Do Pagal - Kahani Sapne Or Pyar ki - 12 books and stories free download online pdf in Hindi

दो पागल - कहानी सपने और प्यार की - 12

अंक १२ - इनकार  

    हेल्लो दोस्तो तो केसे हो आप लोग। मे आपका अपना लेखक वरुण एस पटेल आज फिर से हाजीर हु आपकी अपनी कहानी यानी दो पागल के बहारवे अंक के साथ। मे चाहता हु कि आप इस अंक को पढे इस से पहले आगे के ग्यारह अंको को पढ ले ताकी आपको यह अंक समझ आए।  अगर आपको यह नवलकथा अच्छी लगे तो इसे आप अपने दोस्तों के साथ शेर जरुर करे । आइए शुरु करते है आज का यह ट्विस्ट वाला बहेतरीन अंक।

शुरुआत। 

    दोस्तों यह अंक हमारी कहानी का बहुत ही महत्वपूर्ण अंक है। इस अंक से हमारी कहानी के दो मुख्य पात्र जीज्ञा और रुहान के जीवन में सबसे बडा ट्वीस्ट आने वाला है जो इस कहानी को और भी रफ्तार भरा बना देने वाला है। आज इस अंक से हमारी कहानी के महत्वपूर्ण ट्वीस्ट की शुरुआत होने वाली है। आप एसा भी बोल सकते हो की अब इस अंक से रुहान और जीज्ञा के जीवन में भुचालो की शुरुआत होने वाली है। अभी तक हमने देखा की मनीषभाई के घर से आते आते बिच रास्ते में रुहान जीज्ञा को प्रपोझ कर देता है और जीज्ञा को अंत में सिर्फ इतना बोलता है कि अगर तुम्हारी हा नही है तो प्लीज़ हमारी इस दोस्ती को मत तोडना बस यह पाच मिनट भुल जाना। जीज्ञाने अभी तक कोई भी जवाब नहीं दिया था।

    रुहान के प्रपोझ करते ही जीज्ञा अंदर से बहुत ही असमंजस में आ जाती है। जीज्ञा अब दोस्ती और प्यार के बिच फस गई थी। जीज्ञा खुद नहीं जानती थी की उसको रुहान से प्यार है भी या नहीं भी क्योकी उसका दिल बार बार हा बोल रहा था लेकिन कही कारणो के चलते उसका दिमाग अभी के लिए तैयार नहीं था। रुहान अपने घुटनो पे बेठकर जीज्ञा के जवाब का इंतजार कर रहा था। जीज्ञा धीरे धीरे अंदर से भावुक हो रही थी।

    रुहान... जीज्ञा बोलने की शुरुआत करती है।

   अपना नाम जीज्ञा के मु से सुनते हि रुहान को लगता है कि सायद अब जीज्ञा हा जरुर बोल देगी। अब सुनिए जीज्ञा का जवाब।

    रुहान प्लीज़ हम अगर दोस्त ही रहे तो ही अच्छा होगा। प्लीज़ भुलजा इस पाच मिनट को और मे भी भुल जाउंगी... इतना बोलकर जीज्ञा आगे अपने रस्ते की और चलने लगती हैं। दोनो के बिच एक दम से खामोशी छा जाती है। रुहान भी खडा होकर जीज्ञा के पीछे पीछे अपने बुलट को लेकर चलने लगता है।

    आगे जीज्ञा चल रही थी और पीछे अपनी बुलट के साथ रुहान। दोनो के बिच कुछ भी बाते नहीं चल रही थी लेकिन दोनो के बिच की खामोशी बहुत कुछ बया कर रही थी। आगे जाती हुइ जीज्ञा के मन में बहुत से ख्याल दखल अंदाजी कर रहे थे।

     मुझे माफ करना रुहान हम जेसी लडकीओ को यह हक ही नहीं है कि हम अपनी मर्जी से किसी से भी प्यार कर सके। मुझे पता है कि तु मेरे इस जवाब से नाराज नहीं होगा क्योकी तु मेरी परिस्थिति को समझता है...आगे चल रही जीज्ञाने मन ही मन कहा।

