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मन के जीते जीत है

आज कोकिला ने साबित कर दिया कि कोई शरीरिक अक्षमता इतनी बड़ी नहीं होती कि जीवन में आगे बढ़ने के सारे रास्ते बंद कर दे।उसका यू ट्यूब चैनल काफी फेमस हो चुका है,अपनी लिखी कविताओं एवं लघु कथाओं को अपनी आकर्षक आवाज में वह प्रस्तुत करती है,उसकी खनकती हुई आवाज अत्यंत प्रभावशाली है, लोगों के कानों से प्रवेशकर सीधे दिल में उतर जाती है।स्टेज पर भी अपनी प्रस्तुति दे चुकी है, हालांकि वह तालियों की गड़गड़ाहट ठीक से नहीं सुन पाती, लेकिन हाथों का हिलना देखकर समझ जाती है लोगों की तारीफ को।यू ट्यूब पर वीडियो डालते ही आने वाले ढेरों लाइक उसके उत्साह को अत्यधिक बढ़ा देते हैं।कई स्कूलों में वह मोटिवेशनल स्पीच दे चुकी है, अपने जैसे लोगों के लिए वह एक प्रेरणास्रोत बनकर उभरी है।
जिंदगी के सफर की शुरुआत तो अच्छी हुई थी।एक बड़े भाई,एक बड़ी बहन की प्यारी सी छोटी बहन और माँ-पिता की लाडली बिटिया।उसकी मीठी आवाज के कारण मां ने उसका नाम कोकिला रखा था।सबके असीम स्नेह के साथ वह बड़ी हो रही थी, पूरा घर उसकी आवाज से गुलजार रहता।उच्च-मध्यमवर्गीय परिवार था उसका।किसी भी चीज का कोई अभाव नहीं था।
ये किस्मत भी बड़ी अजीब शै है, अचानक रँग में भंग कर देती है, खुशियों में कब सेंध लगाना शुरू कर देती है हम जान-समझ ही नहीं पाते।स्कूल में टॉपर तो नहीं थी,लेकिन ठीक-ठाक थी पढ़ने में, आवाज अच्छी होने के कारण म्यूजिक मैम की फेवरेट थी, स्कूल के कल्चरल प्रोग्राम में उसकी उपस्थिति अनिवार्य थी।हंसते-खिलखिलाते जिंदगी गुजर रही थी।तब वह हाई स्कूल में थी,ऐसा लगने लगा था कि उसे सुनने में थोड़ी समस्या होने लगी है, अक्सर कानों में सीटी बजने जैसी कुछ आवाज सुनाई देती थी, सुनने की क्षमता भी कम सी हो रही थी।डॉक्टर को दिखाया गया, चिकित्सा प्रारंभ हो गई।
एक वर्ष बीतते-बीतते श्रवण शक्ति अच्छी-खासी कम हो गई।अभी इस समस्या से उबरी भी नहीं थी कि आंखों की रौशनी भी कम होने लगी।एक से दूसरे चिकिसक के पास माँ-पापा चक्कर लगाते रहे,दिल्ली से लेकर हैदराबाद तक बड़े-बड़े डॉक्टरों को दिखाया गया।तमाम जांचों के बाद निष्कर्ष निकला कि बचपन की किसी चोट के कारण खून का कोई नन्हा सा थक्का मस्तिष्क की एक बारीक रक्त वाहिका में फंस गया, फिर वहां वह बढ़ने लगा,यह मस्तिष्क का वह क्षेत्र था जो दृष्टि औऱ श्रवण शक्ति का संचालन करता है।इसीलिए धीरे-धीरे सुनना और देखना बाधित होने लगा।इन तकलीफों के कारण शिक्षा में अवरोध आना ही था।जैसे-तैसे इंटर तो पूर्ण हो गया।
निरतंर उत्तम चिकित्सा की सहायता से क्लॉट का बढ़ना तो रुक गया,धीरे धीरे उसकी साइज भी काफी कम हो गई, किंतु मस्तिष्क की जो कोशिकाएं नष्ट हो गईं थीं, उनका पुनर्निर्माण नहीं हो सकता था, क्योंकि मस्तिष्क कोशिकाओं में इसकी क्षमता नहीं होती है।हियरिंग एड लगाने के बावजूद ठीक से सुनाई नहीं पड़ता है।ये गनीमत रही कि शीघ्र चिकित्सा होने से आंखों की रौशनी केवल तीस प्रतिशत ही कम हो पाई थी।
लेकिन इन समस्याओं के कारण कोकिला अवसादग्रस्त होने लगी थी।सुनने में समस्या होने के कारण लोगों से मिलने जुलने में कतराने लगी थी।एक साल तो पूरा ही खराब हो गया था।स्वास्थ्य में थोड़ी प्रगति होने पर किसी की सलाह पर उसने दूरस्थ शिक्षा के द्वारा बीए की पढ़ाई प्रारंभ कर दी।इसी मध्य बड़ी बहन ने एक साहित्यिक एप के बारे में बताया, कोकिला ने उस समय मन लगाने के उद्देश्य से उसपर लिखना शुरू कर दिया।उसकी हास्य-व्यंग्यात्मक शैली लोगों को अत्यधिक पसंद आती थी।लोगों के सकारात्मक प्रतिक्रिया से उसका उत्साह बढ़ने लगा।यह प्रकृति का नियम है कि यदि किसी एक इन्द्रिय में दोष उत्पन्न होता है तो दूसरी इंद्रियों की क्रियाशीलता एवं संवेदनशीलता बढ़ जाती है।कोकिला का मन लेखन में लगने लगा था, निरंतर प्रयास से वह काफी अच्छा लिखने लगी थी,आवाज तो उसकी अच्छी थी ही।आज सोशल मीडिया एक बेहतरीन प्लेटफार्म प्रस्तुत करती है, बस उसका सदुपयोग करना आना चाहिए।परिवार के प्रोत्साहन से वह अपनी रचनाओं की वीडियो बनाकर यू ट्यूब चैनल पर पोस्ट करने लगी।शीघ्र ही अच्छा रिस्पॉन्स मिलने लगा।तीन साल में उसने अपना ग्रेजुएशन पूर्ण कर लिया।एमए का फॉर्म भरने वाली है। एक भजनों के कलेक्शन पर भी काम कर रही है।अब कोकिला आत्मविश्वास से भरी हुई एक युवती है, जो उन तमाम लोगों के लिए प्रेरणास्रोत है जो अपनी किसी अक्षमता के कारण निराशा के अंधकार में खो जाते हैं।
सत्य है, मन के हारे हार है, मन के जीते जीत।इसलिए अपनी सकारात्मकता को सदैव बनाए रखना चाहिए, हिम्मत का साथ कभी भी नहीं छोड़ना चाहिए।सदा स्मरण रखना चाहिए कि जहाँ एक मार्ग बंद होता है, वहीं से दूसरे रास्ते खुलने प्रारंभ हो जाते हैं।
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