Tum Muje Itta Bhi Nahi Kah Paye - 6 books and stories free download online pdf in Hindi

तुम मुझे इत्ता भी नहीं कह पाये? भाग - 6

मेडम राहुल के साथ दोस्त की तरह ही बर्ताव कर रही थी और राहुल भी उसे काफी रिस्पेक्ट देता था. रिंछगढ़ और धुपगढ़ में सनसेट पॉइंट की विजित के साथ उन लोगों का पहला दिन समाप्त हो गया.
अपने ठिकाने पर लौटते वक्त राहुल मेडम के साथ ही चल रहा था. "आउच!" चिल्लाते हुए मेडम ने बगल में चल रहे राहुल के कंधे को थाम लिया. उनके पाँव में काँटा चुभ गया था. राहुल ने उनके पाँव से काँटा निकालने में उनकी सहायता की. काँटा जंगली पौधे का होने की वजह से मेडम को चलने में दर्द हो रहा था इसलिए मेडम को उनकी राइड तक पहुँचने में भी राहुल ने सहारा दिया.

उन लोगों की दुसरे दिन की विजित पांडव केव्स, अप्सरा विहार, प्रियदर्शिनी पॉइंट और आखिर में वनाश्रय विहार जील की रही. जहां स्टुदंट्स और टीचर्स ने बोटिंग, हॉर्स राइडिंग, केमल राइडिंग, इत्यादि की जमकर मज़ा ली. हॉर्स राइडिंग के दौरान मेडम को घोड़े पर चढ़ने में गभराहट हो रही थी तब राहुल ने उनकी बहुत होंशलाफ्जाई और घोड़े पर बैठने में हेल्प की और उनके पीछे पीछे दोड़ता रहा. पर केमल राइडिंग के वक्त तो मेडम ने राहुल को अपने साथ ही बिठा लिया क्यूंकि वह ऊंट पर अकेले बैठने से बहुत ही दर रही थी. साम के सूरज ढलने के साथ उन लोगों की दो दिवसीय टूर समाप्त हो गई और रात को ही वे सिलवासा के लिए लौट पड़े.
पर राहुल जब टूर ख़त्म कर अपने घर पहुंचा तो पता चला की उनके पापा की दिल्ही में ट्रांसफर हो चुकी है और उन्हें अगले तीन दिनो में ही सिलवासा छोड़ना है. अचानक से मिली इस बुरी खबर ने राहुल को व्यथित कर दिया और वह टूर की सारी मीठी यादें, अपनी स्कूल, स्कूल के दोस्त और नयी मेडम को भी बिलकुल भूल ही गया. अगले दिन से ही राहुल ने स्कूल से लीव ले ली. बाकि के तीन दिन तैयारी में गुजर गए. जब वह सिलवासा को छोड़ने के लिए पेकिंग कर रहा था तब उसके दिल में कोई चीज छुट जाने का अहेसास हो रहा था पर वह चीज क्या थी? कुछ याद नहीं आ रहा था. उसने बहुत याद करने की कोशिश की पर उसे कुछ याद नहीं आया.
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राहुल को दिल्ही में आये अब एक हप्ते से ज्यादा वक्त गुज़र चूका था. वह दिल्ही में नयी स्कूल में भी जाने लगा था. पर कुछ पीछे छोड़ आने का अहेसास उसे लगातार बेचैन किये जा रहा था. अब तो वह धीरे धीरे दिल्ही के इस नए माहोल में कंफर्ट होने लगा था और पुराने दोस्त, सिलवासा की स्कूल, वे टीचर्स, दोस्तों के साथ की हुई मस्तियाँ, आदि सारी पुरानी यादें उसके दिमाग से निकलती जा रही थी.
