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राज - भाग-१

अंकुर डायरी में लिखे नाम और पते को घर के बाहर लगी नाम पटिका(name plate) से मिलाता है | पता तो ठीक था लेकिन नाम अलग लिखे थे | यह देख वह असमंजस में पड़ जाता है | सिर खुजाते हुए वह अभी सोच ही रहा था कि अचानक घर का दरवाज़ा खुलता है और एक मध्यम उम्र के सरदारजी बाहर निकलते हैं | वह अंकुर को देख ठिठक कर रुक जाते हैं | अंकुर उनसे कुछ पूछता इससे पहले ही वह बोल उठे ‘आप क्या टीवी ठीक करने के लिए आए हैं’ |

अंकुर मुस्कुराते हुए बोला ‘जी नहीं, मैं तो श्री रमा कांत सिंह जी से मिलने आया हूँ | मेरे पास तो उनका येही एड्रेस लिखा हुआ है लेकिन यहाँ तो उनका नाम ही नहीं है’ |

सरदार जी हैरान होते हुए बोले ‘भाई जब वो यहाँ रहते ही नहीं हैं तो उनका नाम कैसे लिखा होगा’|

अंकुर हैरान होते हुए बोला ‘अच्छा, लेकिन मेरे पास तो यही एड्रेस है | क्या आप बता सकते हैं कि अब वो कहाँ रहते हैं’ |

‘भाई मैं तो यहाँ किरायदार हूँ और पिछले दो साल से रह रहा हूँ | मैंने तो यह नाम कभी सुना नहीं | हाँ ! पहली मंजिल पर इस मकान के मालिक रहते हैं | आप उनसे पूछ लीजिये हो सकता है वह इस बारे में कुछ जानते हों’, कह कर वह चला जाता है | अंकुर अपना सिर खुजाते हुए घर की सीढ़ियाँ चढने लगता है कि यदि इन्हें भी नहीं मालूम हुआ तो वह दिल्ली जैसे इस अनजान शहर में उन्हें कैसे ढूंढेगा | पहली मंजिल पर पहुँच कर वह अनमने भाव से बेल बजाता है | काफ़ी देर तक जब दरवाज़ा नहीं खुलता है तो वह दुबारा बेल बजाने ही लगता है कि अन्दर से किसी के चलने की आवाज पास आती सुन रुक जाता है | धीरे से दरवाज़ा खुलता है और एक बुजुर्ग औरत आधे खुले दरवाजे से बाहर झांकते हुए बोली ‘क्या बात है | बेल क्यों बजाई’ | अंकुर बोला ‘माता जी मैं श्री रमा कांत जी से मिलना चाहता हूँ | नीचे एक सरदार जी मिले थे | वो शायद आपके किरायेदार हैं, कह रहे थे कि शायद आप जानती हों कि वह अब कहाँ रहते हैं’ |

वह कुछ सोचते हुए दरवाज़ा खोल कर बोलीं ‘तुम्हें कैसे पता है कि वो पहले यहाँ रहते थे | यहाँ तो हम छः साल से रह रहे हैं | हमने जिससे यह मकान ख़रीदा था उसका नाम भी रमा कांत नहीं था’ | इससे पहले कि अंकित कुछ बोल पाता वह बुजुर्ग औरत फिर से बोली ‘तुम्हें किसने भेजा है और उनसे क्या काम था’ |

एक साथ इतने प्रश्न सुन अंकुर सकते में आ जाता है | उस ने कभी सोचा भी नहीं था कि उसे इस स्थिति का सामना करना पड़ सकता है | वह तो यह सोच कर मुंबई से चला था कि उसके पास दिल्ली का एड्रेस है और आसानी से उसकी मुलाकात रमा कांत जी से हो जाएगी | वह कुछ बोलता इससे पहले ही बुजुर्ग औरत फिर से बोली ‘कौन हो तुम और क्या चाहते हो’ | अंकुर हड़बड़ाहट में बोला ‘आंटी मैं...... मैं.....’, यह सुन कर वह बुजुर्ग औरत बोली ‘मैं, मैं क्या लगा रखी है तू तो ऐसे कर रहा है जैसे अखबार वाले किसी मुज्लिम या नेता को घर-घर खोजते फिरते हैं’ |

