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शीरीन

शीरीन

रात के नौ बजते ही इकबाल अपने हेड फोन कान में लगा कर अपना पसंदीदा रेडियो प्रोग्राम सुनने लगा। हर बुधवार इस समय दिल से दिल की राह नाम का प्रोग्राम आता था। इस प्रोग्राम को पेश करने वाली रेडियो एंकर का नाम शीरीन था। उसके नाम की तरह उसकी आवाज़ भी बहुत मीठी थी। वह उसकी खूबसूरत आवाज़ का मुरीद बन गया था।

इकबाल बैंक में काम करता था। अपने घर से दूर इस शहर में अकेला रह रहा था। उसे बहुत अधिक घूमने फिरने की आदत नहीं थी। फिर दिन भर बैंक में खपने के बाद शरीर में ताकत भी कहाँ रह जाती थी। वैसे इकबाल कुछ अलग ही मिज़ाज़ का था। आज की तेज़ रफ्तार भागती जिंदगी में जहाँ चीज़ें पल पल बदलती हैं वह खुद को फिट नहीं पाता था। वह आलसी नहीं था पर बेवजह उस रेस का हिस्सा नहीं बनना चाहता था जिसमें सब भाग रहे थे। उसके इस रवैये के कारण बहुत से लोग उसे बाबा आदम के ज़माने का कहते थे। वह शायरी करता तो नहीं था पर अच्छे शायरों को पढ़ना उसे पसंद था। संगीत में भी उसे आधी अंग्रेज़ी आधी हिंदी वाले डांस नंबर पसंद नहीं थे। बल्कि वह रोमांटिक सॉफ्ट गाने पसंद करता था।

दिल से दिल की राह प्रोग्राम में ऐसे ही गाने सुनने को मिलते थे। पर इन गानों से भी अधिक उसे शीरीन की शहद जैसी आवाज़ और उसका अंदाज़े बयां बहुत पसंद था। करीब साल भर पहले जबसे यह प्रोग्राम शुरू हुआ था इकबाल ने लगभग हर एपिसोड सुना था। तब से ही शीरीन की आवाज़ का जादू उसके सर चढ़ कर बोल रहा था। दिन पर दिन वह उसका दीवाना होता जा रहा था। अक्सर वह सोंचता था कि जिस लड़की की आवाज़ इतनी मीठी है वह ज़रूर ही बला की खूबसूरत होगी। वह उससे बस एक बार मिल कर इस बात को जाँचना चाहता था।

आज का प्रोग्राम खत्म हुआ तो शीरीन से एक बार मिलने की उसकी इच्छा ने ज़ोर मारना शुरू कर दिया। हर प्रोग्राम के अंत में शीरीन अपना ट्विटर हैंडल बता कर प्रोग्राम के बारे में अपनी राय देने को कहती थी। इकबाल पहले कई बार अपनी राय दे भी चुका था। आज भी उसने प्रोग्राम के बारे में अपनी प्रतिक्रया बता दी थी। वह शीरीन के कुछ ट्वीट्स पढ़ रहा था तभी उसे शीरीन के फेसबुक पेज का लिंक दिखाई दिया। उसने फौरन उस पर क्लिक किया। कुछ ही देर मे पेज खुल गया। पर फेसबुक पेज पर शीरीन की कोई तस्वीर नहीं थी। प्रोफाइल में सिर्फ दो दिलों की तस्वीर लगी थी। वह जब एबॉउट के सेक्शन में गया तो उसे वहाँ एक फोन नंबर मिला।

कुछ देर वह उधेड़बुन में रहा कि क्या इस समय फोन करना ठीक होगा। पर वह अपने आप पर काबू नहीं कर सका। उसनै नंबर मिला। दिया। घंटी जाने लगी। पता नहीं वह कैसे पेश आएगी यह सोंच कर उसके दिल की धड़कनें बढ़ गईं।

"हैलो...."

दूसरी तरफ से वही मीठी सी जानी पहचानी आवाज़ सुनाई पड़ी।

"कौन हैं आप ? कुछ बोलते क्यों नहीं ?"

