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भूख से लड़ाई

भूख से लड़ाई

आर0 के0 लाल

पिछली छुट्टी में हम अपने पापा के साथ उनके गांव गए, जहां उनके बड़े ताऊजी रहते हैं। उनका अच्छा खासा बड़ा मकान था और लगभग पच्चीस बीघे खेत। वे बड़े किसान माने जाते थे। लंच के लिए हम लोग लगभग 2:30 बजे एकत्रित हुए। खाने के लिए जमीन पर दरी पर बैठे। पापा के ताऊजी भी अलग चौकी पर कपड़ा उतार कर केवल धोती में बैठे। हमने देखा कि 82 साल की उम्र में भी उनका शरीर काफी हष्ट पुष्ट था। बड़ी थालियां, कटोरे और गिलास सबके आगे लगाए गए। दादी जी ने पहले भगवान को भोग लगाया, फिर हम सब लोगों ने तरह तरह के पकवान खाएं । दादा जी ने तो बहुत कम खाना लिया। खाने के बाद हम लोगों ने देखा कि उनकी थाली में कोई खाना नहीं बचा था जबकि हमेशा की तरह हम लोगों ने कुछ ना कुछ छोड़ ही दिया था। यह क्या! दादा जी ने अपने गिलास से अपनी थाली में थोड़ा पानी डाला और थाली हिलाकर पी गए। हम लोग आश्चर्य से उन्हें देख रहे थे ।मेरी छोटी बहन ने तो कह ही दिया छि: यह भी कोई तरीका है।

शायद उन्होंने सुन लिया था इसलिए वे हमारी ओर मुखातिब हुए और बोले -” बच्चों ,अन्न हमारे देवता हैं। इनकी पूजा करनी चाहिए, बर्बादी नहीं करनी चाहिए। बहुत ही मेहनत और कष्ट के बाद अन्न हमें मिलता है। कल तुम लोगों को खेत पर ले चलूंगा और दिखाऊंगा कि खेती कैसे होती है।” फिर उन्होंने कहा तुमने देखा कि खाना बनने के बाद तुम्हारी दादी ने भगवान को भोग लगाया था जिससे वह प्रसाद बन गया और प्रसाद को मत्थे लगाया जाता है। उसकी बर्बादी नहीं करनी चाहिए। देखो तुम लोगों ने कितना भोजन छोड़ दिया है और जमीन पर भी गिराया है । पूरा खाने के बाद भी थाली में कुछ खाना लगा ही रह जाता है इसलिए अंत में पानी के साथ ग्रहण कर लिया।थाली और प्रसाद दोनों शुद्ध हैं तो उसे इस तरह ग्रहण करने में क्या खराबी है?नली में खाना जाने से अन्न देवता नाराज हो जाएंगे। हमें उनकी बात सही लगी।

उन्होंने आगे समझाया “जब आपको भूख लगती है तो आपके माता-पिता आपको खाने के लिए कुछ न कुछ देते हैं। अगर कभी कुछ खाने को ना मिले तो आप रोने तक लगते हैं। सुबह नाश्ता, दोपहर का भोजन, और सोने से पहले फिर खाना खाते हैं फिर भी उठते ही आपको भूख लग जाती है। मगर क्या आपको पता है कि विश्व में काफी ऐसे लोग हैं जिन्हें भूखे पेट ही सोना पड़ता है।उन्हें कुछ खाने को नहीं मिलता जबकि आज अनाज का उत्पादन काफी बढ़ गया है। इसका सबसे बड़ा कारण खाद्यान्न की बर्बादी है।

हम उनसे पूंछना चाहते थे कि हमारे पापा आपकी तरह क्यों नहीं करते? मगर तब तक पापा ने है बात बढ़ा दी - “ बच्चों! आपको पता होना चाहिए कि विश्व खाद्य संगठन के अनुसार हर साल एक अरब 30 करोड़ टन खाद्यान्न की बर्बादी होती है और विश्व का हर सातवां व्यक्ति भूखा सोता है । अपने देश में भी काफी बड़ी संख्या में ऐसे लोग हैं जिन्हें हर रोज भरपेट खाना नहीं मिलता।” कहा जाता है कि भारत में हर साल 23 करोड़ टन दाल, 12 करोड़ टन फल और लगभग 24 करोड़ टन सब्जियां खराब हो जाती हैं।अगर इन को बचाया जा सके तो सोचो कि उससे कितने लोगों का पेट भरा जा सकता है।”

