Pariyo Ka ped - 1 books and stories free download online pdf in Hindi

परियों का पेड़ - 1

परियों का पेड़

(1)

राजू एक लकड़हारे का बेटा था | उसके पिताजी जंगल से पेड़ काटकर लकड़ियाँ लाते | फिर उन्हें बाजार में बेच देते | उसकी माँ लकड़ियों से ही कुछ खिलौने भी बना लेती थी, जिसे बेचकर कुछ अतिरिक्त आमदनी हो जाती | इसी व्यवसाय से उसके परिवार का खर्च चलता था |

राजू भी कभी – कभार अपने पिता के साथ जंगल में घूमने जाता | हरा – भरा जंगल उसे बहुत अच्छा लगता था | पहाड़ियों पर फैले जंगल में चारों ओर प्राकृतिक सुषमा बिखरी पड़ी थी | विभिन्न प्रजातियों के रंग बिरंगे फूल, अनेक प्रकार के पक्षी और जंगली जानवर भी देखने को मिलते | पिताजी से पूछ – पूछकर राजू इन सबको उनके नाम और विशेषताओं से पहचानने लगा था |

राजू बुद्धिमान होने के साथ चंचल भी था | जंगल मे दोनों हथेलियों को जोड़कर गोल – गोल भोंपू जैसा बना लेता | फिर मुँह के पास ले जाकर पक्षियों और जानवरों की आवाजों की नकल करता | जब वह “कूssss कूssss” की सीटी जैसी आवाज निकालता तो आस-पास किसी पेड़ पर बैठी कोयल भी “कूssss कूssss” की एकदम से रट लगा देती | वास्तव में कोयल भ्रम में पड़ जाती थी | वह समझती कि कहीं से उसकी सहेली उसे पुकार रही है | वह अपनी सहेली को उसी सुर में जवाब भेजने लगती | राजू को उससे जवाबी “कूssss कूssss” की धुन सुनना बड़ा अच्छा लगता था | उसे खूब मजा आता |

जब वह पेड़ पर बैठे बंदरों से “कीssss कीssss, खीssss खीssss” करके बात करता तो बंदर भी उसे ऐसा ही करके चिढ़ाते | कभी – कभी वे पेड़ों से फल तोड़कर राजू के ऊपर फेंकते | ये फल राजू उठा लेता और आराम से खाकर अपना पेट भी भर लेता था |

हालाँकि राजू के पिताजी प्रायः उसको समझाते थे – “ बेटा ! इस तरह किसी भी पक्षी या जानवर को परेशान करना अच्छी बात नहीं है |”

लेकिन वह कब मानता ? वह तो मानो इन पशु – पक्षियों की भाषा समझने लगा था | राजू मानता था कि वह किसी को परेशान नहीं करता | बल्कि उनसे उन्हीं की भाषा मे बातें करता है | उनके साथ एक प्रकार का खेल खेलता है | जब उसके पिताजी लकड़ियाँ काट रहे होते थे, तब वह ऊबता रहता था | अतः समय बिताने के लिए वह इसी प्रकार जंगल के पशु – पक्षियों में घुल मिल जाता था |

वह पेड़ – पौधों की पहचान में भी विशेषज्ञ हो गया था | कई प्रकार के फल, फूल, जड़ी – बूटियाँ और औषधियाँ भी राजू अच्छी तरह पहचानने लगा था | पाँच – छह बरस में ही वह अपनी उम्र से ज्यादा समझदार लगने लगा था | कुल मिलाकर राजू को जंगल खूब रास आता था | घना और खतरनाक जंगल उसके लिए किसी भय का प्रतीक नहीं, बल्कि अच्छे दोस्त जैसा हो गया था |

राजू की माँ एक सरल और सीधी – सादी गृहणी थी | वह अपनी माँ से बहुत प्यार करता था | माँ भी उसको खूब प्यार करती थी | वह घर पर रहकर सबके खाने पीने का इंतजाम करती | लकड़ी के खिलौने भी बनाती | जब राजू पिताजी के साथ जंगल नहीं जाता था, तो सारा दिन माँ के साथ खेलता रहता | माँ जब फुर्सत में होती, तो उसे खूब कहानियाँ सुनाती | राजा – रानी की, देवताओं और राक्षसों की, परियों और बूढ़ी जादूगरनी की भी |

ये कहानियाँ राजू के अन्तर्मन मे गहरे पैठने लगी थी | हालांकि माँ यह भी कहती थी कि अब इन सब का जमाना नहीं रहा | राजा – रानी, देवता – राक्षस, बूढ़ी जादूगरनी और परियाँ अब कहीं नहीं देखी जाती | शायद यह सब सच नहीं होता | लेकिन राजू तो छोटा बच्चा था | जो उसके बालमन ने एक बार सुन लिया, उसकी कल्पना में बैठ गया | इन कहानियों को अब उसके दिमाग से निकालना मुश्किल था |

काफी दिनों तक इसी तरह सब ठीक चलता रहा | लेकिन फिर एक दिन कुछ ऐसा हुआ कि राजू की दुनिया ही बदल गयी |

उस दिन की बात, दोपहर होने को थी | राजू को ज़ोरों से भूख लगी | कहने लगा - “माँ ! मुझे भोजन चाहिए |”

-“अरे, सुबह तो नाश्ता किया था, इतनी जल्दी फिर भूख लग गयी |”

-“हाँ माँ, बड़ी ज़ोर की भूख लगी है |”

-“अच्छा बेटा, खिलौने बनाने में थोड़ी देर लग गयी शायद | अब भोजन बनाने जा रही हूँ | बस थोड़ी देर रुक जाओ |”

घर में उस समय तक दोपहर का भोजन नहीं बना था | लेकिन राजू बार – बार खाने की जिद करने लगा – “माँ मुझे तुरन्त कुछ खाने को चाहिए | भूख के मारे ऐसा लग रहा है जैसे पेट में चूहे कूद रहे हैं | थोड़ी देर में बिल्ली भी घुस आयेगी तो ?”

