The Art of War - 13 books and stories free download online pdf in Hindi

युद्ध कला - (The Art of War) भाग 13

11. नौ दशाएं

सुन त्सू के अनुसार— युद्ध कला नौ प्रकार के क्षेत्रों को मान्यता प्रदान करती है।

1. विस्तृत अथवा बिखरे हुए क्षेत्र
2. सरल अथवा सुगम क्षेत्र
3. विवादित क्षेत्र
4. स्वतंत्र क्षेत्र
5. राजमार्गों को मिलाने वाले क्षेत्र
6. गंभीर क्षेत्र
7. कठिन अथवा जटिल क्षेत्र
8. घिरे हुए इलाके
9. मजबूरी वाले क्षेत्र

1. जब एक सेनापति दुश्मन से अपने ही इलाके में युद्ध कर रहा हो तो इसे बिखरा हुआ क्षेत्र कहा जाता है क्योंकि अपने घरों के नजदीक होने के कारण अवसर मिलते ही सैनिक अपने पत्नी तथा बच्चों से मिलने के लिए दौड़ पड़ते हैं। परिणामस्वरूप जब वे आक्रमण के लिए आगे बढ़ते हैं तो उनमें युद्ध के लिए जरूरी जोश, साहस एवं निर्भीकता का अभाव होता है।
2. जब आप दुश्मन के इलाके में प्रवेश कर चुके हों, परंतु बहुत अधिक दूर तक नहीं गए हों तो इसे सरल क्षेत्र कहा जाता है।
3. वह भूमि जिस पर कब्जा होने पर दोनों पक्षों को लाभ मिलता हो, विवादित क्षेत्र कहलाती है।
4. जिस भूमि पर दोनों पक्ष स्वतंत्रता पूर्वक आ-जा सकते हो, खुल मैदान कहलाते हैं।
5. क्षेत्र जिससे तीन राज्यों तक पहुंचने का मार्ग खुलता हो, जिस पर आक्रमण करके अधिकांश भाग पर कब्जा जमाया जा सकता हो, राजमार्गों का मिलन क्षेत्र अथवा भेदक क्षेत्र कहलाता है।
6. जब सेना दुश्मन की सीमा में किले बंद शहरों को पीछे छोड़ते हुए बहुत आगे निकल जाती है तो ऐसे क्षेत्र गंभीर क्षेत्र कहलाते हैं।
7. पर्वत, जंगल, खाई, दलदल तथा बाढ़ से तुरंत प्रभावित होने वाले इलाके, जिन्हें पार करना मुश्किल होता है, कठिन क्षेत्र कहलाते हैं।
8. ऐसे क्षेत्र जहाँ प्रवेश तो आसानी से किया जा सके परंतु वहाँ से बाहर निकलना सरल न हो, जहाँ घेरे जाने पर मात्र मुट्ठी भर सैनिक विशाल सेना को तबाह करने के लिए पर्याप्त हों, घिरे हुए क्षेत्र कहलाने हैं।
9. ऐसे क्षेत्र जहाँ युद्ध करने के अतिरिक्त कोई अन्य विकल्प शेष न बचा हो विवशता वाले क्षेत्र कहलाते हैं।

अतः विस्तृत क्षेत्रों में — युद्ध न करें।
सुगम क्षेत्रों में — रुकें नहीं।
विवादित क्षेत्रों में — हमला न करें।
स्वतंत्र क्षेत्रों में — शत्रु का मार्ग रोकने का प्रयास न करें।
राजमार्गों को मिलाने वाले क्षेत्रों में — मित्रता बनाए रखें।
गंभीर क्षेत्रों में — लूटपाट करें।
जटिल क्षेत्रों में — देख-भाल कर आगे बढ़ें।
घिरे हुए इलाकों में — चालाकी (बुद्धिमानी) से काम लें।
मजबूरी वाले क्षेत्रों में — युद्ध करें।

युद्ध कला में निपुण पुराने समय के योद्धा जानते थे कि दुश्मन की सेना के बीच में दरार कैसे पैदा की जाए, वे जानते थे कि दुश्मन की बड़ी और छोटी टुकड़ियों के बीच फूट कैसे डाली जाए, मजबूत दुश्मन दस्तों के द्वारा कमजोर दस्तों की मदद में बाधा कैसे उत्पन्न की जाए, तथा अधिकारियों एवं उनके जवानों के बीच के विश्वास को कैसे खंडित किया जाए।
वे दुश्मन की बिखरी हुई सेना को एकजुट होने से रोकने तथा सेना में फूट डालने एवं अव्यवस्था उत्पन्न करने में माहिर थे।
जब उन्हें लगता था कि आगे बढ़ना लाभदायक है तो वे कदम आगे बढ़ाते थे अन्यथा वहीं रुक जाते थे।

