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झोपड़ी से घर तक...

हैदराबाद सिटी... सुबह हो गई थी। सूरज की किरणे निकलते ही सड़कों पे चहल पहल शुरू हो गई थी। स्कूल के बच्चे हसते मुस्कुराते स्कूल की और आगे बढ़ रहे थे। नौकरी करनेवाले जल्दी में अपनी अपनी ऑफिस की तरफ़ भाग रहे थे। सब्जी और फ्रूट्स बेचनेवाले आवाज़ लगा रहा थे, भिंडी २० रुपए किलो... अनार ५० रुपए किलो.... इन्हीं सब भीड़भाड़ की जगह पे कई मकान भी थे। जिसमें मुस्लिम परिवार रहते थे। उसमें से एक परिवार था फ़राज़ खान का। फ़राज़ खान की कपड़े की दुकान थी। दिल के नेक और बड़े ही भावुक इंसान थे। उनकी बीवी सुमैया बेगम जो की बहुत ही गर्म स्वभाव की थी। घड़ी के कांटों पे हर काम होना चाहिए ऐसी उनकी ज़िद थी। मियां बीबी की एकलौती औलाद थी जिसका नाम था बुशरा... अपने अब्बू की तरह बहुत ही नर्म दिल और शांत स्वभाव की थी बुशरा। बुशरा १३ साल की थी और ८ वी कक्षा में पढ़ाई करती थी। पढ़ाई में बुशरा बहुत तेज़ थी। फ़राज़ खान के घर पे काम करने एक लड़की आती थी जिसका नाम था तबस्सुम... बहुत ही प्यारी बच्ची थी। बुशरा की हमउम्र थी तबस्सुम। लेकिन उसके घर के ख़राब हालात की वजह से वो काम करने आती थी। तबस्सुम के अब्बू का देहांत जब वो ७ साल की थी तभी हो गया था। उसके दो और भाई बहन थे। जिसमे छोटी बहन और एक बड़ा भाई था। उसका भाई भी कहीं कारखाने में काम करता था और उसकी मां भी लोगों के घर का काम करने जाती थी। उसके घर की गाड़ी इन तीन पहियों की वजह से जैसे तैसे चल रही थी। तबस्सुम को पढ़ाई का बहुत शौक था। वो ४ थी कक्षा तक पढ़ी थी लेकिन अब्बू के गुज़र जाने के बाद उसे पढ़ाई छोड़नी पड़ी थी। तबस्सुम और बुशरा की आपस में बहुत बनती थी। बुशरा जानती थी की तबस्सुम को पढ़ाई का बहुत शौक है इसीलिए वो कई बार तबस्सुम को फ्री समय में पढाती थी। और तबस्सुम ख़ुशी ख़ुशी पढ़ती थी। ख़ैर, आज भी तबस्सुम फ़राज़ खान के घर आकर अपने काम में लग गई थी।ऊपर जब सफाई करने गई तब उसने देखा कि बुशरा मोबाईल में कुछ वीडियो देख रही थी उसे देख तबस्सुम को भी वीडियो देखने का मन हुआ। उसकी दिलचस्प आंखें बुशरा समझ गई थी और उसने तबस्सुम को भी वीडियो देखने अपने पास बुलाया। दोनों क्राफ़्ट का वीडियो देख रही थी। और बीच में आवाज़ आई... तबस्सुम .. ओ... तबस्सुम कहां मर गई कमबख्त... मालकीन चिल्ला रही थी। मालकीन की आवाज़ सुनकर तबस्सुम भागती हुई ऊपर से नीचे आयी। जी खाला.... मालकीन गुस्से से लालपिली होकर पूछ रही थी, कहां मर गई थी?? तबस्सुम बोली, खाला... में बुशरा के साथ कुछ मोबाईल में से सीख रही थी। ये सुनकर मालकीन और भड़की और तबस्सुम को बड़े ही कड़वे शब्दों में कहा .. तू बुशरा के साथ मोबाईल देखेगी तो घर का काम कौन तेरा बाप आसमान से आकर करेगा??? ये सुनकर तबस्सुम रोता हुआ मुंह लेकर काम