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मेट्रो गर्ल

मेट्रो गर्ल

आर0 के लाल

उस दिन मेट्रो में बहुत भीड़ थी। राघव किसी तरह मेट्रो में चढ़ा और धीरे-धीरे जगह बनाता हुआ एक साइड में खड़ा हो गया । कहीं कोई जगह नहीं थी, महिलाएं भी धक्का-मुक्की कर रही थीं। एक सीनियर सिटिज़न साहब, जिन्हें शायद एक दो स्टेशन आगे ही उतरना था, बार-बार लोगों से अनुरोध कर रहे थे कि उन्हें रास्ता दे दें जिससे वह गेट के पास जा सकें मगर कोई उनकी सुन नहीं रहा था।

अगले स्टेशन पर भी भीड़ का रेला आया जिसमें सब एक दूसरे के ऊपर चढ़ने को आमादा थे। उसी रेले में एक बड़ी ही खूबसूरत लड़की भी मेट्रो में दाखिल हुई, उम्र कोई बाईस – तेईस साल रही होगी। वह लड़की बड़ी ही पतली सी थी, उसने बड़ा ही प्यारा परफ्यूम लगा रखा था और शॉर्ट स्कर्ट पहनी हुई थी। लोगों ने उसके लिए आने का रास्ता बना दिया था। सभी चाह रहे थे कि वह लड़की उन्हीं के पास खड़ी हो जाए। वह बड़ी आसानी से पिछले गेट पर चली गई और एक लड़के के साथ लगभग चिपट कर खड़ी होकर उससे कुछ नोकझोंक करने लगी। यह सब देख कर सीनियर सिटीजन महोदय ने कहा, " क्या जमाना आ गया है? यहां मुझे आगे निकलने की जगह नहीं मिल रही है और यह लड़की कितनी आसानी से मेट्रो में आकर मजे ले रही है। सब मिनी स्कर्ट का कमाल है”। फिर वे बोले कि यह लड़कियां महिला कंपार्टमेंट में क्यों नहीं जाती जबकि उनके लिए मेट्रो में एक अलग कंपार्टमेंट लगा है? उस लड़की ने संक्षिप्त सा उत्तर दिया कि आप परेशान न हों मैं सब कुछ मैनेज कर लेती हूं। उसके बाद वह लड़की एक्सक्यूज मी, एक्सक्यूज मी कहते हुए बड़ी आसानी से गेट के बाहर उतर गई। राघव भी उतर गया।

राघव को यहां से दूसरी मेट्रो पकड़ कर आगे जाना था इसलिए वह पुल पार करके दूसरे प्लेटफार्म पर पहुंच गया। कुछ देर बाद वही लड़की उसके पास आकर खड़ी हो गई। मेट्रो आने पर दोनों को अगल बगल सीट मिल गई थी। रीना ने स्वयं ही राघव से कहा, आप सबको लगता है कि लड़कियां लेडीज कंपार्टमेंट में बहुत ही कंफर्टेबल होती हैं पर शायद आपको नहीं पता है कि उसमें अनेकों तरह की परेशानियां होती है। महिला कोच में महिलाएं बहुत धक्का-मुक्की करती हैं और आपस में लड़ती रहती हैं, उसमें जेब कतरी लड़कियां भी चलती हैं।

पास में बैठे कुछ यात्री भी रीना की बातें सुन रहे थे और मुस्कुरा रहे थे। राघव को यह सब बात सुनकर हंसी आ गई। उसने रीना के बारे में जानना चाहा तो उसने पूछा, क्या आप मुझ पर लाइन मारना चाहते हैं? ध्यान रहे कि मैंने कई बिगड़े लड़कों को ठीक किया है। फिर बोली, " वैसे तो मैं कई दफे लड़कों की शिकार हुई हूं और मेरे मन में उनके प्रति नफरत हो गई है। पहले तो मैं डरती रहती थी परंतु अब मैं बिल्कुल निडर हो गई हूं। रोज मेट्रो से आती जाती हूं और ऐसे लोगों को सुधार देती हूं जो लड़कियों या महिलाओं के लिए गंदी हरकतें करते हैं। मैं आपको अपने जीवन की सही कहानी बताऊंगी जो मैं किसी को नहीं बता सकती। आपका देखकर लगता है कि आप एक शरीफ व्यक्ति हैं इसलिए मेरा मन आप से बात करने का हुआ। मेरा स्टेशन आ गया है। कल आठ वाली मेट्रो पर यही मिलेंगे। यह कह कर वह चली गई।