इस तरह दुश्मन को उखाड़ फेंक कर आगे बढ़कर वे लाभदायक स्थिति को प्राप्त कर लेते थे तथा लाभ प्राप्त न होने की दशा में वे वहीं रुके रहते थे।

कोई यदि मुझसे पूछे कि दुश्मन की सुव्यवस्थित सेना पर नियंत्रण स्थापित करने का क्या तरीका है तो मैं कहूँगा— उसकी किसी ऐसी महत्वपूर्ण वस्तु अथवा जगह पर कब्जा जमा लें जो उसे सर्वाधिक प्रिय हो, परिणाम स्वरूप दुश्मन आपके इशारों पर नाचने को मजबूर हो जाएगा।
युद्ध में जीत का मूलमंत्र है— रफ्तार। शत्रु युद्ध के लिए यदि तैयार न हो तो इस अवस्था का फायदा उठाएं, उस रास्ते से आगे बढ़ें दुश्मन को जिसकी भनक तक न हो, उन स्थानों पर सबसे पहले धावा बोलें जहाँ दुश्मन सुरक्षा की दृष्टि से कमजोर हो।

227 ई. में मेंगटा (जो ‘वी’ प्रदेश के राजा 'वेन टी' के शासन में 'सिन चेंग' का राज्यपाल था) ने अपने राजा से अलग होकर ‘शू’ राज्य के साथ मिलने की योजना बनाई। उसने वहां के प्रधानमंत्री 'चू को लिआंग' को इस बारे में पत्र भी लिखे। वैन के सेनाध्यक्ष 'सूमा प्रथम' को जब इस बारे में पता चला तो विद्रोह के अनुमान से वह तुरंत अपनी सेना लेकर दौड़ पड़ा। सूमा के अधिकारियों ने सूमा से कहा, “कहीं मेंगटा वू तथा शू से गठबंधन तो नहीं कर चुका है, इस बात की पुष्टि किए बगैर हमें आगे नहीं बढ़ना चाहिए।” सूमा ने उत्तर दिया, “मेंगटा एक सिद्धांतहीन व्यक्ति है, वह अभी दुविधा की स्थिति में है। इससे पहले खुलकर वह विद्रोह की घोषणा करे, हमें तुरंत वहां पहुंचकर उसे दंडित करना चाहिए।” अतः अपनी सैन्य टुकड़ियों के साथ आठ दिन में वह 'सिन चेंग' की सीमा में जा पहुंचा। 'चू को लिआंग' को लिखे पत्र में मेंगटा ने लिखा था, "बैन यहाँ से 1200 कोस की दूरी पर है। मेरे विद्रोह की खबर जब सूमा को लगेगी तो वह राजा को अवश्य सूचित करेगा, मेरे खिलाफ किसी भी प्रकार की कार्रवाई में उन्हें कम से कम एक महीने का समय अवश्य लगेगा। इस बीच मैं भी अपनी किलेबंदी मजबूत कर लूंगा। इसके अलावा सूमा खुद तो यहाँ आएगा नहीं, और वह जिस भी सेनापति को युद्ध के लिए भेजेगा उससे चिंता अथवा डरने की कोई जरूरत नहीं है।” परंतु मेंगटा का अगला पत्र दुःख भरा था, जिसमें लिखा था, “अभी मात्र तथा आठ दिन ही बीते हैं और ये लोग हमारे शहर के दरवाजे तक पहुंच गए हैं। ये लोग कितने चालाक व तेज हैं, यह सोचकर मैं आश्चर्यचकित हूँ।” पंद्रह दिनों के भीतर सिन चेंग जीत लिया गया और मैंगटा का सिर कलम कर दिया गया।