     तु चिंता ना करना जिज्ञा मे हंमेशा तुम्हारा एक अच्छा और सच्चा दोस्त बनकर रहुंगा और तुम्हारे हर एक सपने को पुरी सीद्दत के साथ पुरा करने की कोशिश करुंगा... पीछे चल रहे रुहानने मन ही मन जीज्ञा की व्यथा को समझते हुए कहा।

     चलते चलते बिच मे एक गैराज आता है जहा रुहान अपनी बुलेट को ठीक करवाता है और फिर जीज्ञा को अपने पीछे बिठाकर होस्टेल छोडने के लिए जाता है।

     अभी तक दोनो के बिच खामोशी छाई हुई थी। दोनो इतने पास बेठकर भी एक दुसरे से बहुत दुर हो एसा लग रहा था। दोनो संभलकर होस्टेल के पास वाले पीपल के पेड के पास पहुचते है। जीज्ञा को संभालकर रुहान उस पेड पे चडाता हैं और जीज्ञा संभलकर होस्टेल की उस खीडकी तक पहुचजाती है। खीडकी से अंदर होस्टेल में जाते हुए रुहान को अपने हाथ के इसारे से बाय कह कर जीज्ञा अंदर होस्टेल में चली जाती है। इस तरफ रुहान भी अपने घर जाने के लिए चला जाता है।

     बेड पर सोई हुई जीज्ञा और बुलेट पर घर जाता हुआ रुहान दोनो के मन में अभी एक दुसरे का ही ख्याल चल रहा था। तो कुछ एसे बितती है यह रात।

    अब आगे का एक महिना कुछ एसे बितता है। जीज्ञा फिरसे अपनी कहानी को विस्तार से लिखने का काम शुरू करती है। सभी दोस्तो की मोज मस्ती के बिच जीज्ञा अपना लिखने का काम शुरु रखती है। सारे दोस्त जीज्ञा के लिखने के समय किसी भी प्रकार की तकलीफ ना हो इसका पुरा ध्यान रखते थे। क्लासरुम मे आगे प्रोफेसर पढाते और पीछे जीज्ञा अपनी कहानी को लिखने में मशगुल रहती। जीज्ञा को कुछ दुसरा लिखते हुए प्रोफेसर ना देखले इसका सारा इंतजाम जीज्ञा के तीनो हरामी दोस्त कर देते। कभी कभी जीज्ञा कोलेज के गार्डन में लिखने के लिए बेठती और उसे दुसरे स्टुडन्स के आवाज से तकलीफ होती तो उसके सारे दोस्त पहले गार्डन में कृपया शांती रखे के बोर्ड लगाते और फिर भी आवाज कम ना हो तो सबको घमकाकर वहा गार्डन से भगा देते। एसा कह सकते हैं कि जीज्ञा को कहानी लिखने में किसी भी तरह की तकलीफे उसके दोस्त नहीं होने देते थे। जीज्ञा और रुहान धीरे धीरे प्रपोझवाली रात को भुलकर अब आगे बढ गए थे। सारे दोस्तों को जीज्ञा और रुहान के स्वभाव से एसा लग रहा था कि जेसे दोनो एक दुसरे से प्यार करते हैं लेकिन जता नहीं पा रहे हैं। एक महिना बितने के बाद सबसे पहले जीज्ञा दो तीन दिन की छुट्टी लेकर अपने घर जाती है और घर के अंदर जाते ही सबसे पहले वो अपने पापा के पेरो को छुती हैं और गीरधनभाई उसके शिर पर हाथ रखकर आशीर्वाद भी देते हैं लेकिन जीज्ञा को अपने पापा के अंदर उतनी खुशी नही दिखती जीतनी एक बाप को अपनी बच्ची से दो महिने के बाद मिलने पर होती है। जीज्ञा अपने पापा से मिलने के बाद अपनी मम्मी से मिलती है। प्रेमीलाबेन की आखो में आसु आ जाते हैं अपनी बेटी को देखकर। जीज्ञा और प्रेमीलाबेन दोनो बहोत ही खुश थे। जीज्ञा मनीषभाई वाली बात अपनी मम्मी को बताती हैं और इस बात को सुनकर प्रेमीलाबेन बहुत ही खुश थे। जीज्ञा को अब लग रहा था कि उसका सपना जल्दी ही पुरा हो जाएगा लेकिन जेसा जीज्ञा सोच रही थी वेसा कुछ भी होनेवाला नही था। अब क्या होनेवाला था वो तो आपको कहानी आगे पढने पर ही पता चलेगा।

