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कुछ इस तरह- पूनम अहमद

कई बार हमें कहीं कुछ ऐसा पढ़ने को मिल जाता है कि पढ़ते वक्त ही ये महसूस होने लगता है कि..

अरे!..ऐसा तो हमारे फलाने रिश्तेदार..फलाने पड़ौसी या फिर फलाने जानकार के साथ उसके निजी जीवन में घटा था या अभी वर्तमान में भी घट रहा है।

दरअसल..यह लेखकों की पारखी नज़र और चरित्रों को समझने की समझ का ही कमाल होता है कि वे अपने आसपास घट रही रोज़मर्रा की घटनाओं में से ही अपने मतलब का माल निकल कोई ना कोई कहानी रच देते हैं।

दोस्तों..आज मैं रोज़मर्रा की घटनाओं से ही प्रेरित हो..लिखे गए एक कहानी संकलन की बात करने जा रहा हूँ जिसे 'कुछ इस तरह' के नाम से रचा है सुप्रसिद्ध लेखिका पूनम अहमद ने। इनकी अब तक 550 से ज़्यादा कहानियों प्रतिष्ठित पत्रिकाओं एवं विभिन्न समाचार पत्रों में छप चुकी हैं।

इस संकलन की कहानियों की तरफ़ बढ़ने से पहले
दो मज़ेदार बातें एक साथ। पहली तो ये कि इस कहानी संकलन के साथ मुझे लेखिका की तरफ़ से एक बेहद खूबसूरत..मन को मोहने वाला पत्र मिला। और दूसरी मज़ेदार बात मेरे भुलक्कड़पने को ले कर यह कि इस किताब को मैं अपनी बाकी किताबों के साथ रख कर इस कदर भूल गया कि मेरे पास है भी या नहीं? कुछ पता नहीं। बस..मन में था कि पूनम अहमद जी का लिखा हुआ पढ़ना है। बस..फिर क्या था? अमेज़न पर उनके नाम से सर्च किया तो यह किताब पैपरबैक और किंडल, दोनों वर्ज़नों में नज़र आयी। तो मैंने इसका किंडल वर्ज़न डाउनलोड कर इसे पढ़ा। आइए..अब चलते हैं इस संकलन की कहानियों की तरफ़।

इसी संकलन की एक कहानी 'दिल तो बच्चा है' जहाँ इस बात की तस्दीक करती दिखाई देती है कि बढ़ती उम्र के साथ हम भले ही बड़े होते जाते हैं लेकिन दिल में उमंगे और मस्ती करने की चाहत तो हमेशा जवां रहती है। तो वहीं दूसरी तरफ़ इस संकलन की एक अन्य कहानी में अपने पति की बेरुखी से त्रस्त विनीता अपने पहले प्यार, आशीष को भूल नहीं पाती मगर आशीष परिपक्वता दिखाते हुए उसे यही समझता है कि उसे सुखी रहने के लिए अपने पति के साथ ही नए सिरे से सामंजस्य बिठाना चाहिए।

इसी संकलन की एक अन्य कहानी में जहाँ किट्टी पार्टी में हमउम्र युवतियों के बीच तीन बूढ़ी स्त्रियों को मस्ती करते देख सदा कुढ़ने वाली लता भी एक दिन उनके उदास..एकाकी जीवन से रूबरू हो द्रवित हो उठती है। तो वहीं एक अन्य कहानी में उमेश और राधिका की खुशी का परवार नहीं रहता कि ऑस्ट्रेलिया में नौकरी कर रहा उनका बेटा, विनय बरसों बाद अपनी पत्नी नीता के साथ भारत लौट रहा है। मगर देखना तो यह है कि क्या उमेश और राधिका की खुशियाँ बरकरार रह पाएँगी?

किसी अन्य कहानी में पुरानी सोच का रमाकांत अपने बेटे, चिराग को इस वजह से अपनी जायदाद से बेदख़ल कर देता है कि वो अपनी मर्ज़ी से ब्याह करना चाहता है। क्या बदलते वक्त के साथ रमाकांत खुद को बदल पाता है अथवा जाति धर्म की पुरानी रूढ़िवादी बातों और विचारों में ही अटका रह जाता है? तो वहीं किसी अन्य कहानी में मुम्बई की एक एक सोसायटी में रहने वाली तीन सहेलियों, सौम्या..मिताली और नीतू में से सौम्या और नीतू यह सोच कर परेशान हैं कि उनके बच्चे सोलह साल की उम्र के होते ही अपने रंग ढंग बदल रहे हैं जबकि इसी उम्र में वे सब भी इसी तरह के समय..दौर और मनोस्थिति से गुज़र चुके हैं।

एक अन्य कहानी में जहाँ लिखने पढ़ने की शौकीन 'कावेरी' अपने उद्योगपति पति की अचानक हुई कुदरती मौत के बाद हताशा और अवसाद से घिर जाती है। तो ऐसे में उसे इस निराशा भरे माहौल से बाहर निकालने के लिए उसकी बेटी 'जूही' अपनी माँ के साथ यूरोप घूमने का प्लान बनाती है। जहाँ पिता की मृत्यु से पहले वे सब एक साथ जाने वाले थे। क्या यह बदलाव 'कावेरी' के मन में भी नयी आशाएँ.. नयी उमंगे जवां करने में सफ़ल हो पाएगा या फिर 'जूही' भी अपनी माँ की तरह निराशा के चले रहे माहौल में खुद को भी होम कर डालेगी? तो वहीं एक अन्य कहानी में कामकाजी 'शुभा' अपनी प्रैगनैंसी लीव के बाद फिर से ऑफिस जॉइन करने पर महसूस करती है कि उसके माँ बनने के बाद से ऑफिस में सभी का उसके प्रति व्यवहार अनौपचारिक से औपचारिक में बदल..रूखा रूखा सा हो चुका है। ऐसा घुटन भरा माहौल जब उसके लिए असहनीय हो जाता है तो तंग आ कर वह अपनी नौकरी छोड़ देती है। मगर लालची पति और ससुराल वालों के साथ रहते हुए क्या वो आसानी से इस घुटन भरे माहौल से मुक्त हो पाएगी?