उसकी बात से माँ अनायास ही हँस पड़ी | उसने कुछ पल सोचा | फिर बोली – “अच्छा, आओ बाग में चलते हैं | वहाँ तुम्हारे लिए कुछ फल तोड़ देती हूँ | तुम उसे तुरंत खाकर अपनी भूख मिटा सकते हो | फिर तुम्हारे पिताजी के जंगल से वापस लौटने तक मैं आराम से भोजन बना लूँगी |”

राजू मान गया | वह अपनी माँ के साथ घर से निकला | पास की पहाड़ी पर सेब के कुछ पेड़ थे | माँ वहीं जा पहुँची | ऊपर की डाल पर लाल – पीले रंग के सुंदर – सुंदर पके हुए फल लगे थे | उनसे भीनी – भीनी मीठी और स्वादिष्ट सी लगने वाली सुगंध आ रही थी | माँ के पास लंबे बाँस से बनी फल तोड़ने वाली एक लग्घी थी | वह उससे फलों को तोड़ने का प्रयास करने लगी | लेकिन फल काफी ऊँचाई पर थे | पेड़ की डालियों के घने झुरमुट में लग्घी ठीक प्रकार से फलों तक पहुँच नहीं पा रही थी |

राजू की माँ बार – बार प्रयास करती | वह उचक – उचक कर फलों को लग्घी में फँसाने की कोशिश करती | लेकिन वह सफल नहीं हो पा रही थी | उधर सुगंधित – मीठे फलों को देखकर राजू की भूख और ज्यादा बढ़ती जा रही थी | वह बार – बार माँ से से जिद करने लगा – “माँ जल्दी करो | मेरे पेट में अब चूहों के साथ – साथ भूखी बिल्ली भी दौड़ लगाने लगी हैं |”

माँ हँसकर बोली - “हाँ – हाँ, बेटा! बस हो गया | ये देखो, सेब टूट कर नीचे आने ही वाला है |”

वे एक पहाड़ी पर थे | इसके नीचे सैकड़ों फुट गहरी खाईं थी | पेड़ के पास में ही एक ऊँची चट्टान थी | राजू की माँ ने सोचा कि वह इस ऊँची चट्टान पर चढ़ जाए तो उसकी लग्घी इन फलों तक पहुँच जाएगी | बस, यही सोचकर वह उस चट्टान पर चढ़ गयी | यहाँ से पेड़ के फल और नजदीक दिखने लगे थे | अब लग्घी फलों तक आराम से पहुँच गयी | फलों को लग्घी में फँसा कर माँ ने खींचा तो इस बार कई सेब एक साथ टूटकर नीचे आ गिरे |

राजू खुशी – खुशी वे सेब उठाकर खाने लगा | बड़े अच्छे और स्वादिष्ट फल थे | उसकी भूख मिटने लगी | उधर उसकी माँ ने सोचा कि जब यहाँ तक आयी ही है, तो कुछ फल राजू के पिताजी के लिये भी तोड़ ले | वह थोड़ा और ऊँचाई पर लगे फलों तक उचक – उचक कर लग्घी को पहुँचाने की कोशिश करने लगी |

इसी बीच सर्द हवा का एक तेज झोंका आया | उससे राजू की माँ को अनायास ही तेज ठंड का अहसास हुआ | उसने एक हाथ से लग्घी संभाली और दूसरे हाथ से हवा में उड़ता साड़ी का आँचल खींचकर शरीर पर लपेटने की कोशिश करने लगी | ऐसा करते हुए उसका संतुलन बिगड़ गया और वह ऊँची चट्टान पर बुरी तरह डगमगा गयी |

एक हाथ में पकड़ी बाँस की लंबी लग्घी उसकी साड़ी में उलझ गयी थी | दोनों को संभालने में उसका संतुलन कुछ ज्यादा ही बिगड़ गया | इससे वह बिलकुल भी सम्भल न सकी और सीधे पहाड़ी से नीचे फिसलती चली गई | एक ज़ोर की चीख गूँजी और देखते ही देखते नीचे की सैकड़ों फुट गहरी खाई में राजू की माँ अदृश्य होती चली गयी |

राजू ने यह दुर्घटना देखा तो बुरी तरह घबरा गया | वह जोर – ज़ोर से चीखने लगा - “माँssssss माँsssss” |

लेकिन वहाँ उसकी पुकार सुनने वाला अब कोई नही था | राजू की एक पुकार पर दौड़ने वाली माँ कुछ भी सुन पाने की स्थिति में नहीं रह गयी थी | वह घाटी की गहराइयों में गायब हो चुकी थी | राजू की पुकार के जवाब में घाटी से सिर्फ “माँsssss – माँsssss” की प्रतिध्वनि ही वापस लौट रही थी | वह काफी चीखा – चिल्लाया | इधर – उधर भागा - दौड़ा | बेहद परेशान हुआ | उसने दूर – दूर तक किसी मदद की आशा से नजरें दौड़ाई , लेकिन कुछ न दिख , कुछ भी समझ न आया | वहाँ उसकी मदद के लिए न कोई सामान था, न आस-पास कोई व्यक्ति ही था |

यहाँ अपनी माँ की मदद करना उसके लिये कतई संभव नहीं था | उसे जैसे ही समझ में आया कि इस गहरी घाटी से माँ को निकालने में उसका कोई वश नहीं चलेगा | वह घबराकर रोते – बिलखते हुए घर की ओर दौड़ पड़ा |

---------क्रमशः