इकबाल कुछ क्षणों के लिए उस आवाज़ के जादू में खो गया।

"कुछ बोलना नहीं था तो फोन क्यों किया था ?"

इस बार उधर से नाराज़गी का स्वर सुनाई पड़ा। इकबाल होश में आ गया। इससे पहले कि शीरीन फोन काटती वह बोला।

"शीरीन जी मैं आपका एक मुरीद बोल रहा हूँ।"

"ओके...."

"जब से आपका प्रोग्राम शुरू हुआ है मैंने उसका कोई एपीसोड मिस नहीं किया है। आपकी आवाज़ बहुत मीठी है। आप जिस अंदाज़ में अपना प्रोग्राम पेश करती हैं वह मुझे बहुत पसंद है।"

"जी शुक्रिया मि. ......."

"इकबाल अंसारी....मैं बैंक में काम करता हूँ।"

"मि. इकबाल आपको नहीं लगता कि फोन करने के लिए यह समय ठीक नहीं। इस समय रात के ग्यारह बजने वाले हैं।"

"माफ कीजिएगा उतावलेपन में मैंने समय का खयाल नहीं रखा। पर मैं आपसे बात करना चाहता हूँ। क्या कल दोपहर लंच के समय मैं आपसे बात कर सकता हूँ।"

कुछ क्षण सोंचने के बाद शीरीन ने कहा।

"आपने बात कर तो ली। अब और क्या कहना चाहते हैं आप ?"

"जी अभी तो मैं ठीक से यह भी नहीं बता पाया हूँ कि मैं आपका कितना बड़ा फैन हूँ। प्लीज़ शीरीन जी...मुझे आपसे बात करने का एक और मौका दें।"

कुछ क्षण मौन रहने के बाद शीरीन बोली।

"ठीक है...कल दोपहर डेढ़ से दो बजे के बीच आप फोन कर सकते हैं।"

***

अगले दिन दोपहर को फिर शीरीन के फोन की घंटी बजी। शीरीन समझ गई कि इकबाल ही होगा।

"हैलो शीरीन जी....पहचाना...मैं इकबाल...."

"जी...कहिए क्या कहना चाहते थे आप मुझसे ?"

"मैं आपका बहुत बड़ा प्रशंसक हूँ। आपकी खूबसूरत आवाज़ का..."

उसे बीच में ही टोकते हुए शीरीन ने कहा।

"यह सब तो कल रात आप कह चुके थे। फिर दोबारा वही बातें दोहराने का क्या मतलब।"

अचानक इस तरह टोके जाने से इकबाल भी सोंच में पड़ गया।

"जी एक सच्चे फैन की यही तो समस्या है। वह बहुत कुछ कहना चाहता है पर समय आने पर कुछ नहीं सूझता है।"

"आपके पास तो वक्त था। सोंच कर रखना चाहिए था कि क्या कहना है ?"

"जी सही कहा आपने। मैंने बहुत कुछ सोंचा था जो आपसे कहना था। दरअसल यही मेरी कमी है। मेरे मन में जो कुछ होता है उसे सही तरह से व्यक्त नहीं कर पाता हूँ। जैसे कि आप कितनी खूबसूरती से अपने जज़्बात बयां कर देती हैं।"

"आपको यह कैसे लगा कि मैं अपने दिल की बात सही तरह से बयां कर पाती हूँ। मेरे प्रोग्राम में मैं जो कुछ कहती हूँ वह तो बस उन्हीं जज़्बातों को दर्शाता है जो गानों में होते हैं।"

"शीरीन जी भले ही आप जो कुछ कहती हैं वह गानों से संबंधित होता है। लेकिन आप जिस अंदाज़ में कहती हैं वह दिखाता है कि आप महज़ लिखे हुए शब्द नहीं पढ़ रही हैं बल्कि जो कह रही हैं उसे महसूस भी करती हैं।"

