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बाल गणेशा

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Children Stories

गणेशा ….गणेशा ….बोलते हुए अकांक्षा की नींद खुली और आँखें टिमटिमाकर खोलते हुए अंकाक्षा ने कहा …ममी ममी …यहां आओ जल्दी मेरी बात सुनो आज रात को ना मेरे सपने में गणेशा आए थे…हाँ, वही जिनकी आप रोज पूजा करते हो ना ! वही आज मुझे सपने में दिखे और मैने उनसे ढेर सारी बातें भी की। आप ही तो कहते हो कि वो सभी विघ्न को हर लेते हैं, सबके मन की बात सुनते हैं और जो सच्चे दिल से मांगो वो पूरा भी करते हैं । ममी मुझे सब चिढ़ाते हैं कि मेरा रंग काला है, मैं सुंदर नहीं दिखती ना ममी ! क्या कभी वो मुझे कोई खुशी देंगे। मैं सारी जिन्दगी ऐसे ही रहुंगी। ममी आप देखना मेरी जिन्दगी ही बेकार है मैं कभी कोई दोस्त नहीं बना सकूंगी। सुधा ने कहा नहीं बेटा तुम्हें क्या बहम हो गया है भग्वान ने सबको अलग अलग बनाया है कोई कैसे दिखता है तो कोई कैसे इसका मतलब ये नहीं कि कोई किसी से कम है। रंग में क्या रखा है दिल अच्छा होना चाहिये और इंसान। बेटा लोग गुण देखते हैं गुणों से ही हमारी पहचान होती है जो दोस्त तुम्हें चिढ़ातेहैं वो तुम्हारे दोस्त हैं ही नहीं, क्योंकि वो तुम्हारे गुण नहीं रंग देखते हैं । पर जो सच्चा दोस्त होता है वो दिल देखता है।सुधा ने अकांक्षा को बहुत समझाने की कोशिश की पर वो फफक फफक कर रोने लगी। फिर अपने आंसुओं को पोंछते हुए बोली… मेरे सपने में जो गणेशा आए थे मैने उनसे यही मांगा कि मैं बहुत सुंदर बन जाऊं मेरा रंग गोरा हो जाए।फिर तो मेरे दोस्त मुझे नहीं चिढ़ाएंगे कि मैं काली हूँ और मझ से दोस्ती भी करेंगे।।ममी गणेशा मुझे सुंदर बना देंगे ना….सुधा ने भी अकांक्षा का मन रखने के लिए कह दिया हाँ बेटा तुम तो पहले से ही सुंदर हो इतना अच्छा दिल जो है तुम्हारा। पर कभी कभी अकांक्षा बहुत ही निराशा भरी बातें करती थी जिससे सुधा का दिल सहम जाता जब वो कहती कि उसे जीना ही नहीं चाहिये इससे अच्छा वो पैदा ही न होती, कईं बार सुधा ने अपने पति से भी इन बातों का जिक्र किया था उन्होने भी उसे बहुत समझाया पर कोई असर नहीं था वो तो हार मान चुके थे कि बेटी को इस निराशा भरी बातों से कैसे उभारें। कभी तो वो सोचते कि साईकैट्रिसट के पास जाकर देखें शायद वो इसे समझा सके कि ऐसा कुछ नहीं है पर वो जाने को भी नहीं मानती थी अपने आप को अपनी बातों की कैद में रख दिया था और हार मान ली थी कि अब इसी कम्पलैक्स के साथ जीऊंगी मेरा कोई दोस्त भी नहीं है न ही कोई कभी होगा।। सुधा की न ही पापा की बातों का कोई फायदा हुआ। स्कूल के अध्यापकों से भी बात की थी पर वो क्या कर सकते थे बच्चौं को भी डांटा गया जो उसे चिढ़ाते थे पर जाने क्यों अकांक्षा ने अपने मन में क्या धारणा बना ली थी कि वो सुंदर नहीं है, उसे कोई पसंद नहीं करता और न ही कभी करेगा। इसी वजह से उसका कोई अच्छा दोस्त नहीं है। सुधा ने हर तरह से समझाया पर सब बेकार। सुधा तो उसे कहती हर इंसान में और कण -कण में भग्वान विधमान हैं, जरूरत है तो बस उन आँखों की जो उन्हें पहचान सकें। फिर वो भी छुप कर अपनी बेटी की ऐसी बातों से परेशान होकर रोती और मन ही मन गणेश जी को कहती आप ही कुछ करो जिससे मेरी बेटी का आत्मविश्वास वापिस आ सके। अकांक्षा के सामने कभी नहीं जताती कि वो अपनी बेटी के इस व्यवहा।र से कितनी आहत है। अकांक्षा के सामने वो मुस्कुरा कर ही जाती जैसे कोई बात न हो। …अकांक्षा …बेटा अब उठो स्कूल के लिए झटपट तैयार हो जाओ।मैं आज तुम्हारी पसंद का टिफिन बनाऊंगी ! ठीक है…।

