August 2018 ki Kavitaaye aur dincharya books and stories free download online pdf in Hindi

अगस्त २०१८ की कविताएं और दिनचर्या

अगस्त 2018 की कविताएं

१.
पुरानी बातें आज भी दोहरा सकता हूँ,
जैसे आकाश साफ दिखता था
मूसलाधार बारिश होती थी
पढ़ाई पर सपना लिखा रहता था
किताबों की प्रशंसा होती थी, 
शिक्षित होना अनिवार्य था,
पर पढ़ने से अधिक वृक्ष लगाना
और पेड़ों पर चढ़ना अधिक अच्छा लगता था,
नदियों की कल-कल में बहुत दूर तक तैर लेते थे, 
पहाड़ी नदियां गंदी नहीं होती थीं,
सबकी परिच्छाइयां बनाने में सक्षम थीं।
पगडण्डी  मुड़ती थी
इंतजार मन में उमड़ता- घुमड़ता था,
झील पर  रूकना होता था,
कभी लड़के गाते थे
कभी लड़कियां गुनगुनाती थीं,
पहाड़ भी अपनी ऊँचाई दिखाता था।
जो प्यार किया स्वयं ही हो गया था,
जैसे जनम अचानक हो जाता है।
पुरानी बातें आज भी दोहरा सकता हूँ,
जैसे नयी-नयी पाठशाला बनी थी,
बच्चों की कहानियों में घने जंगल होते थे,
शेर जंगल का राजा होता था,
लेकिन शिकार पर नहीं जाता था,
दहाड़  जोर की मारता था।
किसान के पास दो बैल होते थे,
बच्चे  दौड़ा करते थे,
अच्छे लोग अधिक थे,
प्यार की अनुभूतियां पगडंडियों पर भटकती थीं,
राधा-कृष्ण ही आदर्श थे,
पर मीरा को भी कोई भूलता नहीं था।
२..
ओ आदमी
कहाँ हो, कहाँ जा रहे हो,
कौन मिलेगा, कौन बिछुड़ेगा,
किस-किस से परिचय होगा? 
ओ मनुष्य,
नाममात्र  भी नहीं दिख रहे हो,
कहाँ दृष्टि गड़ाऊँ?
ब्रह्मांड बड़ा होते जा रहा है,
मोह पर हाथ पड़ा है,
माया पर मुँह गड़ा है।
ओ मनुज
दिख रहे हो,सुन रहे हो,
गीता से ज्ञान ले रहे हो,
समय के समर में लड़ रहे हो।
ओ मनुष्य
बहुत उधेड़बुन करते-करते,
यह संस्कृति निकली है,
यह सभ्यता बनी है,
कहाँ हो, कहाँ जा रहे हो?
३.
पृथ्वी इतनी भी सहनशील नहीं है
कि सब कुछ सह ले,
कटे वृक्षों को अनवरत नहीं देख सकती,
गंदी नदियों पर मुँह नहीं धो सकती।
पहाड़ इतने उदार नहीं होते है
 कि उनका दोहन कलते रहें और वे चुप रहें।
विद्यालय भी इतने ज्ञानी नहीं होते हैं 
कि बिना पढ़ायी के ज्ञान बाट दें।
हवा इतनी परोपकारी नहीं होती है
कि खतनाक प्रदूषण के साफ बनी रहे।
ये सब मनुष्य को तब तक प्यार  करते हैं
जब तक मनुष्य, दानशील रहे।
४.
  महिलाएं थकती नहीं हैं
खेत से खलिहान तक,
वन से वृक्षों तक,
घाटियों से शिखरों तक,
चूल्हे से  चाख तक,
मैके से ससुराल तक, 
चैत्र से फाल्गुन तक,
किस्सों से कहानियों तक,
शब्दों से लोकोक्तियों तक,
 लड़कियां थकती नहीं हैं।
५.
मुझे तुम्हारी आदत हो गयी है
जैसे आकाश को बादलों की
पहाड़ों को बर्फ की।
मुझे तुम्हारी आदत हो गयी है
जैसे सुबह को सूरज की
बच्चे को प्यार की।
६.
झंडा हमारा खड़ा हाथ में
जय आगे है,हम आगे हैं,
सारे विश्व को बात बताते
गीत हमारे गूँज रहे हैं।

सुन्दर हिमालय कहता है
ठंड , चमक , ऊँचाई है,
नभ का सुन्दर हावभाव है,
भारत की सीमा पर, युग-युग तक बैठे रहना है।

झंडा ऊँचा फहर रहा है,
दिशा हमें दिखाता है,
जय का स्वाद याद दिलाता,
जय आगे है, हम आगे हैं।