उसकी बात सुनकर शीरीन ने महसूस किया कि इकबाल दूसरे फैंस की तरह नहीं है। अधिकांशतः उसकी तारीफ करने के बहाने केवल फ्लर्ट करते हैं। उनसे वह वैसे ही निपट भी लेती है। इकबाल भले ही शुरू में उसे वैसा ही लगा था। लेकिन अब उसे लगता है कि वह एक गंभीर ठहरी हुई सोंच का व्यक्ति है। वह पहला फैन था जिसने उसकी खूबसूरत आवाज़ की तारीफ तो की ही थी पर उसमें छिपे हुए दर्द को भी महसूस किया था।

कुछ देर तक जब शीरीन कुछ नहीं बोली तो इकबाल ने कहा।

"क्या हुआ ? आप शांत हो गईं। अच्छा एक बात बताइए आप जो भी बोलती हैं वह अपने मन से बोलती हैं। वह पहले से लिखा हुआ नहीं होता है।"

"जी सही पहचाना आपने।"

लंच का समय खत्म हो रहा था। इकबाल ने कहा।

"शीरीन जी लंच का समय खत्म हो रहा है। मुझे फोन रखना पड़ेगा। पर अभी भी मुझे आपसे बहुत कुछ कहना है। क्या मैं कल फिर आपसे बात कर सकता हूँ ?"

"आपका लालच तो बढ़ता जा रहा है। इतनी बात की तो आपने।"

"सही बताऊँ शीरीन जी ये पहली बार मैंने किसी से इस तरह खुल कर बात की है। आपने भी मुझे धैर्य से सुना है। बस इसीलिए लगता है कि आपसे कुछ और बातें कर लूँ।"

शीरीन को भी इकबाल एक सच्चा इंसान लगा था। उसने इजाज़त दे दी।

***

उस दिम के बाद इकबाल और शीरीन के बीच अक्सर ही फोन पर बात होने लगी। पहले एक दो दिनों के बाद इकबाल फोन करता था। फिर यह सिलसिला रोज़ का हो गया। किंतु हर बार फोन इकबाल ही करता था। शीरीन ने कभी उसे फोन नहीं किया। लेकिन यदि किसी कारण से इकबाल उसे फोन नहीं कर पाता था तो शीरीन परेशान हो जाती थी। लेकिन फोन नहीं करती थी।

इकबाल एक अंतर्मुखी इंसान था। उसके बहुत अधिक दोस्त नहीं थे। वह घर से दूर अकेला रह रहा था। अतः उसके पास ऐसा कोई नहीं था जिससे अपने मन की बात कह सकता। दिल से दिल की राह प्रोग्राम भी वह इसलिए सुनता था कि जो भी शीरीन उसमें कहती थी वह उसे अपने दिल के करीब लगता था। शीरीन के रूप में उसे ऐसी दोस्त मिल गई थी जिसके साथ वह खुल कर अपने मन की बात कर सकता था।

शीरीन को भी इकबाल के रूप में एक फैन नहीं बल्कि एक दोस्त मिल गया था। शीरीन के जीवन में कुछ ऐसा था जिसके कारण वह दुखी रहती थी। हलांकि उसने कभी भी अपना दुख इकबाल को नहीं बताया था। लेकिन इकबाल की बातें उसे बहुत सुकून पहुँचाती थीं। कुछ समय के लिए वह अपना ग़म भूल जाती थी।

दोनों के बीच अब जी और आप की औपचारिकता नहीं रही थी। एक दूसरे को नाम लेकर बुलाते थे। इकबाल अक्सर उससे अपनी समस्याओं को लेकर सलाह मशविरा लेता रहता था। लेकिन शीरीन कभी भी उससे अपने निजी जीवन की कोई बात नहीं करती थी। इकबाल ने कई बार उससे इस विषय में शिकायत भी की किंतु वह उसकी बात को टाल देती थी।