वर्ष 621 ई. में 'ली चिंग' को विद्रोही 'सियाओ सीन' से मुकाबला करने के लिए 'कुई चोऊ' से 'सूचुआन' भेजा गया था। 'सियाओ सीन' ने 'हूपेह' में स्थित राज्य 'चिंग चोऊ फू' पर कब्जा जमा रखा था। पतझड़ (शरद ऋतु) का मौसम था और उस समय यांगसी नदी में बाढ़ आई हुई थी। सियाओ सीन ने सपने में भी नहीं सोचा था कि उसका दुश्मन तंग घाटी तथा नदी पार करके वहां पहुंच जाएगा, अतः वह पूरी तरह निश्चिंत था। किन्तु 'लीचिंग' ने बिना समय गंवाए आक्रमण की तैयारी शुरू कर दी। जब वह कूच करने लगा तो उसके सैन्य अधिकारियों ने उसे नदी में पानी कम होने तक रुकने की सलाह दी, परंतु ली ने कहा, “रफ्तार ही युद्ध में किसी सैनिक का सबसे बड़ा में हथियार होता है। इससे पहले कि दुश्मन को हमारे वहां पहुंचने की सूचना मिले क्यों न मौके का फायदा उठाया जाए। हमला करने का यही सबसे उचित समय है क्योंकि यांग सी अपने पूरे उफान पर है जिसके चलते हमारा दुश्मन पूरी तरह निश्चिंत होगा। हम उस पर तूफान की गति से टूट पड़ेंगे ताकि जल्दबाजी में अपने सैनिकों को इकट्ठा करने में अक्षम दुश्मन हथियार डालने पर मजबूर हा जाए।” लीचिंग की योजना कामयाब रही। आक्रमण के बाद सियाओ सीन ने बुद्धिमानी से काम लेते हुए आत्मसमर्पण कर दिया और स्वयं के लिए मृत्युदण्ड की सजा के बदले अपने सैनिकों को मुक्त करने की मांग की।

हमलावर सेना द्वारा युद्ध के निम्न सिद्धांतों का पालन किया जाना चाहिए।
दुश्मन की सीमा में आप जितने अधिक अंदर घुसते चले जाएं, उतनी ही अधिक एकता आपकी सेना में होनी चाहिए तभी आप दुश्मन पर भारी पड़ेंगे।
हमेशा उपजाऊ भूमि वाले प्रदेश पर कब्जा करने का प्रयास करें ताकि सेना को खाद्य सामग्री का अभाव न रहे।
अपने सैनिकों का विशेष ध्यान रखें। उन पर काम का अधिक बोझ न डालें। अपनी ऊर्जा, शक्ति एवं क्षमता को सहेज कर रखें। अपनी सेना को निरंतर सक्रिय रखें तथा ऐसी योजनाएं तैयार करते रहें जिन्हें कोई भेद न सके।

'चेन' 224 ई. पू. की एक घटना का वर्णन करता है जिसमें प्रसिद्ध सेनापति 'वेंग चीन' की सैन्य प्रतिभा एवं सूझबूझ के चलते वहाँ के प्रथम सम्राट को सफलता प्राप्त हुई थी। जब उसने 'चू' राज्य पर धावा बोल दिया तो अपने सिपाहियों को युद्ध के लिए पूरी तरह तैयार न पाकर वेंग बचाव की मुद्रा में आ गया तथा उसने युद्ध के सारे प्रस्ताव ठुकरा दिए। चू के सेनापति ने उसे युद्ध करने के लिए काफी मजबूर किया परंतु 'वेंग चीन' अपने किले के भीतर ही रहा, उसने अपना सारा समय अपने सैनिकों का स्नेह एवं विश्वास जीतने में लगा दिया। उसने उनके भोजन, स्नान आदि के साथ-साथ प्रशिक्षण की उत्तम व्यवस्था की और हर वह काम किया जिसके चलते वह उन्हें एक वफादार, आज्ञाकारी तथा ठोस सेना का रूप दे सकता था। कुछ समय गुजरने के बाद जब उसने यह पता लगाने की कोशिश की कि सिपाही अपना खाली समय बिताने के लिए क्या किया करते हैं तो वह यह जानकर हैरान हो गया कि खाली समय में वे लोग वजन उठाने, लम्बी कूद, गोला फेंक जैसी प्रतियोगिताओं का आयोजन करके अपना मनोरंजन कर रहे थे। वेंग चीन को विश्वास हो गया कि उसके सैनिकों का उत्साह अब उस स्तर पर पहुंच चुका है जो युद्ध करने के लिए जरूरी होता है। उस समय तक चू की सेना, जो बार-बार वेंग को युद्ध के लिए ललकारते हुए थक चुकी थी, निराश मन से पूर्व की ओर कूच कर गई। वेंग चीन ने तुरंत डेरा उठाया और वह चू की सेना के पीछे लग गया। अंततः भयंकर नरसंहार के बाद वेंग चीन ने चू राज्य पर अपनी जीत का परचम लहर दिया।

