Udaan, prem sangharsh aur safalta ki kahaani - 3 books and stories free download online pdf in Hindi

उड़ान, प्रेम संघर्ष और सफलता की कहानी अध्याय-3

प्रणय निवेदन :-
दूसरे दिन प्रथम ठीक 11 बजे मंदिर पहुँच गया। पूजा शुरू हो चुकी थी ।
आइये बैठिए प्रथम जी। अनु ने कहा ।
लिजिए थोड़ा चावल और फूल हाथ में ले लिजिए।
अच्छा दीजिए, यहीं बैठ जाऊँ।
हाँ बैठ जाइए।
प्रथम बैठ गया और चावल और फूल हाथ में ले लिया।
पूजा चल रही थी और बीच-बीच में हवा से अनु की साड़ी का आँचल उड़ उड़कर प्रथम के चेहरे से टकरा रहा था और प्रथम के शरीर में रह रहकर सिहरन पैदा हो रहा था ।
पूजा खत्म हुई तो अनु ने प्रथम से कहा आईए उधर सीढ़ियों पर बैठते हैं ।
हाँ चलिए।
कैसे आए आप अपनी सुपर डुपर वाहन से ?
नहीं आज तो बड़ी गाड़ी से आया हूँ ।
बड़ी गाड़ी मतलब?
मतलब कार से मैडम। प्रथम ने कहा।
अच्छा आप के पास कार भी है ?
हाँ पैरैन्ट्स की है हमारी कहाँ हैसियत है गाड़ी की।
मेरी तो पेट्रोल डलाने की भी हैसियत नहीं है।
अरे यार फिर से आप उल्टा सीधा सोचने लगे, मैंने कहा था ना कि अच्छा अच्छा सोचो तो अच्छा ही होगा।
हाँ बाबा अब से अच्छा ही सोचूंगा, ठीक ?
ठीक, अच्छा क्या मांगा भगवान से ?
नही बता सकता।
क्यूँ ?
बस, यूँ हीं। नहीं बता सकता ।
अच्छा ये बताओ, आपने क्या मांगा ?
मैंने, मैंने तो सबके सुख की कामना की अच्छा स्वास्थ्य मांगा, और अपने लिए अच्छा पति मांगा।
बस सारी चीजें अपने लिए और मेरे लिए कुछ नही मांगा ?
आपके लिए सुख और स्वास्थ्य मांगा ना ?
बस और पत्नि ?
वो आप मांगिए वो आपकी प्रॉब्लम है।
हाँ प्राबलम तो मेरी ही है पर आजकल भगवान मेरी सुन नही रहें हैं। आप ही बोल देंगी तो मेरा भला हो जाएगा ।
क्या किसी को देख रखा है आपने ?
आपको ऐसा लगता है ?
हाँ कॉलेज में तो ढ़ेर सारी लड़कियां है और आप पर तो सभी फिदा हैं। कोई न कोई तो होगी जिस पर आपकी नजर टिकी होगी।
वो सभी मेरी शिष्य हैं माते, ऐसा मत बोलो। मैं थोड़ा जिद्दी किस्म का सिद्धांतवादी आदमी हूँ, छात्र मतलब छात्र।
हाँ बाहर एक दो जगह ट्राई किया पर किसी ने घास नहीं डाली ।
सही में सच बोल रहे हो।
अरे नहीं अनु जी ऐसे ही फेक रहा था।
बताइए कहीं मन लगा।
सच बोलूं।
हाँ बिलकुल सच ।
एक जगह मन टिक गया है पर हिम्मत नहीं कर पा रहा हूँ बोलने की। सांस अटक जाती है मेरी, धड़कने तेज हो जाती है। अगर सामने से नो आया तो सहन नहीं कर पाऊँगा ।
टूट जाना ! सहन करने की शक्ति नहीं है तो प्रेम किया क्यूँ ?
आपने और डरा दिया मुझे ।
हाँ तो जाइये माता का द्वार खुला है भीख मांगिये पर जिसे बोलना है उसे मत बोलिए।
प्रथम सिर झुका कर मौन बैठा रहा।
अनु उसे एकटक देखती रही।
प्रथम सोच रहा था कि ये लड़कियां ऐसा क्यों सोचती हैं कि पुरूष ही प्रपोज करे जबकि वो जानती है कि बंदा उसी को चाहता है फिर भी टार्चर कर करके उससे बुलवाना चांहती हैं।
दोनों के बीच थोड़ी देर बात नहीं हुई ।
अच्छा आप किससे आई हैं ?
