Is Dasht me ek shahar tha - 21 - last part books and stories free download online pdf in Hindi

इस दश्‍त में एक शहर था - 21 - अंतिम भाग

इस दश्‍त में एक शहर था

अमिताभ मिश्र

(21)

ये कोई बहुत ज्यादा समय नहीं हुआ है जब इस परिवार की साझा जमीन हुआ करती थी। तकरीबन सात एकड़ के आसपास जिसमें एक जंगल था बकायदा बबूल, खजूर, कबीट, बेल, बेर, बड़गद, पीपल, नीम, जामुन, अमरूद, विलायती इमली, खुरासानी इमली, आम वगैरा के पेड़ों का। एक नाला था। दो बड़े कुंएं थे। दो छोटे कुंए। एक झिरिया। एक मकान, दो मंदिर, एक घाट। एक अखाड़ा । साझा संपत्ति का मजा ये है कि इतनी संपत्ति सबके पास होती है। मतलब यह कि परिवार का हर सदस्य सात एकड़ जमीन जंगल समेत जिसमें बकायदा बबूल, खजूर, कबीट, बेल, बेर, बड़गद, पीपल, नीम, जामुन, अमरूद, विलायती इमली, खुरासानी इमली, आम वगैरा के पेड़ मौजूद होते हैं एक नाला था दो बड़े कुंएं दो छोटे कुंए। एक झिरिया एक बड़ा दोमंजिला मकान जिसमें एक आंगन, बीस कमरे हाथी घुस जाए इतना बड़ा मुख्य द्वार, दरवाजे बराबर खिड़कियां, दो मंदिर, एक घाट, एक अखाड़ा और सबका साथ। शादी ब्याह तय करने के समय यह बताया जा सकता है कि ये जहां खड़े हैं आप वहां से लेकर वो दूर तक जो वो चाल तक की जमीन और वो जो सामने की फेंसिंग से लेकर नाले की बार्डर तक की जमीन हमारी है।

फिर जब आप बंटते हैं तो न सिर्फ संपत्ति में बल्कि यूं भी वाकई छोटे छोटे होते जाते हैं। उस समय पूरा जंगल था खेलने कूदने खजूर, बेर इमली कबीट बेल खाने खिलाने को। नदी थी नहाने को कुए थे नहाने धोने को। तैरने को। उस नदी में पत्थर को कई टप्पे खिलाते हुए देखने का आनंद जिसका कोई पर्याय नहीं है। एक अदभुत जगह थी वो जंगल जिसे समय और लालच के साथ खो दिया। वो जंगल पनाह था सारी हरकतें करने के बाद छुपने का। बगल में बांडे की चाल में किसी को भी पीट डालो और जंगल में नाले के किनारे छुप जाओ। वो रोता और उसका बाप भी साथ आएगा। ढूंढ मचेगी।

”अरे वो नंबर तीन के चिराग कहां हैं उन्होंने हमारे लप्पू को इतना मारा कि खूनाखून हो गए और ये हैं कि यहां मजे उड़ा रहे हैं। हम इन सबको बोलते हैं काहे पीलियाखाल वालों के साथ खेलते हो। पर उन्हें भी इन्हीं गुंडों के साथ मजा आता है।“

अब क्या था बस। इस बार तमाचा पड़ा बहुत जोर से आवाज से पूरा माहौल गूंज चुका था। पर बहुत ही अनपेक्षित तौर पर गणेशीलाल या छप्पू ने जड़ा था ये तमाचा। बात उन्हीं के चिराग की चल रही थी।उन्हें इस तरह उत्तेजित कभी नहीं देखा गया था।

