Shraap ek Rahashy - 5 books and stories free download online pdf in Hindi

श्राप एक रहस्य .. - 5

ये पहली बार नहीं था। शकुंतला देवी ने कई बार घर से भागने की कोशिश पहले भी की थी। पहले भी वे नन्हें कुणाल को लेकर दूर कहीं वीराने में चल जाना चाहती थी। लेकिन नौकर चाकरों से भरे विल्ले में उन्हें ये मौका कभी मिला नहीं।

देखते ही देखते डेढ़ साल बीत गए। कई कई बार कुणाल की चोटों से परिवार दहल उठता, लेकिन चोट लगने वाले को कोई फ़र्क ही नहीं पड़ता था। अभी बीते कल की ही बात है, कुणाल के लिए रोटी ख़ुद ही पकाने गयी थी सकुंतला जी। किचन के लंबे चौड़े सेल्फ़ पर एक किनारे ही कुणाल को बैठाया था उन्होंने और थोड़ी दूर खड़ी होकर वे गैस पर रोटियां सेंक रही थी। कुणाल के खाने की हर चीज़ वे ख़ुद ही बनाया करती थी,क्योंकि उन्हें घर के नौकरों पर भी रत्ती भर भरोषा नहीं था। वे कई कई रात लगातार सोती नहीं थी, उन्हें लगता जैसे वो पल भर को सोएंगी और कोई अघटन घट जाएगा।

शायद इसलिए रोटियां सेंकते वक़्त अचानक ही उनका सर घूमने लगा, उन्हें लगा जैसे पूरी रसोईं तेज़ी से गोल गोल घूमने लगी है, और वे केंद्र में है। ये महज़ कुछ सेकेंड के लिये ही महसूस किया उन्होंने, फ़िर धड़ाम से टाइल्स लगे किचन के फ्लोर में वे जा गिरी। उस दिन घर मे एक नहीं दो दो वजहें थी अफ़रा तफ़री मचने की। जब घर के महाराज जी (रसोइयां) बाज़ार से घर लौटा तो उसे घर की मालकिन यानी सकुंतला जी फर्श पर पड़ी मिली। उनके सर पर एक गम्भीर चोट भी थी,जिसमें से खून रिस रहा था। वहीं दूसरी तरफ़ ना जाने कैसे चलकर कुणाल गैस के बिल्कुल करीब पहुँच गया था, गैस जली हुई थी और उसपर तवा भी रखा हुआ था। कुणाल अपनी दोनों हथेलियों को उस गर्म तवे में रखकर ऐसे उलट पुलट रहा था जैसे कि सकुंतला देवी को वो रोटियां बनाते हुए अक्सर ही देखता था।

एक बार फ़िर दोनों को शहर के जाने माने अस्पताल में ले जाया गया। सकुंतला जी को कमज़ोरी के वजह से ऐसा हुआ था, वहीं कुणाल के बुरी तरह जख्मी हाथों में भी मरहम पट्टी की गई। दोनों रात तक घर लौट आये। पूरे परिवार ने जी भरकर इस बार सकुंतला जी को खरी खोटी सुनाई। आख़िर वाक़ई ग़लती थी भी उनकी।
लेकिन ये सब खरी खोटी सकुंतला जी हजम नहीं कर पाई। और वे कुणाल को लेकर घर से भाग गई।

कहानी बीस वर्ष पीछे :-

पिछले कई दिनों से नीलिमा को घर के हर हिस्से में बालों के गुच्छे दिखाई पड़ते। बाथरूम में नहाने जाती तो उनके पैरों में असंख्य बाल फंस जाते,रोटी के लिए आटा गूँधती तो आटे में बाल ही बाल नजऱ आते। दाल,सब्जी,दही हर चीज़ में बालों के गुच्छे ना जाने कैसे आ जाते। वे उन्हें साफ़ कर कर के परेशान हो जाती। उन्हें लगता कहीं न कहीं ये उनके ही बाल है, जो इन दिनों बेहिसाब झड़ रहे है। लेकिन उनकी ये गलतफहमी जल्दी ही दूर हो गयी।

एक रात उन्होंने घर के किसी जंग लगी कैंची से अपने सर के सारे लम्बे बाल काट लिए, सुब्रोतो दास की सेविंग किट से कहीं कहीं से तो वे गंजी भी हो गयी। उन्हें लगा उनके बाल ना होने पर समस्या ख़त्म हो जाएगी। लेकिन वे ग़लत थी। गंदे घिनौने बालों के गुच्छे तो उनके आंगन के कुएं से निकल कर आ रहे थे। काश उन्होंने इस तरफ़ पहले ही ध्यान दिया होता....!!!

