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अमेरिकन नाईटमेयर


कहानी - अमेरिकन नाईटमेयर

वर्षों से अमेरिका हमारे युवाओं के सपनों की मंजिल रहा है - ए ड्रीम डेस्टिनेशन . विशेष कर 90 के दशक से आई टी बूम के बाद से हमारे युवाओं ख़ास कर स्नातक इंजीनियरों के लिए यह धन और आधुनिक सुविधाओं का भंडार है .चार साल की डिग्री के बाद आई आई टी या कुछ अन्य अच्छे कॉलेज के स्नातकों को तो यहाँ आसानी से नौकरी मिल जाती थी .


ज्यादातर युवा यहाँ के कॉलेज से एम एस ( स्नातकोत्तर ) की डिग्री ले कर H 1 B वीजा हासिल कर नौकरी पाने में सफल होते हैं .इस तरह वे तीन तीन साल के लिए दो बार वीजा ले कर छः साल तक तो नौकरी कर सकते है , इसके बाद सालों तक ग्रीन कार्ड के लिए लाइन में लगे रहते हैं .कुछ लोगों को यहाँ की यूनिवर्सिटी से स्कॉलरशिप भी मिल जाती है तो पढ़ाई सस्ते में हो जाती है , तो कुछ लोग सुनहरे भविष्य की आशा में लाखों का कर्ज ले कर पढ़ने आते हैं .


पर विगत कुछ वर्षों से अब हालात बदल रहे हैं . विशेष कर ट्रम्प प्रशासन के आने के बाद हालात बहुत बिगड़ चुके हैं .अब अगर अमेरिका को ड्रीम डेस्टिनेशन न कह कर अमेरिका ए नाईटमेयर कहा जाए तो यह अतिशयोक्ति नहीं होगी .


तेलंगाना की एक युवा जोड़ी है . एम बी ए कर विजया भारत की एक कंपनी में अच्छी नौकरी करती थी . विजया एक सुन्दर और स्मार्ट लड़की है . उसकी शादी एक दक्षिण भारतीय युवा इंजीनियर शिवा से करीब तीन साल पहले हुई थी . शिवा बी टेक की डिग्री के बाद अमेरिका आना चाहता था . पर सिर्फ इस पढ़ाई पर अमेरिका क्या भारत में भी कोई अच्छी नौकरी नहीं मिल रही थी . वह माता पिता से करीब 35 लाख रूपये ले कर अमेरिका मास्टर की पढ़ाई करने स्टूडेंट वीजा F 1 पर आया . उसने सब को भरोसा दिया कि एम एस करने के बाद जल्द ही अच्छी नौकरी मिल जाएगी और वह यह क़र्ज़ उतार देगा .इसी बीच शिवा की शादी विजया से हो गयी . विजया भी आश्रित वीजा H 4 पर अपनी नौकरी छोड़ कर सुनहरे भविष्य के सपने लेकर अमेरिका आ गयी .


शिवा को एम एस करने के बाद कोई नौकरी नहीं मिली . इसके लिए कंपनी को भावी कर्मचारी के लिए H 1 B वीजा स्पॉन्सर करना होता है . ट्रम्प प्रशासन की सख्ती के बाद कोई कंपनी यह वीजा स्पॉन्सर करने को जल्दी तैयार नहीं हो रही है . इसके पहले कुछ H 1 वीजा प्रीमियम प्रोसेसिंग द्वारा ज्यादा फीस देने पर मिल जाता था , अब उसमें भी अनिश्चितता बनी रहती है .स्नातकोत्तर की पढ़ाई के बाद एक साल तक का OPT वीजा मिल जाता है - ऑप्शनल प्रैक्टिकल ट्रेनिंग के लिए , इस दौरान कोई कंपनी चाहे तो उसे एक साल की नौकरी दे सकती है . शिवा को उम्मीद थी कि शायद कोई उसे नौकरी दे दे और बाद में उसके लिए H 1 स्पांसर कर दे , पर अभी तक ऐसा नहीं हो सका था . 1


शिवा के OPT वीजा की लगभग आधी से ज्यादा अवधि समाप्त हो चुकी है पर आगे नौकरी के लिए कहीं से कोई आशा की किरण नहीं दिख रही है .इधर विजया अपने H 4 वीजा पर कोई नौकरी कर नहीं सकती है . वैसे भी इंडिया की एम बी ए डिग्री को कोई यहाँ तवज्जो नहीं देता है .शिवा भारत लौटना नहीं चाहता है , अभी भी नौकरी की उम्मीद लिए बैठा है .


इधर अपार्टमेंट का किराया और अन्य खाने पीने के खर्चे जुटाना मुश्किल हो रहा था . अमेरिका में बिना निजी कार के कहीं आना जाना बहुत मुश्किल है , पब्लिक ट्रांसपोर्ट नाम मात्र का है . दोनों के पास सिर्फ एक पुरानी कार लीज पर है उसके लीज रेंट और तेल के खर्चे सब अलग से परेशान कर रहे थे .वह छोटे मोटे ट्यूशन कर कुछ पैसे कमा लेता है .पर इतने में गुजारा संभव नहीं था .


किसी ने पार्ट टाइम खाना बनाने वाली कुक का इश्तहार इंटरनेट पर दिया था . विजया ने उससे फोन पर संपर्क कर कहा कि मैं यह काम करुँगी . विजया के पास कार भी नहीं है , न ही ड्राइविंग लइसेंस .वह किसी तरह बस से उस घर तक पहुंची . उस समय घर में सिर्फ एक बुजुर्ग औरत गीताजी थीं , उनके बेटा बहू तो दफ्तर में थे .वह घर एक उत्तर भारतीय का था .पहले तो गीताजी ने उसकी पढ़ाई लिखाई और पति के बारे में जानकारी ली फिर उससे पूछा कि वह भारत के किस प्रान्त से है .विजया के दक्षिण भारतीय कहने पर गीताजी ने पूछा “ तुम नार्थ इंडियन खाना विशेष कर रोटियां बना सकोगी ? “


“ मुझे इस नौकरी की सख्त जरूरत है , मैं एक दो दिन में रोटियां बनाना सीख लूंगी .”


