ईमेल भेजा होगा। लॉगइन किया तो स्नेहा की मेल पड़ी थी। उन्होंने खोल कर पढ़ना शुरू किया।
हैलो अंकल
आपको पता होगा कि शारदा जी ने मुझे गोद लिया था। मैं उन्हें शारदे माँ कह कर पुकारती थी। वही तो थीं जिनके कारण मेरे जीवन में विद्या का प्रकाश हो सका। मेरी मम्मी उनके घर काम करती थीं। मेरे पापा को नशे की लत है। मेरी मम्मी के जाने के बाद अगर शारदे माँ मुझे गोद ना लेतीं तो शायद मेरे पापा ने नशे के लिए मुझे बेंच दिया होता। पर आज मैं इंजीनियरिंग कर रही हूँ। यह उनके कारण ही संभव हुआ।
कैंसर ने ना जाने कब दबे पांव आकर उन्हें दबोच लिया। जब पता चला तो अंतिम स्टेज थी। पिछले डेढ़ साल से वह इससे लड़ रही थीं। संघर्ष के इस दौर में आपकी दोस्ती उनका सबसे बड़ा सहारा थी।
उनके जीवन में हमेशा से एक खालीपन था। मैंने इसे कुछ हद तक भरने का प्रयास किया। किंतु मेरी अपनी कुछ सीमाएं थीं। फिर मैं भी इंजीनियरिंग करने के लिए बाहर आ गई। उसी समय आप फेसबुक के जरिए उनसे जुड़े। पहली बार उन्हें कोई ऐसा मिला जिसके साथ वह दिल खोल कर बात कर सकती थीं।
उन्होंने आपको बीमारी के बारे में नहीं बताया। शायद आपको परेशान नहीं करना चाहती थीं। इसीलिए वीडियो कॉल से बचती थीं। पर उस दिन उन्हें अंदाज़ हो गया था। इसलिए वीडियो चैट के लिए तैयार हो गईं। वह चाहती थीं कि आप उन्हें देखें। ताकी अचानक पता चलने पर धक्का ना लगे।
मेरे पास शारदे माँ की एक चीज़ है जो आपके लिए है। मुझे अपना पता मेल कर दीजिए। मैं कुरियर से भेज दूंगी।
स्नेहा
कुछ दिनों के बाद उन्हें एक पार्सल मिला। खोला तो दंग रह गए। उनकी कविताओं को बहुत सुंदर राइटिंग में लिखा गया था। साथ में एक पत्र था।
अंकल
शारदे माँ की हैंडराइटिंग बहुत सुंदर थी। आपकी सभी कविताओं को वह बहुत कलात्मक ढंग से कागज़ पर लिख लेती थीं। इस तरह एक सुंदर संकलन तैयार हो गया है। मैंने उसे किताब की शक्ल में बाइंड करवा लिया है। यह आपकी दोस्त का आपको तोहफा है।
अपनी दोस्त के उस तोहफे पर देवराज की आँखों ने दो मोती गिरा दिए।
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