ठीक है ममी, मैं अभी तैयार होकर आती हूँ।पर सपने की वजह से अकांक्षा का मन आज बहुत खुश था उसे लगा रहा था मानो उसे कोई खजाना मिल गया हो, जिसकी उसे तालाश थी। सुधा नहींजानती थी कि एक सपना उसे कैसे बदल देगा। स्कूल बस आ चुकी थी, आखिर अपने यन में बुदबुदाते, बेफ़िक्र अकांक्षा स्कूल को चल पड़ी।अभी स्कूल में एडमिशनस चल रही थीं, नए बच्चे आ रह थे। अकांक्षा की कक्षा में भी कुछ नए बच्चे आए थे।उनमें से एक लड़के का नाम स्वास्तिक था पर अकांक्षा को उसमे अपने सपने के गणेश की झलक दिखाई दे रही थी, वो पहले दिन से ही जब उससे मिली तो ध्यान से देखती रह गई और मन से ही स्वस्तिक को गणेशा बुलाने लगी थी। स्वास्तिक को भी अच्छा लगा कि अकांक्षा उसे गणेशा कह कर बुलाती है क्योंकि स्वस्तिक को उसकी ममी भी प्यार से गणेशा मेरा लड्डु गोपाल ही बुलाती थी। अकांक्षा और स्वस्तिक में अच्छी दोस्ती हो गई थी, अब स्वस्तिक अपनी ममी से भी अकांक्षा की बातें करता रहता कि वो मुझे आपकी तरह गणेशा ही बुलाती है। स्वस्तिक की ममी ने जब अकांक्षा और उसके परिवार वालों के बारे में पुछा तो पता चला कि उसके ममी को वो जानती है वो दोनो कालेज में एक साथ पढ़ते थे। एक दिन स्वस्तिक अपनी ममी केसाथ अकांक्षा के घर आ गया, अकांक्षा की ममी बहुत खुश हुई अपनी कालेज की दोस्त से मलकर और स्वस्तिक से मिलकर तो बहत अच्छा लगा। सारा दिन स्वा्स्तिक की बातें सुनकर बहत मन हो गया था उससे मिलने का जो आज पूरा हो गया था।स्वास्तिक अकांक्षा को परी बुलाने लगा था, वो परी जो सूरत से नहीं मन से सुंदर थी। अकंाक्षा को भी अब उन दोस्तों की परवाह नहीं जो उसे काली कह कर चिढ़ाते थे। अब उसे स्वासतिक उर्फ गणेशा जो मिल गया था, जो उसे परी कहता था और परियंा तो होती ही सुंदर हैं। अकांक्षा की ममी जानती थी कि बेटी के मन मे क्या है, वो क्यों स्कूल से उदास आती थी। पर अब कुछ देर से ऐसा नहीं हो रहा था,, शायद ये स्वास्तिक और अकांक्षा की दोस्ती के बाद से था कि अकांक्षा अब खुश खुशी स्कूल जाती और खुशी खुशी घर आती थी। अकंक्षाऔर स्वास्तिक ममी आपस में बातें कर रहे थे और वो दोनो कमरे में खेल रहे थे तभी अचानक अकांक्षा ने पूछा गणेशा सभी स्कूल में मुझे काली कह कर चिढ़ाते हैंपर तुम तो मुझे परी कहते हो… परियां तो बहुत संुदर होती है ना… पर मैं तो सुंदर नहीं, मेरा रंग तो काला है। स्वास्तिक ने मुस्कुराते हुए कहा… पगली परियां जादू से कुछ भी कर सकती हैं…अपना रंग भी बदल सकती हैं।कौन क्या चाहता है उन्हें सब पता होता है। तभी तो तुम्हें झट से पता चल गया कि मेरी मम्मी मुझे गणेशा बुलाती है और तुमने भी मुझे गणेशा कहा..स्वस्तिक नहीं । जब मैं कक्षा में दाखिल हुआ था मझे थोड़ी हिचकिचाहट हो रही थी, नया स्कूल, नई कक्षा, नए दोस्त पर परी मिल गई तो सब डर खत्म। ऐसे ही तुम तो जादू कर सकती हो, तुम तो इतनी प्यारी बातें करती हो इतनी अच्छी दोस्त हो, तुम्हारा दिल अच्छा है। ममी कहती है जो मन से अच्छे होते हैं वो सबको अच्छे लगते हैं, रंग मे क्या रखा है।तुम तो मुझे सबसे अच्छी दोस्त लगती हो। अकांक्षा में इतना आत्मविशवास कभी नहीं आया था, जितना आज आया था।

