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गौ-पशु



गौ-पशु(कहानी )
दिल्ली में जवान लड़के को कहीं भी मिल जाती हैं लड़कियाँ, इस तरह जिस तरह 99परसेंट मार्क्स वाले प्लस टू पास को कहीं भी एडमिशन मिल जाता है।बिहार के खानदानी सजीले लड़के जिनकी जुबान पर सभ्यता और सोच में हल्का सा सनकीपन है उनको और जल्दी मिल जाती हैं।अब यह बात अलग है कि कोई वाराणसी से हो या गोरखपुर से या भदोही मिर्जापुर से दिल्ली में बिहारी ही समझ लिया जाता है,फिर झारखंडी तो बिहारी है ही।
कई लोग तो इतने फालतू होते हैं,इतने फालतू होते हैं न जैसे दिल्ली के पंजाबी।तमीज की कमी रहती है इनमें। देसी घी के पराँठे और शाही पनीर से बनाया इधर उधर से झांकता थुलथुलाता शरीर,रहता है इनका।उपर से बेतरतीब गाड़ी चलाने की आदतें,फिर जिद्दी-ढीठ बच्चों जैसी हरकतें! कसम से अगर जाट,गूजर और मुसलमानों के लड़कों के कसरती जिस्म न दिखें तो दिल्ली रहने लायक कभी न बने।
हुआ यूं कि एक बिहारी लड़के को गुड़गांव के बार में जाने की आदत हो गई।आदत क्या हो गई समझो लत लग गई।होशियार लड़का था,इसलिए अच्छी कंपनी में जॉब लगनी ही थी।कंपनी गुड़गांव में थी।द्वारका में फ्लैट ले लिया था।
नाम ?अजी नाम मे क्या धरा है।
अभिषेक, अनिरुद्ध कुछ भी कह लीजिए।अभिषेक सिंह,श्रीवास्तव,चौधरी क्या??ओह तो ये बात है।सही कहा !बिहार में सरनेम ही तो क्लास बनाता बिगाड़ता है।
तो चलो अभिषेक सिंह कह लेते हैं।सिंह सरनेम हिंदू धर्म के भीतर जाति निरपेक्ष है।सिख तो लगाते ही हैं,ठाकुर साहब,यादव जी ,जाट देवता और कोई भी ओ बी सी धड़ल्ले से लगा सकता है।
अब अभिषेक सिंह को बार में जाने की लत लग गई।गुड़गांव में एक तरफ तो गगनचुंबी अपार्टमेंट काम्प्लेक्स, मॉल और एम एन सी के कांच के चमकदार ऑफिस नज़र आते हैं।दूसरी तरफ पंच सितारा अस्पतालों की भरमार है।इन अस्पतालों में काम करने वाले डॉक्टर और नर्स,फार्मासिस्ट और मैनेजर किसी दूसरी दुनिया के प्राणी नजर आते हैं।हरे नीले कपड़ों में सब के सब गौरवर्णीय और स्वस्थ लोग मीठे और डपट भरे स्वर में एलोपथिक उपनिषद के गूढ़ ज्ञान से भरे धीर गंभीर स्वर में किसी की मृत्यु और जीवन की निरपेक्ष भाव से घोषणा करते चलते हैं।यही लोग जब बार,होटल या बाजार में दिखाई पड़ते हैं तो हम तुम लोगों की तरह सामान्य प्राणी के समान ही लगते हैं।अभिषेक सिंह की भी एक ऐसी नर्स से मुलाकात हो गई।जहाँ अभिषेक बैठा था,उसके पास वाली कुर्सी पर वह बियर का गिलास लेकर चुपचाप आकर बैठ गई।उसका सारा ध्यान नाचते हुए जोड़ों पर था इसलिए अभिषेक उसका चेहरा ध्यान से देख पाया।उसकी राइट प्रोफाइल उसके उत्तर पूर्व से होने का जिक्र कर रही थी।लेकिन सामने से वह कैसी दिखती थी इसका अंदाजा लगाना जरा मुश्किल था।हो सकता है मिक्स्ड रेस हो,उसने सोचा।मां उत्तरपूर्व की हो और पिता उत्तर भारतीय!आजकल पढ़ी लिखी लड़कियाँ दिखने में कहीं की लगती हैं और वास्तव में होती कहीं और की हैं।अभी उस दिन ही वह इटली के किसी प्रदेश की लड़की को जाटनी समझ बैठा था।चलो,उसे कौनसा शादी करनी है जो जाति,वर्ण, गोत्र आदि की चिंता करे।
अगर आप किसी को लगातार देखते रहेंगे तो उसका ध्यान इस तरफ चला ही जाता है।लड़कियों में तो वैसे भी छटी इंद्री होती है।उस लड़की ने भी अभिषेक को पलट कर देखा।उसे देखते पाकर अभिषेक की नजरें पल भर के लिए उससे टकराई,फिर अभिषेक ने नजरें घुमा ली।घुमाते घुमाते भी उसने देख लिया कि लड़की उसे देखकर मुस्कराई।इसलिए उसने हिम्मत करके उसे दुबारा देखा।बेशक लड़की खूबसूरत थी।उसके सौंदर्य में नमक भी था और कशिश भी।