एक सन्डे की सुबह वह मम्मी के साथ शोपिंग पर चलने के लिए तैयार हो रहा था. उसने टीशर्ट पहनी और जिम्स पहनकर जेब में हाथ डाला. तो उनके हाथ में कुछ आया. उसने वह निकाल कर देखा तो वह चोकलेट का रेपर था. उसे याद आया की यह तो पंचमढ़ी की टूर के दौरान मेडम ने दी हुई चोकलेट का रेपर है. तब उसने इसे कहीं भी बाहर फैंक देने के बजाए यह सोचकर अपनी पॉकेट में रख लिया था की जब उसे कोई दस्तबिन दिखेगी, तब इसे उसमे फेंक दूंगा. पर बाद में वह इसे बिलकुल भूल ही गया था. मेडम की दी हुई चोकलेट का रेपर देखते ही उसे पंचमढ़ी में मेडम के साथ बिताये हुए वे सारे पल याद आ गए. उसके दिमाग में पुराणी सारी यादें ताज़ा हो उठी. और मेडम की याद ताज़ा होते ही उसका पीछे कुछ छोड़ आने का वह अहेसास भी जैसे गायब हो गया. उसे ख़याल आया की कई दिनों से जो पीछे कुछ छूट जाने का अहेसास उसे बेचैन किये जा रहा था वह और कोई नहीं पर सिलवासा वाली पुराणी स्कूल की उसकी नयी मेडम ही थी. उसे एहसास हुआ की वह कितनी बड़ी चीज को पीछे छोड़ आया है. उसे लगा, जैसे वह अपना दिल ही पीछे छोड़ आया है. उसका मन मेडम को पुकार उठा. उसका ह्रदय मेडम के विरह में बिलखने लगा. उसकी आँखों से पानी बह निकला. वह गहरी उदासी में गिर गया और वक्त का उसे बिलकुल ख़याल न रहा.
शीशे की तरह दिल में कुछ टूटा हुआ है,
ना जाने ज़िन्दगी में पीछे क्या छूटा हुआ है,
मुझसे जुदा हो रही हैं हर ख़ुशी,
सायद जिगर का टुकड़ा कोई रूठा हुआ है.
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काफी वक्त गुजर जाने पर जब वह न आया तो मम्मी ने उसे आवाज़ दी. तब वह होंश में आया. उसने अपना चेहरा जरा ठीक किया और मम्मी को "मुझे पेट में दर्द है." कहकर अपने कमरे में चला गया. उसकी मम्मी अकेले ही शोपिंग के लिए चली गई. उसके पापा भी घर पर नहीं थे. अपनी इस दशा में राहुल को जो एकांत चाहिए था वह उसे मिल गया. उसने मेडम की दी हुई चोकलेट का वह रेपर गौर से देखा; उसे माथे से लगाया और चूमा; फिर संभालकर अपनी बेग में रख दिया. और अपने बिस्तर पर जा कर लेट गया. उसे ख़याल आया की वह तो मेडम का नाम तक नहीं जानता है. उसे अपने आप पर खीज चढ़ी की क्यूँ वह कभी मेडम से उनका नाम नहीं जान पाया? मेडम को याद कर के उसकी आँखों से आंसू बह निकले और वह उसके वियोग में बिलखने लगा. उसका विरह से तड़पता घायल ह्रदय मेडम को ही पुकारे जा रहा था.
लम्हा जुदाइयों वाला सहा नहीं जा रहा,
बिन तेरे सनम रहा नहीं जा रहा,
क्या करूँ ए दिले बेकरार मेरे,
ज़िन्दगी का फ़साना मुझसे काटा नहीं जा रहा.
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तेरी जुदाई भी हमें प्यार करती है,
तेरी याद बहुत बेकरार करती है,
वह दिन जो तेरे साथ गुज़ारे थे,
नज़रें तलाश उनको बार-बार करती हैं.
***

अगले कई दिनों तक उसकी दशा ऐसी ही बनी रही पर वह बड़ी मुश्किल से अपने मम्मी पापा के सामने ठीक होने का दिखावा करता रहा. पर तभी से उसके दिल और दिमाग पर नयी मेडम ने पूरी तरह से अपना कब्जा जमा लिया. वह उसकी स्वप्न सुंदरी बन गई. वह उसके ख़्वाबों की रानी बन गई और उसकी एकलता की साथी भी.
ख़्वाबों में बसा लिया हैं उनको,
खयालों में सजा लिया हैं उनको,
दिल को मेरे ये एहसास ही न रहा,
कि अब मेरा यार मुझसे जुदा है.