दूसरे दिन ठीक आठ बजे राघव को रीना स्टेशन पर ही मिल गई। दोनों मेट्रो में बैठ गए तो राघव ने उससे कहा आज समय है इसलिए आप अपनी कहानी बताइए। रीना बताने लगी - मैं एक छोटे से गांव की रहने वाली हूं। मेरा परिवार बहुत गरीब था। मेरे पिता और मां गांव के ठाकुरों के खेत में काम किया करते थे। वे अब दिल्ली में ही कारपेंटर का काम करते हैं। मेरे दो छोटे भाई भी हैं।

उस वर्ष भी हमारे गांव में मेला लगने वाला था। मेले की तैयारियां हो चुकी थी। मेरी मां कहने लगी," रीना तुम इस बार मेले में नहीं जाओगी क्योंकि तुम अब बड़ी हो गई हो। कुछ ऊंच-नीच हो गई तो मैं किसी को मुंह दिखाने लायक नहीं रहूंगी। मैं बचपन से बहुत सुंदर थी और पंद्रह साल में ही बहुत बड़ी दिखने लगी थी और मेरी फिगर जरूरत से ज्यादा निखर आई थी। गांव में निकलती तो मुझे लगता है कि बहुत से लोग मुझे घूर रहे हैं।

मैंने अपनी मां से कहा- मां मैं बचपन से आज तक हर बार मेले में गई हूं तो इस बार मैं कैसे मेला छोड़ सकती हूं? इस बरस तो मेले में मुंबई के कुछ कलाकारों द्वारा नाटक भी होने वाला है। मुझे नाटक देखने का बहुत शौक था।

पहले दिन मैं अपनी सहेली सुधा के साथ बिना घर में बताएं मेले में पहुंची तो वहां पर कुछ लोग आपस में झगड़ा और मारपीट करने लगे। हम लोग उनके बीच फंस गए थे तभी एक लड़के ने हमें वहां से बचाया। हम लोग भाग कर घर वापस आए तो मां को बताया कि मेले में कुछ लोग लड़ाई कर रहे थे इसलिए मैं घर चली आई। मां बोली, बेटा तुमको मना किया था , तुम मेरी बात क्यों नहीं मानती। आजकल गांव के लोगों का व्यवहार बदलता जा रहा है। बात बात में वे लड़ जाते हैं। उनके मन में अब बड़ों और महिलाओं के लिए इज्जत नाम की कोई चीज नहीं रह गई है"।