डरपोक कहीं के इतना उकसायी फिर भी बोलने की हिम्मत नहीं किया “अनु ने मन ही मन सोचा।
हम लोग तो बाइक से आ गये थे।
अच्छा तो चलो मैं छोड़ देता हूँ आपको।
और कोई जाएगा हमारे साथ तो ले लिजिए ।
छाटे वाले भाई को ले लेते हैं ।
ठीक है। प्रथम ने कहा
चलिए चलें।
रास्ते में जाते वक्त प्रथम ने कहा -
सीधे चलें कि कहीं घूम आए यदि आपको कोई एतराज ना हो तो।
चलिए, कहाँ ले जाएगें ।
बस यहीं पास में 12 कि. मी. दूर एक मंदिर है नदी के किनारे वहीं चलतें हैं।
बहुत अच्छी जगह है।
ठीक है चलिए।
गाड़ी धीमी गति से शहर के बाहर निकल गई।
प्रथम चाहता था कि गाड़ी जितनी धीमी गति से चले उतना ही अच्छा।
आज कॉलेज से बंक मार दिए, क्यों ?
हाँ पूजा में आना था ना इसलिए घर से नहा धोकर सीधे यहीं आ गया। आप तो साड़ी में जोरदार दिखती हैं ।
अच्छा मुझे तो पता ही नहीं था और बताइये कुछ मेरे बारे में ।
सॉरी !!!
सॉरी क्यों, मैं सचमुच पूछ रही हूँ मुझमें और कुछ खास है कि नहीं।
आप तो पूरी तरह खास हैं। बस बोलने के लिए मुझे शब्द कम पड़ रहें हैं ।
अच्छा आपको शब्द कम पड़ रहें है जबकि लोग तो बताते हैं कि आपके पास शब्दों का खजाना है ।
है तो पर जब आदमी डरा सहमा रहता है तो शब्द निकलते ही नहीं हैं।
इतने में मंदिर आ गया और सभी लोग उतरकर मंदिर में जाने लगे।
मंदिर में सभी ने भगवान को पुष्प अर्पित किया अनु और प्रथम पास में ही टहलने लगे।
हाँ तो साहब किस बात का डर है आपको ?
बताया तो था आपको ना वाली बात।
बड़े डरपोक किस्म के आदमी है आप। अनु ने कहा।
मैं और डरपोक ?
हाँ जी आप ही को कह रही हूँ डरपोक।
अचानक प्रथम अनु का हाथ पकड़ा और चूम लिया।
अरे!!! ये क्या ? अनु सिहर गई ।
हिम्मत, मैं बोल नहीं पा रहा था इसलिए कर दिया।
अब बोलो, क्या सजा देनी है मुझे। मै तुम्हें बेहद बेहद बेहद चाहता हूँ अनु।
अनु चुप थी प्रथम भी चुप था। उन दोनों के लिए ये अलग ही अनुभव था ।
मुझे घर जाना है अभी। अनु ने कहा।
“ठीक है चलते हैं “ प्रथम ने कहा।
गाड़ी निर्बाध गति से शहर की ओर आती गई ।
कोई किसी से कुछ नहीं कह रहा था। गाड़ी जब घर के सामने आकर रूकी तो प्रथम ने कहा - मुझे माफ कर देना अनु जी मै भूलवश ये गलती कर डाला । कल मैं यही गाड़ी लेकर शाम में स्कूल के सामने मिलूँगा ।
प्लीज मुझे माफ कर दिजिए।
यह कह कर प्रथम वहाँ से चला गया ।
अनु घर के अंदर आ गई। उसके मन में वही घटना बार-बार आती थी। वो बार-बार अपने हाथ की ओर देखती थी जिसको प्रथम ने चूमा था। वह भी उससे बहुत प्रेम करती थी पर स्पर्श का अनुभव बिलकुल ही नया था।
उसे सामान्य होने मे 3-4 घंटे लगे। जब वो सोने के लिए बिस्तर पर गई तो उसे वही दृश्य दिखाई देने लगा और धीरे-धीरे उसके चेहरे पर मुस्कान आ गई अब उसे यह अनुभव मीठा लगने लगा था।
दूसरे दिन वह प्रसन्न मन से उठी, तैयार हुई और स्कूल चली गई। उसे मालूम था आज प्रथम शाम को उसे लेने आयेगा।