” ससुरे गुंडे किसको बोल रहे हो। जरा जबान संभाल के बोलना। “

इसी जंगल में जब पानी भर जाता था नदी नालों में तो दो तीन जगह पानी की बनती थीं जहां पर पानी में पत्थर तैराने का शगल अब बड़ी नदियों में भी नसीब नहीं। एक बार आम छुपाए थे इस घर के लड़कों ने इसी जंगल में। मौका था सोमेश के ब्याह का जिन दिनों सब इकठ्ठा हुआ करते थे और सब घर वालों के लिए पप्पू चाचा इस बार शानदार आम लाए थे चुसौवा। महक बहुत ही बढ़िया थी। और उसे उन्होंने सबसे कोने वाले कमरे में पाल में यानि पकने के लिए गेंहूं में दबा दिया था। यह रखते हुए हमारे शिब्‍बू चाचा के छोटे बेटे ने अपने बड़े भाई को बताया उन्होंने कप्तान को और कप्तान का अपना एक गैंग था जिसमें बड़े चाचा के सबसे छोटे बेटे, तीसरे नंबर के बेटे, चौथे नंबर के दानों बेटे, पांचवें नंबर के बड़े बेटे और एक और यानि पांच नंबर के ससुराल से उनके भतीजे भी थे राजू जो पी एम टी की पढ़ाई के लिए थे वहां पर जिन्होंने इस किस्से में बहुत खास भूमिका अदा की थी। सात लोग थे कुल जो जमा हुए कि ये जो आम हैं ये कैसे उस कमरे से उड़ाए जाएं। बकायदा योजना बनी। हमारे पप्पू चाचा अपने जनेऊ में चाबी को बार बार छू कर महसूस करते रहे और अपने आप को निश्चिंत करते रहे। पर वे कप्तान थे और उनके साथ पांच और दिमाग काम कर रहे थे। पांचनें नंबर में के बेटे शशांक यानि गुड्डू ने पता लगाया कि नाले की तरफ एक खिड़की है जो नाले की ही तरफ खुलती है। जिस तक पहुचने के लिए बेल के पेड़ की डगाल से पहुचा जा सकता है पर उसे खोलना टेढ़ी खीर है। तब तीन नंबर के बेटे नवेन्दु यानि दिप्पू ने बताया कि यदि उसे जोर से दबा कर हिलाया जाए तो सटकनी गिर सकती है और खिड़की खुल सकती है। बस कप्तान ने पूरी योजना को अंजाम देने का बीड़ा उठा लिया। वे खुद बेल के पेड़ पर चढ़े गुड्डू को साथ लेकर। समय दोपहर का था जब सब लोग खाना खाकर सो रहे थे। पेड़ के नीचे खड़ा किया थैला लेकर चार नंबर के दोनों सपूतों को और भतीजे महाशय को चौकीदारी का जिम्मा दिया गया और हां दिप्पू के हाथ में वो बांस दिया गया जिससे वो खिड़की दबाएं। तो योजना के अनुसार कप्तान और गुड्डू पेड़ पर चढ़े। दिप्पू ने खिड़की दबाई कप्तान ने हिला कर सटकनी गिराई खिड़की खोली और गुड्डू को दाखिल करा दिया कमरे में। कुछ देर के धकपक सो भरे समय के बीच गुड्डू ने खिड़की से गरदन बाहर निकाली और कप्तान से फुसफुसा कर पूछा आम हैं कहां। कप्तान ने पूछा उस हीरो से जो ये खबर लाया था। उसने बताया पलंग के पीछे वाली अलमारी के सबसे नीचे वाले खाने में है टोकनी जिसमें हैं आम। हूबहू वहीं थे आम जिसे पूरी टोकनी समेत बड़ी मशक्कत के बाद हमारे गुड्डू भाई खिड़की पर लाए और कप्तान ने उसे थामा उठाया और नीचे दोनों भाई लोगों को। बस आम लेकर नाले की तरफ निकल लिया गया। वो नाला जो एकदम कोने में है। जहां फारिग होने भी कोई नहीं आता पर ये जगह इन लोगों का गुप्त अड्डा रहा है। खेल कूद और पिटाई से बचने का एक माकूल सा अड्डा है यह। तो यहां लाकर ये टोकनी एक झाड़ी के पीछे छुपा दी गई और ये सातों भी आकर मंदिर में सो गए कि गोया कुछ हुआ ही ना हो। पूरे दिन और रात सामान्य गतिविधि रही। पप्पू चाचा के साथ गुड्डू भैया उस कमरे का मुआयना भी कर आए। चाचा ने बताया शादी का जरूरी सामान रखा गया है यहां। गुड्डू भैया ने उन्हें आदर भरी नजरों से निहारा और निहाल हो गए। अगले दिन ये सातों फिर उसी नाले किनारे जमा हुए और फिर वो जो आम खाए सातों ने कि बस। बहुत मीठे और बहुत सारे आम। एक एक ने पांच पांच सात आम चूसे और छिलके और गुठली उसी बोरे में भरकर नाले में बहा आए। इस बार इन्होंने काम लिया था पीछे के पंडितों को बुलाने का सो किसीने पूछा नहीं कि ये सातों गए कहां। आम वाकई बहुत ही उम्दा थे। वैसे आम न उसके पहले उन्होंने या किसीने भी खाए होंगे और न ही बाद में कभी। वो आनंद वो साहसिक काम बहुत कम करने के मौके मिलते हैं। अब अगले दिन दोपहर में जब अमरस बनाने के लिए पप्पू चाचा ने जनेऊ में बंधी चाबी से कमरा खोला और पलंग के पीछे वाली अलमारी के सबसे नीचे वाले खाने में वो टोकनी को नहीं पाया जिसमें थे आम। उनके पांवों के नीचे से वो जमीन सरक गई जिस पर वे खड़े थे। वे विल्लाए बाहर निकल कर हैरान परेशान चिल्लाए ”अरे छप्पू गन्नू तिक्कू अरे सब लोग आओ रे देखो ये आम कोई चोर ले गया।“