इकबाल अंतर्मुखी था। इसलिए उसके अधिक दोस्त नहीं थे। लेकिन शीरीन ने अपने आप को एक ककून में बंद कर लिया था। वह इस ककून से बाहर निकलने से डरती थी। उसे जो चोट लगी थी उसने उसके आत्मविश्वास को हिला दिया था। वह इस स्थिति से उबरने की कोशिश तो कर रही थी। किंतु जल्दी किसी पर भरोसा नहीं कर पाती थी।

***

कभी शीरीन बहुत ही शोख़ और चंचल लड़की थी। उसके दोस्तों की एक लंबी फेहरिस्त थी। कॉलेज में कई लड़के उसकी खूबसूरती के दीवाने थे। इन्हीं में से एक था दानिश।

दानिश शीरीन की खूबसूरती का दीवाना ज़रूर था लेकिन और लड़कों की तरह उसके पीछे पीछे नहीं घूमता था। उसका अपना व्यक्तित्व बहुत प्रभावशाली था। उसमें एक रौब था। उसके इर्द गिर्द कई लड़कियां चक्कर लगाती रहती थीं। वह जब भी शीरीन से मिलता था तो उसके साथ सलीके से पेश आता था। कुछ मामलों में उसने उसकी मदद भी की थी। शीरीन भी उसके व्यक्तित्व के प्रभाव से अछूती नहीं रही। उसके अच्छे बर्ताव के कारण शीरीन भी उसे पसंद करने लगी थी।

शीरीन के मन को समझ कर दानिश ने उससे अपने प्यार का इज़हार कर दिया। शीरीन ने भी उसे स्वीकार कर लिया। पूरे कॉलेज में इस खूबसूरत जोड़े की चर्चा होने लगी। दिन पर दिन दोनों एक दूसरे के नज़दीक आते गए।

दानिश के अब्बा आसिफ बेग एक माने हुए वकील थे। राजनीति के गलियारों में भी उनकी अच्छी साख थी। बेग साहब अब अपना राजनैतिक कद बढ़ाना चाहते थे। इसी सिलसिले में जिस पार्टी से वह जुड़े थे उसके एक कद्दावर नेता की बेटी के साथ उन्होंने दानिश का निकाह करवाने का फैसला किया।

दानिश एक महात्वाकांक्षी व्यक्ति था। वह जानता था कि अपने अब्बा के रसूख की सीढ़ी के ज़रिए आसानी से ऊपर पहुँचा जा सकता है। अतः अब वह शीरीन से दूरी बनाने लगा। लेकिन एक दिन शीरीन ने उसे बताया कि वह हामिला है। अतः उन दोनों को जल्दी ही निकाह कर लेना चाहिए। दानिश तो पहले ही इस रिश्ते से गर्दन छुड़ाना चाहता था। उसने अपने अब्बा को सारी बात बताई।

बेग साहब ने शीरीन को अपने घर बुला कर चेतावनी दी कि वह चुपचाप बच्चे को गिरा दे और शादी का खयाल दिल से निकाल दे। अन्यथा परिणाम अच्छा नहीं होगा। पर शीरीन बच्चा गिराने को तैयार नहीं हुई। अतः उसे अगवा कर जबरन बच्चा गिरा दिया गया। इस बात से डरने की बजाय शीरीन और उग्र हो गई। इस बार उसे शांत करने के लिए जो सज़ा मिली उसने जिस्म के साथ साथ उसकी रूह को भी घायल कर दिया था।

करीब तीन साल लगे उसे अपनी उस पीड़ा की जलन को कुछ कम करने में। बड़ी हिम्मत से उसने खुद को आगे की ज़िंदगी के लिए तैयार किया। लेकिन अपने आप को एक दायरे में बंद कर लिया। वह दूसरों से पूरी तरह कट गई थी। दिल से दिल की राह प्रोग्राम ने उसे दोबारा लोगों से जुड़ने का मौका प्रदान किया।