इतने आत्मविश्वास ने अकांक्षा के चेहरे पर अलग ही नूर ला दिया था, वो बहुत खुश थी उसे लगा मानो उसके सपनों के गणेशा स्वासतिक के रुप में आकर उससे बातें कर रहे हो।उनहोने जादू से उसका रंग भी बदल दिया और उसे एक ऐसा विशवास और खुशी दी है जो वो कभी नहीं पा सकती थी। उसका चेहरा चमक रहा था, वो बस प्यार से गणेशा की बातें सुन कर मग्न हो गई थी। अब उम्र भर उसे अपने रंग से कोई शिकायत नहीं होगी बल्कि स्वास्तिक जैसा दोस्त पाकर जिन्दगी में उसके सोच के दायरे को बहुत बड़ा दिया था उसे लग रहा था कि वो कितनी समझदार हो गई है। स्वास्तिक की ममी ने स्वास्तिक को आवाज़ लगाकर घर चलने को कहा शाम हो गई थी चलो बेटा … पापा आने वाले हैं घर नहीं जाना? बाकि बातें कल स्कूल जाकर कर लेना…

ठीक है ना …दोनो हँस पढ़े और बाए बोलकर कल िमलते हैं कहकर स्वास्तिक मम के साथ चल पड़ा

स्वास्तिक अपनी ममी के साथ घर जा चुका थ। सुधा बहुत खुश थी उसने अकांक्षा की आँखों में आज जो चमक देखी थी अकांक्षा भी किचन में ममी के साथ लिपट कर बोली ममी आज मैं बहुत खुश हूँ, देखो मैं सुंदर हूँ ना… मैं अच्छी लगती हूँ ना…। हाँ बेटा मैं तो तुम्हें कब से यही बात समझाती हूँ कि तुम्हारा दिल इतना

अच्छा है तुम तो हो ही अच्छी । चलो कोई तो है जिसकी बात हमारी बेटी ने मानी। सुधा को तो अपनी आँखों पर विशवास ही नहीं हो रहा था कि अकांक्षा इतना बदल चुकी है, उसे लगता था कि सच में गणेशजी ने स्वस्तिक को अकांक्षा की ज़िन्दगी में भेजा है। स्वास्तिक तो जादूगर लगता है जिसने अकांक्षा में कितना आत्मविश्वास भर दिया है । शाम को जब अकांक्षा के पापा घर आए वो भी अपनी बेटी के व्यवहार मे इतना बदलाव देखकर हैरान थे और खुश भी हुए।

