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पॉलिटेक्निक वाले फुट ओवर ब्रिज पर - 3 - अंतिम भाग

पॉलिटेक्निक वाले फुट ओवर ब्रिज पर

प्रदीप श्रीवास्तव

भाग-3

श्वेतांश की इस बात पर रुहाना हल्के से हंस दी, फिर बोली, ‘सही कह रहे हो। पहले जब तुमको वहां बस स्टॉप पर लोगों को लिफ्ट देते देखती तो मैं तुम्हें कोई मवाली लफंगा समझती। सोचती अजीब मूर्ख आदमी है। आजकल लोग लिफ्ट मांगने पर भी नहीं देते और यह मूर्ख रोज निश्चित समय पर इधर से निकलता है, सबको लिफ्ट ऑफर करता है, लोगों को बैठा कर ले जाता है। लेकिन जब बहुत दिनों तक रोज ही देखने लगी तो सोचा समाज सेवा का नया-नया भूत सवार है, कुछ दिन में उतर जाएगा।

कोइंसिडेंट देखो उस दिन एक तो मुझे देर हो गई, दूसरे जो बस आई वह वहीं खराब हो गई। जितनी टेंपो और आटो आते सब पर लोग पहले से ठसाठस भरे होते। आते ही सब टूट पड़ते थे। मैं इस धक्का-मुक्की में बैठ नहीं पा रही थी। देखते-देखते ज़्यादातर लोग चले गए, मैं दो-चार और लोग ही बस स्टॉप पर रह गए। थोड़ी देर में तुम आ गए।

उस दिन तुम भी पता नहीं क्यों देर से आए? तो मैंने सोचा अगर आज भी ऑफर करता है तो बैठूंगी। तुमने जैसे ही ऑफर किया वैसे ही मैं सबसे आगे आकर बैठ गई। तुमने रास्ते भर में सिर्फ़ इतनी ही बात की कि मैं इस रास्ते से होते हुए यहां तक जा रहा हूं। इस बीच जहां पर कहें वहां छोड़ दूं। उस दिन के बाद मैंने सोचा चलो रोज लिफ्ट लेती हूं। कम से कम जाने के तो पैसे बच जाएंगे। लेकिन फिर उसी रास्ते पर सुबह भी मिलने लगे तो मैंने सोचा....।’

श्वेतांश बीच में ही बोला... ‘चलो दोनों तरफ का किराया बचेगा।’

‘क्या करें यार, पैसे तो बचाने ही पड़ेंगे ना। तुम्हारे कारण किराया तो बच ही जा रहा है ना।’

‘तुम चाहो तो हॉस्टल का भी खर्चा बच सकता है।’

‘कैसे?’

‘मेरे साथ चल कर रहो ना, कब तक ऐसे बाहर मिलते रहेंगे। मैं तो तुम्हारे पैरेंट्स से कब से सीधे बात करने को तैयार हूं। तुम्हीं पता नहीं क्यों बार-बार मना कर देती हो।’

‘देखो यार समझने की कोशिश करो। मैं उन लोगों को धीरे-धीरे बताना चाहती हूं। एकदम से बता कर उन्हें कष्ट नहीं देना चाहती। यार कुछ भी हो मां-बाप हैं। हमें जन्म दिया है, पाला-पोसा है। बड़े कष्टों से मां-बाप बच्चे पालते हैं। आखिर हमारा भी तो कोई कर्तव्य बनता है।

उस औरत को ही देखो, पिछले दो-ढाई घंटे में अपने बच्चे को तीसरी बार दूध पिला रही है। एक बच्चे को किनारे एक हाथ से दबाए हुए है। नींद के मारे आंखें नहीं खुल रही हैं। लेकिन बच्चे को टटोल-टटोल कर मुंह में निपुल दे रही है। बार-बार दूध पिला रही है।’

‘तुम सही कर रही हो। मैं तुम्हारी इस बात की प्रशंसा हमेशा करता हूं, क्यों कि मैं भी पैरेंट्स को इग्नोर करने के फेवर में कभी नहीं रहा। इसीलिए तो बात करने के लिए बार-बार कहता हूं। मैं इसलिए भी हर हाल में तुम्हें चाहता हूं क्योंकि मैं यह समझता हूं कि हर चीज में हमारी तुम्हारी सोच करीब-करीब एक जैसी है। तुम्हें फालतू खर्च पसंद नहीं, मुझे भी नहीं। सरल साधारण जीवन को तुम जीवन की सुंदरता मानती हो। मैं भी खुशहाल जीवन के लिए इसे ही एक मात्र आधार मानता हूं। मैं जैसा जीवन जीता हूं, उसे तुम प्रमाण के तौर पर ले सकती हो। जानती हो देखा जाए तो मैं आज भी चौकीदारी ही कर रहा हूं।’

‘मैं समझी नहीं, कैसे?’