अपने जवानों को ऐसी जगह की जिम्मेदारी सौंपें जहाँ से पलायन करना नामुमकिन हो, ऐसे में उनके सामने दो ही विकल्प होंगे जीत या मौत। यदि वे मौत का सामना करते हैं तो कोई ऐसी चीज नहीं जो वे हासिल न कर पाएं क्योंकि अधिकारी हो या जवान इस दशा में युद्ध जीतने में अपनी पूरी ताकत लगा देंगे। मुसीबत के समय में सैनिक अपने डर को भूल जाते हैं, बचाव का कोई रास्ता दिखाई न देने पर वे अधिक मजबूती के साथ डटे रहते हैं, दुश्मन की सीमा में होने पर दृढ़ता पूर्वक दुश्मन का सामना करते हैं, तथा सहायता प्राप्त न होने की दशा में बहादुरी के साथ लड़ते हैं।
इस प्रकार बिना किसी निगरानी के वे चौकस एवं सावधान होंगे, बिना कहे वह सब करेंगे जो आप उनसे चाहते हों, बिना किसी प्रतिबंध के वफादार होंगे तथा बिना आदेश दिए उन पर विश्वास किया जा सकता है।
शुभ-अशुभ आदि में विश्वास करने पर रोक लगा दें, अंधविश्वास का त्याग करें, जब तक स्वयं मौत सामने खड़ी न हो जाए किसी विपदा से भयभीत न हों।

किसी भी प्रकार के जादू-टोने, वशीकरण मंत्र अथवा टोने-टोटके आदि पर सख्ती से रोक लगा दें, किसी को भी काले जादू अथवा ज्योतिष विद्या के द्वारा युद्ध के परिणाम जानने की अनुमति नहीं होनी चाहिए क्योंकि इस प्रकार की गतिविधियों के द्वारा सैनिकों की सोच पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है। संक्षेप में कहा जाए तो सभी प्रकार के संदेह, संकोच तथा झिझक आदि को त्याग देने पर आपकी सेना कभी भी अपने संकल्प अथवा लक्ष्य से डगमगाएगी नहीं तथा युद्ध भूमि में पूरे जी जान एवं आत्मविश्वास के साथ लड़ेगी।

यदि हमारे सैनिक अधिक पैसे (धन) की मांग नहीं करते हैं तो इसका यह अर्थ नहीं कि पैसा उन्हें पसंद नहीं है, यदि वे अपना जीवन दांव पर लगा दें तो इसका यह बिल्कुल भी मतलब नहीं कि उन्हें अपने जीवन से प्यार नहीं।

धन-संपत्ति तथा लम्बी आयु ऐसी चीजें होती हैं जिनकी कामना होना मनुष्य में स्वाभाविक है। अतः यदि वे अपने कीमती सामान को जला देते हैं या फेंक देते हैं और अपना जीवन दांव पर लगा देते हैं तो इसका यह अर्थ नहीं कि वे इन सब को नापसंद करते हैं बल्कि जब उनके सामने कोई विकल्प शेष न बचे ऐसी अवस्था में वे ऐसा कदम उठाते हैं। सैनिक भी इंसान होते हैं, अतः यह एक सेनापति की जिम्मेदारी है कि वह शत्रु द्वारा दिए जाने वाले प्रलोभनों से उनकी रक्षा करे।

युद्ध की घोषणा होने पर हो सकता है आपके सैनिक रो पड़ें, मुंह छिपाकर आंसू बहाएं, इसलिए नहीं कि वे डरपोक हैं बल्कि इसलिए कि उन्होंने मरने मारने का संकल्प ले रखा है। उन्हें एक बार रणभूमि में उतरने दें, वे इस प्रकार अपने साहस का प्रदर्शन करेंगे जिसकी आपने स्वप्न में भी कल्पना नहीं की होगी।

यह घटना 515 ई. पू. की है। 'चुआन चू' जो 'वू' राज्य का रहने वाला था, को 'कुंग जू कुआंग' (होलू वांग) के द्वारा राजा 'वांग लियो' को मारने के लिए भेजा गया था। उसने अपनी छुरी मछली के पेट में छिपाकर शाही दावत खाने तक पहुंचा दी और अपने काम को अंजाम दिया। किन्तु इसके तुरंत बाद राजा के सुरक्षा कर्मियों ने उसके टुकड़े-टुकड़े कर डाले।