सारे लोग इकठ्ठा हो गए। पप्पू बता रहे थे कि ” अभी परसों हम मंडी से दस किलो बढ़िया चुसौवा आम चुन चुन कर लाए थे और अलमारी के नीचे वाले पल्ले में टोकनी रख दी थी ससुरी। अब पता नहीं कौन है चोर जो आम भर चुरा ले गया। गाली भी नहीं दे सकते क्योंकि होगा वो घर का ही। “

वाकई बड़ी घटना थी पीलियाखाल के लिए। वे सात हीरो भी शुमार थे इस इकठ्ठा भीड़ में जो इस घटना पर हैरान थी। खप्पू चाचा ने गंभीरतापूर्वक एक भाषण जैसा कुछ बोला। समझाइश और धमकी का अच्छा मिश्रण था ये। उन्होंने बोला

” अब पप्पू भाई लाए तो अपन सब के ही लिए थे आम। चलो अच्छा है हमी में से किसी ने चूस लिए पर अगर बताकर लेता या लेते वे लोग तो ठीक न होता भला। पर जिसने भी किया है बहुतैही गलत काम किया और ये तो देर सबेर पता ही चल जाएगा कि किसने किया है ये काम तो फिर उससे तो हम लोग निपट ही लेंगे। इसलिए बेहतर है कि वो लोग बता ही दें कि किसने ये काम किया है तो उन्हें कुछ नहीं किया जाएगा पर बाद में पता चलने पर क्या करना है ये हमको नहीं मालूम फिर पंच लोग तय करेंगे। पंचायत का गठन हम लोग कर लेंगे।“

सुना सबने खुसुर पुसुर शुरू हुई सब बहुत ही चिंतित थे। पप्पू चाचा अफसोस मना रहे थे और उन आमों की विषेशताओं को बता रहे थे। ” साला एक एक आम चुन चुन कर लाया था। इतना मीठा कि शक्कर को भी मात दे दे। सब बैठ कर खाते तो मजा ही अलग होता। है तो वो घर का ही। ये बदमाश लड़कों के सिवा कौन होगा भला। मान जाओ कि तुम्हीं लोगों ने चुराए हैं ये आम। “

सब चुप कि मानो उनसे ये बात ही नहीं की जा रही हो। तिक्कू चाचा आगे आए इस मसले की जांच के लिए। उन्होंने बोला कि ” मैं जांच करके पता करता हूं कि कौन चोरों के सरदार हो गए हैं इस खानदान में। और बताते हैं उनको। एक बात तो तय है ये काम कई लड़कों ने मिलकर काम किया है। “

उन्होंने जासूसी शुरू की लड़कों से अलग अलग पूछताछ करना जारी किया।

सबसे पहले उन्होंने गुड्डू को घेरा। ” क्यों गुड्डू भाई ये बताओ कि आम थे कैसे। जैसा पप्पू चाचा ने बताया वैसे थे कि चच्चू यूंही फेंक रहे थे। “

गुड्डू ने बोला ”कौन से आम की बात कर रहे हो चाचा। अरे हमें अगर आम खाना होगा तो हम बाजार से लेकर खा लेंगे या आप ही लोगों से बोल देंगे। हमें तो पता भी नहीं कि ये किन आमों की बात चल रही है। “

” देखो यदि तुम बता दोगे तो तुम्हें कोई कुछ नहीं कहेगा। वरना तो तुम्हें पता ही है कि जो ठुकाई होगी“

” अरे जिसने चुराए होंगे उसे धमकी दो आप। हमें जबरन मत डराओ। सूत न कपास कोरे में लठ्ठमलठ्ठा कर रहे हो। कहीं और अपनाओ ये हथकंडा। “

