Ak ladki ko dekha to aisa lga...... books and stories free download online pdf in Hindi

एक लड़की को देखा तो ऐसा लगा.......


पहली बार वह मुझे तब दिखी थी जब वो पौधों में पानी डालने आयी थी, उसके होंटो पर हँसी जैसे चिपक सी गयी थी ऐसा लग रहा था जैसे वो पेड़ पौधों से बातें कर रही हो, अपने दुपट्टे को पौधों पर लहरा कर ऐसे खुश हो रही थी जैसे उसने वर्ल्ड कप ही जीत लिया हो, एक चंचल सी चुलबुली मेरे घर के सामने रहती हैं आखिर वो मेरी नज़रो में अभी तक आयी क्यूँ नहीं, अरे यह क्या वो तो इधर ही देख रही हैं, अरे नहीं मुझे अपनी निगाहे निचे कर लेनी चाहिए पता नहीं वह क्या सोचेगी, मैंने थोड़ी देर बाद उसकी तरफ देखा अब वो बागीचे में लगे निम्बू तोड़ने में लगी थी, उसकी आवाज़ मेरे कानो तक पहुंच रही थी "रामु काका यह निम्बू तोड़ना ज़रा आकर, मेरा हाथ नहीं पहुंच रहा"
उसके चेहरे पर थोड़ी बेचैनी थी, अभी थोड़ी देर पहले जो लड़की इतनी खुश थी जैसे उसने दुनिया की सारी खुशी अपने नाम कर लिया हो एक निम्बू न तोड़ पाने से इतनी परेशान क्यूँ हो गयी, मैं उसके चेहरे के भाव से थोड़ा डर गया और अपने कपड़ो को सूखने के लिए डालने लगा, मेरे कानो में एक आवाज़ आयी "ओ हेलो.....वहां क्या कर रहे हो, तुम्हे ही बुला रही हूँ, आकर एक लड़की की मदद नहीं करनी चाहिए तुम्हे, तुम कब से देख रहे हो हमें, तुम्हे नहीं पता एक पड़ोसी को दूसरे पड़ोसी की मदद करनी चाहिए"
उसकी डांट भी इतनी प्यारी थी के दिल कर रहा था और सुनू ......"अरे बेटा तुम्हे ही बुला रही हैं बिटिया रानी"
उसके बगल में खड़े बुज़ुर्ग ने भी उसका साथ दिया
"हाँ...हाँ मैं अभी आया", इससे अच्छा मौका मुझे कहा मिलता उसको करीब से देखने का और यह मौका भी मैं नहीं छोड़ना चाहता, मैं खुश होते हुए उसके सामने जाकर खड़ा हो गया, "विक्रम.....ज़रा वो वाले निम्बू तोडना, घर में इतना सारा काम पड़ा हैं और हम हैं की मम्मी का एक भी काम अभी तक नहीं कर पाए हैं"
मैंने निम्ब की तरफ देखते हुए कहा".... अभी तोड़ देते हैं.......एक बात पूछे आपसे, आप हमारा नाम कैसे जानती हैं"
"सब कुछ जानते हैं हम आप के बारे में, आप अंकल के बरसी में क्यूँ नहीं आये थे, वो इस दुनिया में सबसे ज़्यादा प्यार आपको करते थे"
"मैं आता लेकिन मेरा सामान किसी ने चुरा लिया था और उसी में मेरा पासपोर्ट भी था, मैं खुद बाबूजी से बहुत प्यार करता हूँ, बाबू जी हमारे लिए सब कुछ थे, हमे खुद सदमा लगा था जब हमने सुना था तो"
मैंने निम्बू तोड़ कर उसके आगे बढ़ाया,
"अच्छा फिर आप उनके साथ रहते क्यूँ नहीं थे"
उसे मेरे जवाब में कोई दिलचस्पी नहीं थी वो सिर्फ़ अपनी बातें ख़त्म करके घर की तरफ जाने लगी "मैं.... सुनिए, आप ने नाम नहीं बताया अपना"
"नाम जान कर क्या करेंगे, कल खुद पता चल जायेगा" इतना कह कर वो हसने लगी और हसते हुए घर के अंदर चली गयी, मैं उसकी हसी को भुला नहीं पा रहा था, आखिर यह लड़की हैं कौन जिसको देख कर मेरा दिल बेचैन सा होने लगा था, और जिसकी आवाज़ अब तक मेरे कानो में गूँज रही थी, मैंने अपना पैर उसके बगीचे से जैसे ही बाहर निकाला वैसे ही पीछे से आवाज़ आयी "रुकिए.....आपको दादी माँ अंदर बुला रही हैं" मैं मन ही मन सोचने लगा यहाँ से जाना कौन चाहता हैं......