लड़की को मुस्कराते देख उसकी भी हिम्मत बढ़ी और उसने लड़की को नज़र भरके देख लिया।चेहरे पर से नज़र हटाकर उसका मन करा कि उसके तन को नाप ले।लेकिन उस तरह देखना शायद धृष्टता होगी।सेकेंडरी सेक्सुअल कैरेक्टर्स में स्तन सबसे अधिक आकर्षक होते हैं।बचपन में दुग्धपान के समय से स्तनों के साथ जो रागात्मक संबंध स्थिर होता है वह जीवन भर अवचेतन में अवस्थित होता है।उसके दर्शन मात्र से जो अनुभूति होती है,वह स्पर्श से होने वाले सुख से हजार गुणा होती है।अर्थशास्त्र का लॉ ऑफ़ डिमिनिशिंग यूटिलिटी के प्रभाव के कारण पति के लिए पत्नी के वक्षों का आनंद सीमित रह जाता है। लेकिन जिस व्यक्ति को अभी किसी लड़की के बदन पर अधिकार प्राप्त नहीं हुआ है,वह उसके उतुंग शिखरों जैसे वक्षों पर अपना झंडा फहराने की कल्पना ही करके उसाँस भर सकता है।लेकिन अगर वह थोड़ा सा साहस दिखाए तो यह ऐसा कठिन कार्य तो नहीं है।
क्योंकि स्पर्शसुख की अनुभूति प्रेमिका के लिए भी सुखद और रोमांचक होती है।स्तन उत्तेजना का प्रभाव रीढ़ की हड्डी से होकर जननांगों पर पड़ता है।उसने कहीं पढ़ा था कि 'सदैव सेव्यं स्तंभारवत्य' स्तन के भार से झुकी हुई नायिकाओं में शालीनता का पूरा समावेश रहता है।अभिषेक को ऐसी ही प्रेमिका की तलाश थी जो उसके अधिकार भाव को माने।सुंदर इतनी हो कि उसे देखकर उस पर दृष्टि ठहर ठहर जाए।
वह उसके सोंदर्य और रूप का पान करते करते खो सा गया था कि उसे उसकी खनखनाती हँसी सुनाई दी।
उसके हँसने में उपहास का पुट भाँप वह परे देखने लगा।
"आपको पहले कभी यहाँ नहीं देखा?"
अभिषेक ने मुड़कर उसे देखा।वह उसी से संबोधित थी लेकिन फिर भी डबली श्योर होने के लिए उसने अपनी तरफ़ ही इशारा किया।
"जी!आपसे ही मुखातिब हूँ,हैंडसम मैन।"वह दोबारा खनखना कर हँसी।
"जी हां!आज ही आया हूँ।और आप रेगुलर आती हैं।"उसने सवाल किया।
"नहीं!सिर्फ फ्राइडे को।उस दिन मेरा ऑफ रहता है।"
'अच्छा!कहाँ काम करती हैं आप!!पाकिस्तान में?'
वह फिर हँस दी।
"मजाक अच्छा है।मैंने इस एंगल से नहीं सोचा था।वैसे मैं नर्स हूँ।एक पाँच सितारा हॉस्पिटल में बूढ़ों के साथ जवानी गला रही हूँ।हाय!किस्मत!!"
उसके स्वर में बनावटी अफसोस था।लगता था वहाँ की नौकरी को वह एंजॉय कर रही थी।
"क्यों?कोई पति या बॉयफ्रेंड नहीं है।"
"है,एक!बॉयफ्रेंड!"वह ठंडी सांस भरती हुई बोली।
"क्यों!क्या हुआ!"
"कुछ नहीं।पशु है और मुझे भी पशु बनाकर रखता है।'वह अपनी आवाज़ में चिढ़ भरी विवशता भर कर बोल रही थी,"वैसे तो हर मर्द औरत को पशु ही समझता है।लेकिन मेरे वाला उसे प्रैक्टिस भी लाता है।गले में भी पट्टा डालकर रखता है मुझे।"
उसने कहते हुए अपनी गर्दन की तरफ इशारा किया तो अभिषेक का ध्यान भी उधर गया।गर्दन पर इस तरह का पैटर्न बन गया था मानो उसे बहुत दिन तक कोई पट्टे जैसी चीज पहनाई गई हो।इससे पहले उसने ऐसा निशान कुत्ते के गले में देखा था।पट्टे की जगह की स्किन बाहर की स्किन से ज्यादा गोरी थी जैसी बिकिनी पहन कर टैन करने से स्किन दोरंगी हो जाती है।
"क्या सचमुच!मैंने तो समझा तुम मुहावरे में बात कर रही हो।"
"काश यह मुहावरा होता।लेकिन अब तो जिंदगी मुहावरा बनकर रह गई है।काश मैंने ऐसे आदमी से प्यार न किया होता।मुझे पहले दिन से पता था कि वह आदमी नहीं जानवर है।लेकिन मुझे वहम था कि मेरे प्यार में इतनी शक्ति है कि वह सुधर जाएगा।लेकिन नहीं,वह सुधरने की बजाय सनकी हो गया है।तुम्हें मालूम है उसने पिछले फ्राइडे मेरे साथ क्या किया?उसने मेरे पट्टे में कुत्ते वाली जंजीर डालकर मुझे निर्वस्त्र करके बाथरूम में बंद कर दिया।मैंने दरवाजा खोलने के लिए कहा तो बोला,ऐसे नहीं!इस तरह से रिक्वेस्ट करो जैसे कोई कुतिया करती है।भौंक कर!दरवाजे पर पंजे पटककर!मेन्टल, उसने मुझे इतना ह्यूमिलेट किया कि मेरा सुसाइड करने का मन करने लगा।फिर मैंने सोचा,मेरे मरने से उसे क्या फ़र्क पड़ेगा।वो कोई नई बकरी ढूंढ लेगा "