***

प्रोग्राम के ज़रिए ही वह इकबाल के संपर्क में आई। जैसे जैसे उसके और इकबाल के बीच बातचीत का सिलसिला आगे बढ़ा वह उसमें अपना एक अच्छा दोस्त और हमदर्द देखने लगी। उसके मन की जलन अब कम हो गई थी। दुनिया उसे फिर जीने लायक लगने लगी थी। वह इकबाल से अपनी दोस्ती को और आगे बढ़ाना चाहती थी। पर इस सब के बीच उसे इस बात का डर भी था कि जब कभी इकबाल को उसकी सच्चाई पता चलेगी तो वह कैसे पेश आएगा।

इकबाल ने अब तक शीरीन के सामने रूबरू मिलने की अपनी इच्छा का ज़िक्र नहीं किया था। लेकिन अब वह उससे पूरी तरह से खुल चुका था। अतः इस बार जब उसने फोन किया तो शीरीन के सामने मिलने की अपनी इच्छा रखी। शीरीन अचानक उसकी यह इच्छा सुन कर परेशान हो गई। उसने टालने की कोशिश की।

"इकबाल तुम तो मेरी आवाज़ के मुरीद हो। वह तो तुम रेडियो पर और फोन पर सुन ही लेते हो। फिर मिलना क्यों चाहते हो ?"

"बस एक बार तुम्हें रूबरू देखना चाहता हूँ। मुझे लगता है कि जितनी खूबसूरत तुम्हारी आवाज़ है तुम उससे भी कहीं अधिक सुंदर होगी।"

उसकी बात सुनकर शीरीन कुछ क्षण शांत रहने के बाद बोली।

"यह ज़रूरी तो नहीं कि अगर मेरी आवाज़ अच्छी है तो मैं खूबसूरत भी होऊँगी।"

"नहीं मेरा मन कहता है कि तुम बेहद खूबसूरत हो। तुमने अपने प्रोफाइल में अपनी तस्वीर नहीं लगाई है। इसलिए एक बार तुम्हें देखने की ख्वाहिश है।"

"लेकिन अगर मुझे देख कर तुम मायूस हुए तो ? मतलब कि मैं सुंदर ना हुई तो ?"

"ये तुमने किस प्रकार की बात शुरू कर दी।"

"मेरी बात का जवाब दो। अगर तुम्हारी उम्मीद के हिसाब से मैं खूबसूरत ना हुई तो ?"

उसके इस तर्क पर इकबाल थोड़ झल्ला उठा। पर खुद को संयत कर बोला।

"ठीक है अगर मैं गलत हुआ तो भी हमारी दोस्ती वैसी ही रहेगी। पर तुम मिलो तो।"

शीरीन ने कुछ सोंच कर गंभीर स्वर में कहा।

"मुझे सोंचने के लिए कुछ वक्त चाहिए।"

"पर क्यों ? क्या तुम्हें मुझ पर यकीन नहीं है ?"

"बात यकीन की नहीं है। पर मैं बिना सोंचे कोई फैसला नहीं लेती हूँ।"

"ठीक है कितना वक्त चाहिए ?"

"मैं निर्णय लेकर खुद ही तुम्हें फोन करूँगी।"

***

शीरीन ने फोन कर इकबाल को मुलाकात के लिए हाँ कर दी किंतु शर्त रखी कि वह साथ में अपनी एक सहेली को लेकर आएगी। इकबाल को यह शर्त कुछ अजीब सी लगी पर उससे मुलाकात का अवसर वह गंवाना नहीं चाहता था। अतः उसने शर्त मान ली।

दो दिन बाद वह तय स्थान पर शीरीन से मिलने पहुँच गया। कैफे की उस टेबल पर पहुँचा जहाँ मिलने की बात हुई थी। एक बहुत ही खूबसूरत चेहरे ने उसकी तरफ देख कर हाथ हिलाया।

"शीरीन...मैं नहीं कहता था कि तुम बला की खूबसूरत होगी।"

"तुम भी स्मार्ट हो।"

शीरीन के जवाब से वह खुश तो हुआ पर उसे उसकी आवाज़ बदली हुई लगी। उसके टोंकने पर शीरीन ने कहा।

"हाँ अचानक गला खराब हो गया। गलती मेरी है। आइसक्रीम खा ली।"

शीरीन ने अपने बगल में बैठी लड़की का परिचय करवाया।

"ये नैना है। मेरी सबसे प्यारी सहेली।".