    तीन दिन की छुट्टी बिताने के बाद जीज्ञा फिरसे बरोडा वापस आ जाती है। महीना पुरा होने के बाद जीज्ञा और रुहान फिरसे मनीषभाई के पास अपनी कहानी को लेकर पहुचते है। मनीषभाई कहानी पढने के लिए दो तीन दीन का समय लेते है और फिर जीज्ञा और रुहान को वापस बुलाते है और कहते हैं कि कहानी बहुत ही अच्छी लिखी है अब इसे जीज्ञा के नाम पर रजिस्टर करनी होगी और फिर मनीषभाई के गाइडन्स के साथ रुहान मे और पापा नामक कहानी को जीज्ञा के नाम पर रजिस्टर करवाते है और फिर मनीषभाई उस कहानी को कायदाकिय तरीके के साथ खरीद लेते हैं। जीज्ञा, रुहान और सारे दोस्त आज बहुत ही खुश थे कि जीज्ञा का सपना अब बहुत ही बडे लेवल पे पुरा होने वाला है लेकिन उनके साथ आगे कुछ एसा होनेवाला था जो उन्होने सोचा भी नहीं होगा। जीज्ञा की कहानी इतने बडे डिरेक्टरने खरीद ली है इस खुशी मे सभी दोस्त एक होटल में खाने के लिए जाते हैं।

    सभी दोस्त टेबल पर बेठे थे और अभी तक खाना टेबल पे परोसा नही गया था इसीलिए सभी दोस्तों के बिच मस्तीवाला संवाद चल रहा था।

    यार सोचो अगर दुनिया में खाना नही होता तो हमारा क्या होता... महावीरने अपने जेसा सवाल करते हुए कहा।

    हमारा तो कुछ ना कुछ हो ही जाता लेकिन तेरा सिर्फ क्रियाकर्म ही होता और कुछ नहीं... रवीने महावीर की मजाक उडाटे हुए कहा।

    यार जीज्ञा तु तो अब बडी स्टार बन गई है कभी समय मीले तो हमे बुला लेना... पुर्वीने जीज्ञा की खीचाई करते हुए कहा।

    तुझे तो फिर भी बुलायेगी पुर्वी क्योकी है तो तेरे मामा की लडकी लेकिन हम गरीबो को कोन पहेचानेगा... रुहानने भी पुर्वी का साथ देते हुए कहा।

    सही बात है आप दोनो की। हमे भुल मत जाना कभी ओटोग्राफ दे देना भीड में खडे हो तो... रुहान, पुर्वी और जीज्ञा को बोलते हुए रवीने कहा।

    बस अब बस भी करो मेरी खीचाइ करना मुझे इतना भी बडा नहीं बनना की मे उन्हे ही भुलजाउ की जीन्होने मुझे बडा किया है... जीज्ञाने अपनी बहन और तीनो दोस्तो से कहा।

    अरे हमने कहा बडा बनाया है तुम को। उसमे बडा हाथ तो मनीषभाई का है... रुहानने कहा।

    हा वो तो है कि अगर मनीषभाई नहीं होते तो यहा तक पहुचने में बहुत ज्यादा वक्त लग जाता और वो मेरे पास है नहीं तो उनका भी हाथ है और रुहान तुम्हारा भी क्योकी तुम नही होते तो मे मनीषभाई के पास केसे पहुचती... जीज्ञाने रुहान से कहा।

    रिक्षा से जाती उसमे क्या है... महावीरने चुटकुला मारने की कोशिश करते हुए कहा।

    बहुत ही बुरा जोक था यार। मुझे खाने की प्लेट मु पे मारने का मन हो गया था... रुहानने महावीर के चुटकुले का जवाब देते हुए कहा।

    अच्छा इतना बुरा था चलो कोइ बात नहीं अगली बार थोडी और महेनत करुंगा... महावीरने फिरसे मजाक के मुड मे कहा।

    देख जीज्ञा कोई भी तुम्हारे जीवन में हो या ना हो लेकिन तुम्हारा सपना जरुर पुरा होगा वो तुमसे कोई नहीं छीन सकता... रुहानने जीज्ञा से कहा।