वह हँसने लगी।कभी मैं ख़ुद को बकरी कहती हूँ,कभी कुतिया।उस मेन्टल के साथ मैं भी मेन्टल हो गई हूं।
उसके हँसने में गहरी टीस को भाँप करके अखिलेश ने उसके हाथ पर हाथ रखा।उसका हाथ लाश के हाथ की तरह ठंडा और निर्जीव था।न उसने अपना हाथ वापिस खींचा न उसने अपना हाथ उठाया।लेकिन हाथ का स्पर्श पाकर धीरे धीरे उसके बेजान हाथ में जुम्बिश हुई।मादा हाथ ने नर हाथ की उंगलियों में अपनी उंगलिया फंसा कर सहलानी शुरू की।इस सहलाहट ने नर के मन में मादा के विशालकाय कुम्भक स्तनों पर हाथ फिराने की आदिम लालसा जागृत कर दी।लेकिन पढ़े सधे मन ने उस पिपासा को अशोभनीय कहकर खारिज कर दिया।नर की आंखे उन अजेय शिखरों पर सैलानी की भांति दर्शन करके लौट लौट आती थी।अभिषेक को उस आदमी से ईर्ष्या हो गई जिसे इस लड़की ने इन रसीले गुदाज़ पपीतों का मालिकाना हक दिया था और उस आदमीनुमा जानवर या जानवर नुमा आदमी को इनकी रत्ती भर कद्र न थी।
वह ऐसे बैठी थी कि उसका यहाँ युग परिवर्तन तक बैठे रहने का इरादा हो।उठी तो ऐसे जल्दी में थी कि 'ओ के,बाय!अगले फ्राइडे को मिलेंगे।'कहकर यह जा वह जा। और चली गई।उसके पीछे से झूलता काँच का दरवाजा किसी के गुजर जाने का संदेसा देते देते झूल झूल कर थम गया।
अगला शुक्रवार एक हफ्ते दूर था।अभिषेक उसका इंतजार अगले दिन से ही करने लगा।अभिषेक रोजाना उस बार में जाता।निश्चित जगह पर बैठता और खामोशी से कभी बियर,कभी व्हिस्की, कभी वाइन का पेग हौले हौले चुसकता रहता।बियर का मद्धम नशा उसकी आवाज,उसके बैठने,पहरने के सलीके की मंदी आँच उसके जिगर में सुलगाये रहता।यह एक हफ्ता वह उसकी याद में अलग अलग तरीके से गुजारना चाहता था।व्हिस्की उसकी याद को और भड़का देती।उसके तन में उस लड़की के तन को पाने की लालसा दोगुनी होकर भड़क भड़क जाती।मन करता उसके हॉस्पिटल में उसकी काम की जगह पर जाए और दूर से ही सही उसे बगैर बताए उसे निहार ले।आंखों से पी ले।कई बार उसने गूगल सर्च कर विभिन्न पोर्न साइट्स पर नग्न युग्मों के मैथुनरत वीडियो देख डाले।लेकिन उसे न तसल्ली होनी थी न हुई।
जब उसकी बर्दाश्त के बाहर हो गया तो उसने कॉलगर्ल साइट से एक लार्जेस्ट ब्रा साइज की कॉलगर्ल को अपने रहने की जगह पर बुलाया।लेकिन जैसी ही वह आई।उसे दरवाजे से ही उसकी फ़ीस देकर उसे विदा कर दिया।वह जाते जाते अपना कार्ड देते हुए बोली,"थैंक्स सर!यू आर ए जेंटलमैन।आई विल डू फ्री सर्विस इन नेक्स्ट अपॉइंटमेंट।एनी टाइम एनी सर्विस।"
वह चली गई तो उसने कुछ सोचकर उसका कार्ड कई टुकड़े करके फ्लश में बहा दिया।ऐसा करके उसे बहुत तसल्ली हुई और वह आराम से सो गया।
अगले दिन वह सुबह उठा,मोबाइल फोन में तारीख और दिन पर निगाह डाली।अभी बुधवार ही था।आज और कल का दिन!कैसे कटेगा।उसने दफ़्तर से छुट्टी ली और शहर छोड़कर लैंड्सडाउन चला गया।दो दिन सुनसान पहाड़ों के बीच और वीरान नदी के किनारे किनारे बहुत दूर पैदल चलकर कटे।
शुक्रवार सुबह वापिस आकर वह दफ़्तर चला गया।
शाम को उसने तैयार होने में थोड़ा ज्यादा वक्त लगाया।कई बार दर्पण में देखा और कुछ कमी पाकर उसे दूर किया।जब वह निवास स्थान से निकला तो साढ़े आठ बज चुके थे।
नौ बजे के करीब वह बार में पहुंचा।उस दिन वहाँ काफ़ी भीड़ थी।लगता था सारा हॉस्पिटल स्टाफ वहाँ आया हुआ था।लेकिन उसे अपने वाली के कहीं दर्शन न हुए।उसे अहसास हुआ कि उसे उसका मोबाइल नंबर तो कम से कम ले लेना चाहिए था।
उसने सोचा शायद रिसेप्शन से कोई मदद मिले।रिसेप्शनिस्ट एक खूबसूरत लड़की थी।उसके सामने जाकर जब अभिषेक खड़ा हुआ तब उसे अहसास हुआ कि उसे तो अपने वाली का नाम भी नहीं मालूम।शायद उसने बताया था या शायद उसने बताया ही न हो।
'यस!मे ऑय हेल्प यू!!'