अंकुर के लिए उस बुजुर्ग औरत की बात जैसे भगवान् का वरदान सिद्ध हुई | वह ख़ुशी से झूम उठा | खुश होते हुए अंकुर बोला ‘आंटी आपने आखिर पकड़ ही लिया | मैं बताना तो नहीं चाहता था लेकिन अब जब बात खुल ही गई है तो..... जी मैं एक अखबार के ऑफिस से हूँ और रमा कांत जी के जीवन पर कुछ लिखना चाहता हूँ | बस इसीलिए....’, इससे पहले वह कुछ और बोलता वह बुजुर्ग औरत हैरान होते हुए बोली ‘कौन है यह आदमी | क्या कर दिया उसने’ |

अंकुर मुस्कुराते हुए बोला ‘जैसा आप सोच रही हैं ऐसा-वैसा कुछ नहीं किया है | वह बहुत ही अच्छे इंसान हैं | वह बुजुर्ग औरत पंजाबी में बोली ‘अच्छा ! फेर ठीक है | मैं तां पता नई की सोच बैठी सी | तू पुत्र नाल वाले घर तो पुछ ले | औ बड़े पुराने रहन वाले ने’ | यह सुन कर अंकुर उस बुजुर्ग औरत को धन्यवाद कर जल्दी से सीढ़ियाँ उतर कर पड़ोस के घर की बेल बजाता है | अंकुर पड़ोस से मिली जानकारी सुन कर हतप्रभ रह जाता है | उसे याद आता है कि वह भी आरकेसिंह के फेसबुक पेज का मेम्बर है | उसे नहीं मालूम था कि आरकेसिंह ही रमा कांत सिंह है | जब वह एमबीबीएस के आखिरी साल में था तो उसे इस पेज और इस व्यक्ति के बारे में उसके एक दोस्त ने ही बताया था | उसके कॉलेज में आरकेसिंह के लेख और कहानियाँ काफ़ी प्रसिद्ध थे |

अंकुर होटल में वापिस आकर अपना सामान पैक करता है और जल्द ही रात का खाना खा कर सो जाता है | सुबह वह हिमाचल के नालागड़ जैसे छोटे से शहर के लिए निकल पड़ता है | नालागड़ पहुँच कर वह पड़ोसी के बताए एड्रेस को ढूंढते-ढूंढते आखिर पहुँच ही जाता है | वह काफी बड़ा मकान था जिसके आगे एक छोटा-सा पार्क बना था | उस मकान के बाहर बने गलियारे में एक बुजुर्ग दम्पत्ति कुर्सियों पर बैठे शाम की चाय का आनन्द ले रहे थे | उन्हें प्रेम से बैठे चाय पीते हुए देख अंकुर ठगा-सा लकड़ी के गेट के पास ही रुक जाता है |

अंकुर आज पहली बार अपने दादा-दादी को देख रहा था | दादी की उम्र तो लगती थी लेकिन फिर भी उनके चेहरे पर एक अजीब-सा तेज था और दादा को देख कर उनकी उम्र का अंदाजा लगाना ही मुश्किल था | उन्हें पहली बार देख कर अंकुर की आँखों में आँसू आ जाते हैं | वह अभी यह सोच ही रहा था कि वह उन्हें मिलने पर क्या बताएगा कि अचानक चाय पीते हुए दादी की नजर अंकित पर पड़ती है | वह जल्दी से कुर्सी से उठते हुए बोली ‘क्या बात है बेटा | यहाँ क्यों खड़े हो’ | अंकुर सकपका कर जल्दी से अपने आँसू पोंछते हुए कुछ बोल पाता इससे पहले ही दादी बोल उठी ‘क्या...क्या....तुम मुंबई से आए हो’ | यह सुन कर अंकित अचंभित हो जाता है | यह सुन कर उसका मुँह खुले का खुला ही रह जाता है | वह सोच नहीं पा रहा था कि वह क्या बोले और क्या न बोले | अभी वह अपनी सोच से बाहर भी नहीं निकल पाया था कि दादी भागती हुई लकड़ी के गेट के पास पहुँच जाती है | जल्दी से गेट खोल कर अंकित को लगभग झंक्झोरते हुए बोली ‘मैं सही कह रही हूँ न | तुम मुंबई से आए हो न’ | अंकुर कुछ बोल पाता इससे पहले ही दादा पास आकर दादी को पकड़ते हुए बोले ‘तुम पागल हो गई हो क्या’, कह कर वह दादी का हाथ झटकते हुए अंकुर से बोले ‘बेटा मैं इसकी तरफ से माफ़ी मांगता हूँ’ |

