Pariyo Ka ped - 2 books and stories free download online pdf in Hindi

परियों का पेड़ - 2

परियों का पेड़

(2)

माँ ! तुम कहाँ गयी ?

घर के पास राजू की गुहार सुनते ही कुछ पड़ोसी दौड़ते हुए आए | पूछने लगे – “अरे बेटे ! क्या हुआ ? क्या हुआ ?? इस तरह रो क्यों रहे हो ?”

लेकिन राजू तो सिर्फ रो रहा था, रोये ही जा रहा था | घबराहट में रोने के अलावा और कुछ बता ही नहीं पा रहा था |

संयोगवश अब तक राजू के पिता भी जंगल से लौटकर आ गए थे | गाँव वालों की भीड़ और उनके बीच घिरे राजू को इस तरह रोता देखकर उन्हें भी कुछ अनहोनी की आशंका हुई | वे झट से लकड़ियों का गट्ठर फेंक कर पलटे और भागते हुए सीधा राजू के पास आ गए |

“क्या हुआ बेटे ? डरो नहीं, बोलो | कुछ बताओ तो ….|” - उन्होने राजू को खूब पुचकारा, समझाया, ढाँढस बँधाया |

तब बड़ी मुश्किल से राजू के मुँह से “माँ – माँ” के कुछ शब्द निकल सके |

वह घटना स्थल की ओर बार – बार इशारा करते हुए अब भी जार – जार रोये ही जा रहा था | राजू को गोद में उठाकर उसके पिता और गाँव वाले तत्काल घटना स्थल की ओर दौड़ पड़े |

घटना स्थल पर एक पेड़ के नीचे कुछ ताजा तोड़े हुए सेब बिखरे पड़े थे | लेकिन राजू की माँ कहीं नहीं दिखी | उन्होंने कई बार पुकार भी लगाई | लेकिन कोई जवाब नही आया | सब मिलकर राजू की माँ को इधर – उधर खोजने लगे | लेकिन कुछ पता नहीं चला | जब राजू के पिता ने आशंका-वश चट्टान से नीचे झाँका तो एक लग्घी काफी नीचे एक चट्टान की झड़ियों में अटकी दिखाई दी | राजू की माँ द्वारा पहनी हुई साड़ी का एक फटा हुआ टुकड़ा भी उस लग्घी में फँसा हुआ था | वो गहराई में किसी झंडे की तरह हवा में लहराता हुआ साफ दिखाई दे रहा था | मानो राजू, उसके पिता और सब गाँव वालों को अंतिम विदाई दे रहा हो |

राजू के पिता ने वह साड़ी का टुकड़ा पहचान लिया | अब सारी घटना भी उनकी समझ में आ गई थी | उनकी आँखों से धारा प्रवाह आँसू फूट पड़े | उन्होंने राजू को कस कर अपने सीने से लगा लिया | उन्हें संदेह हो गया था कि अब ये बेटा ही उनके जीने का एकमात्र सहारा रह गया है |

उन्होने गाँव वालों से कहा – “राजू की माँ इस घाटी की गहराइयों में गिरकर दुर्घटना का शिकार हो चुकी है | उसके जीवित होने की संभावना न के बराबर है | फिर भी उसे खोजने का प्रयास जरूर करना चाहिये |”

गाँव वालों ने कहा – “हाँ, जल्दी करना होगा | वरना इस घाटी में नीचे पहुँचने में देर हो जाएगी | कई पहाड़ियों का चक्कर लगाकर नीचे उतरते हुए| शाम हो जाएगी | फिर अंधेरे मे किसी को खोजना और भी मुश्किल हो जाएगा | जंगली जानवरों का खतरा भी बढ़ जाएगा | ये खोज जरूरी है, इसलिए तुरन्त निकलना पड़ेगा |”

फिर गाँव वालों ने तत्काल अपने लाठी – डंडे और कुल्हाड़ियाँ संभाली | अँधेरे में भी तलाश जारी रखने के लिए एक मशाल जलाने की व्यवस्था की गयी | राजू को उसके पिता ने पड़ोस की एक महिला के पास समझा- बुझा कर छोड़ दिया - “बेटे, यहीं ताई जी के पास रहना | हम तुम्हारी माँ को खोजने के लिए तुरन्त घाटी में जा रहे हैं |”

राजू धीरे से सहमति में सिर हिलाकर रह गया | वह बेचारा और करता भी क्या ?

फिर गाँव के लोग उस सेब के पेड़ के पास दोबारा गए | वहाँ से अच्छी तरह घटना स्थल के नीचे घाटी तक पहुँचने का रास्ता देखा - समझा | यहाँ से इस गहरी घाटी में सीधे उतरना संभव था नहीं | सो, सब लोग काफी दूर का चक्कर लगा कर घुमावदार रास्ते से होते हुए घंटों बाद नीचे घाटी में पहुँच सके |

खूब खोज – बीन की गयी | बड़ी मुश्किलों के बाद एक स्थान पर राजू की माँ का शव मिला | खून से लथपथ | नीचे गिरते हुए बार – बार पत्थरों से टकराकर उसके शरीर की बुरी हालत हो गयी थी | सिर्फ उसकी पहनी हुई साड़ी से ही उसकी पहचान हो रही थी | अच्छा हुआ, जो राजू सबके साथ यहाँ नहीं आया था | वरना यहाँ माँ के शव की यह हालत देख लेता तो, जीवन भर उसको डरावने सपने आते |