उसकी मीठी और सहयोगी आवाज सुनकर अभिषेक की हिम्मत बढ़ी।
'ऑय एम कन्फ्यूज्ड ए लिटल!लास्ट फ्राइडे एक खूबसूरत लड़की मेरे साथ बैठी बातें कर रही थी।शायद किसी हस्पताल में नर्स है वह लड़की।उसने आज यहीं मिलने का वादा किया था।लेकिन अभी तक वो आई नहीं।क्या आप कुछ हेल्प कर सकती हैं।"
"वो आज नहीं आएगी।"
रिसेप्शनिस्ट के कुछ बोलने से पहले ही उसके पीछे खड़ा शख्स बोला।
अभिषेक ने मुड़कर देखा,एक छ फुट लंबा सुदर्शन सिख युवक मुस्करा रहा था।
"यार!तुम लोगों की प्रॉब्लम क्या है।एक वीक गुजर गया।अभी तक तुम एक दूसरे का नाम भी नहीं जानते।मोबाइल नंबर भी नहीं लिया।हमारे जैसे शरीफ बंदों को परेशान करके रखा हुआ है।"
सिख युवक ने हंसते हुए खुद और रिसेप्शनिस्ट की तरफ इशारा किया।
"बाय द वे।मेरा नाम हरजीत है और यह रखो मेरा विजिटिंग कार्ड!मैं उसी हस्पताल में रेजिडेंट हूँ जहाँ तुम्हारी मैना नर्स है।एक हफ्ते से उसने तुम्हारी बातें इतनी बार दोहराई हैं मुझे याद हो गई हैं।'
"मैना नाम है उसका!"
"नहीं!यह तो मैंने रखा है।और तुम्हारा नाम तोता रखा है!"वह हो हो कर हँसने लगा।
अभिषेक खड़ा खड़ा उसकी हँसी रुकने की वेट करता रहा।
जब उसकी हँसी रुकी तब वह बोला,"सॉरी।शायद तुम्हें मेरा जोक पसंद नहीं आया।मारिया कल भी तुम्हें ढूंढती हुई आई थी।तुमने बताया था कि तुम रोज आते हो।लेकिन तुम आये ही नहीं।"
तो उसका नाम मारिया है।अब वह कभी उसका नाम नहीं भूलेगा।
"मारिया आज क्यों नहीं आई हरजीत जी!"
"वो बिजी है।एक करोड़पति ग्राहक की टाँग टूट गई थी।उसने उसे हायर किया है।आजकल वह उस ग्राहक के घर पर डी एल एफ में रह रही है।एक महीने की ड्यूटी है।उसके बाद वह फ्री होगी।अब तुमसे एक महीना तो इंतजार होगा नहीं।और ये करोड़पति पूरा कुलभूषण खरबंदा है।ड्यूटी पर मोबाइल फोन रखना स्ट्रिक्टली बेन कर रखा है।लेकिन पैसा अच्छा दे रहा है।इसलिए मारिया चली गई।"
अभिषेक निराश सा हो गया।
हरजीत उसके कंधे पर हाथ रखता हुआ बोला,"अब धैर्य रखने के सिवा कुछ चारा नहीं है।मैं कोशिश करूंगा कि तुम्हारी इस बीच उससे बात हो सके।उसने उसे एक और कार्ड दिया।अभिषेक ने पढ़ा,
'मारिया जमसेनपा,रजिस्टर्ड नर्स,साउथ डेल्ही नर्सिंग ब्यूरो,भीकाजी कामा प्लेस,
नई दिल्ली
ऊपर दो मोबाइल नम्बर लिखे थे।
"क्या ये नम्बर उसके हैं?"
नहीं,ये ऑफिस के नम्बर है।ज़्यादा से ज्यादा एक मैसेज छोड़ा जा सकता है।"
हरजीत उसका हाथ पकड़ता हुआ बोला,"मैंने शायद आपका नाम नहीं पूछा।"
दोनों ने बार टेंडर से एक एक पेग लिया जिसका भुगतान हरजीत ने किया,फिर वहीं उसी जगह पर बैठ गए।
डांस फ्लोर पर एक जोड़ा बेहतरीन प्रदर्शन कर रहा था।शोर और सिगरेट के धुँए से परेशानी अनुभव करते हूए अभिषेक बोला,"आओ!बालकनी में खड़े होते हैं।वैसे मेरा नाम अभिषेक हैं।यह रखिये मेरा कार्ड!"
