Hudson tat ka aira gaira - 29 books and stories free download online pdf in Hindi

हडसन तट का ऐरा गैरा - 29

नहीं नहीं...ये सब तो खेल था, कौतुक था, मज़ा था। इसमें प्यार - व्यार कुछ नहीं था। ऐश ने बैठे- बैठे सोचा।
जहाज के मस्तूल पर बैठी ऐश ध्यान से उस लड़की को देखे जा रही थी जो जहाज की गैलरी में एक सुंदर चटाई बिछा कर अपने शरीर पर कोई लोशन मल रही थी। एक छोटी खुशबूदार शीशी उसके करीब ही रखी थी। उसे इस व्हेल वॉच में मानो कोई दिलचस्पी ही नहीं थी। वह अपने मित्रों या संबंधियों के साथ यहां आ तो गई थी पर वो केवल समुद्री सैर का आनंद लेने में ही खोई हुई थी। उसने तेज़ गर्मी से बचने के लिए अपने बदन के कपड़े एकदम कम कर दिए थे और वह धूप की झुलसन से बचने के लिए तेल जैसा कोई द्रव अपने शरीर पर थोड़ा - थोड़ा लगा रही थी। उसकी उभरी हुई छाती की चिकनी और गोरी त्वचा अब धूप और चिकनाई के मेल से दमकने लगी थी।
ऐश ने सोचा, देखो प्राणी अपने प्राण की हिफाज़त किस तरह जतन से करते हैं। और कोई दूसरा उन्हें खा डालता है।
छी- छी, ऐश को ऐसा नहीं सोचना चाहिए। सागर की सतह से छींटों के साथ उछली मछलियों को तो ऐश के साथी परिंदों ने ही खाया था। अपने हमजोलियों के भोजन पर भला कैसी छींटाकशी??
लेकिन ऐश जैसे ही अपनी सोच के दायरे से निकली वो बुरी तरह घबरा गई। उसका कोई साथी जहाज के किसी भी हिस्से पर अब दिखाई नहीं दे रहा था। सबके सब उड़ कर चले गए थे।
और तब ऐश को ये समझ में आया कि जहाज वापस लौट कर उल्टी दिशा में जा रहा है। उसका पूरा का पूरा झुंड उड़ कर आगे बढ़ चुका था। वह लड़की की हरकतों को देखती हुई बैठी रह गई थी।
हड़बड़ा कर ऐश ने फ़ौरन उड़ान भरी और वो अपने समूह में मिलने के लिए बदहवास होकर तेज़ी से जहाज की विपरीत दिशा में उड़ने लगी।
कुछ दूर जाने पर ही उसे अपना दल दिखाई दे गया जो किसी टिड्डी दल की तरह उड़ा चला जा रहा था। ऐश ने भी अपनी परवाज़ और बढ़ा दी।
लेकिन जैसे ही ऐश अपने दल के करीब पहुंची उसे समूह में पीछे ही पीछे उड़ता हुआ वही युवा पक्षी दिखा जो ऐश से पहले एक बार उसके साथ रंगरैली मनाने की पेशकश कर चुका था। वो बार- बार गर्दन घुमा कर पीछे आती ऐश को ही देखे जा रहा था। उसकी आंखों में बला की चमक थी। वह कुछ व्यंग्य से मुस्कुरा भी रहा था।
ऐश को अच्छा नहीं लगा। उसे लगा, शायद ये समझ रहा है कि ऐश किसी नर परिंदे के साथ तफ़रीह करने कहीं ठहर गई थी।
ऐश ने उपेक्षा से नज़र घुमा ली और समूह के बीच पहुंच कर उड़ने लगी।
देर शाम को जब उन उड़ते पंछियों को एक द्वीप के किनारे के पेड़ दिखने शुरू हुए तब तक सब थक कर चूर हो चुके थे। अब तो सबका दिल यही चाह रहा था कि कोई अच्छा सा ठिकाना तलाश करके वहां डेरा डालें। उनका मुखिया पैनी नज़र से ऐसी ही जगह खोज रहा था जहां दाना- पानी भी हो और सुरक्षित जंगल भी।
प्रकृति कंजूस थोड़े ही है, पैदा करती है तो पालती भी है। जल्दी ही उन्हें धान के खेतों के क़रीब एक पेड़ों का झुरमुट दिखाई दे गया।
बड़े से एक पेड़ की जड़ों के पास तक किसी पोखर की नैसर्गिक नहर भी आ रही थी।
ऐश ने देखा एक ऊंची सी फुनगी के क़रीब मुलायम टहनी पर उस युवा परिंदे ने डेरा डाल दिया। वह लगातार ऐश की ओर ही देखे जा रहा था। उसकी आंखों की कातरता देख ऐश का दिल पसीज गया। ऐश से अब उसकी उपेक्षा करते नहीं बना।
ऐश ने भी उसी शाख पर अपने पंजे जमा दिए। युवा नर को जैसे कोई मिल्कियत मिल गई। उसने चहक कर किलकारी मारी।