Aneeta ( A Murder Mystery ) - 6 - Last Part books and stories free download online pdf in Hindi

अनीता (A Murder Mystery) - 6 - अंतिम भाग

भाग -6

पुलिस लॉकअप में जतिन और लखन से सख्ती से पूछताछ की जा रही थी। पर दोनो अभी भी अपने अपने बयान पर अड़े हुए थे। इंस्पेक्टर विजय ने उनसे कहा...

"" देखो , हमे सब पता चल चुका है किसने किसको मारा है। लेकिन हम तुम्हारे मुंह से सुनना चाहते हैं। सीधे से बता दोगे तो मार नही पड़ेगी। वरना चमड़ी उधेड़ना पुलिस को अच्छे से आता है। बको जल्दी 😡..."' विजय बेहद गुस्से में दहाड़े।

जतिन हाथ जोड़ते हुए इंस्पेक्टर विजय से बोला - "" सर मेरा यकीन कीजिये। मेने किसी को नही मारा है। आपको लगता है कि मैने तेजपाल के माता पिता और अनीता को मारा है। आप खुद ही सोचिए,यदि मेने अनीता को मारा होता तो खुद से चलकर आपके पास क्यों आता। जबकि आप उस वक़्त मुझे जानते तक नही थे। भला में ऐसा करके खुद को मुसीबत में क्यों डालने लगा।अनीता मेरी पत्नि थी सर, उससे लव मैरिज की थी मेने। पहले मेरी शादी हुई थी उससे। मेरे पास कोर्ट का सर्टीफिकेट भी है। ये देखिए। "" जतिन कागज़ विजय की तरफ बढ़ाते हुए बोला।

"" अबे ये हमे क्या दिखाता है। हमने पहले ही पता कर लिया था। और हम ये भी जानते हैं कि तू कुछ दिनों से कंचन को परेशान कर रहा था। उसपर अपने साथ वापिस चलने का दवाब बना रहा था। तू उसे धमकी दे रहा था कि यदि वो तेरे साथ नही गई तो तू उसके बारे में सबको सबकुछ बता देगा। उसका बसा बसाया घर उजाड़ देगा। "'

"" और मेरा घर उजड़ा वो ???... कितना प्यार करता था में अनीता से। मुझे पहली बार वो रेलवे स्टेशन पर मिली थी। जब एक कोने में उदास बैठी रो रही थी। मेने उसे सहारा दिया , उसे पहचान दी। और इसमें मेरी क्या गलती है आखिर। मुझे वो जब मिली तो उसने अपना नाम अनीता ही बताया था। में उसके बारे में पहले से कुछ भी नही जानता था। मेरा क्या कसूर । मेने तो उससे सच्चा प्यार किया था। शुरू शुरू में तो वो मेरे साथ खुश रही। पर कुछ दिन बाद पता नही क्या हुआ उसका मन शहर में लगता ही नही था। में ठहरा एक व्यवसाई । दिन भर बाहर रहता था। कई बार सप्ताह भर तक काम के सिलसिले में बाहर रहना पड़ता था। उसका मन घर मे लगता ही नही था। मेरा एक मरा हुआ बच्चा पैदा हुआ था। उसके बाद से तो अनीता और भी गुम सुम रहने लगी। मुझसे देखा नही गया। उसकी खुशी के लिए कुछ भी कर सकता था में।