हरजीत और अभिषेक बालकनी की रेलिंग से पीठ टिकाकर खड़े हो गए।उनकी पीछे सायबर सिटी गुडगांव का गगनचुम्बी अनंत विस्तार था।मकानों और अपार्टमेंट कॉम्प्लेक्सों के पीछे अरावली की पहाड़ी कहीं कहीं झाँक रही थी।लेकिन रात होने की वजह से उसका धुँधला अहसास भर हो रहा था।
"मारिया कैसी लड़की है।तुम तो उसके काफी करीब हो।"अभिषेक ने महसूस किया कि उसका स्वर हल्का सा भीग गया था।
ठीक ही है।लड़कियों जैसी लड़की है। ऐसे मर्द के साथ रहना चाहती है,जो उसे अपने अधीन रखे।अपना अधिकार जताए।उस मर्द उसका मालिक हो।ऐसी बातें वह अक्सर करती रहती है।थोड़ी पागल है,थोड़ी समझदार!बट यू डोंट वरी।सभी लड़कियां ऐसी होती हैं।शी इज़ ए गुड वाइफ मैटेरियल।"
"लेकिन अगर वह ऐसा ही मर्द चाहती है तो उसे मौजूदा बॉयफ्रेंड से क्या दिक्कत है जो उसके गले में पट्टा डालकर रखता है।"अभिषेक ने हैरानी व्यक्त करते हूए कहा।
"उसका कोई बॉयफ्रेंड नहीं है।"हरजीत उसांस भरते हुए बोला,"गले में पट्टा उसके फादर बांधते थे जब वह अरुणाचल में अपने घर में रहती थी।उसका फादर डोमिनेंट नेचर का था,उसके घर में सभी औरतें पट्टा पहनती थी।उसका पिता मार पीट करने वाला क्रूर आदमी था।मारिया की तीन माएँ थी।उसके घर में औरतें कमाती थी और आदमी बैठकर खाता थे।उसका बचपन बड़ा डिस्टर्ब गुजरा।अब भी वह कभी खुद को अकेली और अनसेक्यूर महसूस करती है तो गले में पट्टा पहन लेती है।एक बार तो उसने पूरा साल पट्टा नहीं उतारा था।सोती भी बाथरूम में थी,निर्वस्त्र!बॉयफ्रेंड वाली स्टोरी उसकी अपनी घड़ी हुई है।"
"आपको कैसे पता!उसने खुद बताया।"अभिषेक अविश्वास से बोला।
"नहीं!उसकी एक क्लोज़ फ्रेंड ने बताया।विश्वास मुझे भी नहीं हुआ था।इसलिए डायरेक्टली उससे पूछ लिया।
"मैं चाहता था कि वह कहदे सब झूठ है।लेकिन वह मेरी बात सुनकर रोती हुई भाग गई।"हरजीत अफसोस करता हुआ बोला,"पुअर गर्ल!"
उस दिन के बाद अभिषेक कभी उस बार में नही गया।गाँव से उसके माता पिता आये हुए थे ।इसलिए पीना वैसे ही बंद था।उसकी माँ उसकी शादी पर जोर दे रही थी।उसने एक भले इज्जतदार घर की लड़की देख रखी थी।लेकिन अभिषेक को रुचि न लेते देख उसके पिता बोले,"अभिषेकवा!तुमने कोई और लड़की देख रखी है क्या!हमें कोई एतराज नहीं है वो भले ही किसी जाति की हो।"
अभिषेक पिता की बात सुनकर मुस्कराया।
एक महीना कैसे बीत गया उसे पता ही न चला।माता पिता गाँव वापिस लौट गए तब वह उसी बार में गया।मारिया की याद उसके मन में धुंधली सी रहा गई थी।उस दिन शुक्रवार भी नहीं था फिर भी उसकी नजरें उसे ही तलाश कर रही थी।
उसे भीड़ में हरजीत दिखाई दिया।उसने दो तीन बार उसे आवाज लगाई,तब जाकर उसने मुड़कर देखा।
वह उसके पास आया।
"मारिया के बारे में कोई खबर नहीं है।उसने अपनी जॉब छोड़ दी है।फेसबुक पेज भी डिलीट कर दिया है।लगता है मैना तोते को छोड़कर किसी सैयाद के जाल में फंस गई।"
वह फीकी हँसी हंसकर बोला।अभिषेक उसे खड़ा देखता रहा
इतने में किसी ने हरजीत को आवाज दी और वह वहाँ से चला गया।
शनिवार को अवकाश था।अभिषेक देर तक सोया।उठा तो सिर में भयंकर दर्द था।मारिया को पाने की अंतिम आशा भी मिट गई थी।लेकिन टीस बरकरार थी।उसने सिरदर्द की डबल डोज़ गटक ली।लेकिन आराम महसूस नहीं हुआ।शरीर में टूटन और थकान थी। लगता है कि बुखार होगा।उसने बाहर निकलने का फैसला किया।लेकिन जाए कहाँ।मेट्रो पकड़ कर