फिर सुधा ने गणपति को घर लाने की तैयारी शुरु कर दी थी । दो दिन बाद गणेश चतुर्थी थी सुधा और अकांक्षा घर के लिए गणपति जी की बड़ी सी प्रतिमा लाई और पूजा का भी सारा सामान ले आए। । भोग के लिए ढेर सारी मिट्ठाईया भी लिए। अकांक्षा ने गणपति का कमरा अपने हाथों से सजाया था। फिर सभी रिश्तेदारों को भी बुलाया और स्वास्तिक और उसकी ममी को भी बुलाया बूड़ ही धूमधाम से गणेश जी का आगमन घर में हुआ उनकी कृपा से ही तो अकांक्षा क खुशियां वापिस आईं थी। अकांक्षा रोज़ ममी के साथ गणेश जी की पूजा करती और लड्डु का प्रशाद स्वास्तिक के लिए ले जाती। स्वास्तिक खुश होकर प्रशाद खाता और अकांक्षा से पूछता कि तुम क्यों नहीं खाती ?रोज़ मेरे लिए लाती हो … तो अकांक्षा मुस्कुरा कर कहती कि मेरे लिए तो गणेशा तुम ही हो ना… मैने गणेश जी को देख है पर वो तुम्हारे जैसे ही होंगे। आखिर वो भी दिन आ गया जब गणपति विसर्जन करना था मन तो नहीं था पर करना तो था, सुधा उसके पति और अकांक्षा सभी ने गणेश जी को नमन करके फिर आने के वादे के साथ विसर्जन कर दिया। घर आकर अकांक्षा ने ममी से चिपकते हुए कहा ममी इस बार गणेश जी मुझे कितनी खुशियाँ देकर गए हैं। अब हम हर साल गणेश जी को अपने घर पर लाया करेंगे, सुधा भी तो यही चाहती थी गणेश जी की तो हर रोज पूजा करती थी इस बार तो वो उनकी गुड़िया को एक नन्हें गणेशा से मिला कर हंसना सिखा गए थे। अब रोज अकांक्षा खुशी खुशी स्कूल जाती और गणेशा से ढेर सारी बातें करती । अब उसकी जिन्दगी नए सिरे से शुरु थी अब सब उससे दोस्ती करना चाहते थे। अध्यापक भी अकांक्षा के इस नए रूप को देखकर हैरान भी थे और खुश थे जो लड़की कक्षा में उदास रहती थी वो हंसमुख हो गई थी हर काम को अच्छे से करना हर प्रतियोगिता में बड़ चड़ कर हिस्सा लेती थी। अकांक्षा खुद भी अपने अंदर एक बड़ा बदलाव महसूस करती थी और अपने पुराने दिन भूल कर हंस कर आगे बड़ गई थी। उन दोस्तो से भी अब कोई गिला नहीं था जो कभी उसे आहत करते थे। और उन्होने जब दोस्ती का हाथ आगे बड़ाया तो अकांक्षा ने भी देर नहीं की और सब भूल कर मुस्कुरा कर हाथ आगे बड़ा दिया था उसकी सोच का दायरा अब बड़ चुका था अब उसे अपने ही व्यवहार पर हंसी आती थी कि वो किस बात पर उदास रहती थी। । गणेशा ने भी उसे यही तो समझाया था कि वो परी है जो खुद भी खुश रहती है और औरों में भी खुशियाँ ही बांटती है। इसलिए अपना दिल बड़ा होना चाहिये। जिन्दगी बहुत खूबसूरत है हमें इसे ऐसे ही नहीं गंवाना चाहिये । अपने अंदर के आत्मविश्वास को कभी नहीं कम होने देना चाहिये क्योंकि इसी की बदौलत तो हम सब कुछ पा सकते हैं।

कामनी गुप्ता

जम्मू !