दूसरी घटना साओ कुई की है जो 681 ई. पू. में काफी लोकप्रिय हुआ था। 'लू' राज्य जो 'ची' द्वारा तीन बार पराजित किया जा चुका था, अपने राज्य का बहुत बड़ा हिस्सा छोड़कर संधि करने की तैयारी में था। तब साओ कुई ने ची राज्य के शासक हुआंग कुंग को उस समय दबोच लिया जब वह एक धार्मिक स्थल की सीढ़ियों पर चढ़ रहा था। उसने राजा के सीने पर कटार रख दी और लू राज्य को मुक्त करने की मांग की। हुआग की जान जोखिम में थी, साओ कुई की बात मानने के अतिरिक्त उसके पास कोई अन्य विकल्प शेष न था, अतः उसने हां कर दी। इसके बाद साओ कुई ने चाकू फेंक दिया और जनसभा में जा कर शांतिपूर्वक बैठ गया। घबराए हुए लोगों को लग रहा था कि सम्राट अब अपनी बात से मुकर जाएगा परंतु ऐसा नहीं हुआ। इस घटना के बाद 'लू' राज्य को वह सब वापस मिल गया जो उसने तीन लड़ाइयों में गंवाया था।

युक्तियों में प्रवीण योद्धा 'शुई-जन' की तरह होता है। शुई जन, 'चंग' की पहाड़ियों पर पाया जाने वाला एक सांप है जिसके सिर पर वार करने पर वह अपनी पूंछ से, पूंछ पर वार करने पर सिर से तथा बीच में वार करने पर मुंह तथा पूंछ दोनों से आक्रमण करता है। अब सवाल यह उठता है कि क्या कोई सेना शुई-जन की नकल कर सकती है, तो मैं कहूंगा— हाँ।
दो दुश्मन यदि एक नाव में सवार होकर नदी पार कर रहे हों और रास्ते में तूफान आ जाए तो दोनों एक दूसरे की मदद के लिए उसी प्रकार तैयार हो जाएंगे जैसे बायां हाथ दाएं हाथ की सहायता करता है

अर्थात्— यदि दो दुश्मन खतरे के समय में एक दूसरे की मदद कर सकते हैं तो एक ही सेना के दो हिस्सों अथवा दो सहयोगी सेनाओं (जिनका उद्देश्य एवं लक्ष्य एक होता है) के बीच अगर सहयोग का अभाव हो तो इसका परिणाम होगा— बर्बादी।

घोड़ों अथवा रथों को पीछे हटने से रोककर आप युद्ध में अपनी जीत को पक्का नहीं बनाते, न ही शत्रु को युद्ध के मैदान से खदेड़ना काफी है बल्कि आपको युद्ध में सफलता तब मिलती है जब आपके सैनिकों का लक्ष्य के प्रति दृढ़ विश्वास हो तथा वे सभी लक्ष्य प्राप्ति के लिए एक जुट हों, इससे भी ज्यादा जरूरी है उनमें एक दूसरे के प्रति सहानुभूति एवं सहयोग की भावना। यही वह सबक है जो हम शुई-जन से सीख सकते हैं।
सेना के संचालन के लिए वीरता के कुछ मापदण्ड निर्धारित किए जाने चाहिए, जिन पर प्रत्येक सैनिक को खरा उतरने का प्रयास करना चाहिए।

वाटरलू के युद्ध में अपनी सेना के निराशाजनक प्रदर्शन पर नाराजगी जताते हुए वेलिंगटन ने कहा, “मेरे द्वारा संचालित अब तक की सबसे खराब सेना, जिसमें साहस, मनोबल तथा एकता की भयंकर कमी थी।” यदि उसे बेल्जियम के सैनिकों द्वारा दल बदलने का पूर्वाभास न हुआ होता तथा समय रहते उन सैनिकों को सावधानीपूर्वक सेना के पिछले हिस्से में न लगाया होता तो उसी दिन उसकी हार निश्चित थी।