वह भीकाजी कामा पहुंचा।उसने घर से निकलते वक्त मारिया के विजिटिंग कार्ड का फोटो खींच लिया था।एक बार एड्रेस को दोबारा पढ़कर उसने उस दफ़्तर को तलाश करना आरंभ किया।थोड़ी देर में ही दफ़्तर मिल गया।एक पुरानी लिफ्ट में चढ़कर वह उससे भी अधिक पुराने गलियारे को पार करता हुआ छोटे से आफिस में पहुंचा।छोटी सी जगह में छोटा सा रिसेप्शन था।एक बोरियत भरी बुढिया वहाँ बैठी थी।
उसने अपने मोबाइल की गैलरी में मारिया के नाम वाले कार्ड को दिखाया।
"मुझे इस नर्स मारिया से मिलना है।"
उस बुढिया के चेहरे से ऐसा बिल्कुल नहीं लगा कि उसने उसके सवाल को सुना भी हो।जवाब देने की बात तो दूर थी।
वह बहुत देर तक बुढ़िया की आंखों में आंखें डालकर देखता खड़ा रहा।
आखिर में बुढ़िया के चेहरे पर जमी बर्फ़ थोड़ा सा पिघली।बुढ़िया बेहद सर्द आवाज में बोली,"मारिया नौकरी छोड़ चुकी है।कोई और नर्स भेज दूंगी।"
"नहीं।मुझे मारिया से पर्सनल काम है।"
"वो तो एक सेठ की पर्सनल सर्विस में रहती है।वो तुमको नहीं मिलेगी।"
"उस सेठ का एड्रेस मिलेगा।"
यह सुनकर बुढ़िया ने रजिस्टर के कई पन्ने पलटे।फिर एक पन्ने पर रुकी और उँगली से एक प्रविष्टि की तरफ इशारा किया,
"इसे नोट कर लो।"
अभिषेक ने नोटपैड खोल कर एड्रेस टाइप किया।
डी एल एफ के एक पॉश एरिया का एड्रेस था।
सेठ का नाम एन बी शेरपा था।शेरपा नेपालियों में मिलते हैं,उसने सोचा और वापिस लौट लिया।
उसने एक उबर करने का फैसला किया।एप्प पहले से ही डाउनलोड था।दस मिनट से भी कम समय में कैब आ गई।चालीस मिनट सागर के जल की तरह विशाल महानगर पर तैरने के बाद कैब ठिकाने पर पहुँच गई।कैब ने उसे कोठियों के एक ब्लॉक के गेट पर छोड़ दिया था जिसके सिक्योरिटी गार्ड आने वाली गाड़ियों में ही उलझे हुए थे।किसी ने उसकी तरफ ध्यान न दिया।शेरपा की कोठी का नम्बर तिरासी था और यह नम्बर हजार हजार ग़ज के दो प्लॉटों को जोड़कर बनाए गए तिमंजले बंगले के नेम प्लेट पर पीतल के अक्षरों में लिखा था।लेकिन उस पर कोई नाम न था।
गेट पर दो हट्टे कट्टे गार्ड दो भयंकर कुत्तों के साथ ड्यूटी पर मुस्तैद थे।जैसे ही अभिषेक गेट की तरफ बढ़ा,एक कुत्ता अपने
पैने दाँत दिखाता ,गुर्राता हुआ झपटा।अभिषेक डर कर एक कदम पीछे हटा, गार्ड ने जंजीर कसकर पकड़ रखी थी इसलिए कुत्ता इससे आगे नहीं बढ़ा।
"क्या काम है!"एक गार्ड ने पूछा।दूसरा गार्ड उसे लगभग घूर रहा था।
"मारिया से मिलना है।वह एक नर्स है।मेरी परिचित है,उसका फोन नहीं लग रहा।इसलिए मुझे खुद चलकर आना पड़ा।"
गार्ड ने अपनी जेब से मोबाइल निकाला और नेपाली भाषा में बात करने लगा।
"एउटा मानिस आयको छे।"अभिषेक ने नेपाली पहले भी सुन रखी थी इसलिए उसे समझ आ रहा था।
"मारिया पहिचानकर्ता हो।"
एक क्षण वह उधर की बात सुनता रहा।
"आई पुग्छौं?"
फिर थोड़ा विराम!
"ठीक छ!"
फिर उसने फोन बंद करके जेब में रखते हुए दूसरे गार्ड से कहा,"यसलाई खोजणुहोस!"
दूसरा गार्ड उसकी तलाशी लेने लगा।
उसका पर्स और मोबाइल उन्होंने रख लिया।जूते और जुराबें उतरवा लिए।एक जोड़ी धुले हुए प्लास्टिक चप्पल उसे पहनने को मिले।
इसके बाद ऑटोमेटिक डोर अंदर से खोला गया।अंदर दो गार्ड और थे
वह गार्ड को देखकर हँसते हुए बोला।
"यसलाई सबैलाई स्वागत छै?"
"वा मेरो लागि विशेष!"