कुछ दिनों बाद उसने मुझसे शहर छोड़ कर कहीं और बसने को कहा। मेने उसकी खातिर ये भी किया। एक फॉर्म हाउस खरीदा। और उसके साथ रहने लगा। पर मेरा बिज़नेस भी था। वो बर्बाद हो रहा था। शहर से दूर फॉर्म हाउस पर रहने की वजह से में काम पर ध्यान नही दे पा रहा था । मेरे दोस्त अनिल का बार बार मुझे फोन आता था। पूरा बिज़नेस 6 महीनों में ही बर्बादी की कगार पर आ गया। मेरे सभी क्लाइंट मुझे छोड़कर जाने लगे थे। मेने वापिस शहर जाने का मन बना लिया। लेकिन अनीता से फिर भी जबरदस्ती नही की। उसे वही फॉर्म हाउस पर रहने का बोला। बीच बीच मे जाता था उससे मिलने। लेकिन एक दिन पता नही वो कहाँ गायब हो गई। मुझे धोखा देकर चली गई। फॉर्म हाउस से भाग गई। में तो जैसे मर ही गया होता। यदि मेरे दोस्त अनिल ने मुझे संभाला नही होता। लेकिन उसके बाद से मेरा मन अनीता के प्रति नफरत से भर गया। पर में उसे भूल नही पा रहा था। आखिर प्यार किया था उससे। लेकिन वक़्त के साथ मेने तो समझौता कर लिया था। यदि वो मुझे वापिस दोबारा नही मिलती।

एक दिन में एक प्लाट के सिलसिले में प्रॉपर्टी डीलर अशोक भाई से मिलने गया। लौटते में मुझे खेतों में से अनीता आती दिखाई दी। मुझे अपनी आंखों पर यकीन नही हुआ। मेने उससे बात करने की कोशिश भी की। पर पता चला उसने दूसरी शादी कर ली है। मेरा दिल उस दिन नही टूटा था जब वो मुझे छोड़कर गई थी। लेकिन जैसे ही मेने उसकी दूसरी शादी का उसके मुंह से सुना तो सन्न रह गया। मेरे दिल के टुकड़े टुकड़े हो गए। में बिना कुछ बोले वहां से चला आया।

उसके पीछे हमारा पूरा बिज़नेस चौपट हो गया था। अनिल ने कहा कि तेरी शादी उससे पहले हुई थी। और तूने उसे उस वक़्त सहारा दिया था जब वो बिल्कुल अकेली थी। अब यदि उसकी दूसरी शादी हो गई है तो इसमें तेरी क्या गलती। सुना है उसके बाप के पास काफी ज़मीन है। मांग उसके बाप से अपना हिस्सा। वरना केस कर कोर्ट में की शादी शुदा होते हुए भी उसने दूसरी शादी कर ली। पलड़ा तेरा ही भारी रहेगा। मुझे अनिल की बात जम गई। मेने उसे ब्लेक मेल करना शुरू कर दिया। घर पर जब वो अकेली होती तो उसे जाकर धमकाता था। बाप से ज़मीन दिलाने की मांग करता था तो क्या गलत किया में। मैने तो उसे अपने से दूर नही किया था। वो ही चली गई थी मुझे छोड़कर। मेने अपना हिस्सा मांगा तो क्या गलत किया। मेरा बिजनेस भी तो उसी की वजह से चौपट हुआ था। कर्ज़ बढ़ता जा रहा था।लेकिन मेने उसे नही मारा । बस धमकाया था की या तो वो मेरे साथ चले। वरना में सबको सच सच बता दूंगा की वो मेरी पत्नि है। कोर्ट में केस लगा दूंगा। अनीता उर्फ कंचन अंदर से डर गई कि उसकी बसी बसाई ग्रहस्ती उजड़ ना जाये। इसलिए वो अपने बाप से ज़मीन दिलाने तैयार हो गई।

चूंकि मेने उससे प्यार किया था इसलिए उसे एक मौका देना चाहता था। पर अक्सर उसके सास ससुर घर पर ही डटे रहते थे। मुझे उससे बात करने का मौका नही मिल पाता। वो मोबाइल तक नही रखती थी। एक दिन में प्लान बनाकर गया और उसके सास ससुर के सामने खुद को तेजपाल का दोस्त बताया। उस दिन तेजपाल जल्दी घर से निकल गया था। अनीता जेसे ही सबके लिए चाय लाई, मेने चुपके से उसमें नींद की दवा मिला दी। वो दोनो वहीं बिस्तर पर लुढ़क गए। इधर अनीता भी बेहोश हो चुकी थी। मेने बाहर आकर देखा उस वक्त दोपहर के सन्नाटे में कोई नही था। सभी के खेतों में कटाई का काम चल रहा था। सभी व्यस्त थे। मेने चुपके से अनिल को कॉल किआ। और उसके आते ही अनीता को गाड़ी में डाला और वहाँ से ले गया। पूरे एक दिन उसे वहीं एक जगह कैद रखा। जहां मेने उसे कितना समझाया कि वो मेरे साथ चलने को तैयार हो जाये। पर वो नही मानी । इधर आपका सर्चिंग अभियान उसे लेकर बढ़ता जा रहा था। खतरा बढ़ गया था। हमने वहां से निकलने का प्लान बनाया।और अनीता को बेहोश कर गाड़ी में डाल वहां से निकल गए।

