Veera Humari Bahadur Mukhiya - 15 books and stories free download online pdf in Hindi

वीरा हमारी बहादुर मुखिया - 15

इशिता जैसे ही जाने के लिए आगे बढ़ती है तभी किसी की गन प्वाइंट उसपर टिक जाती है.....
अचानक हुई हरकत से इशिता हैरानी से पीछे मुड़ती है......

" कौन हो तुम...?.. " इशिता गुस्से में उससे पूछती है.....
इशिता पर गन प्वाइंट देखकर तीनों घबरा गए थे , बरखा डरे हुए कहती हैं...." वीरा....."
वो शख्स वीरा का नाम सुनते ही इशिता को घूरते हुए कहता है....." ओह तुम हो इस गांव की मुखिया वीरा..…"
इशिता उस आदमी को देखती है जिसने अपने चेहरे को नकाब से ढक रखा था , उसकी बातों को सुनकर इशिता कहती हैं...." कौन हो तुम...?..."
वो आदमी मुस्कुराते हुए कहता है...." अभी जानने का समय नहीं है वीरा जी.....सही समय आने पर मैं आपके सामने हूंगा..."
इतना कहकर वो आदमी वहां से चला जाता है.....
इशिता उसे जाते हुए देखकर अपने आप से कहती हैं...."बड़ा अजीब इंसान हैं , ....."
बरखा उसके ध्यान को हटाते हुए कहती हैं...." वीरा , उसपर इतना गौर मत करो चलो सब हमारा इंतजार कर रहे होंगे...."
" हां , बरखा..." एक हल्की मुस्कान के साथ इशिता तीनों के साथ गांव में पहुंचती है....
चौपाल पर पंचायत लगी हुई थी
...... वीरा बाकी सबके साथ नंदिता को लेकर पहुंचती है .... अपनी बेटी को देख निराली अपने आंसू पोछकर इशिता के पास जाकर अपने हाथों से उसके चेहरे को पकड़कर कहती हैं......" तुम हमारे लिए भगवान बनकर आई हो , आज तुम्हारी वजह से मुझे मेरी मिल गई , नहीं तो पता..."
निराली आगे कुछ कहती उससे पहले ही इशिता उनकी बात को काटते हुए कहती हैं...." ये कैसी बात कर रही है चाची , नंदिता को बचाना मेरा फ़र्ज़ था , मैं यहां आप सबके लिए ही आई हूं...."
इतना कहकर इशिता वहां से चली जाती हैं.....
उधर रांगा परेशान सा इधर उधर घूम रहा था...ऊमी हाथ में दूध का गिलास लिए अंदर आती है , ...
रांगा को परेशान सा इधर उधर घूमते देख गिलास साइड में रखकर उसके पास जाकर रांगा के कंधे पर हाथ रखते हुए कहती हैं....." सरदार ....इस तरह भौंर में परेशानी किस बात की क्या फिर से महेसू ने कुछ नुकसान पहुंचाया है...."
रांगा ऊमी की तरफ देखते हुए कहता है...." नहीं ऊमी महेसू ने इस समय कुछ नहीं किया , हमें तो केवल वीरा ने बैचेन कर दिया है...."
ऊमी मुंह बनाते हुए कहती हैं...." सरदार पहली बार आप को इस परेशान देखा है , , लेकिन सरदार कहीं आप वीरा के चक्कर में गांव पर से अपना डर खत्म न कर देना , फिर आपकी प्रतिष्ठा दांव पर न लग जाए...."
रांगा एक रौबदार आवाज में कहता है...." नहीं ऊमी हम ऐसा नहीं होने देंगे , , हम वीरा को अपने रास्ते में नहीं आने देंगे , कल ही हम अचलापूर जाएंगे , लेकिन उससे पहले..."
रांगा एक शातिराना अंदाज में कहता है...." लेकिन सुनो ऊमी निमी के आने पर उसे ..." रांगा एक छोटी सी पुड़िया देते हुए कहता है...." इसे निमि को दे देना और कहना इसे किसी तरह वीरा के खाने में मिला दिया जाए ताकि मैं उसे नुकसान पहुंचाए बिना अचलापूर में फिर से डर पैदा पाऊं... "
ऊमी उस पुड़िया को देखकर कहती हैं...." सरदार इससे क्या होगा..?..."
रांगा हंसते हुए कहता है....." ज्यादा कुछ नहीं बस वीरा हमारे रास्ते में नहीं आएगी ..."