झंडा लहराता खड़ा हाथ में
सहस्र संदेश कहता है,
आजादी का चिह्न यही है,
हम आगे हैं, जय आगे है , संदेश विशाल सुनाता है।
७.
शून्य भर जायेगा,
कदम बढ़ जायेंगे,
नींद टूट जायेगी,
हँसी खिल जायेगी।

आँसू मिट जायेंगे
मुस्कान उमड़ आयेगी,
भ्रम छंट जायेंगे
प्यार मिल जायेंगे।

युद्ध रूक जायेंगे
शान्ति समीप आयेगी,
प्राण  निकल जायेंगे
शून्य भर जायेगा।

जाने के बाद, बातें होंगी
प्रशंसा झूलेगी,
सच-झूठ का अन्तर कम होगा
मृत्यु की भव्यता दिख जायेगी,
शून्य भर जायेगा।

८.
बहुत बार मन होता है
स्वयं से क्षणभर झूठ बोल लूँ,
जो करता हूँ
कह दूँ, नहीं करता हूँ,
और इसे आज की राजनीति कह दूँ।
बहुत बार मन होता है
स्वयं से क्षणभर सच बोल लूँ,
जो करता हूँ
कह दूँ ,करता हूँ, 
और इसे अपना धर्म मान लूँ।
९.
सुख भी मेरे अधिक नहीं हैं
दुख भी मेरे अधिक नहीं हैं,
जहाँ तक मेरे स्वप्न चले हैं
वहाँ तक मेरा प्यार रहा है।

दिन अभी चल रहा है
रात से कोई डर नहीं है,
प्यार की डूबी बात अभी तक
मन का खाका खींच रही है।
१०.
एक शून्य है अद्भुत
जहाँ कोई आशा नहीं 
जहाँ कोई निराशा नहीं।
न नदियों की बाढ़
न समुद्र का उछाल,
न पहाड़ों की चढ़ाई
न रास्तों के मोड़,
न जन्म की खुशी
न मृत्यु का शोक,
न भूख, न प्यास
न मोह, न लोभ,
शून्य में शून्य का सुख है।
११.
इतना सुन्दर सूरज निकल रहा है,
कितनी सुंदर दोपहर होगी
कितनी सुन्दर शाम होगी,
सुन्दर से लोग दिखेंगे।

कुछ झगड़े भी होंगे,
कुछ सुलझेंगे, कछ सुलझाये जायेंगे,
धरती बार बार सजेगी-संवरेगी।

पर चिन्ता इतनी है, 
कि हम थोड़े बूढ़े हो जायेंगे,
 क्षण-क्षण समय को अपने में समेटे,
हम उम्र के उस पार होंगे।
१२.
मेरे गुण-दोष के लिए
बहुत गंगा बही है,
मेरे गुण-दोष के लिए
बहुत हिमालय उठा है।

मेरे सुख-दुख के लिए
बहुत तीर्थ बने हैं,
मेरे सुख-दुख के लिए
बहुत दिन-रात हुए हैं।

मेरे प्यार के लिए
बहुत  हाथ उठे हैं,
मेरे प्यार के लिए
बहुत  कदम चले हैं।
१३.
अरे भोर हो गयी
नक्षत्रों से दोस्त गुम हो गये हैं
गहरी रात में जो चमकते रहे थे,
उम्र की दराज से खिसक गये हैं।

प्यार की हवा कहाँ चल रही है,
गुम हुए दोस्त कहाँ मिल रहे हैं?
समझो, यादों की बड़ी नदी बन गयी है,
दोस्तों की बातों की चहल-पहल दिख गयी है।

पुरानी यादों में एक फकीर नजर आया है,
कह दूँ, वह मेरी ही दोस्ती है,
साधु सी मुलाकातें सुरमयी रहती हैं,
उम्र की दराज में मेरी दोस्ती रूक गयी है।
१४.
प्यार का नशा दिल को बहुत है,
देश की बातें शिखर सी प्रिय हैं
जो कहना था, कह तो दिया
नशे ने हमारा परिचय तो दिया है।

प्यार के नशे में सदियों चले हैं
आँखें देश से मिली भी बहुत हैं,
उम्र की दराज में जो चिट्ठी पड़ी है
उसमें दिल की कहानी  लिखी है।
१५.
मैंने कब, कहाँ किसे चाहा
कब आँखों में शब्द भरे,
जो सामने था खड़ा, खड़ा
वह कब, कहाँ मेरा था?