लेकिन तभी हमारे प्रोपर्टी डीलर अशोक भाई की नज़र हमारी गाड़ी पर पड़ गई। उन्होंने अवाज़ देकर हमे रोक लिया। यदि हम नही रुकते तो और शक के घेरे में आते।

और जब उनकी नज़र हमारी कार में पीछे की सीट पर बेहोश अनीता पर पड़ी तो वो पचास सवाल करने लगे।

उनके सवालों का जवाब देना मुश्किल हो गया था। वो अनीता उर्फ कंचन को पहचान गए थे । हमने उनको बहुत समझाया पैसों का लालच भी दिया। पर वो नही माना। मजबूरी में हमे उसे मारना पड़ा। और उसकी लाश को वहीं जंगल मे दफ़ना दिया। जब लौटकर हम गाड़ी के पास वापिस आये तो देखा कि अनीता गाड़ी में नही थी। शायद उसे होश आ चुका था। और वो भाग गई थी। अनिल ने मुझसे वापिस चलने को भी बोला। पर मेरे मन मे एक आईडिया आया। अनीता से तलाक अबतक हुआ नही था। गेंद मेरे पाले में थी। सोचा उसकी रिपोर्ट लिखा दूंगा तो वो मुझे कानूनी रूप से वापिस मिल जायेगी। इसलिए मैंने उसकी गायब होने की रिपोर्ट लिखाने थाने गया। जब आप इसी केस पर काम कर रहे थे। मुझे बाद में पता चला कि रामलाल और उसकी पत्नि का मर्डर हो गया है। मेने तो सिर्फ उनको गोली देकर बेहोश किआ था। मारने का कोई इरादा नही था। पता नही किसने उनका गला काट दिया। ""

जतिन की बात सुनकर विजय गुस्से से बोले - साले तूने ही मारा उनको। तेरे हाई डोज़ को उनका बूढ़ा शरीर झेल नही पाया और वो मर गए। गला तो बाद में काटा गया।

"" लेकिन मेने अनीता को नही मारा। में उसे मार ही नही सकता । वो तो पता नही कहाँ चली गई थी। जब में आपके साथ वहां गया तो यकीन मानिए में खुद अनीता की लाश देखकर हैरान रह गया था। ""

उसे तुमने नही बल्कि इसने मारा था। विजय सामने से आते हथकडी लगाए एक बलिष्ठ शख्स की और इशारा करते बोले। तेजपाल उसे देखते ही पहचान गया। हैरानी से वो उसे ही देखे जा रहा था। उसके मुंह से निकल पड़ा।

"" हरामजादे अमन तू जिंदा है। तुझे तो मारकर कबका जंगल में फेंक दिया था। तू बच कैसे गया!!!!!"""

अमन उसकी और गुस्से से देखते हुए बोला - "" मेरी किस्मत की में बच गया। क्योंकि बदला जो लेना था। तेरे मां-बाप को तो मार दिया था। पर बदकिस्मती वो मेरे मारने से पहले ही दम तोड़ चुके थे। मुझे नही पता था। में तो समझा था कि वो सो रहें हैं । मेने उनका गला रेत डाला। लेकिन तेरी बीवी नही मिली थी। वरना में उसे भी वहीं मार देता। लेकिन एक दिन बाद मुझे वो जंगल के रास्ते मे एक गाड़ी में बेहोश पड़ी हुईं मिल गई। क्योंकि उसकी किस्मत में मेरे हाथों मरना लिखा था। कम से कम वो तो मेरे हाथों मारी गई। मेने उसे शर्मनाक मौत दी। पूरे कपडे उतारकर उसे तालाब में फेंक दिया। नींद के आगोश में उसे पता भी नही चला होगा कि कब वो दुनिया को अलविदा कह गई। हा हा हाहा हा...तूने मेरे परिवार के साथ बेईमानी की थी। मेरे मजबूर बाप को तिल तिल कर मरना पड़ा था। मेरी बहन को अपने ही गांव से चोरों की तरह भागना पड़ा। उसके पास अपनी जान बचाने का और कोई रास्ता नही था। पता नही वो इस दुनिया मे कहाँ होगी। लेकिन मुझे खुशी है कि तुझको जीवन भर का दर्द दिया है मेने। सुकून है मुझे। हा हा हा हा हा""".....