मैंने मुस्कुराते हुए कहा "मैं अभी आता हूँ थोड़ी देर में, शायद मेरा फ़ोन घर पर ही रह गया हैं, मैं वो लेकर आता हूँ"
वो वापस अंदर चली गयी, मैं घर आ गया, एक अजीब सी ख़ुशी मिल रही थी दिल को जैसे किसी ख़ज़ाने का पता मिल गया हो मुझे, मैं उस लड़की को देखने के लिए बार-बार किसी बहाने से अपने बालकनी का चक्कर लगा ही आता था, शाम के समय उसके घर पर भीड़ सी लगने लगी थी जैसे कोई फंक्शन हो, मैं अपनी बालकनी से देख रहा था, मैंने देखा उस भीड़ से एक आदमी निकल कर मेरे घर की तरफ़ बढ़ रहा था, तभी बेल बजी और मैं निचे दरवाज़े पर गया, एक अंकल मेरे सामने गर्व वाली मुस्कुराहट के साथ खड़े थे, मैं कुछ बोलता उससे पहले ही वो बोल पड़े "यह मेरी बेटी की शादी का कार्ड हैं, आज उसकी हल्दी सेरेमनी हैं आप आइयेगा ज़रूर"
मैंने चुप चाप कार्ड अपने हाथ में रख लिया और मुस्कुराते हुए कहा "जी"
वो मेरी हाँ सुनने का इंतज़ार कर रहे थे, मैंने कार्ड के ऊपर लिखे नाम को पढ़ा, "राधा वेड्स अरुण"
मैंने सोचा यह अच्छा मौका होगा उससे बातें करने का, कम से कम उससे नंबर तो ले ही लूंगा, आखिर पहली नज़र में पसंद जो आ गयी थी, क्या मैं उसे सच में पसंद करने लगा था, यह बताना मुश्किल हैं मैं सिर्फ उसे पसंद करता था या प्यार भी करने लगा था शायद उसे पहले से पता था मैं उसके घर आने वाला हूँ तभी तो उसने मुझे अपना नाम नहीं बताया, कही उसके दिल में भी तो कुछ.......अभी जाऊंगा तो पूछ लूंगा, उससे मिलना हैं थोड़ा खुद को तैयार कर लेता हूँ, शाम के समय उसके घर से हल्दी के गाने बजने शुरू हो गए थे, मैं अब जाने के लिए बिलकुल तैयार था, खैर मैं उसके घर में किसी को जानता तो था नहीं और जिसे जानता भी था उसका नाम मुझे पता नहीं था, कुछ तो हिंट दिया होता उसने जिससे ढूंढने में आसानी रहती, इन लड़कियों को भी कैसे समझे सस्पेंस रखने में इतनी माहिर जो होती हैं, आखिर मैंने उसे अपनी जासूस निगाहो से ढूंढ़ ही लिया, पीली साड़ी और चेहरे पर मुस्कान लिए हेमा मालिनी से कम नहीं लग रही थी लेकिन यह क्या वो उन औरतो के बीच में जाकर क्यूँ बैठ रही हैं, कही यह शादी इसी की तो नहीं हैं, मुझे अजीब सी बेचैनी सता रही थी, क्या मेरा शक सही हैं, उस लड़की के पापा मेरे पास आकर बोलने लगे "बेटा जी आप खड़े क्यूँ हैं, बैठ जाइये"
मैं बिना कुछ बोले पास रखी कुर्सी पर बैठ गया, मैं जो देख रहा था उस पर विश्वाश करने में डर लग रहा था सब उसे बधाई दे कर जा रहे थे, मैं बिलकुल सुन्न था, जिसके सपने मेरा दिल सजोने लगा था अब वो मातम मना रहा हैं, आखिर कुछ तो बात है इस लड़की में जो मुझे इस अनजान जगह पर खींच लायी थी, मैं वैसे यहाँ रहता नहीं था, साल में कभी दो दिन के लिए आया करता था अपने बाबू जी से मिलने और फिर वापस दुबई चला जाता था अपनी माँ के पास, मैंने इस लड़की को पहले कभी नहीं देखा था, बाबू जी ने एक बार एक लड़की का ज़िक्र किया था मेरे सामने कुछ राधा जैसा ही नाम था, कही वो लड़की यही तो नहीं थी उस वक़्त तो मैंने उनकी बात टाल दी थी लेकिन मेरे बाबूजी मेरी पसंद को काफी हद्द तक समझते थे खैर अब मैं यह सब क्यूँ सोच रहा हूँ अब तो बहुत देर हो चुकी हैं, मैं खड़ा हुआ और वहां से निकलने लगा क्यूंकि अब मैं रुक के भी क्या करता इस अनजान महफ़िल में, तभी उसके पापा मेरे सामने दुबारा आ गए "बेटा जी खाना खाकर जाइएगा और अपनी छोटी बहन को आशीर्वाद देना मत भूलियेगा......"
"अ..... अंकल जी, कुछ अर्जेंट काम आ गया हैं, मैं बाद में आकर दे दूंगा आशीर्वाद"
मैं यह कह कर वापस अपने घर आ गया, यही पर ख़त्म होती हैं मेरी फर्स्ट साईट लव स्टोरी |