‘असल में जिस मकान में रह रहा हूं वह मेरे ही बॉस के एक बड़े रिश्तेदार का है। बहुत बड़ा मकान है। अभी पूरा नहीं बन पाया है। धीरे-धीरे काम चलता है। कभी बंद रहता है, उसी में मैं एक कमरे में रहता हूं। किचेन बाथरूम वगैरह सब बन चुके हैं। उन्हें यूज़ करता हूं। और मकान की रखवाली भी करता हूं। इससे वह चौकीदार रखने का खर्चा बचा लेते हैं।

जब भी मकान में काम लगता है तो उस समय भी मैं देखता हूं। इससे उनकी भी बचत हो रही है। जगह बहुत है। कोई रोक-टोक नहीं है। इसीलिए बार-बार कह रहा हूं कि चलो, हॉस्टल का तुम्हारा पूरा-पूरा खर्चा बच जाएगा। वैसे भी हम दोनों जिस रिश्ते को जी रहे हैं उसके बाद तो एक साथ रहना एक औपचारिकता भर है बस। ऐसे में तो मुझे लगता है कि बात करने में देरी करना सिर्फ़ टाइम वेस्ट करना है।’

‘यार इतना उतावले क्यों हो रहे हो? मेरे पेरेंट्स किस बात को किस तरह लेंगे यह मैं तुमसे बेहतर जानती हूं। इसलिए मुझे उन्हें स्टेप बाय स्टेप समझाने दो। एकदम से कहने पर वो भड़क भी सकते हैं। बात यहां इंटर कास्ट की नहीं इंटर रीलिजन की है। इसलिए प्लीज थोड़ा समय और दो।’

‘तुम कैसी बात कर रही हो? मैं कोई प्रेशर नहीं डाल रहा हूं। सिर्फ़ टाइम की बात कर रहा हूं। एक बात और मेरे दिमाग में आ रही है कि यदि तुम्हारे पैरेंट्स ने तुम्हारी बात मानने से इनकार कर दिया तब क्या करोगी? उनकी बात मानोगी या अपने मन की करोगी।’

श्वेतांश की इस बात पर रुहाना बड़ी देर तक सोचती रही तो श्वेतांश ने अपनी बात दोहरा दी। तब रुहाना ने एक गहरी सांस ली और कहा, ‘तब मेरे जीवन का सबसे कठिन समय होगा श्वेतांश। मैं उनसे माफी मांग लूंगी। कहूंगी क्योंकि आपने हमें इतना बड़ा किया, पाला-पोसा मुझे अपना कॅरियर अपने हिसाब से चुनने की आजादी दी, मुझे इस लायक बनाया कि मैं अपना भला-बुरा समझ सकूं। एक इनायत और करिए की मुझे अपने जीवन का सबसे अहम फैसला लेने की भी आजादी दीजिए। आप इस बात से एकदम निश्चिंत रहिए कि मैं जो भी फैसला लूंगी सही लूंगी। इस लायक तो आपने बना ही दिया है।’

‘और यदि यह अहम फैसला लेने की आजादी नहीं दी तब क्या करोगी?’

‘ओफ्फ श्वेतांश मुझे डराओ नहीं प्लीज, प्लीज।’ यह कहते हुए रुहाना ने उसका हाथ अपने दोनों हाथों में पकड़ लिया। वह उससे एकदम सटकर बैठी थी।

श्वेतांश ने बहुत स्नेहपूर्वक एक हाथ उसकी पीठ पर रखते हुए कहा, ‘मैं तुम्हें डरा नहीं रहा हूं। मैं तो सिर्फ़ इतना कह रहा हूं कि यह स्थिति आ सकती है, तब क्या करोगी?’