तिक्कू चाचा ने एक एक कर के सारे लड़कों से पूछ लिया था पर किसी ने पहीं बताया कुछ भी। मसला टल गया था स्थिति सामान्य होने लगी। पर तिक्कू चाचा ने गांठ सरीखी बांध ली थी वे बीच बीच में मौका ढूंढ लेते थे अपनी जासूसी का। उसी दौरान उनका ध्यान गया राजू पर जो गज्जू भैया के भतीजे थे ससुराल पक्ष से यानि वे नंबर पांच भाभी के भाई के लड़के थे। उन्होंने उन्हें घेर लिया। सामान्य बातचीत की पढ़ाई लिखाई की गांव के हालचाल पूछे खेती बाड़ी के बारे में पूछा यानि उनसे एक सहज संवाद स्थापित कर लिया। यह उन्होंने पहले दिन किया जो उनके जासूसी काम का ही हिस्सा था। बगले दिन के ही संवाद ने उन्हें निष्कर्ष पर ला दिया।

”हां तो राजू भैया सुना है कि आम की बगिया भी हैं गांव में।“

” हैं न फूफा बिलकुल हैं दशहरी लंगड़ा और चुसौवा आम के कई बगीचे हैं और एक से एक अच्छी वैरायटी और बहुत स्वादिष्ट और महके तो ऐेसे कि आसपास के सारे लोग जान जाएंगे कि आप आम खा कर आ रहे हैं। “

” यहां के कैसे थे उस दिन जो आपने इन लड़कों के साथ चूसे थे।“

” मीठे तो थे पर वो महक वो स्वाद नहीं था जो वहां के आमों में रहता है।“

ये कहते ही राजू भैया को समझ आया कि वे तिक्कू फूफा जी के जासूसी के हथकंडे में फंस चुके थे। ” आता हूं फूफा जी। “

” ऐसे कैसे जाएंगे आप जरा चाय पीते हैं अपन। और जरा हमें ये तो बताओ कि वो आम कैसे निकाले गए और कौन कौन शामिल थे उसमें। हम किसी को नहीं बताएंगे कि ये आप ने बताया है।“

राजू भैया ने पहले तो ना नुकुर की पर आखिर वो किस्सा बयान कर ही दिया।

तिक्कू चाचा ने उस पूरी प्लानिंग की मन ही मन सराहना की और अपने खानदान के चिरागों के बारे में जब शाम को मंदिर में उद्घाटित किया तो सब लड़के एक दूसरे की तरफ देख रहे थे कि आखिर कौन ढीला पड़ गया। एक दूसरों को इशारा किया गया और उन इशारों में ही समझ आ गया कि कमजोर कड़ी राजू भैया हैं। इस पूरे किस्से को बयान करते हुए तिक्कू चाचा गर्व से सबको देख रहे थे कि कप्तान बोले कि ”कमजोर कड़ी जो हम लोगों में से नहीं थी को पकड़ने की तो बात सही है पर चीं बोलने के बाद ही जान पाए और राजू भैया को घेर कर पता कर ही लिया। ये तो कोई जासूसी नहीं हुई इसे हम लोग टुच्चापन कहते हैं। अब बेचारे राजू भैया को घेर कर पूछ लिया तो कौन सा तीर मार लिया। वो तो हम लोगों से गलती हुई जो राजू भैया को साथ में ले लिया वरना तो आपकी सात पुष्तें नहीं पता कर सकतीं थीं कि आखिर उन आमों का हुआ क्या। “

” ज्यादा होशियार बनने की जरूरत नहीं है एक तो चोरी और ऊपर से सीनाजोरी। “

तभी आरती शुरू हो गई और बात नहीं रूक गई। आज सब लड़के चुचाप जाकर सो गए या सोने का नाटक कर लिए पर एक हंगामाखेज सुबह उनका इंतजार कर रही थी। जहां सुबह होते ही नंबर तीन चाची ने दिप्पू की ठुकाई शुरू की हाथ से डंडे से चिमटे से सबसे मारा कि ” अपने बाप का नाम बहुत आगे ले जाओगे। उनकी मिसालें देते हैं लोग ईमानदारी की और उनके बेटे घर में ही चोरी कर रहे हैं। “ दो थप्पड़ उन्हे उनके बाप ने भी मारे।

