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इतिहास और साहित्य अन्तर निर्भरता

इतिहास और साहित्य अंतर निर्भरता
केबीएल पांडेय
इतिहास सामान्यतः मनुष्य के अतीत की घटनाओं कार्यों और स्थितियों का अध्ययन करता है। ज्ञान के विभिन्न अनुसाशनो में व्यापकता के साथ ही परस्परता भी बड़ी है। इनमें सामग्री का आदान-प्रदान तो हो चुका ही है। हुआ ही है तथ्यों के परीक्षण में भी उनकी अंतर्निर्भरता प्रासंगिक रही है ।अंतः क्रियाओं के प्रसंग में इतिहास और साहित्य का विशेष संबंध रहा है। इतिहास लेखन के स्रोत लोकश्रुतियों से लेकर अभिलेखों तक रहे हैं। इतिहास लेखक अपने लेखन के लिए जितने विभिन्न स्रोतों का उपयोग करता है, शायद अन्य विषय नहीं करते। साहित्य जब अतीत अथवा अपने समकाल के ऐतिहासिक राजनैतिक विषय का उपयोग करता है तब उसे इतिहास के उपलब्ध ग्रंथों अभिलेखों के पास जाना पड़ता है। इसी तरह जिस समय के इतिहास के बारे में इतिहासकार को लिखना है , कभी-कभी महत्वपूर्ण सामग्री के लिए उसे साहित्य का कृतज्ञ होना पड़ता है। किसी भी समाज में अतीत में लिखे गए महाकाव्य इसके उदाहरण हो सकते हैं ।इस संदर्भ में यह सतर्कता अवश्य जरूरी होती है कि कल्पना और अतिशयोक्ति के अंश की पहचान कर उसे इतिहास ना बना दिया जाए।
यूनानी विद्वान हीरोडॉटस को इतिहास का जनक 'फादर ऑफ द हिस्ट्री ' भी कहा जाता है और इतिहास और साहित्य के विषय में एक उक्ति प्रचलित है कि' इतिहास में नाम और तारीख के अलावा सब कुछ झूठ होता है और साहित्य में नाम और तारीख को के अलावा सब कुछ सच होता है ।' जाहिर है कि कुछ विचित्र कहने के मोह में इस बात को बहुत बड़ा चढ़ा कर कहा गया है । ऐसा सामान्यीकरण (जनरलाइजेशन ) से तथ्य की अनदेखी हो जाती है । फिर भी इससे यह संकेत तो मिलता ही है कि अनुमान का आधार साहित्य तो लेता ही है । असंदिग्ध प्रमाणों के अभाव में इतिहास को भी संभावनाओं का आधार लेना पड़ता है। इतिहास को संशयग्रस्त बनाने वाला एक तत्व और है वह है अपने आश्रय दाताओं के निर्देश पर लिखा गया इतिहास। इसमें कुछ तथ्यों की उपेक्षा कर दी जाती है और कुछ बातें जो हुई ही नहीं जोड़ दी जाती हैं ।
इतिहास और साहित्य का रिश्ता इस तरह का है कि कभी उनमें से कोई जनक होता है और कभी जातक। आचार्य कवि केशव का 'वीर चरित्र' इतिहास को काफी सामग्री प्रदान करता है तो उनके प्रशस्ति काव्य 'रतन बावड़ी', 'जहांगीर जसचंद्रिका' यश वर्णन अधिक है।
इतिहास कम
अन्य विषयों की तरह इतिहास भी सोच और खोज की सतत प्रक्रिया है। इस प्रक्रिया के दौरान परिवर्तन भी होता रहता है और विकास भी ।एक ही समय के इतिहास लेखन में विभिन्न इतिहासकारों के निष्कर्ष अलग-अलग देखे गए हैं ।इससे यह प्रमाणित होता है कि इतिहास को जानने समझने की एक दृष्टि होती है ।वह सिर्फ टेक्स्ट नहीं है ।
साहित्य से इतिहास लेखन के स्रोतों का एक बड़ा उदाहरण दतिया के वे यात्रापरक काव्य हैं जो यहां के कई राजाओं की अनेक यात्राओं के वर्णन में लिखे गए हैं । इनके रचयिता दतिया के तत्कालीन राजाश्रित कवि हैं । दतिया के राजाओं ने कभी तीर्थ दर्शन के लिए और कभी अन्य उद्देश्य से यह यात्राएं की थींब। इन यात्राओं पर प्रबंध काव्य के रचयिता कार कवि स्वयं यात्रा में शामिल रहे, अतः उनका वर्णन और प्रामाणिक है ।काव्य होते हुए भी इन कृतियों में दतिया के राजवंश की परंपरा तथा इन यात्रा पर ग्रंथों का एक सिलसिला चलता रहा है। पारीछत की ब्रज यात्रा पर नवल सिंह प्रधान कवि ने संवत 1849 ई में 'ब्रजभूमि प्रकाश " ग्रंथ की रचना की। कवि स्वयं यात्रा में सम्मिलित था ।पारीछत दतिया नरेशों की परंपरा में छठवें राजा थे ।इन्हीं के समय 1835 ईस्वी में कर्नल स्लीमैन ने जबलपुर से शिमला की यात्रा की थी और वह 3 दिन दतिया के राजा का अतिथि रहा था । नवल सिंह प्रधान ने अपने ग्रंथ में दतिया के राजा के प्रस्थान करने से लेकर पारीछत के दतिया लौट आने तक का प्रतिदिन का वर्णन किया है ।
इस परंपरा का दूसरा ग्रंथ ' ब्रज विलास विजय भूषण' हैं जोकि राजा विजय बहादुर की ब्रज यात्रा पर आधारित है। इस ग्रंथ के रचयिता प्रसिद्ध कवि पद्माकर के पुत्र गदाधर भट्ट थे ।यह ऐतिहासिक तथ्य है कि पद्माकर को जयपुर ग्वालियर तथा अन्य राज्यों से बहुत धन और सम्मान मिला था, उन्होंने दतिया में अपना घर बना लिया था। इसकी इस क्रम में तारीख बहुत महत्वपूर्ण ग्रंथ है। इसकी रचना भी गजाधर भट्ट ने की थी यह ग्रंथ.....