करने लग गई। लेकिन बुशरा को अपनी अम्मी के ये शब्द अच्छे नहीं लगे। शाम को उसने अब्बू को ये बात बताई तब फ़राज़ खान को भी दुःख हुआ। बुशरा ने कहा, अब्बू तबस्सुम को पढ़ाई में बहुत दिलचस्पी है आप कुछ कीजिए ना उसके लिए ताकि वो पढ़ सके। फ़राज़ खान को बुशरा की ये बात पसंद आई और उन्होंने कुछ सोच विचारकर एक रास्ता ढूंढा। और बुशरा को बताया कि अगर तबस्सुम हमारे घर पे तुम्हारे साथ पढ़ेगी तो वो बात तुम्हारी अम्मी को बिल्कुल पसंद नहीं आएगी। इसीलिए मैंने सोचा है कि में तबस्सुम को दुकान का झाड़ू पोछा करने के बहाने दुकान पे बुलाऊंगा और तुम अपनी स्कूल से घर आते समय एकाद घंटे तबस्सुम को वहां पढ़ाई करवाना। बुशरा को भी ये बात बहुत अच्छी लगी। और इसी फ़ैसले के साथ तबस्सुम और बुशरा ने मिलकर रोज़ एक से दो घंटे पढ़ाई करना शुरू कर दिया। फ़राज़ खान ने एक डमी छात्रा के तौर पे तबस्सुम का एडमिशन स्कूल में ले लिया। अब तबस्सुम को सिर्फ़ परीक्षा देने ही स्कूल में जाना था। तबस्सुम मन लगाकर बुशरा से पढ़ रही थी। और इस तरह दिन बीतते चले गए। तबस्सुम ने परीक्षा दी और ऊंचे नंबर से पास हुई। वो बहुत खुश थी। बुशरा और फ़राज़ खान भी बहुत खुश थे। और इसी राह पर चलते हुए और तीन साल बीत गए। अब तबस्सुम ख़ुद घर पे जाकर भी अपने आप पढ़ाई करने लग गई थी। और समय के साथ तबस्सुम १२ वी कक्षा में पहुंच गई थी। अपने घर का काम, फ़राज़ खान के घर काम और पढ़ाई सब कुछ तबस्सुम ने संभाल लिया था। उसका लक्ष्य एक बहुत बड़ी अफ़सर बनना था। उसने १२ वी क्लास डिस्टिंक्शन के साथ पास कर ली। उसने कॉलेज में दाखिला लिया और साथ में बाहरी सरकारी परीक्षा भी देने लग गई। फ़राज़ खान ने अब तबस्सुम से अपने घर का काम छुड़वा दिया था। सिर्फ पढ़ाई पर ध्यान देने को कहा था। कॉलेज के तीन साल ख़तम कर वो ग्रैजुएट हो गई और कुछ ही समय में उसने सरकारी अफ़सर बनने की परीक्षा पास कर ली और बड़ी अफ़सर बन गई। कड़ी मेहनत, लगन और बुशरा और फ़राज़ खान के साथ की वजह से आज तबस्सुम काम करनेवाली से लेकर अफ़सर बन गई थी। झोपड़ी से उठकर आज वो अपने बड़े से घर में भाई, बहन और मां के साथ रहती थी। उधर बुशरा भी शहर की बड़ी वकील बन गई थी। फ़राज़ खान को इस बात का सुकून था की उनके और बुशरा के फैसले और तबस्सुम की पढ़ने की लगन से और कड़ी मेहनत से आज तबस्सुम झोपड़ी से लेकर घर में रहने लग गई थी। अब तो सुमैया बेगम भी तबस्सुम को पसंद करने लग गई थी। तबस्सुम फ़राज़ खान को अपने अल्लाह के रूप में मानती थी और बुशरा को अपनी बहन। वो रोज़ उनको सलाम करके ही अपनी कचहरी जाती थी। और हर शाम लौटते समय भी उनसे मिलने जाती थी। तबस्सुम का झोपड़ी से लेकर घर तक का सफ़र शायद हम सब के लिए एक पैग़ाम है लगन और मेहनत से आगे बढ़ने का और मंज़िल हासिल करने का। आशा करती हूं इससे किसीको प्रेरणा मिले।।❤️