इस बातचीत में चाचा ने भी हिस्सा लिया। वह बोले “ कुछ दिन पहले मैं अपने मित्र के यहां एक आयोजन में गया था। काफी भव्य व्यवस्था थी। अनेकों प्रकार के व्यंजन रखे गए थे, कम से कम दस तरह की तो सब्जियां थीं। पूड़ी, दाल,चावल, रोटी, मिठाइयां,चटपटा, चाइनीस डिश और न जाने क्या-क्या । प्लेट लेते ही लोग खाने पर टूट पड़े। लगा कि उन्हें पहले खाना ही नहीं मिला है और वे सोचते हैं कि जल्दी ले लो, कहीं सब खत्म ना हो जाए। किसी के प्लेट में कोई जगह नहीं बची । पूरा खाना किसी के बस की बात नहीं थी इसलिए लोगों ने काफी खाना कूड़ेदान में डाल दिया। सुबह कई गट्ठरों में उसे फेंकना पड़ा। लोग चाहते तो थोड़ा-थोड़ा भोजन लेते। उसका स्वाद भी मिलता और खाना भी नहीं बर्बाद होता।”ऐसा अनुमान है कि औसतन लगभग बीस प्रतिशत खाना शादी ब्याह में खराब होता है।” कभी-कभी तो खाना अधिक बन जाता है और खाने वाले कम ही आते हैं ऐसी स्थिति में भी बड़ी मात्रा में खाना फेंक दिया जाता है।

हमारे घरों से भी काफी बड़ी मात्रा में खाने का सामान फेंका जाता है। लोग ज्यादा बना लेते हैं। जो कुछ नहीं खा पाते उन्हें या तो फेंक दिया जाता है या तो फ्रिज में भर दिया जाता है। अक्सर लोग फ्रिज में रख करके भूल ही जाते हैं। बाद में उसे फेंकना ही पड़ता है।

हमने भी सब को बताया कि एक साथ बहुत ढेर सारा खाने की सामग्री खरीदने से भी खाद्य पदार्थ की बर्बादी हो सकती है। आपका फ्रिज, आलमारी हमेशा भरा रहे और नियमित सफाई ना हो तो उसमें रखा सामान सड़ सकता है। इसलिए जितनी आवश्यकता हो उतना ही सामान एक या दो हफ्ते के लिए ही खरीदा जाए। पहले मेन्यू बना लें और केवल आवश्यकता के अनुसार ही खाना बनाएं।

खराब हो जाने वाले सामान को हमेशा सही ढंग से पैक करके फ्रिज में रखें।

अब बोलने की बारी हमारी परदादी की थी। उन्होंने भी बताया- “एक ओर अनेकों को पेट भरना मुश्किल हो रहा है तो दूसरी ओर अधिकांश बच्चों को जिगर, तिल्ली, अपच की बीमारियां हो रही हैं क्योंकि वह दिन भर खाते रहते हैं और जंक फूड ज्यादा खाते हैं। कम भोजन करने से लोग सदेव निरोग रहते हैं और उनकी आयु लंबी होती है। उनमें ज्यादा शारीरिक व मानसिक शक्तियां होती हैं। इसीलिए कहा जाता है कि कभी-कभी उपवास रखा जाए । इस प्रकार ज्यादा खाना भी एक जगह से खाद्य पदार्थों की बर्बादी ही समझी जानी चाहिए। कुछ माताएं तो अपने बच्चों को ज्यादा खिला देना ही प्यार समझती हैं।”

अब हमें पता चल गया था कि कितनी मात्रा में और कैसे कैसे खाने की बर्बादी होती है। हमने प्रश्न किया कि क्या हम बर्बाद होने वाले खाने को बचा कर उन लोगों तक नहीं पहुंचा सकते हैं जिनके पास कुछ ज्यादा खाने को नहीं है या बिल्कुल खाने को नहीं है।

हमें बताया गया कि आज कुछ स्वयंसेवी संस्थाएं जैसे रविनहुड, फीडिंग इंडिया व्यवस्था के बारे में सोचतीहैं और बचे हुए भोजन को इकट्ठा कर जरूरतमंदों तक पहुंचाने का प्रयास करते हैं।

इस दिशा में बच्चे भी कुछ ना कुछ प्रयास कर सकते हैं । अन्न की बर्बादी को रोक सकते हैं, इसके लिए जनमानस को और घर घर के प्रत्येक प्राणी को जागरूक कर सकते हैं, और स्वयं अथवा समाजसेवी संगठनों के माध्यम से बचे हुए खाने को एकत्रित करते हुए जरूरतमंद व्यक्तियों तक पहुंचा सकते हैं। अगर कोई खाना बच गया है और उसे फिर से खाने का आप का मन नहीं है तो उसे यथाशीघ्र किसी दूसरे को दे दे। हर घर में काम वालिया आती हैं, उनके बच्चों को जरूरत हो सकती है।अगर उसे ना जरूरत हो तो ऐसी जगह पहुंचाने का प्रयास करें जहां उसकी जरूरत है ।अगर आप पता लगाएंगे तो आपको अपने आसपास ही पता चल जाएगा कि किसे जरूरत है ।आपके शहर में स्थित इस काम में लगी संस्थाओं को यदि आप फोन कर देंगे तो कार्यकर्ता आप के घर से आकर के खाना ले जायेंगे।

आइए हम सब लोग मिलकर खाद्य पदार्थों का सदुपयोग करें और बचे हुए भोजन को जरूरत तक पहुंचाने का जी जान से प्रयास करें।

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