रुहाना फिर कुछ देर चुप रही। उसके चेहरे पर कुछ सख्त भाव उभर आए। उसने कहा, ’तब मैं उनसे माफी मांग लूंगी। कहूंगी आपने अब तक जैसा कहा, जैसा चाहा मैं वह करती रही और अब जीवन का एक फैसला मैं अपने मन का करूंगी। और मैं यह भी यकीन दिलाती हूं कि जल्दी ही आप मेरे इस फैसले की तारीफ करेंगे। यह जो कुछ हो रहा है इसे आप सही मानिए। ऊपर वाले की रजा मानिए क्योंकि होता है वही है जो ऊपर वाला चाहता है। इतना कहकर मैं अपनी नई दुनिया बनाऊंगी। उसे आबाद करूंगी। मां-बाप की दुनिया से अलग, अपनी एक खूबसूरत दुनिया।’

‘रुहाना मुझे तुम पर पूरा विश्वास है। हम दोनों की दुनिया निश्चित ही बहुत खुशहाल होगी। मुझे भरोसा अपने मां-बाप पर भी है। वह लोग बहुत खुले विचारों के हैं। हम दोनों का साथ जरूर देंगे। अपना आशीर्वाद जरूर देंगे।‘

रुहाना इस समय अपना सिर उसी के कंधे पर टिकाए बैठी थी। वहां उन दोनों के अलावा अन्य जो लोग थे, सब सो रहे थे। बाकी लोग जा चुके थे। रुहाना ने एक नजर ब्रिज की रेलिंग पर लगे विज्ञापन पट के टूटे हिस्से से बाहर डाली। पानी बंद हो चुका था। वह सीधी बैठती हुई बोली, ‘श्वेतांश पानी बंद हो चुका है, अब घर चलो, मुझे बहुत नींद लगी है, बहुत थक गई हूं मैं।‘

‘घर’

‘हां... कल शाम को ऑफ़िस से थोड़ा जल्दी निकलना। हॉस्टल खाली करना है। सारा सामान साथ लेकर चलना है। हॉस्टल में तो बेवजह खर्चा हो रहा है। दोनों एक जगह रहेंगे। बेवजह पैसा खर्च करने से क्या फायदा।’

श्वेतांश ने उसकी बात समझते ही उसे बाहों में भर कर कहा, ‘जरूर, कल शाम को क्यों? आज सुबह ही पहला काम यही करेंगे। आओ चलें।’

दोनों उठ कर चल दिए। रुहाना की नजर एक बार फिर उस दुध-मुंहे बच्चे पर चली गई। वह दूध के लिए कुनमुना रहा था। हाथ से मां की छाती टटोल रहा था। और मां फिर पहले ही की तरह कपड़ा हटा कर निपुल उसके मुंह में दे देती है, और हाथ से उसे अपनी छाती से चिपका लेती है। एक बेहद दयनीय हालत का कंबल जो वह ओढ़े थी उसी से बच्चे को फिर पूरा ढंक लेती है।

उसे ठिठकता देखकर श्वेतांश ने कहा, ‘कैसे बेखबर हैं बाकी दुनिया से यह सब अपनी दुनिया में। भगवान से प्रार्थना है कि जैसे उसने इस दुनिया में बाकी लोगों के लिए खूबसूरत चीजें दीं हैं, वैसे ही इन सब की दुनिया भी बढ़िया बना दे।’

दोनों एक दूसरे का हाथ पकड़े सीढ़ियों से नीचे उतर रहे थे। तभी श्वेतांश से रुहाना से कहा, ‘अब तो समझ ही गई होगी कि इस ब्रिज पर मैं क्यों आता हूं। यहीं मेरी नई दुनिया की नींव पड़ी और...।’

‘और ?’

‘और जीवन का हमसफर भी यहीं मिला। अब तुम ही बताओ इसे कैसे भूल सकता हूं?’

‘सही कह रहे हो, मैं भी तुम्हारे साथ आया करूंगी। यह सिर्फ़ कंक्रीट स्टील का एक फुट ओवर ब्रिज नहीं है। हम दोनों की ज़िंदगी का एक हिस्सा है। हमारा पॉलिटेक्निक चौराहे वाला फुट ओवर ब्रिज।’ कह कर रुहाना हंस पड़ी। तब तक श्वेतांश ने बाइक स्टार्ट कर दी थी।

समाप्त