दूसरे दिन मैं जिद करके फिर मेले में अपनी सहेली सुधा के साथ गई। उस दिन नाटक देखने के लिए काफी भीड़ जमा हो चुकी थी। हम लोग भी वहाँ बैठ गए। तभी मंच पर वह लड़का दिखाया पड़ा जिसने कल मुझे बचाया था। मेरी सहेली तो बार-बार ताली बजाकर और हाथ हिलाकर मंच के कलाकारों का उत्साहवर्धन कर रही थी, कभी-कभी वह अपनी जगह खड़ी हो जाती थी। मंच से लोग हम दोनों को ही घूर रहे थे। नाटक बहुत अच्छा था, हम लोग नाटक में इतना खो गए कि पता ही नहीं चला कि वह तीन घंटे का नाटक कब खत्म हो गया। रात के एक बज गए थे। मैं और रूपा अपने घर की तरफ जा रहे थे तभी रास्ते में वही लड़का मुझसे आकर टकरा गया और हम दोनों को पकड़ने की कोशिश करने लगा। सुधा तो छूट कर भाग गई परंतु उसने मेरा हाथ कस कर पकड़ लिया। इतने में उसका एक दूसरा दोस्त भी आ गया। उन दोनों ने मिलकर के मुझे उठा लिया। मैं इतना डर गई थी कि मुंह से आवाज नहीं निकल पा रही थी। मुझे वह दोनों पास के खेत में घसीट ले गए और मेरे साथ बदसलूकी की। रूपा जब भाग कर घर पहुंची तो उसने मेरी मां को बताया। घर वाले ढूंढते हुए आए और मुझे घर ले गए। उस दिन मेरे मन में लड़कों के प्रति एक नफरत की भावना जागृत हो गई थी। मेरे पापा मेरी मां को डांट रहे थे कि उसने मुझे मेले में क्यों जाने दिया। वे मुझे भी कई दिनों तक डांटते रहे, मुझे समझा रहे थे कि अपनी जबान बंद रखना, किसी से कुछ कहने की जरूरत नहीं, वरना हमारी बदनामी होगी और तुमसे कोई शादी भी नहीं करेगा। मुझे समझ में नहीं आ रहा था कि लोग मुझे क्यों भला-बुरा कह रहे हैं, इसमें मेरी क्या गलती थी, जबकि वह दोनों लड़के तो खुलेआम मेले में नाटक कर रहे थे और उन्हें कोई कुछ नहीं कह रहा है? उसके बाद जब तक गांव में मेला लगा रहा मुझे घर से नहीं निकलने दिया गया”। यह सब सुनकर राघव के चेहरे पर भी वेदना झलक रही थी।

एक आह भरते हुए रीना फिर बोली, " इस घटना के कुछ दिन बाद मुझे फिर मानसिक प्रताड़ना झेलनी पड़ी। मुझे याद है कि उस दिन मेरे गांव के लगभग सभी लोग पास के गांव में धान की मडाई के लिए गए थे। तभी मेरे पड़ोस का धनंजय मेरे घर की दीवार फांद कर अन्दर घुस आया। उसने मारपीट कर मेरे छोटे भाइयों को घर से भगा दिया था और मुझसे जबरदस्ती पकड़-धकड़ करते हुए दुष्कर्म किया था। शाम को जब मेरे मम्मी पापा वापस आए तो मैंने उन्हें रोते हुए सारी बात बताई। मेरे पापा उलाहना लेकर उसके घर गए मगर वहां धनंजय और उसके भाई ने उन्हें गाली गलौज देते हुए उनकी पिटाई कर दी। साथ ही कहा कि पुलिस में जाओगे तो तुम्हें देख लूंगा। पापा की इतनी कहा सामर्थ थी कि वह उन लोगों से पंगा मोल लेते। उन्होंने मेरे ऊपर ही गुस्सा निकाला और मुझे मारा भी। उस दिन भी मुझे समझ में नहीं आया कि इसमें मेरी क्या गलती थी? अब तो मुझे लगने लगा था कि गांव के सभी मर्द मेरे ऊपर गिद्ध की तरह नजर जमाते हैं और मुझे खा जाने के लिए लालायित रहते हैं। जिन घरों में मैं कम करती थी वहां भी मेरा आना जाना निषेध हो गया था। मम्मी पापा परेशान थे और चाहते थे कि मुझसे जल्दी कोई शादी कर ले। मैं बहुत ही दुखी रहने लगी थी”।

