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महाकवि भवभूति रामगोपाल भावुक

महाकवि भवभूति  रामगोपाल भावुक

डॉ. नौनिहाल गौतम

 

(ग्रन्थ-महाकवि भवभूति, लेखक-रामगोपाल भावुक, विधा-उपन्यास, भाषा-हिन्दी, प्रकाशक-कालिदास संस्कृत अकादमी, उज्जैन, म.प्र., प्रथम संस्करण 2018, पृष्ठ-134, मूल्य 250/- रू.)

‘महाकवि भवभूति’ उपन्यास श्री रामगोपाल भावुक द्वारा रचित संस्कृत साहित्य की विभूति महाकवि भवभूति पर केन्द्रित उपन्यास है। इस उपन्यास में भावुक जी वर्तमान नामों, सन्दर्भों जैसे- नदी, गाँव आदि के नामों, विशेषताओं को भवभूति के ग्रन्थों में विद्यमान तथ्यों से जोड़ते चलते हैं।

भवभूति इस उपन्यास में स्वयं अपनी ‘रामकहानी’ कहते नज़र आते हैं।

वर्तमान कुरीतियों जैसे जाति प्रथा पृ. 23 पर भी भावुक जी अपना मत देते (सुलझाने का प्रयास करते) हुए चलते हैं। साथ ही नाटकों की समीक्षा पृ.26 भी करते चलते हैं।

सोलह शीर्ष कों में विभाजित इस ग्रन्थ के प्रत्येक शीर्षक की विषय वस्तु का उपसंहार रोचक ढंग से करते हैं। पृ.27

नए पात्रों की कल्पना भवभूति की तरह भावुकजी की निजी विशेषता है, भवभूति की दादी केशवबा पृ. 29, पत्नी दुर्गा पृ. 39, पुत्र गणेश पृ. 48, पुत्रवधू ऋचा पृ. 95 कल्पित पात्र हैं।

वर्तमान सामाजिक सरोकारों से भावुक जी पूरा वास्ता रखते हैं। उनका स्पष्ट कथन है कि ‘आर्य एक जाति थी’ पृ. 32 तब भेदभाव का प्रश्न ही अनुचित है।

वे मुहावरों से सजी भाषा का प्रयोग करते हैं- ‘पूत के पाँव पालने में दिखना’ पृ. 35, पिता के पैर का जूता पुत्र के पैर में आ जाए तो मित्रवत् व्यवहार हो पृ.74

भावुकजी वर्तमान में उपलब्ध साक्ष्यों मंच, शिवमंदिर, खुदाई में मिलने वाले पुरातात्त्विक अवशेषों ईंट आदि की भवभूति के नाटकों में विद्यमान तथ्यों से संगति साधते चलते हैं। पृ.41

लेखक के लेखन में पत्नी का सौजन्य वे निरूपित करते हैं। पृ. 50

भवभूति के मन्तव्य को सहज-सरल रूपा में प्रस्तुत करने हेतु भावुकजी ने इस उपन्यास को माध्यम बनाया है।

तीनों नाटकों का कथासार पृ. 51, 57, 98 पर मिल जाता है।

भावुकजी ने मालतीमाधवम् को भवभूति के मनोभावों की अभिव्यक्ति माना है-

‘यों मैं इस नाट्यकृति के द्वारा अपने मन की पीड़ा व्यक्त कर सका हूँ। पृ. 69

‘कतिपय सूत्र संकेत का भाष्य’ पृ.70 शीर्षक उपन्यास की निरूपण विधि का सूत्र माना जा सकता है। भावुकजी भवभूति के सूत्र संकेत का भाष्य ही तो करते हैं इस उपन्यास में।

लोक सामान्य में प्रचलित कथाओं किंवदन्तियों को भी गूँथा गया है।

नरबलि का विरोध,

ऐसा लगता है कि मंच पर प्रस्तुत करने से जो शेष बच गया है, भावुकजी ने उसे लिखना चाहा है।

अज्ञात/अनुत्तरित प्रश्नों के समाधान की समझ बूझ भरी कोशिश है भावुकजी की यह कृति।

समकालीन परिस्थितियाँ खराब सड़क, पानी से भरे गड्ढे आदि पृ. 89

नाटकों की सूक्ष्म विवेचना/समीक्षा भी भावुकजी ने यथा सम्भव किया है पृ. 105

भावुकजी का मानना है कि शम्बूक वध का प्रसंग भवभूति ने अनिच्छा से लिखा है। पृ. 114

‘कश्मीर-वान्यप्रस्थ का पड़ाव’ भावुकजी की निजी कल्पना का विस्तार है।

टंकण त्रुटि पार्वतीनन्दन पृ. 92

समग्र रूप से महाकवि भवभूति उपन्यास एक महान कवि के कृतित्व एवं व्यक्तित्व को निकट से जानने एवं समझने के लिए एक उपयोगी रचना है इसमें मतभेद नहीं हो सकता ऐसी कृति के लिए लेखक बधाई स्वीकार करें मैं रचनाकार की ऐसी ही अन्य रचनाओं की बाट जोहता हूं.

 

डॉ. नौनिहाल गौतम

सहायक आचार्य, संस्कृत विभाग, डॉ. हरीसिंह गौर विश्वविद्यालय, सागर (म. प्र.) 470003