“ पर खाना बनाने के बाद तुम जो बर्तन इस्तेमाल करोगी उसकी सफाई , चूल्हे और किचेन काउंटर की सफाई भी करनी होगी .”


“ ऑन्टी , मैं वो भी कर लूंगी . आप चिंता न करें . ” फिर उसने अपनी परेशानी विस्तार में बताई


गीताजी को उस पर दया आयी कि इतनी पढ़ी लिखी लड़की अमेरिका में आकर दूसरे घर में इस तरह का काम ढूंढते चल रही है .वे पूछीं “ पैसे क्या लोगी ? “


“ ऑन्टी , आई हैव नो चॉइस , आप जो ठीक समझें दे दें .एक रिक्वेस्ट है मुझे कैश ही देंगी , मैं चेक नहीं ले सकती .आप तो समझ रही होंगीं , मैं चेक नहीं ले सकती हूँ क्योंकि मुझे किसी प्रकार का काम करने की इजाजत नहीं है ..”


“ ठीक है हम 15 डॉलर्स प्रति घंटा पेमेंट करेंगे . हमें सोमवार से शुक्रवार तक दो घंटे रोज की जरूरत है .

चलेगा .”


“ जी ऑन्टी , बहुत धन्यवाद .अगर आपके परिचित में किसी और को मेरी या मेरे पति के लायक काम की जरूरत हो तो प्लीज आप रेफर कर देंगी , बिना रेफेरेंस के जल्दी काम भी नहीं मिलता है .”

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पहले दिन गीताजी ने स्वयं विजया को कुछ रोटियां अपने हाथ से बना कर दिखायीं और समझाया कि हम लोग किस तरह के मसाले कौन सी सब्जी में डालते हैं .विजया को भी कोई कठिनाई नहीं हुई बल्कि पहले दिन ही उसने फूली हुई अच्छी रोटियां सेंकी . अपनी सफलता पर वह बहुत खुश थी .


कुछ दिन बाद गीताजी के जान पहचान में ही विजया को एक जगह और तीन घंटे बेबी सिटींग की नौकरी मिली .


एक दिन गीताजी ने विजया से पूछा “ शिवा का वीजा तो दो तीन महीनों में समाप्त हो जायेगा और उसी के साथ तुम्हारा भी . इस बीच शिवा को जॉब नहीं मिला तब तो तुमलोगों को इंडिया लौटना पड़ेगा . “


“ शिवा तो लौटना नहीं चाहता है . बोल रहा है क्या मुंह दिखाऊंगा वहां सभी को . फिर उसके पापा ने शिवा की पढ़ाई के लिए काफी कर्ज ले रखा है . “


“ पर और कोई उपाय नहीं है क्या ? . “


“ शिवा ने जिस यूनिवर्सिटी से मास्टर्स किया है वहीँ से पी . एच . डी . करने के लिए आवेदन दिया था जो अप्रूव हो गया है . छः महीने बाद अगले सेमिस्टर में ज्वाइन करेगा . फिर तो उसका स्टूडेंट वीजा F 1 आराम से चार पांच साल के लिए बढ़ जायेगा और फिर उतना ही मेरा वीजा भी . पी एच डी के दौरान 1500 से 2000 डॉलर्स स्टाइपेंड मिलता है और मेरी कमाई मिलाकर हमारा खर्चा निकल आएगा और शायद कुछ सेविंग भी कर लेंगे. पी एच डी के बाद रिसर्च या टीचिंग जॉब मिलने की पूरी उम्मीद है .उसके बाद तो यहाँ सैटल करने की उम्मीद रखती हूँ . “


“ गॉड ब्लेस्स यू बोथ . तुम्हें अपने मिशन में सफलता मिले . “


“ थैंक यू आंटी . “


गीताजी के बच्चों को अमेरिका की नागरिकता मिल चुकी थी . वह सोचने लगीं कि यह सिर्फ एक विजया और शिवा की कहानी ही नहीं है .ऐसे हजारों युवक एक झूठी उम्मीद लिए यहाँ संघर्षरत हैं . हमारे युवाओं को अब अमेरिका की मृगतृष्णा से उबरने का समय आ गया है . जो बहुत पहले यहाँ आकर बस गए हैं और यहाँ के स्थायी निवासी ( ग्रीन कार्ड ) या नागरिकता प्राप्त कर चुके हैं उनकी देखा देखी लोगों को यहाँ आने की लालच त्याग देनी चाहिए . वे अपने ग्रीन कार्ड की उम्मीद में वर्षों से अपनों से दूर रह रहे हैं , ऐसे लोगों का शोषण करने से भी कंपनी बाज नहीं आती है . क्योंकि कम्पनी जानती है कि अगर इन्हें ग्रीन कार्ड मिला भी तो कम से कम 12 से 15 वर्ष तक लगता ही है हालांकि आजकल और ज्यादा समय लगने की संभावना है .इस तरह वे अपने जीवन का सुनहरा समय एक नाईटमेयर में जी रहे हैं .

- शकुंतला सिन्हा -

( बोकारो , झारखण्ड )


Presently in USA 3


नोट - यह कहानी एक सच्ची घटना पर आधारित है पात्र के नाम बदल दिए गए हैं .

संपादक उचित समझें तो कुछ सुधार या बदलाव कर सकते हैं