गार्ड की भाव भंगिमा में कोई परिवर्तन नहीं हुआ।उसने इटालियन मार्बल और डार्क ग्रेनाइट के पैटर्न से बने गलियारे में प्रवेश किया जिसका एक साइड रंग बिरंगे पौधों से ढका था।हर एक चीज गृहस्वामी के धनाढ्य और सुरुचिपूर्ण होने की कहानी कह रही थी।गलियारा एक बड़े से आबनूस के दरवाजे के सामने खत्म हो गया।दरवाजा नेपाली मंदिरों के दरवाजों के पैटर्न पर बना था।दरवाजे के ऊपर संकटमोचन हनुमान की मूर्ति आले में विराजमान थी।दरवाजे के दोनों तरफ़ लाल टाइल्स पर विघ्नविनाशक गणपति विराजमान थे।
"फाइन!"उसने सोचा।
तभी ऑटोमेटिक दरवाजा खुला।
सामने बहुत बड़ा हाल था।जो आखिर में जाकर गोलार्ध का रूप ले लेता था।गोलार्ध में सोलह सत्रह सफेद मार्बल के पिलर होंगे जिनके ऊपर एक प्रोजेक्शन गोलार्ध को बढ़ावा देता हुआ निकला था।
उसके आखिर में सीढियां थी,जिससे एक अत्यन्त स्वस्थ,गुलाबी चेहरे वाला शक्तिशाली नेपाली व्यक्ति उतर रहा था।उसके सिर के सारे बाल सफेद थे।उसकी शक्ल से यह अंदाजा नहीं लग रहा था कि उसकी उम्र कितनी थी।वह नजदीक आया तो उसे लगा कि कम से कम साठ साल का तो वह जरूर होगा।नेपालियों की तरह उसका कद छोटा था लेकिन इतना छोटा भी नहीं अभिषेक के कंधे से ऊपर आ रहा था।उसके पाँव पर पट्टी बंधी थी।इस वजह से उसकी चाल में अटकाव और धीमापन था।
उसने अभिषेक से बैठने का इशारा किया।
"सो यू आर नेपाली!"उसने पूछा।
"नो!आई एम फ्रॉम बिहार!आई हैव सम नेपाली फ्रेंड्स!!"
"व्हाई यू वांटेड टू सी मारिया!यू मेट हर ओनली वन्स!"
"आई लव हर!"
उसकी बात सुनकर शेरपा हँसा।
"यू आर लेट यंग मैन!"
"शी इज मैरिड टू हर पैशन!मारिया इज नो मोर!शी लाइक्स टू कॉल हरसेल्फ़ बस्टी!हर न्यू नेम!शी इज माय पेट एंड शी लाइक्स इट वेरी मच!"
वह फिर से हँसने लगा।
हँसते हँसते बोला,"पुअर चैप!शी गेव यू ए चांस!चांस टु बी युर स्लेव!यू लॉस्ट युर चांस!तुम जवान लोगों के साथ यही गड़बड़ है।तुम औरत को इंसान समझते हो।यू थिंक वीमेन ए ह्यूमन बीइंग!दे हैव स्लेव मेंटेलिटी!यू कंट्रोल देम!रूल देम!यूज़ देम!मिल्क देम, दे आर हैप्पीएस्ट क्रिएचर ऑन अर्थ!"
वह फिरसे हँसने लगा था।
"नहीं आप ग़लत कह रहे हैं।औरतें भी उतनी ही इंसान हैं,जितने मर्द!बल्कि मर्दों से कहीं ज्यादा! मारिया एक शानदार पढ़ी लिखी लड़की है,आत्मविश्वास से भरी हुई।आप उसके बारे में ऐसा सोच भी कैसे सकते हैं।
औरतों का पढ़ना लिखना ही उनका मुसीबत बन गया है।तुमने किसी पढ़ी लिखी कामकाजी लड़की को खुश देखा है।तनाव उनके चेहरे पर रहता है।डबल ड्यूटी करते करते उनका शरीर जवाब देने लगता है।औरतें मर्द की ताबेदारी करने और उसके बिस्तर की शोभा बनने के लिए बनी हैं।औरतों को पढ़ा लिखाकर हमने असुरक्षित और कमजोर बना दिया है।दफ्तरों में काम करने वाली औरतें खुद को इतनी लाचार,असहाय और असुरक्षित महसूस करती हैं जितनी मुगलों के हरमों में कनीजें भी नहीं करती होंगी।आओ तुम्हें तुम्हारी पढ़ी लिखी आत्मविश्वास से भरी हुई मारिया को बस्टी के रूप में दिखाता हूँ।"वह अभी भी इंग्लिश में बोल रहा था।
उसने 55 इंची एल ई डी को रिमोट से ऑन किया।सामने स्क्रीन पर जो दृश्य चल रहा था,उसे देख अभिषेक भौंचक रह गया।
दृश्य एक गाय बांधने जैसे बाड़े का सा था।पीछे एक नाँद बनी थीऔर पास ही पानी का टब भरा रखा था।नाँद के पास चमड़े की मजबूत बंटी हुई रस्सी गर्दन में बाँधे काऊ सूट में मारिया चौपाये की तरह खड़ी थी और गौमुख के नीचे से उसका चेहरा झाँक रहा था।वह एकटक कैमरे की तरफ देख रही थी।उसकी सबसे कीमती वस्तु उसके स्तन काऊ सूट से निरावृत बाहर झाँक रहे थे।उन पर इतनी सफाई से काऊ स्किन का पैटर्न पेंट किया गया था कि काऊ सूट की स्किन और स्तनों की त्वचा में भेद करना मुश्किल था।उसके पृष्ठभाग में पूँछ भी थी जिसे वह हिला हिलाकर अदृश्य मक्खियाँ उड़ा रही थी।