    अबे यार यह संसद भवन जेसे चर्चा करना बंद करो और खाने का कुछ करो अभी तक यह खाना क्यु नही आया... महावीरने कहा।

     तुझे खाने के अलावा जीस दिन कुछ सुझ गया ना उस दिन तु जिम्मेवार लडका हो जाएगा... रवीने महावीर से कहा।

     मतलब यह जिम्मेवार कभी नहीं होनेवाला... पुर्वीने भी महावीर की खीचाई करते हुए कहा।

     संवाद चल ही रहा था तभी वेइटर खाना परोसने के लिए आते हैं।

     थोडा जल्दी तुम लोग आ गए होते ना तो मेरी जिम्मेवारी पर सवाल नहीं उठते मेरे भाई... खाना परोसते हुए वेइटर से महावीरने कहा।

     महावीर की इस बात पर सभी दोस्त हसने लगते हैं। तो कुछ एसे सभी दोस्तो का खाना पीना होता है और उसके बाद सभी लोग घर जाने के लिए होटल से बहार निकलते है सिवाय पुर्वी के। पुर्वी अपने क्रेडिट कार्ड से खाने का बिल चुकाने के लिए जीज्ञा की और से जाती है। इधर सभी दोस्त बहार पुर्वी का इंतजार कर रहे थे और पुर्वी अंदर अपने कार्ड से पेमेन्ट कर रही थी और तभी उसकी नझर होटेल के केश काउन्टर पर लगे हुए टीवी मे चल रहे समाचार पर पडती है और उस समाचार को देखकर पुर्वी अंदर से हिल जाती है और उसके हाथ से अपना कार्ड गीर जाता है। पता नहीं एसे कोन से समाचार चल रहे थे लेकिन उस समाचार को देखकर पुर्वी घबरा सी जाती है और निचे गिरा हुआ अपना कार्ड लेकर फटाफट पुर्वी बहार खडे अपने दोस्तों के पास पहुचती है।

     ज...ज... जीज्ञा वो कुछ न्युझ मे बता रहे हैं सायद तुम लोगो को भी देखना चाहिए... पुर्वीने घबराहट के साथ कहा।

     सभी दोस्त दोडते हुए अंदर होटल के केश काउन्टर के पास पहुचते है और सभी टेलीविजन पर चल रहे समाचार को देखते हैं और सभी के चहेरे की हसी गायब हो जाती है। जीज्ञा की आख मे आसु आ जाते है।

    बे यह क्या हो गया यार... रवीने टेलीविजन पे चल रहे समाचार को देखते हुए कहा।

    सोरी जीज्ञा... रुहानने भी टेलीविजन पर चल रहे समाचार को देखते हुए कहा।

    है भगवान अब यही देखना बाकी रह गया था... पुर्वीने समाचार देखते हुए कहा।

    सभी दोस्त अपनी नाराजगी के साथ वो समाचार देख रहे थे। किसी को कुछ भी नहीं सुझ रहा था कि क्या करे और क्या ना करे।

    एसा उस टीवी मे क्या चल रहा था कि सब के चहरे की हसी गायब हो गई थी क्या उस मे मनीषभाई का कुछ चल रहा था ? या फिर सजंयसिहने कोई चाल चली थी जीज्ञा और रुहान को बरबाद करने के लिए ? उस अंजान आदमी ने तो कुछ एसा वेसा नहीं किया था ना जो जीज्ञा और रुहान की छुपकर फोटो खीच रहा था। जीसके कारण रुहान जीज्ञा को सोरी बोल रहा था। क्या हुआ होगा वो अभी तक रहस्यमय बना हुआ है लेकिन आप ज्यादा ना सोचे क्योकि आपको आने वाले बहेतरीन अंक मे जरुर पता लग जाएगा कि एसा क्या हुआ है जीससे सभी के चहेरे से हसी गायब हो गई है ? तो जुडे रहीयेगा हमारी इस नवलकथा के आनेवाले सभी अंको के साथ और उठाए मनोरंजन का भरपुर आनंद। अगर आप हमारी यह कहानी पसंद आ रही है तो इसे अपने दोस्तों के साथ शेर करना ना भुले।

TO BE CONTINUED NEXT PART ...

|| जय श्री कृष्णा ||

|| जय कष्टभंजन दादा ||

A VARUN S PATEL STORY