Shraap ek Rahashy - 9 books and stories free download online pdf in Hindi

श्राप एक रहस्य - 9

जावेद लगभग दोपहर तक पुलिस के सवालों का जवाब देता रहा। वो अब उकता गया था। वो चाहता था उससे सवाल जवाब करने के बजाय पुलिस लिली की तलाश करें, या फ़िर शहर में किसी ऐसे बच्चे को ढूंढे जिसे दर्द नहीं होता। अमर और कनक की लाशों को पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया गया था।

ये वहीं पोस्टमार्टम घर था जिसके ठीक बगल वाले सरकारी अस्पताल में एक रात कुणाल बर्मन ने जन्म लिया था। शाम ढ़लने के बाद जावेद को पुलिस की टीम ने छोड़ दिया था। वो अब कनक और अमर के घरवालों के साथ था। लिली को तलाश भी शुरू हो गयी थी। सभी जावेद से जानना चाहते थे की आख़िर ये दोनों हत्याएं हुई कैसे..? क्या सच में ये किसी जानवर का काम था..?

"नहीं वो कोई आम जानवर तो नहीं हो सकता। वो इंसानों की भाषा में बोलता है, हा उसके आवाज़ में थोड़ा सा खुरदुरापन जरूर था लेकिन उसने साफ़ साफ़ मुझसे अपनी शर्ते कही थी"। जावेद बार बार सबको ये जवाब देता जा रहा था। वे सभी लोग अब शहर के उसी मुर्दाघर के पास थे। जिसके ठीक सामने पोस्टमार्टम घर में कनक और अमर का पोस्टमार्टम हो रहा था।

वो एक झुंड था, जो जावेद को घेरे खड़ा था। यहां हॉस्पिटल के कुछ स्टाफ़ भी थे। बात जंगल मे लगी आग की तरह फ़ैल रही थी। लेकिन इसका एक फ़ायदा भी हुआ। दरअसल जब जावेद घिनु के अजीब से शर्त के बारे लोगों को बता रहा था तब वहां मौजूद सरकारी हॉस्पिटल का एक पुराना गार्ड भी था। वो अपने बूढ़े दिमाग़ पर ज़ोर डाल रहा था, कुछ आधा फँसा उसे याद तो आ रहा था।

" हा वो बरसात की एक भयानक रात थी। पूरे शहर में घुप्प अंधेरा फैला था। वो एक बड़े बिज़नेस मेन थे, जिनकी स्त्री गर्भवती थी और रास्ते पानी की वजह से बंद होने पर उन्हें इसी सरकारी अस्पताल में प्रसव के लिए आना पड़ा था। बहुत मुश्किलों के बाद आख़िर उसने जन्म लिया, वो भी तो ऐसा ही था, मतलब वो भी जन्म के बाद रोया नहीं था। नर्स के चिकोटी काटने पर भी नहीं। तभी तो उसे शहर के किसी बड़े हॉस्पिटल में तुरन्त भी भेजा गया था। ठीक ठीक याद नहीं उस दिन तारीख क्या थी लेकिन बात करीब एक साल पहले की ही है। हो सकता है अस्पताल के कागजों से आपको कुछ मिल सकें। उसमें तारीखें दर्ज़ होती है ना।"

ये बात गार्ड ने बड़े एहतियात से जावेद को बताया। जावेद को तो यकीन ही नहीं हुआ कि इतनी जल्दी उसे उस बच्चे के बारे पता चल जाएगा। और चला भी, हॉस्पिटल के जानकारी से उसे पता चला गया था कि वो बच्चा और कोई नहीं बल्कि अखिलेश बर्मन की औलाद कुणाल बर्मन है। अब बात सिर्फ़ लिली की नहीं थी जावेद दिल से चाहता था घिनु इस घाटी से हमेशा हमेशा के लिए चला जाये। घाटी के लोग ख़ौफ़ मुक्त होकर जिये। जावेद अब अखिलेश बर्मन के घर की तरफ़ जा रहा था, लेकिन वो कहां जानता था कि वहां जाकर भी वो खाली हाथ ही लौटेगा।

कुछ घण्टों बाद :- ( बर्मन विल्ला में )

जावेद :- "मुझे अखिलेश जी से मिलना है, उनके बेटे के बारे में कुछ बात करनी है।"

घर का नौकर :- " क्या आपको उनके बेटे के बारे कोई ख़बर मिली है..?"

