kalpana ki rom books and stories free download online pdf in Hindi

कल्पना की रोम...

कहते हैं की कोई शायर कल्पनाओं के बिना, एक बेहतर शायर नहीं हो सकता , ठीक वैसे ही जैसे एहसासो के बिना को एक आशिक एक अच्छा आशिक नहीं हो सकता ।...
हकीकत !इक कल्पना ही तो है जो हमें हर पल मोहब्बत याद दिलाती रहती हैं ...भला कोई तो कहे एक शायर अपने शब्दों को माध्यम बनाकर एक लड़की को गजल का रूप कैसे दे सकता है..

पर यकीनन यह सच है क्योंकि कहते हैं ना मिश्र...! शायर खुद से नहीं लिखता बल्कि कुछ चेहरे ऐसे होते हैं जो उसे कल्पना करने लिए मजबूर करते हैं... ऐसे ही एक चेहरे को आज मैं अपनी पुस्तक में बयां करने जा रहा हूं... वैसे भी एक शायर की जिंदगी में तनहाइयों और ख्वाबों के सिवा कुछ भी नहीं होता... लेकिन वह अपनी कल्पनाओ को भी बड़े सलीके से हकीकत का रूप दे सकता है .... इसमें भी कोई शक नहीं ।...

दोस्तों वैसे मैं कहूं ...ये सब कुछ मैंने कई महीने पूर्व लिखा था ..जो कि आज तक मेरी डायरी में महफूज था .... लेकिन पता नहीं क्यों आज अचानक से दिल किया कि क्यों न अपनी अद्भुत कल्पनाओं से आपको भी रूबरू कराऊं....और आपकी प्रशंसा का पात्र बनूं.....
बस दोस्तों आपके मिश्र !इसी
उम्मीद से आपके मध्य अपनी एक और पुस्तक लेकर हाजिर हुए है....जो कि पूर्णतया एक नवोदित शायर की कल्पनाओं पर आधारित है ... दर-असल क्या है ना दोस्तो !.... आपको तो पता ही होगा ...कवि सिर्फ कल्पनाओं में ही जीता है ...और वह अपनी चाहत को भी कल्पनाओं के सहारे इस प्रकार बयां करता है ।... ताकि वह हकीकत का रूप ले सके।
यकीनन दोस्तों !... मुझे एक बात की बेहद खुशी है कि मुझमें कुछ- कुछ शायर वाले गुण मौजूद है ,...

इन्हीं से यह सम्भव हो सका कि अबतक मैंने कई किताबें लिखीं है ..और आज इस( " कल्पना की रोम!....) नामक पुस्तक लेकर आया हूं.. यकीं मानिए मेरे दोस्तों आपके मिश्र !को लिखने का सलीका जरा भी नहीं आता ...
लेकिन इतना जरूर कह सकता हूं मुझे अपने जज्बात बयां करना हद से हद बेहतर आता है ....
पर दोस्तों ये विषय अब तक के विषयों से हर सूरते- हाल में अलग है ....

क्योंकि दोस्तों यह एक कल्पना बस है ..........






....हाय ! जब मेरी सनम सुबह सोकर उठती होगी ..?. तो न जाने ऐ खुदा कैसी लगती होगी ...?


वैसे कहे मिश्र !. हल्की नींद से भरी लड़कियां हमें बचपन से ही प्यारी लगती है ...

इसमें एक reason है ..वो भी बहुत ही छोटा सा ....


वह यह है रात की नींद के पश्चात .लड़कियों की खूबसूरती और अधिक बेहतर हो जाती है .....

और बात गैर सनम की हो....
तो अपने -आप में खाशम -खाश तो यकीनन होगी...?


...

चलिए इसी बहाने एक कल्पना करते है ..

.मिश्र !. जरा सोचिए ...
जब मेरी सनम सुबह उठकर ... अपने बिखरे - बिखरे केशों को ,..
मुँह में केलेचर दबा सुलझा रही हो! ठीक उसी वक्त मैं उस परिदृश्य का गवाह बनूँ...? तो कैसा रहेगा ?
...
वैसे इतना मुझे पता -वता नहीं
पर दोस्तों! अमूमन यही तो होता है... आमतौर पर जब लड़कियां सुबह उठती है तो वे सबसे पहले अपने बालों को सही करती है .....! बस दोस्तों इसी एक विशेष कल्पना को आज मैं अपने शब्दों मे पिरोता हूँ... और अपनी दफ्न ख्वाहिशों को हकीकत का रूप देने की कोशिश करता हूँ...