कब गंगा से बात किया
"हर-हर गंगे,हर-हर गंगे"।
कब हिमालय को आवाज दिया
कब भारत की गूँज सुनी
कब झंडे से लिपट गया,
कुछ याद रहा, कुछ भूल गया।

देश यहीं से आरम्भ हुआ
देश यहीं पर रोया है
आँसू महाभारत में जो गिने गये
कृष्ण कहे वे उनके थे।

धरती पर जो आघात लगे
किसने कहा किसके थे?
कौन उठा, कौन बैठ गया है 
हमने क्या चाहा, क्या बदल गया है?
१६.
मैंने बहुत छोटी बात की थी
लेकिन धीरे से बड़ी हो गयी
कथाओं आने लगी,
मैंने कुछ नहीं किया
पर वह घूमने लगी थी।
पूछने लगते
कहाँ है वह फूल
जो जवान कर देताहै,
कहाँ है वह नदी
जो रात में सूख जाती है।
१७.
फिर, शाम की जरूरत होने लगी है
तुम कहो, हम सुनें, ऐसी आदत बनने लगी है।

दिनभर उड़ी चिड़िया, शाम को लौट आय,
कुछ तुम्हारी बात हो, कुछ जग की फकीरी हो,
ऐसा मन होने लगा है कि जो भी हो शान्त हो।
***महेश रौतेला
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दिनचर्या:
सुबह हो चुकी है। सुबह की चाय पीते-पीते, व्हाट्सएप पर वरिष्ठ ओएनजीसी समूह पर आये संदेश देखता हूँ। सबको पढ़ना संभव नहीं है। रेडियो पर धार्मिक संदेश, आरती आदि चल रही है। कृष्ण ,अर्जुन से कह रहे हैं," सुन ले मुझे, फिर तेरे मन में जो आये वैसा ही करना।"  अर्जुन ने फिर क्या किया सब जानते हैं। कृष्ण भगवान ने सुख-दुख, लाभ-हानि को एक ही समतल पर रखा है। कहा जाता है  दस साल की उम्र में वे राधा से बिछुड़ गये थे, अपनी बासुरी राधा को देकर।उसके बाद उन्होंने कभी बासुरी नहीं बजायी। टेलीविजन खोलता हूँ तो समाचार है केरल, उत्तरप्रदेश, बिहार, उत्तराखंड, हिमाचल आदि जगह बाढ़ है और आस्ट्रेलिया(न्यू साउथ वेल्स) में सूखे की मार है, एक कंगारू का कंकाल दिखा रहे हैं। इतना सुन-देख कर मैं घर से बाहर निकल चुका हूँ। आकाश में शान्ति लग रही है, धरती पर तेज परिवहन है,प्रदूषण के साथ। मैं बैंक में जाता हूँ। बकरीद की छुट्टी कब है ,इसकी चर्चा है।अनिश्चितता का सिद्धांत यहां भी लागू है। विज्ञान में यह सिद्धांत कहता है, किसी कण की स्थिति और वेग,एक समय पर एक साथ सही-सही ज्ञात नहीं कर सकते हैं। जीवन में एक वेग है, एक स्थिति है और समय भी है। अनिश्चितता बहुत है। दूसरे बैंक में भी काम है, पर वहाँ नहीं जाता हूँ क्योंकि कल के लिए भी काम रखना है। ओएनजीसी, चिकित्सालय के सामने आते ही मन होता है," चलो, वजन नाप लेता हूँ।" वजन नापता हूँ। वजन स्थिर है। फिर सोचता हूँ, रक्तचाप नपवा लेता हूँ। बाहर निकलता हूँ तो देखा बाहर दो बहुत मोटे पुरुष और महिला बैठे हैं। शायद, डाक्टर को दिखाकर आराम कर रहे होंगे। उनका मोटापा मेरा ध्यान खींचता है। मुझे इन्हें देख डलास,यूएसए की याद आ जाती है। जब माँल के बाहर बेडौल, मोटे काले- गोरे लोगों को देखकर मन सहम जाता था।  फिर मन बचपन की कविता सोचता है," अति का भला न बरसना, अति की भली न धूप---।"  मेरे पास खाली समय बहुत है। पेड़ों के नीचे एक चक्कर लगा लेता हूँ। फिर एक बेंच पर बैठकर, मोबाइल देखता हूँ, उसमें एक संदेश है, ईस्टोनिया की जस्टिन का, सभी विशेषणों के साथ।अच्छी दोस्ती और प्यार के विनिमय के लिए। फेसबुक की दुनिया में शब्द कितनी तेजी से चलते हैं। संदेश पढ़कर अच्छा लगता है और चेहरे पर मुस्कान भी फैलती है। लेकिन तभी एक पुराना साथी वहाँ आ जाता है। दोनों चाय पीते हैं। वह कहता है," समय नहीं कटता है। सोच रहा हूँ, ओएनजीसी लाइब्रेरी का सदस्य बन जाऊं।"  मैंने कहा," अच्छा है, फिर भू-विज्ञान से नाता जुड़ा रहेगा।" आसमान में बादल घिर आये हैं। जीवन की खोज क्षण-क्षण जारी है। सुख-दुख और लाभ-हानि एक ही धरातल पर आ जाते हैं।
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***महेश रौतेला