तभी मेरी सहेली सुधा के घर उसके दूर का एक रिश्तेदार संजय आ गया। संजय से बात करके अच्छा लग रहा था। मुझे लगता था कि वह बहुत ही शरीफ लड़का होगा। उससे मुझे अपने शहर आने का आमंत्रण भी दिया था। मैं, सुधा और संजय काफी दिनों तक मिलते रहे, बाग में जाते और खूब बातचीत करते। मुझे लगा शायद संजय मुझे प्यार करने लगा था। मैं डरी थी कि कहीं मेरे मां-बाप को इसका पता न चल जाए। गांव के माहौल में कभी भी इस बात को कोई स्वीकार नहीं करता। एक दिन हम लोग चलते चलते अपने गांव से थोड़ी दूर पर निकल गए और वहां बैठ कर बातें करने लगे तो अचानक संजय ने मुझे अपनी बाहों में भर लिया और गलत हरकतें करने लगा। तब मुझे लगा कि वह मुझसे प्यार न कर केवल वासना की इच्छा रखता था । मेरा दिल टूट गया। मैंने बड़ी मुश्किल से अपने को उससे छुड़ाया और उसे दो थप्पड़ भी जड़ दिए। तब मुझे लगा था मैं भी कुछ कर सकती हूं। मेरे मन में ऐसे लोगों को सबक सिखाने का होता था मगर समाज के लोग मेरा ही मजाक उड़ाते इसलिए मैं कुछ नहीं कर सकी।

बगल में बैठी लड़की भी बोल उठी कि “आए दिन महिलाओं से बदसलूकी के समाचार सुनाई पड़ते रहते हैं। सिटी पुलिस कभी-कभी अभियान चलाकर रोमियो मुक्त शहर बनाने की खानापूर्ति करते हैं। लोग केवल बात ही करते हैं, दुष्कर्म में लिप्त लोगों की बुराई भी करते हैं लेकिन मैं देखती हूं कि वही लोग रेप के वीडियो तथा समाचार पत्रों में छपी खबर में चटपटी बातें भी ढूंढ कर अपना मनोरंजन करते हैं। शायद इसलिए कि वह इसके शिकार नहीं हुए हैं और उसका दर्द नहीं समझते हैं”।

रीना ने अपनी कहानी जारी राखी – “एक दफे की घटना ने तो मुझे झकझोर कर रख दिया। तब से मैंने प्रण कर लिया कि मैं अपनी सुरक्षा स्वयं करूंगी। घटना आज से तीन साल पहले की है। दिल्ली में मेरे पिता की तबीयत अचानक खराब हो गई। लोगों ने उन्हें अस्पताल में भर्ती करा हमें गांव में खबर दी थी । मेरी मां को कुछ समझ में नहीं आया कि वह क्या करें तो मैंने जल्दी-जल्दी में सामान बांधा और अपनी मां और भाइयों को लेकर सीधा स्टेशन चली गई। आप तो जानते ही हैं कि तुरंत जनरल डिब्बे की टिकट लेना कितना मुश्किल होता है। मम्मी बहुत देर लाइन में लगी रही लेकिन ट्रेन का टाइम हो चुका था और उन्हें टिकट नहीं मिला। हम सीधा ट्रेन में चल गए। रात के अंधेरे में स्लीपर में जाकर अपना सामान रख दिया और गलियारे में ही बैठ गए। करीब बारह बजे टी 0 सी 0 टिकट चेक करने आया तो हम लोगों से भी टिकट के लिए पूछा। मम्मी ने कहा कि उनके पास टिकट नहीं है लेकिन जाना जरूरी था। उसने कहा - देखिए! मैं कुछ नहीं कर सकता क्योंकि जो मेरी ड्यूटी है वह तो मुझे करनी ही पड़ेगी। टिकट नहीं है तो हर्जाना भरना पड़ेगा वरना मैं आपको पुलिस के हवाले कर दूंगा। मैंने भी उससे बहुत मिन्नतें कि वह ऐसा न करें और हमें माफ कर दें पर उस पर मेरे अनुरोध का कोई प्रभाव ही नहीं पड़ रहा था। थोड़ी देर बाद अचानक उसने मुझसे कहा कि इधर आइए। वह अपनी सीट पर दरवाजे के पास मुझे ले गया और मुझसे कहा कि एक रास्ता है, बैठो मैं बताता हूं। मैं उसकी सीट पर बैठ गई तो वह भी बगल में बैठ गया और अपने कागज निकालकर कुछ लिखने लगा। धीरे-धीरे वह मेरी तरफ सकरते हुए इतना पास आ गया कि उसकी बॉडी मेरे शरीर से टच कर रही थी। वह अपना दबाव धीरे-धीरे बढ़ाता जा रहा था। न चाहते हुए मैं सब बर्दाश्त कर रही थी। फिर उसने धीरे से कहा अगर तुम मेरे साथ टायलेट में चलोगी तो मैं सब को माफ कर दूंगा । मैं उसकी बातों को नजरअंदाज कर रही थी क्योंकि यह सब सुन कर मुझे उस पर घिन आ रही थी। फिर वह छेड़खानी करने लगा। मुझे लग रहा था कि आज मैं नहीं बचूंगी। परंतु अचानक मेरे मन में आया कि मुझे मुकाबला करना चाहिए। मैंने तेजी से मां को पुकारा और शोर मचाया। मां ने वहां से चिल्ला कर कहा - कौन डाहजरा है रे? वह थोड़ा डरा। सामने एक आदमी भी जाग गया था मैंने हिम्मत कर उसके हाथ में ज़ोर से दांत काटा तो वह गुस्सा करते हुए वहां से कहीं चला गया । उस दिन मैंने सोचा कि हम सब महिलाओं को अपनी रक्षा स्वयं करनी चाहिए”।