"बस्टी मय डार्लिंग पेट!इट्स योर मास्टर शेरपा!"वह रिमोट कंट्रोल से अटैच स्पीकर में बोला।
बस्टी उर्फ मारिया ने तुरंत उसकी आवाज सुनी और अपनी जगह पर खड़ी खड़ी जोर जोर से हिलने लगी।उसके बड़े बड़े स्तन उसके अस्थिर होने से इधर उधर पेंडुलम की तरह झूलने लगे।उनके झूलने से उनसे दूध की बूंदे टपकने लगी जो बार्न के भूसे से बने फर्श द्वारा तुरंत ही सोख ली गई।
"बस्टी माय स्लेव!आई एम कमिंग टू मिल्क यू!बिहेव ऑर आई विल पुनिश यू!"शेरपा उसे प्यार से झिड़कते हुए बोला।
उसके झिड़कने का बस्टी पर तुरंत असर हुआ।वह स्थिर खड़ी हो गई।स्पष्ट था कि वह स्तनों में भरे हुए दूध के भार से परेशान थी,इसकी परेशानी उसके चेहरे पर दिख रही थी।
"आओ चलें।बस्टी इज गेटिंग रेस्टलेस!इट्स हर मिल्किंग टाइम!शी हैज़ फुल अडर्स!"अभिषेक अपने पैर घसीटते हुए उसके पीछे चल दिया।हाल के पीछे एक एलीवेटर था।जिसमे सवार होकर वे दोनों बी 2 बेसमेंट में पहुंचे।एलीवेटर के खुलते हीबड़े बड़े पिंजरों से सजा एक हाल था।ज्यादातर पिंजरे खाली थे।आखिरी पिंजरे का ताला खोलने से पहले शेरपा ने एक हंटर उठा लिया।
पिंजरे का ताला खोलकर वे दोनों भीतर प्रविष्ट हो गए।शुरू में ही कुछ स्विच लगे थे जिनको ऑन करके शेरपा आगे बढ़ा।एक गलियारा पार करके बार्न था।बार्न में घुसते ही बस्टी बनी मारिया शेरपा को देखते ही रेस्टलेस हो गई।शेरपा ने हंटर फर्श पर फटकारा और मुँह से गाय को पुचकारने का देहाती शब्द निकालता हुआ उसे खूँटे से खोलने लगा।मारिया उसे मुँह भिड़ाकर चाटने लगी।यह दृश्य देखकर अभिषेक को घिन आ गई।
इसके बाद शेरपा ने हंटर फटकारकर कई बार उसे डाँटा।उसके स्तनों में मिल्किंग मशीन लगा दी गई थी।दूथ धीरे धीरे एक ग्लास जार में इकट्ठा होने लगा।संतोष से भरी शेरपा के हाथ से नुएट्रीटेन्ट चाट रही थी।जरूर उस चीज में नशा था,क्योंकि मारिया की आंखें मस्ती में बंद हो रही थी।
मिल्किंग प्रोसेस पूरा हो चुका था।दुग्धस्रोत खाली होकर निचुड़े हुए लटक रहे थे।मारिया के मुख पर अभूतपूर्व शांति थी।अभिषेक ने नोट किया कि मारिया के सिर पर एक भी बाल नहीं था और काऊ सूट का गोमुख सिर से किसी तरह जोड़ा गया था।मारिया का खाना नाँद में डाल दिया गया था।पतला पतला दलिये जैसा जाने क्या था।मारिया नाँद में मुँह डालकर सपड सापड़ खा रही थी।शेरपा उसके पृष्ठभाग पर हाथ फिरा रहा था।मारिया खाना रोककर पीछे मुड़कर एक संतुष्टिपूर्ण डकार लेकर रंभाती थी और खाने में तल्लीन हो जाती थी।उसका मानव स्त्री से गौपशु में रूपांतरण पूरा हो चुका था।उसमें आत्मसम्मान का एकांश भी बाकी न रहा था।शायद नशे की वजह से,अभिषेक ने सोचा।
उसकी सोचों का सिलसिला शेरपा की आवाज ने तोड़ा,"देखो,कैसा संपूर्ण जीवन जी रही है,बिल्कुल चिंतामुक्त!इसने समर्पण में संपूर्णता को पा लिया है।"
"आपने इसका ब्रेन वॉश कर दिया है।"अभिषेक बोला तो शेरपा ने अट्टहास किया।
"ब्रेनवॉश ?नहीं,मिस्टर !आजकल की तथाकथित आधुनिक शिक्षा और उस पर आधारित जीवन शैली जो स्त्री पुरूष को एक उत्पाद बना रही है,वह असली ब्रेन वॉश है।यह तो मुक्ति-मार्ग है।"
अभिषेक ने निराशा से सिर हिलाया और वहाँ से चला आया।
बाहर निकल कर उसका पैर एक ख़ाली कोक कैन पर पड़ा।निराशा और क्रोध में उसने उस खाली कैन को जोरदार किक मारी।कैन में इनर्शिया पैदा हो गया और वह आसमान में जाकर गुम हो गई।
दूर कहीं किसी गाय के रंभाने की आवाज़ सुनाई दे रही थी।