अंकुर अभी भी असमंजस की स्थिति में था | वह चाह कर भी कुछ बोल नहीं पा रहा था | उसे ऐसे गुमसुम देख दादा बोले ‘बेटा आपको किसके घर जाना है’ | यह सुन कर अंकुर बहुत मुश्किल से बोला ‘ज...जी....आ..प....’, कुछ शब्द वह बोल पाता है और कुछ शब्द उसके मुँह में ही रह जाते हैं | दादी उसका ऐसा व्यवहार देख कर वह दादा को घूरते हुए एक फिर से बोली ‘तुम समझ क्यों नहीं रहे हो ये मुंबई से हमें ही मिलने आया है’, कह कर वह अंकुर को देखते हुए बोली ‘क्यों बेटा मैं सही कह रही हूँ...न...’? अंकुर जैसे ही ‘जी’ कहता है दादी अंकुर को खींच कर आलिंगनबद्ध कर लेती है | दादा एक बार फिर दादी को अंकुर से अलग करते हुए बोले ‘अरे ! भागवान तुम समझती क्यों नहीं हो | बार-बार उस बच्चे को परेशान किये चली जा रही हो’, कह कर वह अंकुर से बोले ‘बेटा ये माना कि तुम मुम्बई से आये हो लेकिन आये किस से मिलने हो ये तो तुमने.....’ | दादा आगे कुछ बोल पाते इस से पहले ही अंकुर हिम्मत जुटा कर तेज आवाज में बोला ‘दादी ठीक कह रही हैं’ |

अभी तक तेजी दिखाती दादी और शांत स्वभाव के दिखने वाले दादा, दोनों ही यह सुन कर वहीं लकड़ी का गेट पकड़ कर बैठ जाते हैं | उन दोनों का चेहरा पीला पड़ गया था और आँखें बंद हुई जाती थीं | उनकी ऐसी हालत देख अंकुर को समझ में नहीं आ रहा था कि वह करे तो क्या करे | बुजुर्ग दम्पत्ति की ऐसी हालत देख कर रास्ते से जाते हुए लोग रुक कर उन्हें देखने लगे | देखते-ही-देखते वहाँ लोगों का हजूम लग जाता है | सब आपस में खुसर-पुसर कर रहे थे लेकिन कोई भी आगे नहीं बढ़ रहा था | तभी अचानक एक औरत भीड़ को चीरती हुई आई और दादा-दादी के पास बैठ दादी के चेहरे को सहलाते हुए अंकुर को गुस्से से देखते हुए बोली ‘ऐसा क्या कहा तुमने मांजी को.....’, वह अभी अपनी बात पूरी भी नहीं कर पाई थी कि उसी भीड़ को चीरते हुए कई और लोग आ गये | उन्हीं में से एक महिला ने लगभग रोते हुए साथ लाए पानी के गिलास से पानी दादी के चेहरे पर छिड़कन शुरू कर दिया | दो आदमी अंकुर का गला पकड़ कर बोले ‘कौन है तू और तूने क्या कहा हमारे अम्मा-बापू को’ |

अंकुर उनके तेवर देख कुछ बोल पाता इससे पहले ही दादी को होश आ जाता है | होश आते ही वह इधर-उधर देखती है और फिर पड़ोसन से पानी का गिलास छीन कर दादा पर छिड़कती है | दादा सिर झटकते हुए उठ खड़े होते हैं और फिर हाथ का सहारा दे दादी को उठाते हैं | अंकुर को यह समझ नहीं आ रहा था कि दादा-दादी दोनों को खुश हो कर नाचना-गाना चाहिए था जबकि ये दोनों तो उसकी बात सुन कर बेहोश हो गये | वह अपनी सोच से बाहर निकल कर पड़ोसियों को कुछ बोल पाता इससे पहले ही दादा-दादी लड़खड़ाते हुए बोले ‘अरे बेवकूफो हमारे पोते को क्यों पकड़ रखा है’ | यह सुनते ही सब एक झटके से अंकुर का गला छोड़ कर दादा-दादी के पास जा कर बोले ‘एक बार फिर बोलना आप क्या कह रहे थे’ | दादा-दादी ने खुश होते हुए जब वह बात फिर दोहराई तो राह चलते लोग अपनी राह चल दिए लेकिन बाकि बचे पास-पड़ोसी ख़ुशी से झूमते हुए अंकुर और दादा-दादी के गले लग जाते हैं |