हाय सनम !
जब तुम अपने बिखरे -बिखरे बालों को ....
दोनो हाथ ऊपर उठाकर सुलझाती होगी ।... तो हाय! ओह !..
क्या लगती होगी....?

...
अरे दोस्तो ...तुम नही समझ सकते शायद .....? दरअसल क्या है ना ...
मेरी सनम ज्यादातर जो सूट पहनती है वो बगल से हाफ ही है...?
तो मैं जो कहने का इरादा रखता हूँ ...वो आपकी सोच से भी परे है....
करू भी क्या दोस्तों ! दिल कुछ शायर है ना...; कहीं भी पहुँच जाता है...


क्या मिश्र! तुझे लगता नहीं जैसे वह
दोनों हाथ ऊपर उठाकर तुझसे कुछ कह रही हो ..?


तुझे इशारा सा दे रहीं हो ...कि "जा दे दी तुझे इजाजत इतना भी क्या? जो मन आये बस कर ही लो ..."




ओह! न करो मिश्र !..
हमें पता है ...ऐसा सोचने मात्र से ही दिल ,सारी हदें पार करने लगता है।.

तू भी न मिश्र ये सच थोड़े है ...?
न तेरी सनम ऐसा कभी कहने वाली ..
और न ही तुझसे इतना कुछ होने वाला...?
तू तो बस!..गजल और शायरी ही कर ...?


..

चलिए एक बार फिर...

सनम ! क्या है ना ...
ये सब लिखते - लिखते अचानक से मेरे दिल में एक और ख्याल आया ...!
सच ! ! तुझसे कह दूं ?...

वैसे कहे सनम !..
मैं ऐसा -वैसा लड़का नहीं हूं...

पर ये दिल दबी जुबा कुछ कह रहा है ....वह यह कि ..? जरा सोचिए मिश्र !
सुबह उठने के बाद जब वो नहाती होगी ..?
तो कैसी लगती होगी..?
आज तो बस इसी कल्पना पर लिखते है ?..

क्यों मिश्र क्या इरादा है ?
लिख दें...?

हा यकीनन .....
दिल के जज्बात बयां करने में जमाने का क्या देखना ..?

हाय सनम !...

यूँ तो जिस्म कोई नुमाइश की चीज नहीं ...
पर मेरे शब्दों की अहमियत के लिए यकीनन जरूरी है...
प्लीज सनम !...
आज तो लिखने ही दो .... ..

आज मत रोकों !
क्योंकि तुम्हें देखकर मैंने खुदको कई साल से सम्भाल रखा है .....
पर आज ये जो अल्फाज है ना .....
वो तो करवट बदल के ही रहेंगे..?

हाय सनम !...
नहाते वक्त जब तुम जिस्म से..
सहसा -सहसा अपने कपड़े उतारती होगी ...तो तेरे रोम -रोम से लिपटे हुए कपड़ो से भी तेरी जुदाई नही सही जाती होगी...?


सच सनम ! बुरा मत मानना पर नहाते वक्त जब तुम अपने हाथ जिस्म पर फेरती होगी...तो क्या जवां दिल जरा सी भी जुम्बिश नही करता होगा ?
तूझे और लड़कियों की तरह कुछ भी एहसास नही होता होगा?..
ये सवाल नहीं है सनम ?..
ये दिल की उठती कुछ अतरंगी भावनाएं है...जो तुम्हारे लिए पनपी है...ये आज से नही " सनम" जी !..
बल्कि वर्षों बीत गए आपके मिश्र को इन्हें पालते -पालते...


अच्छा सनम!...
पता है तुम्हें. मैंने जिंदगी भर सिर्फ तुम पर ही लिखने की जिद्द पाली है..
करें भी क्या ?
तेरी पवित्रता की कोई सीमा नही..?

पर सनम !.....
एक बात तो सच -सच कह ही दों ?
तुम हमें बताओ ..
नहाते वक्त खुद को निहारती हो या नही ?.
क्यों? सनम !..
.
हमें पता है आपका answer हा है ...

सही कहा ना ....



तो ठीक है फिर सनम ! हमें बताना कि ...आपके जिस्म में कितने तिल है ..!
हमें पता है जिस कदर आप खूबसूरत हो काले तिल तो होंगे ही?...


खैर छोड़ो ...?

स्वयं प्रकाश मिश्र
24/02/2019