अमन पागलों की तरह अट्टहास कर रहा था।

"" ले जाओ इसे यहां से । "" विजय चिल्लाये । हवलदार अमन को वापिस ले गए।

"" तू नही जानता जतिन , अनिता उर्फ कंचन ने तुझे धोखा नही दिया। बल्कि तेरे इस दोस्त ने तुझे धोखा दिया। तेरे पीठ पीछे ये अनिता को तंग करता था। तू जब बाहर रहता था तो ये उससे ज़बरदस्ती करता था। उससे परेशान आ गई थी वो। लेकिन तुझसे कुछ कह नही सकती थी। तेरा सबसे पक्का दोस्त जो था ये। तू कभी उसकी बात का यकीन नही करता।
और ऊपर से इसने धमकी भी दी थी। तुझे लगा कि उसका मन शहर में नही लगता । अरे वो सिर्फ इसकी वजह से वहाँ से जाना चाहती थी। इससे दूर। और तू समझ नही पाया। ""

विजय की बात सुनकर जतिन हैरान रह गया। वो अचानक से उठा और अनिल पर झपटा।

"" साले कुत्ते तुझे मेने अपना सबसे अच्छा दोस्त माना और तूने ये सब किआ। "" हवलदार साठे ने उसे जैसे तैसे छुड़ाया।

इंस्पेक्टर विजय अब लखनपाल की तरफ मुखातिब हुए।

"" आप भी खुद बोलेंगे या हम बुलवाएं। ""

लखनपाल अबतक बुरी तरह डर चुका था। उसने भी तोते की तरह बोलना शुरू कर दिया।

"" साहब , में और माधव प्रसाद काफी अच्छे दोस्त बन गए थे। जब हम पैसा कमाने बाहर निकले तो जगह जगह ठोकरें खाईं। कही कुछ ढंग का काम नही मिला। भटकते भटकते एक जगह पहुंचे। एक सेठ रमन लाल के यहां कुछ काम मिला। वो बहुत अच्छे और दिलदार थे। बहुत जल्द ही हमने उनका विश्वास जीत लिया। उनकी पत्नि नही थी। उनका स्वर्गवास बच्ची को जन्म देने के साथ ही हो चुका था। अब उनकी 4 महीने की लड़की थी " अनीता"। दुर्गा भाभी उसका पूरा ध्यान रखती थी। उसे खिलाते खिलाते वो अनीता से बहुत प्यार करने लगीं । उनकी कोई संतान नही थी। उनकी ममता मासूम अनीता को देखकर जाग उठी।

इधर मेने और माधव ने हिसाब किताब में गोलमाल करना चालू कर दिया। लेकिन जल्द ही पकड़ लिए गए। सेठजी ने हमे धक्के देकर निकाल दिया। चूंकि दुर्गा भाभी ने अनीता को अपने बच्चे की तरह प्यार दिया था इसलिए सेठ रमन लाल ने हमे पुलिस के हवाले नही किया। लेकिन दुर्गा भाभी की ममता अनीता से अलग होने तैयार नही थी। हमारी वजह से उनको अनीता से दूर होना पड़ रहा था। मेने और माधव भैया ने उनको मारने की योजना बनाई। पर आखरी वक़्त में इनके अंदर का इंसान जाग उठा। और ये पीछे हट गए। इसलिए मैंने अकेले ही उन सेठ को मार दिया। और उनकी धन दौलत लेकर हम वापिस गांव आ गए। भाभी अनीता को अपने साथ ले आईं , और सबसे यही कहा कि ये उनकी ही सन्तान है। और उसका नाम अनीता से कंचन रख दिया। कंचन यानि अनीता जब बड़ी हुई तो एक दिन उसने माधव भैया और मुझे बात करते सुन लिया। उसे सारी हकीकत पता चल गई। उसे पता चल गया कि उसका असली नाम अनीता है। और उसके पिता को हमने मारा है।