इससे पहले राहुल को कभी भी मेडम के लिए इतना तीव्र आवेग महसूस नहीं हुआ था जितना की उसे अब हो रहा था. वह अपना स्कूल का वर्क वक्त पर पूरा कर लेता. घर में मम्मी को हेल्प भी करता. पर ज्यादातर वक्त उसका अपने कमरे में अकेले ही बितता. वह अपने नए दोस्तों के साथ बाहर घुमने भी बहुत कम ही जाता.
जब से उसकी जिंदगी में मेडम का आगमन हुआ था, वह पढ़ाई में अच्छा हो गया था. इसलिए पढ़ाई में उसे कोई दिक्कत न आई.
स्कूल की पढ़ाई पूरी हुई और उसने एंजिनियरिंग कोलेज में एडमिशन लिया. वह दिखने में हेंडसम था. कोलेज के दिनों में कई लड़कियों ने उसके नजदीक आने की कोशिश की, कई लड़कियों ने तो उसे प्रपोज़ भी किया, पर जब कोई लड़की उसे प्रपोज़ करती, तब उसके दिल से एक तीस निकल जाती. जिसका दर्द उसकी आँखों से भी छलक जाता. उसका मन उदास हो जाता और वह हंसने की विफल कोशिश करता हुआ उस लड़की को "सोरी" कह देता.
इस दिल को किसी की आस रहती है
निगाहों को किसी सूरत की प्यास रहती है
तेरे बिना किसी चीज़ की कमी तो नहीं
पर तेरे बिना ज़िन्दगी बड़ी उदास लगती है

कोलेज काल में जहां अन्य लड़कों का ज्यादातर वक्त लड़कियों के पीछे और लड़कियों का वक्त लड़कों के पीछे व्यतीत होता रहता था, वहां राहुल का पूरा फोकस अपनी पढ़ाई पर रहा और उसने एम्.ई विथ ऑटोमोटिव एंजिनियरिंग के साथ पूरी यूनिवर्सिटी में टॉप कर दिया. जिसके बारें में उसने सपने में भी नहीं सोचा था. उसकी आँखों से आंसू छलक पड़े. और उसने अपनी इस सफलता के लिए सबसे पहले जिसे याद किया, वह इश्वर नहीं था; बल्कि वह तो उसकी यादों में बसने वाली उसके ख्वाबो की मल्लिका थी. उसीने तो उस सरारती और पढ़ाई में कमज़ोर छोकरे राहुल को आज पूरी यूनिवर्सिटी का टोपर बना दिया था. वो भी बिना कुछ कहे; बिना कुछ किये. वह उसके लिए पारस पत्थर थी. वह उसकी प्रेरणामूर्ति थी. अनछुए अनजाने ही उसने वो चमत्कार कर दिखाया था, जो शायद हज़ारों मन्नते भी न कर पाती.
ओ मूरत तुम तो अम्बर से भी अपार हो गए,
अनजाने में ही ये तुम कैसा चमत्कार कर गए,
जो कर न सका खुदा हजारों मन्नत पर,
उस ना काबिल को भी काबिल कर गए.
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क्रमशः
प्रिय पाठक दोस्तों, क्या राहुल को उसका प्यार मिलेगा? कोमेंट में जरूर बताइये...
इस लव स्टोरी में मेरी स्व रचित शायरी के अलावा अन्य गुमनाम लेखकों की शायरियों एवं फिल्म के डायलोग्स का भी इस्तेमाल किया गया हैं. उन शायरियों के गुमनाम शायरों एवं कल हो न हो और ओम शांति ओम फिल्म को उसके डायलोग्स के लिए हार्दिक धन्यवाद.
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