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रोटी

"रोटी" जिसके लिए हर आदमी रातदिन मेहनत करता है चाहें वो करोड़पति हो या एक समय भूखा सोने वाला। रोटी यानी भूख मिटाने के लिए भोजन। कुछ लोगों के लिए रोटी में सैकड़ो तरह के व्यंजन पकवान होते है और कुछ ऐसे भी लोग है जिनके लिए रोटी का मतलब केवल रोटी यानी बिना शाक सब्जी के महज आटे से निर्मित गोल आकृति जिसके साथ बस पानी होता उसे खाने के लिए।
आज जब दुनिया तरक्की की सीढ़ीयां चढ़ रही है। रोटी जो किसी ज़माने में भोजन का पर्याय हुआ करता था। वह आज एक बड़े तबके के लिए ओछा शब्द हो गया है। समारोहों में कुन्तलों भोजन बर्बाद हो जाता है वहीं दूसरी ओर दुनिया में कुछ आबादी उनलोगों की भी है जो दिन भर कठोर मेहनत इसलिए करते है कि शाम को उन्हें भरपेट भोजन मिल सके और अगली सुबह नाश्ता हो जाए परन्तु उनमें से कुछ शाम को भी आधी भूख के साथ सो जाते है।
आज देश और दुनिया में प्रतिवर्ष लाखों बच्चों की अकाल मौतें कुपोषण के चलते हो जाती हैं। आखिर ये कैसी तरक्की है दुनिया की? वैसे तो हर कोई चाहे वो अमीर है या गरीब सब भूख कैसे मिटे? उसे मिटाने के लिए सुख सुविधाओं के साथ साथ बेहतर पकवान भी साथ हो इस और ही बढ़ रहे है। एक मजदूर मजदूरी कर के सुविधा विहीन सूखी रोटी खाता है वहीं एक बिजनेसमैन, अधिकारी हुक़्म देकर कार्य कराकर सुविधाओं से घिरे माहौल में तरह तरह के व्यंजनों के साथ रोटी खाता है। कुछ लोग वो भी होते हैं जो सुबह से लेकर शाम तक गांवों में घर घर जाकर भीख माँगते है और खुद का पेट भरने के लिए रोटी कमाते है।
बचपन देखा था कि गांव में नट आते थे जो कलाबाजी दिखाते थे उनके छोटे छोटे बच्चे शरीर को मानो दुब्बर कर देते वो इसलिए नही की वो उनका शौक़ था बल्कि इसलिए कि उनकी यही कला उनका तथा उनके परिवार को रोटी उपलब्ध कराती थी। दुनियां में हर कोई भूख मिटाने लिए प्रयासरत है। कोई दूसरों का हक छीनकर खुद को मजबूत बना रहा है तो कोई ईमानदारी, इंसानियत के रास्ते चलकर संतुष्टि से जीवन को जीता जा रहा है। कोई चोरी करके ही पेट भरने में लगा है तो कोई दूसरों की सहायता के सहारे जो मिल जाए उसी में पेट भर रहा है। तो कोई खुद के ज़मीर को बेचकर, लज्जित भरे कार्य इसलिए कर रहा है कि शारीरिक क्षमता होते हुए भी इतना आलसी है कि बस भीख मांगने में ही विश्वास रखता है और उसे भीख मिल भी जाती है।
जरा आप इस संसार की बनाबट को गौर से देखिए कि कितनी विविधताएं है व्यक्ति व्यक्ति के बीच में और ये दुनियां इंसानियत, हैवानियत अमीरी-गरीबी, जैसे परस्पर विरोधी तत्वों के साथ आगे बढ़ती जा रही है लेकिन जिसे भी देखो जो सजीव है सब के सब "रोटी" यानी भूख मिटाने के प्रयत्न कर रहे है। उन सब में हम यानी मनुष्य सबसे श्रेष्ठ है और शायद इसीलिए सबसे ज्यादा असंतुलन मनुष्यों के ही बीच है रोटी को लेकर। क्योंकि भंडारण की लालसा सबसे ज्यादा मनुष्य में है अन्य कुछ जीवों में भी होती है परन्तु दूसरों को शोषित करके नही स्वयं की मेहनत से।मानवों में दूसरों का शोषण कर खुद के लिए इकट्ठा करने की भावना ने एक बड़ी आबादी को भूखा रहने के लिए मजबूर बना दिया है। उनकी गरीबी भुखमरी के और भी कारण है परन्तु सबसे प्रभावशाली और सबसे प्रमुख कारण अमीरों के शोषण ही है।
अगर हर कोई "रोटी" का महत्व उस परिस्थितियों से देखे जिसमें सड़क के किनारे बिना छत के रहने वाले लोगों को इसकी कितनी आवश्यकता होती है और खुद शोषण के विरुद्ध खड़े होने लगें तो समझो एक शोषित वर्ग को भी भर पेट रोटी मिल सकती है।
काश ऐसा हो पाता - राजेश कुमार