जब मैं दिल्ली आई तो यहां काम के सिलसिले में मेट्रो से चलने लगी। यहां भी मुझे बहुत लोग लड़कियों से छेड़खानी करते और महिलाओं के सार्वजनिक यौन उत्पीड़न, सड़कों पर परेशान करने या वासनापरक सांकेतिक टिप्पणियां कसने, सार्वजनिक स्थानों में छूकर निकलने, सीटी बजाने से लेकर स्पष्ट रूप से जिस्म टटोलने तक दिखाई दिए। ज्यादातर लड़कियां संकोचबस कुछ बोलती नहीं और अपने रास्ते चली जाती हैं, मनचले लड़के लड़कियों के साथ अश्लील हरकतें करना चाहते हैं और विरोध करने पर वह मारने पीटने पर उतारू हो जाते हैं। यह सब देख कर ही मैंने एक ग्रुप बनाने की सोची जो उन मनचलों को हैंडल करे। अब इन घटनाओं पर हमारा ग्रुप नजर रखता है। मेरा मानना है कि महिलाओं की सुरक्षा के लिए सरकार के प्रयास तब तक सफल नहीं होंगे जब तक हम महिलाएं उसमें भागीदारी नहीं करेंगी ।

चूंकि मैंने बचपन से इन अवसाद भरे लम्हों को झेला है इसलिए मैंने प्रण कर लिया है कि उन मनचलों के खिलाफ कुछ करूंगी। मेट्रो से ही ज्यादातर घटनाएं शुरू होती है इसलिए हमने अपना कार्यक्षेत्र मेट्रो रखा है। मेरी सहेलियां रिंकी, निवेदिता, रूपा और सुनंदा मेरी तरह ही बोल्ड हैं। हम उन लड़कों के पास जाकर विनम्र भाव से उनके द्वारा किए गए कार्य को बताते हुये उन्हें लताड़ते हैं। ज्यादातर लोग तो इतने से ही डर जाते हैं। अगर कोई नहीं मानता है तो हम सब एक साथ मिलकर उनको सबक सिखाते हैं। हम कानून तो अपने हाथ में नहीं लेते हैं मगर आवश्यकता पड़ने पर पुलिस को भी इत्तला कर देते हैं। मेट्रो के बाहर निकलने वाली महिलाओं को रोक कर उन्हें समझाते हैं कि कैसे अपनी सुरक्षा स्वयं करें । उनके द्वारा दिए गए सुझाव के अनुसार ही हम लोग अपनी रणनीति बनाते हैं । इस कार्य में अब हमें कुछ युवकों की भी जरूरत है फिर उसने मुझसे पूछा कि क्या आप इसमें सहयोग देंगे?

राघव ने रीना की तारीफ करते हुए कहा- आप वास्तव में एक अच्छी मेट्रो गर्ल हो। वह सोच रहा था कि उसे भी इस सुविचार में अपना योगदान देना चाहिए।

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