फिर क्या था चार चाचा औा चाची ने अपने दोनों बेटों की सुताई करी। गन्नू पहलवान चाचा ने पटक पटक कर कप्तान को मारा। गुड्डू को पहले तो उनकी अम्मा ने डंडी से मारा फिर गज्जू भाई ने जो पीटा तो उन्हें दिन में तारे दिखने का मतलब समझ आ गया। दो लोग नहीं पिटे एक तो राजू भैया और दूसरे विनायक चाचा के छोटे सपूत। सब अच्छे से चुचाप पिट कर इकठ्ठा हुए शम्भू और धापू की खोली के आगे और एक दूसरे का दर्द बांटा मजे में और आपस में बताया कि कहां कहां दुख रहा है। कप्तान बोले ”यार किसी के बाप को पहलवान नहीं होना चाहिए। सारी पहलवानी आजमा ली उन्होंने मुझ पर“

गुड्डू बोले ”पहलवान हो या नहीं हो ठुकाई में किसी ने कोई कसर नहीं छोड़ी। पर यार आम थे बहुत शानदार।“

इस पर जो ठहाके हुए कि अंदर तक आवाज चली ही गई। सब चैंक गए और गज्जू भैया बोले ” हैं तो ससुरे पीलियाखाली ही। “

” ये बात तो है आम जिस चतुराई से निकाले हैं वो है तो कमाल। आसान काम नहीं था ये डरते तो हैं ही नहीं मने सोचो कि गुड्डू बेल की पेड़ की छगाल से खिड़की के जरिए अंदर गए वहां से आम की पोटली निकाल कर कप्तान को थमाई और फिर वापस आ गए बाहर। और हां खिड़की को दिप्पू ने डंडी से दबाया जिससे उसकी चटकनी नीचे सटक गई और खिड़की को खोल लिया गया। फिर लौटते में चटकनी ऊपर करके जोर से खींची गई कि वो फिर से वैसे ही बंद हो गई। वो तो राजू की हरकतों से हमारी समझ में आ गया कि इन्हें जरूर ले गए होंगे ये लोग। बस उन्होंने ज्यादा देर नहीं लगाई सब कुछ उगलने में। पर अब बहुत हुआ पिट भी लिए लड़के अब जरा फिर सये आम लाएं जाएं बल्कि इन्हीं लोगों से बुलवाए जाएं तो मजा रहेगा। “

फिर हुआ भी वही और आमरस के साथ सबने उस चोरी का आनंद लिया।

इस तरह के तमाम किस्से हैं जिससे ये जाहिर होता है कि वो सारी जमीन साझा थी सबकी थी और सब एकसाथ उसका उपभोग भी करते थे। बेर जामुन खजूर इमली कबीट पर सब बराबरी से हकदार थे। धीरे धीरे देखते देखते कब वो जंगल गायब हो गया। कब वो अंदर के नाले सूख गए और झिरिया कुंए पाट दिए गए और जमीन बंट कर कब बिकती चली गई और तमाम कालोनियां कट गई उस शानदार जगह पर जो इन नौ लोगों की थीं अब एक एक मकान के लिए प्लाट हैं सबके पास और सबने अपने अपने लिए हवेलीनुमा मकान तान लिए हैं और अलग अलग अब एक दूसरे के खिलाफ ही कुछ न कुछ षड़यंत्र रचते रहते हैं वो प्यार वो लड़ाई वो इकठ्ठे होकर एक दूसरे के सुख दुख में शामिल होना हवा हुआ।

***

उपसंहार

ऊपर जिन शहरों जिन कसबों जिन गांवों जिन मोहल्लों जिन गलियों जिन परिवारों का जिन लोगों का जिकर किया गया है वे सब जीते जागते लोग रहे हैं। समय के साथ दरअसल होता यूं गया कि वे परिवार गली मोहल्ले गांव कसबे शहर यहां तक कि देश भी अपनी औकात भूलकर बिलकुल एकांगी होता चला गया। जिन नौ भाइयों का जिकर है जो एक रहे पर आखिर तक आते आते जो बिखरे तो ऐसे बिखरे कि पोते पोती कहां हैं क्या करते हैं ये आपस में भी एक दूसरे को न पता है न जरूरत।