कहानी वर्तमान में :-

घाटी के लोग अब घिनु से अच्छे ख़ासे ख़ौफ़ में रहते है। इधर बालों के गुच्छों से भी पूरी घाटी परेशान थी। कुछ दिनों पहले ही घाटी है तमाम नाईयो के दुकान और जेंट्स सैलून में जाकर लोगो ने हुड़दंग मचाई थी। उन्हें लगा सारे नाइयों ने मिलकर शायद ये कोई बदमाशी शुरू की है। आलम ये था कि, अब घाटी के सारे सैलून वाले हड़ताल पर चल गए थे। लेकिन फ़िर भी बालों का हर जगह मिलना जारी ही था। अब तो खुल्लम खुल्ला घिनु के रोने की आवाज़ घाटी के लोग सुन सकते थे, हा दिन में वो दिखता नहीं था। लेकिन रात में अक्सर वो किसी के छत पर या किसी के आंगन में, किसी के खेत में या कहीं भी जहां इंसान हो वहां जाकर वो ख़ूब रोता और लोगों से मदद मांगता। कोई भी इंसान उसकी मदद के लिए नहीं जाता,चाहे वो कितना भी रोये या तड़पे। लोग कहते उसकी मदद के लिए वे जाना तो चाहते है, लेकिन डर से भी ज़्यादा वे घिनु से घृणा करते थे। उसकी बनावट ही ऐसी थी, की लोग उसके पास जा ही नहीं सकते। बात तो अगल बगल के शहरों में भी फैल गयी थी। कई बार रात में यहां रेस्क्यू टीम भी घिनु को पकड़ने के किये आ चुका था, प्रेस वाले भी अक्सर ही आ जाते थे अपने चैनल के लिए कोई नया मसाला ढूंढने। उन सब की नज़र में घिनु कोई नई प्रजाति का जंगली जानवर था। लेकिन घिनु क्या चीज़ था ये तो बस उसे देखने वाले ही जानते थे, लेकिन उसे देखने के बाद जिंदा बचने वाले भी थे ही कितने बस गिने चुने। सब को ख़त्म कर डाला था घिनु ने...शायद लोगों को मारकर उसे अपना दर्द कम महसूस होता या शायद वो लोगों को मारकर अपने अपमान का बदला लेता था, उसकी मदद के लिए आगे ना आकर लोग जो उसकी अपमान करते थे, ये बात घिनु को बहुत तकलीफ़ देती थी। अजीब सा माहौल था शहर का।

इसी बीच दूर एक दूसरे देश में एक बुजुर्ग बैठा एक किताब पढ़ रहा था "किताब" जिसका नाम था "श्राप"...!! ये एक प्राचीन कहानी थी, जो भारत देश के महाराजाओं के वक़्त की थी। करीब दो सौ वर्ष पुरानी एक बड़े से साम्राज्य की कहानी थी ये। जो संस्कृत भाषा में लिखी थी। बुजुर्ग भी किताबों का अच्छा खासा ज्ञान रखते थे, वेद पुराणों में उनका ज्ञान लाज़वाब था। वे बड़े ग़ौर से किताब को पढ़ रहे थे, किताब को पढ़ते वक़्त उनके चेहरे में अजीब से भाव भी नज़र आते। जैसे वे किसी गंभीर संकट को करीब से देख पा रहे है। अचानक उन्होंने किताब बंद की और एक पुराने बक्से में से कोई मुड़ा तुड़ा कागज़ निकाला। ये समय ग्रंथ था, उनकी बनाई अपनी एक घड़ी या कहें कैलेंडर जिसमें हजारों वर्षों का इतिहास, भूत और वर्तमान लिखा है।

उन्होंने अपनी कंपकपाती उंगली किसी एक ख़ास तारीख़ पर रखी जिसके ठीक सामने वक़्त भी दर्ज़ था "दस बजकर बावन मिनट"। उन्होंने एक लंबी गहरी सांस ली और कहा:- "वे जन्म ले चुके है....मुझे अब जल्द ही वहाँ पहुँचना होगा।"

क्रमशः_Deva sonkar