वो तबसे ही गुम सुन रहने लगी। और एक दिन मौका देख कर वहां से भाग गई । फिर वो यही नाम रखकर शहर चली गई । और जतिन को मिली। आगे की कहानियां तो आपको पता है।

कंचन के जाने से सभी गांव वाले उसका पूछते। हम क्या जवाब देते। इसलिए मैंने और माधव भैया ने सबको यही बताया कि वो दूर की बहन के यहां उनका ध्यान रखने चली गई है।

लेकिन कुछ साल बाद एक दिन वो वापस आ गई। सबको यही लगा कि माधव भैया की बहन के नही रहने से वो वापिस आ गई। और कंचन ने भी सबको यही बोला।

"" और उस जंगल का क्या रहस्य है। "" विजय उसकी कॉलर पकड़ते हुए बोले।

"" एक दिन खजूरी काकी की पोती फुल्ली अकेली जंगल में लकड़ी बीनने गई। मेरा और माधव भैया का वहां से गुजरना हुआ। उसे अकेला देखकर मेरी नियत खराब हो गई। और मेने उसका बलात्कार कर दिया। लेकिन वो बुरी तरह चीखने लगी। मेने उसे मारने का मन बना लिया । पर इनके अंदर का इंसान फिर जाग उठा। और इन्होंने मुझे उसे मारने से रोक दिया। इधर फुल्ली पागल सी हो गई थी। वो बेहोश हो गई। मेने इनके कहने से उसे छोड़ तो दिया। पर वो जब भी मुझे और माधव भैया को देखती तो पागल सी हो जाती। डरकर पांव पटकने लगती। उसी डर से हमलोग उसके पास बहाने से मौजूद रहते की कही वह कुछ बता ना दे। और फिर बाद में मैने इसका फायदा उठाकर जंगल के प्रेत वाली बात फैला दी। और सबने यकीन कर लिया । फिर तो मैने आये दिन इस बात का फायदा उठाकर जंगल में अकेली लड़कियों को देखकर उनका बलात्कार करना शुरू कर दिया। और बाद में उनको मारकर वहीं दफना देता। लेकिन इसमें माधव भैया का कोई हाथ नही। ये सिर्फ मेरा काम है। ""

"" साले कमीने , मासूम लड़कियों की इज़्ज़त से खेलता है। अपनी उम्र का तो ख्याल किया होता। तुझे तो पहले कुटूंगा । फिर पीसूंगा । तेरे जैसे हैवान को गिफ्तार नही बल्कि जान से मार देना चाहिए। मन तो करता है साले तुझे एनकाउंटर में उड़ा दूँ । ले जाओ साले को यहां से। वरना पता नही में क्या कर दूंगा। "" विजय गुस्से तिलमिलाते हुये बोले।

फिर माधव की तरफ देखते हुए बोले। देखा तुम लोगों ने । सभी दोषी पकड़े गए। एक अनीता थी , जिसने अपने व्यवहार से सबका दिल जीत लिया था। वो तुम जैसों के बीच मे रहकर भी अपनी पहचान से महकती रही। क्योंकि उसमें एक नेक आत्मा का रक्त प्रवाहित हो रहा था। ले जाओ साठे इन्हें यहां से । इन लोगों की शक्ल तक नही देखना चाहता।

ये सभी किसी ना किसी के कातिल हैं । ""

इतना कहते ही इंस्पेक्टर विजय वहाँ से उठकर चले गए।

( समाप्त )

लेखक - अतुल कुमार शर्मा " कुमार "