जावेद :- "जी हां इसलिए तो मैं अखिलेश जी से बात करना चाहता हुँ, आप प्लीज उन्हें बुला दीजिये।"

घर का नौकर :- "जी मैं अभी बुलाता हूँ, आप अंदर आकर बैठिये ना।"

घर के नौकर को लगा कि जावेद का नाम का ये शख्स शायद खोये हुए कुणाल बर्मन की कोई ख़बर लाया है। जल्दी ही शायद वो उन्हें मिल जाएगा। उसके कदमों की चाल से ही ख़ुशी झलक रही थी। वो दौड़ता हुआ अपने मालिक के पास गया और लगभग चिल्लाते हुए ही उनको बताने लगा कि कोई उनके बेटे की ख़बर लेकर आया है। बात पूरे घर में फैल गयी और सभी गलियारे में आ गए जहां इस वक़्त जावेद बैठा था। अखिलेश बर्मन जावेद से अकेले में काफ़ी देर तक बातें करते रहे, लेकिन बाद में उनके निराशा ही हाथ लगी। उनका बेटा उनकी नजरों में शुरू से ही विचित्र था लेकिन अब एक और अजीब बात अपने बेटे के बारे सुनकर उनका मन उसके प्रति खिन्न सा हो उठा।

हां ये सच है, इन दिनों वो कुणाल से चिढ़ने लगे थे। उन्हें लगता बेकार ही वो उनके जीवन में आया। सकुंतला जी के साथ कितनी खूबसूरत जिंदगी जी तो रहे थे वे। सकुंतला जी भी अपना सारा ध्यान अखिलेश जी पर ही देती। लेकिन जब से कुणाल का जन्म हुआ है, उन्होंने अखिलेश जी से ढंग से बात तक नहीं की। दिन बीतने के साथ साथ सकुंतला जी की मानसिक हालात भी बद से बद्तर होती जा रही है। ये उनके लिए वाक़ई चिंता का विषय था।


उपर से जावेद से मुँह से ये सुनकर की एक खतरनाक प्रकार का जीव किसी ऐसे बच्चे को ढूंढ रहा है जिसे दर्द नहीं होता यहां तक कि उसने जो जन्म की तारीख और समय बताया था वो भी कुणाल से बखूबी मिलती है। अखिलेश जी हद से ज़्यादा हैरान परेशान हो उठे थे।

वे उकता चुके थे इन सब से। लेकिन ये तो उनकी परेशानियों की शुरुआत बस थी। आगे उनके साथ क्या क्या दुर्गति होने वाली है, इसकी ज़रा सी भी भनक उन्हें नहीं थी।

जावेद ने जब सुना कि महज़ दो दिनों पहले ही उस बच्चे की माँ उसे लेकर भाग गई है, जिसे ढूंढते वो यहां तक चला आया था, तो उदासी ने उसे बुरी तरह घेर लिया। किसी तरह उस रात वो लौटकर अपने घर गया।

वो इस शहर में अकेला ही था। थकान की वजह से उसे नींद जल्दी ही आ गयी थी। लेकिन....

रात का ये दूसरा पहर था। दूर किसी सूखे पेड़ में बैठा कोई उल्लू अचानक अपने पंख ज़ोर ज़ोर से फटकने लगा, जैसे की वो समझ गया था, हवा में एक अनचाही सी चीज़ घुलने लगी है। जावेद गहरी नींद में था जब उसे महसूस हुआ कि पूरे शरीर में कुछ रेंग रहा है। जैसे बहुत छोटे छोटे लेकिन झुंड में कीड़े हो। जैसे जिस्म में काली चीटियां रेंग रही हो। लेकिन ये काली चीटियां नहीं थी, ये तो उड़ने वाले भूरे घिनौने कीड़े थे। किसी ने करीब से देखा ही कहा था, ठीक ऐसे ही कीड़े तो घिनु के पीठ में मौजूद बालों में भी होते है।

ये कीड़े समझा रहे थे। घिनु आस पास ही कहीं था।...

क्रमश :- Deva sonkar

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