विनायक जी आखिरी समय मे याददाश्‍त खो चुके थे और जो रवैया उनके साथ रहा वो उन्हें लगातार व्यथित करता गया। गणपति यानि पहलवान चाचा की याददाश्‍त ठीक रही जो जिंदगी से ही ऊब कर नहीं रहे। गणेशीलाल भी याददाश्‍त खो चुके थे। शिवानंद बाबू बहुत पहले से सब भूलने लगे थे वे भी जब गए तो अपनी ही धुन में गए। गजपति जो संभवतः उस घर के सबसे अच्छा गला रखने वाले, ढेरों कविताएं उन्हें कंठस्थ थीं पर बाद को वे न सिर्फ कविताएं भूले वे अपना नाम पता तक भूल गए और ऐसा उन्होंने तीन साल गुजारा जो बेहद दर्दनाक था पर कुछ नहीं किया जा सकता था। जब वे गए तो लोगों ने कहा ये अच्छा हुआ कि पांच नंबर यानि प्रोफेसरचले गए वरना इतना जिंदादिल आदमी जीवन से सराबोर आदमी इस तरह गुम हो जाए कि उसे अपनी ही खबर ना हो। ये शहर और गजपति बाबू के जीवन में बहुत साम्य है दोनों ही अपने को बिसरा गए छः नंबर सामान्य रहे सामान्य ही चले गए। सात नंबर जीवन से दुखी होकर व्यावहारिक बने रहे पर उनके बेटे की मौत ने उन्हें तोड़ दिया तो वे भी गुमसुम निकल गए। बुद्धिनाथ फिलहाल परमहंस हो गए हैं वे भी सब भूल चुके हैं। बस कभी कभी याद के झोंके आते हैं तो वे नर्मदा नदी के किनारे होते हैं अकसर सोच में। त्रिलोकीनंदन का लंबा ब्यौरा हम दे ही चुके हैं।

एक समय का कलकल बहता नाला जो नदी था अब गंदे पानी का नाला है। शहर जिसमें यातायात के सारे साधन हैं। दुकान है बाजार है। एकदम बढ़़ता हुआ शहर है पर वो जो अपनापा था आपसदारी थी वो खतम हैं। सन चौरासी के दंगों में त्रिलोकी दो सरदारों को और गुड़डू अपने दो सरदार के परिवार को अपने घर ले आए थे औा उन्हें तब तक रखा जब तक हालात ठीक नहीं हो गए। पर अब ये हालात हैं कि अभी पिछले दंगों में पूरा शहर एक था पर अब इस बार किसी ने किसी को न जान न माल से बचाया। बस शहर लुटता रहा अपने ही हाथेां। अब बस शहर में लोगों के बीच च्यापार या खरीदने बेचने से संबंधी सारी रसमें बचीं हैं जिनमें संबंध भी शामिल हैं।

घर के सारे बुजुर्ग बिलकुल अकेले पड़ गए हैं । उनको बस खाना पानी समय से पहुंच रहा है बस वरना वे बोझ हैं अब। इसी खानदान के सारे बच्चे विदेश जाने की जुगाड़ मे हैं या किसी दूसरे महानगर मसलन बैंगलौर या मुंबई या दिल्ली या चेन्नई या कहीं और ज्यादातर अपनी जमीनें बेच गए। अब उस जंगल में कई कालोनीयां कट चुकीं हैं। पुराने लोगों के लिए एक एक मकाननुमा हैं बस और जो स्थायी हैं वे सब अपनी अपनी दुनिया में जो अब मिसिरों को कतई एक नहीं करती। धीरे धीरे परिवार खतम हो गए, बस्तियां मिट कर बाजारों मे बदल गईं। तों मान लिया जाए वो जो एक शहर था वो अब है ही नहीं । कहने को है नक्षे में है। पर उसकी जान जा चुकी है तो जिस तरह इस परिवार को श्रृद्धांजलि देने की बनती है जहां आज सौ से ज्यादा सदस्य हैं पर अब रसम अदायगी को कभी कभार इकठ्ठा होते हैं तो वो परिवार मर चुका है आपसी प्यार मोहब्बत के सिलसिले में अब कोई किसी की मुसीबत में दौड़ नहीं पड़ता। अब सार लोग अपना अपना जीवन जी रहे हे। और उस पीढ़ी के लोग संभवतः उस भावना को नहीं समझ पाएंगे जो एकसाथ रहने पर उपजती है। । वहीं वो जिन्दा शहर अब नहीं धड़कता बस व्यापार करवाता है, फासले बढ़वाता है धरम के नाम पर जात के नाम पर और पैसे के नाम पर। तो शुरूआत भी हमने अंत से ही की थी और अब जब संभवतः एक स्मार्ट नसल में बदल रहे हैं जो बिना किसी संबंध के आगे बढ़ना चाह रही है तो उन संबंधें के समापन के साथ उस धड़कन को भी श्रृद्धांजलि के साथ हम ये किस्सा भी किसी और तरह के जीवन के लिए जो शायद इन भावुक संबंधों से परे होगा के लिए अपने इस किस्से को फिलहाल स्थगित करते हैं।

समाप्त