इसी संकलन की एक अन्य कहानी में कॉलेज के पुराने दोस्तों का जब तन्वी की बेटी की शादी में फिर से मिलना होता है तो सारे हँसी मज़ाक के बीच मानसी और अखिल चाह कर भी सामान्य नहीं रह पाते। एक तरफ़ मानसी दुःख.. हताशा और नफ़रत की आग में जल रही है तो दूसरी तरफ़ पश्चाताप और अपराधबोध की अग्नि में अपना सब कुछ गंवा बैठा अखिल भी तड़प रहा है। तो वहीं एक अन्य कहानी में अनुज के साथ प्रेम विवाह करने से पहले ही लेटेस्ट फैशन ट्रैंडज़ और मस्ती में विश्वास रखने वाली वाणी, अनुज की कंजूसी को ले कर थोड़ी आशंकित और असहज तो होती है मगर ये सोच कर तसल्ली कर लेती है कि विवाह के बाद सब बदल जाएगा। मगर विवाह के पश्चात वाणी से प्रेरित हो कर क्या अनुज खुद को बदल पाता है अथवा वाणी भी अनुज के जैसी ही याने के कंजूस हो कर रह जाती है?

एक अन्य कहानी में सुबह काम पर नौकरानी के ना आने की बात सुन कर कहानी की नायिका तनावग्रस्त हो.. उदास हो जाती है जबकि उसका पति, विपिन उसे आराम करने और कोई काम ना करने की सलाह देता हुआ आराम से अपने ऑफिस चला जाता है। पति की सहनशीलता एवं सहज प्रवृति को ले उधेड़बुन में डूबी वह घर के काम निबटाने में जुट जाती है मगर उसके दिल से ये ख्याल नहीं निकल पाता कि इस तरह की अच्छी बुरी परिस्थिति में कोई ऐसे कैसे सहज रह सकता है?

एक अन्य कहानी में नौकरीपेशा बहु के दफ़्तर जाते वक्त कमरदर्द से पीड़ित सास को पता चलता है कि आज घर में खाना पकाने वाली बाई नहीं आएगी। तो वह इस वजह से परेशान हो उठती है कि उसी दिन लंच पर उसकी सहेलियाँ आ रही हैं। ऐसे में बिना नौकरानी के सब कैसे मैनेज होगा? एक अन्य कहानी में कहानी की नायिका अपने खुद के प्रति अपनी माँ की चिंता..बेचैनी और व्यग्रता को तब तक समझ नहीं पाती जब तक उसका स्वयं का बेटा पढ़ाई के लिए उससे दूर नहीं हो जाता।

धाराप्रवाह शैली में लिखी गयी इस संकलन की मज़ेदार कहानियों में कुछ जगहों पर वर्तनी की त्रुटियों के अतिरिक्त जायज़ जगहों पर नुक्तों का प्रयोग ना किया जाना थोड़ा खला। इसके अतिरिक्त कहीं कहीं कुछ शब्द आपस में जुड़े हुए दिखाई दिए तथा कुछ जगहों पर एकल शब्द भी दो भागों में बँटे हुए दिखाई दिए। जिन्हें ठीक किया जाना जरूरी है।

प्रूफरीडिंग के स्तर पर भी इस संकलन में कुछ कमियाँ दिखाई दी जैसे कि पेज नंबर 64 पर लिखा दिखाई दिया कि..

'एक बार परेशान कर रही है तो सुख चैन खत्म हो जाता है मेरा'

यहाँ 'एक बार परेशान कर रही है' की जगह 'एक बात परेशान कर रही है' आएगा।

इसी तरह पेज नंबर 66 पर लिखा दिखाई दिया कि..

'कह कर मैं हसी पड़ी।'

यहाँ 'कह कर मैं हसी पड़ी' की जगह 'कह कर मैं हँस पड़ी' आएगा।

हालांकि बढ़िया क्वालिटी का यह संकलन मुझे लेखिका से उपहार स्वरूप मिला। मगर अपने पाठकों की जानकारी के लिए मैं बताना चाहूँगा कि बढ़िया क्वालिटी में छपे इस कहानी संकलन के पेपरबैक संस्करण को छापा है नोशन प्रैस ने और इसका मूल्य रखा गया है 150/- रुपए। जो कि मुझे पृष्ठों की कम संख्या को देखते हुए थोड़ा ज़्यादा लगा। किंडल अनलिमिटेड के सब्सक्राइबर्स के लिए इसका किंडल वर्ज़न मुफ़्त में उपलब्ध है। आने वाले उज्ज्वल भविष्य के लिए लेखिका एवं प्रकाशक को बहुत बहुत शुभकामनाएं।