सभी लोगों ने आपस में सलाह की | इस हालत में शव को गाँव ले जाने का कोई मतलब नहीं था | अतः आपसी सहमति से राजू की माँ के शव को वहीं दफना दिया गया | फिर सभी लोग शोक प्रकट करते हुए चुपचाप वापस लौट आए | राजू को समझा दिया गया कि उसकी माँ का कुछ पता नहीं चला | खोज जारी रहेगी | वो जैसे ही मिलेंगी, उन्हे वापस लाया जायेगा |

राजू अब सचमुच बिन माँ का बच्चा हो चुका था | वह कई दिनों तक यूँ ही गुमशुम पड़ा रहा | न ठीक से कुछ खाया पिया, न किसी से बातें की | फिर बार – बार समझाने और पुचकारने से जब वह थोड़ा चैतन्य हुआ तो अपने पिताजी से बार – बार सिर्फ एक ही बात पूछने लगा – “ बापू! मेरी माँ कहाँ चली गयी? वह अब तक लौट कर आयी क्यों नहीं? ”

अब भला राजू के पिताजी उस मासूम को क्या जवाब देते कि उसकी माँ कहाँ गई? फिर वह बहाने बनाकर, झूठे आश्वासन देकर उसे वस्तुस्थिति से अवगत कराने का प्रयास करने लगे | उन्हें डर था कि असली बात जानकर कहीं राजू के दिमाग पर गलत असर न पड़ जाये | वह राजू को बहलाते हुए कहते – “बेटा ! तुम्हारी माँ भगवान के पास चली गयी है |”

मासूम राजू अपने पिता जी से पूछता - “बापू ! भगवान का घर कहाँ है?”

पिताजी आसमान की ओर इशारा करते हुए कहते – “वहाँ ........., बहुत दूर | आसमान में जो सितारे दिख रहे हैं न?.........वहाँ है |”

“चलो न बापू! हम भी वहाँ चलते हैं | माँ से मिलने के लिए |” – राजू जिद करता |

“नहीं बेटा ! वहाँ भगवान जिसे बुलाते हैं वही जा सकता है |” – पिताजी सिहरकर कहते, समझाते |

लेकिन राजू बड़ी मासूमियत से फिर पूछ बैठता – “तो बापू , भगवान जी हमको कब बुलायेंगे ? ताकि मैं अपनी माँ से मिल सकूँ ?”

राजू के पिता का दिल हाहाकार कर उठता | वे भला राजू को और कैसे समझाते कि माँ से अब उसका मिलना संभव ही नहीं है |

तब वे राजू को बहलाने – फुसलाने के लिये कहते - “राजू ! तुम भले ही अपनी माँ के पास नहीं जा सकते, किन्तु तुम्हारे जैसे अच्छे बच्चों की माँ उनसे मिलने कभी न कभी धरती पर जरूर आती हैं | परियों के रूप में, सुन्दर पंखों वाली, खूब सजी धजी, तमाम जादुई शक्तियों के साथ | उनकी कहानियाँ तो तुमने सुनी ही होगी | वे परियाँ कोई और नहीं, माँ का स्वरूप ही होती हैं | वे बच्चों को खूब प्यार भी करती हैं |”

“लेकिन वे परियाँ मुझे तो कभी दिखी नहीं अब तक ?” - राजू सवाल करता |

पिता जी कहते – “दिखेंगी | जरूर दिखेंगी | वे परियाँ सभी अच्छे बच्चों को दिखती हैं, जो अपने बड़ों का कहना मानते हैं |”

“ अच्छा...? तो मेरी माँ परी के रूप मे कब आएँगी बापू ? मैं तो सबका कहना मानता हूँ , आपका भी | मैं भी तो अच्छा बच्चा हूँ | है न?” – राजू ने अपनी बातों से अपने को अच्छा बच्चा साबित करने की पूरी कोशिश करता |

“हाँ बेटे! तुम सबसे अच्छे बच्चे हो | इसलिये कहता हूँ कि मेरा ये कहना भी मानो | अब तुम बड़े हो गए हो | खेलो – कूदो और खूब पढ़ो - लिखो | तुम्हारी माँ को जब आना होगा तो स्वयं आ जाएगी | तुमसे मिलने किसी सुन्दर परी के रूप में आसमान से उड़ती हुई चली आयेगी | ......और हाँ, ध्यान रखो, परियाँ कभी किसी को बताकर नहीं आती | तुमने परियों के किस्से तो सुने ही होंगे | कैसे वो कभी – कभी अचानक आकर तुम्हारे जैसे बच्चों की मदद कर देती हैं?” – बापू ने फिर बहलाया |

“हाँ बापू , माँ ने भी ऐसी परियों की कहानियाँ कई बार सुनायी थी | मुझे ऐसी कहानियाँ बहुत अच्छी लगती हैं | बापू ! आज मुझे ऐसी ही कोई नई कहानी सुनाओ न |” – अब राजू बहलने लगा था |

“हाँ! ये अच्छी बात है | आज मैं तुम्हें ऐसी ही नेक और सुन्दर फूलपरी की कहानी सुनाता हूँ | सुनो ..............” – और फिर कहानी शुरू हो गयी |

----------क्रमशः