इकबाल को कुछ अजीब लगा। नैना कैफे के भीतर भी स्कार्फ बाँधे हुए थी। सत्तर के दशक की हीरोइनों की तरह उसनै बड़े गॉगल पहन रखे थे। परिचय कराने पर भी वह कुछ नहीं बोली। बस धीरे से हाथ हिला कर अभिवादन किया। इकबाल शीरीन के साथ बात करने लगा। बात करते हुए शीरीन ने कहा।

" तो क्या विचार है तुम्हारा मेरे बारे में।"

"मैं तो पहले ही कहता था कि तुम बेहद खूबसूरत होगी। तुम तो मेरी सोंच से भी अधिक सुंदर हो।"

"अभी भी मेरा वही सवाल है। अगर मैं खूबसूरत ना होती तो ?"

"ये कैसी बात है ? तुम मेरे सामने हो। कोई भी तुम्हें सुंदर कहेगा।"

"लेकिन अगर मेरा यह रूप झूठा हो तो ?"

यह सुनकर इकबाल को गुस्सा आ गया।

"तुम यही बेकार की बात करने के लिए मुझसे मिलने आई थीं। जो आँखों के सामने है वह झूठ कैसे हो सकता है। मैं शुरू से ही जानता था कि तुम बेहद खूबसूरत होगी। तुम खूबसूरत हो भी। अब बेकार की बात बंद करो।"

पूरी बातचीत के दौरान बार बार इकबाल को लग रहा था कि नैना अपने गॉगल के पीछे से उसे ही देख रही है। वह बहुत असहज महसूस कर रहा था। तभी अचानक नैना ने अपने गॉगल उतार दिए। स्कार्फ खोल कर सामने मेज़ पर रख दिया। उसका चेहरा देखते ही इकबाल ने अपना चेहरा घुमा लिया। चेहरे का बायां हिस्सा पूरी तरह से झुलसा हुआ था। बाईं आँख भी खराब थी।

"मुझे मेरा जवाब मिल गया इकबाल।"

नैना की बात सुनकर इकबाल चक्कर में पड़ गया। क्योंकी वह उसकी जानी पहचानी आवाज़ थी। यह शीरीन की आवाज़ थी। इकबाल सन्न रह गया।

"इकबाल तुमने मेरी खूबसूरत आवाज़ के आधार पर मेरे सुंदर चेहरे की कल्पना की थी। उसे ही मन में बसाए हुए इतने दिनों तक मुझसे बात करते रहे। तुम्हारी दोस्ती भी उसी काल्पनिक सुंदर चेहरे से थी। लेकिन आज मेरा असली चेहरा देख कर तुमने मुंह फेर लिया।"

इकबाल कुछ भी बोलने की स्थिति में नहीं था। अभी भी वह शीरीन के झुलसे चेहरे की तरफ नहीं देख पा रहा था।

"मैं तुम्हें दोष नहीं देती हूँ। खूबसूरत साथी की चाह रखना कोई गलत बात नहीं है। मेरे इस चेहरे को नज़र भर कर देखना भी आसान काम नहीं है।"

यह कह कर उसने अपना स्कार्फ बाँध कर गॉगल पहन लिए। बिना कुछ बोले वह बाहर चली गई। शीरीन के जाने के बाद उसकी सहेली बोली।

"नैना मैं हूँ। शीरीन मुझे अपने साथ लाई थी ताकि वह देख सके कि उसका चेहरा देख कर तुम्हारी प्रतिक्रया क्या होगी।"

अपनी बात कह कर नैना भी चली गई। इकबाल कुछ देर वहीं बैठा रहा।

उस मुलाकात के बाद इकबाल ने कभी भी शीरीन को फोन नहीं किया। हर बुधवार शीरीन अपना प्रोग्राम लेकर आती रही।

***