कमजोर तथा मजबूत सैनिकों से उनकी क्षमता के अनुसार काम लिया जाना चाहिए। कमजोर तथा मजबूत के बीच के फासले को कम करने का यही एक तरीका है। यदि आप उन सैनिकों को, जिन पर आपको कम भरोसा है, कठिन काम सौंपेंगे तो निश्चित तौर पर वे मजबूत सिपाहियों के मुकाबले वहां कम समय तक टिक पाएंगे। अतः योग्यता एवं स्थिति के अनुरूप सैनिकों का उपयोग करने पर उनके साहस तथा क्षमता की कमी निष्प्रभावी हो जाती है।
इसलिए एक कुशल सेनापति अपनी सेना का इस प्रकार संचालन करता है जैसे कि वह किसी व्यक्ति को हाथ पकड़ कर चला रहा हो।
सेनानायक का कर्त्तव्य है कि वह गंभीर एवं शांत रहे ताकि गुप्त बातो की गोपनीयता बनी रहे। साथ ही उसे सच्चे, ईमानदार, कर्त्तव्यनिष्ठ तथा न्यायसंगत बने रहकर सेना में अनुशासन और व्यवस्था बनाए रखनी चाहिए।
उसमें अपने कार्यकलापों के द्वारा अपने अधिकारियों एवं जवानों को आश्चर्यचकित करने तथा आवश्यक गतिविधियों के माध्यम से जरूरी बातों की गोपनीयता स्थापित रखने की योग्यता भी होनी चाहिए।

वर्ष 88 ई. में पेन चाओ ने खोतान तथा मध्य एशिया के अन्य राज्यों के 25 हजार सैनिकों के साथ यारकंद पर धावा बोल दिया। कुचा के सम्राट ने अपने मुख्य सेनापति को वेनसू, कुमो तथा वीतोऊ राज्यों से इकट्ठा किए गए अपने 50 हजार सैनिकों के साथ जवाबी हमले के लिए भेजा। पेन चाओ ने खोतान के राजा तथा अपने अधिकारियों को बुलाकर कहा, “दुश्मन के सैनिकों की संख्या हमसे बहुत अधिक है। अतः हमारे लिए उचित यही रहेगा कि हम लोग अलग-अलग दिशाओं में बिखर जाएं। शाम होने पर जब नगाड़े की आवाज सुनाई देगी खोतान के महाराज पूर्व दिशा से कूच करेंगे तथा मैं पश्चिम की ओर से लौटूंगा।” पेन चाओ ने गुप्त रूप से उन बंदियों को मुक्त कर दिया जिन्हें उसने गिरफ्तार किया था, अतः कुचा के सम्राट को उसकी योजना की खबर मिल गई। उसने तुरंत दस हजार घुड़सवार पेन चाओ की पश्चिम दिशा से होने वाली वापसी को रोकने के लिए भेज दिए, वेन सू का राजा आठ हजार घुड़सवारों के साथ खोतान के राजा को रोकने के लिए पूर्व दिशा की ओर चल पड़ा। पेन चाओ को जब इस बात का पता चला तो उसने अपनी सेना की टुकड़ियों को इकट्ठा करके सुव्यवस्थित किया, और मुंह अंधेरे यारकंद की डेरा डाले पड़ी सेना पर धावा बोल दिया। सैनिक इस हमले के लिए तैयार न थे तथा वे जान बचाकर इधर उधर भागने लगे। पेन चाओ ने उनका पीछा किया और पांच हजार से भी अधिक सैनिकों के सिर कलम कर के इनाम के तौर पर साथ लाए गए। इसके अतिरिक्त घोड़े, मवेशी तथा कीमती सामान भारी मात्रा में लूट कर साथ लाया गया। इस संग्राम के बाद पेन चाओ की लोकप्रियता पश्चिमी देशों में बहुत बढ़ गई।

अपनी व्यवस्थाओं तथा योजनाओं में निरंतर परिवर्तन लाकर वह दुश्मन को सही जानकारी (सूचना) से दूर रखता है। अपने शिविर के स्थान को बदलकर तथा लम्बे एव घुमावदार रास्तों को अपना कर वह दुश्मन को अपनी योजनाओं के प्रति भ्रम में डाल देता है।
संकट की घड़ी में वह उस व्यक्ति की तरह व्यवहार करता है जो सीढ़ी से ऊंचाई पर पहुंचकर स्वयं सीढ़ी को ठोकर मार कर गिरा देता है, अपनी सेना को दुश्मन के इलाके में अंदर तक घुसा कर हाथ बढ़ाकर उनकी मदद करता है। वह अपनी नावों को जला देता है। भोजन पकाने के पात्र तोड़ देता है। जैसे एक चरवाहा अपनी भेड़ों को हांकता है ठीक वैसे ही वह अपनी सेना को चलाता है, और किसी को पता नहीं होता कि वह कहाँ जा रहा है।
अपने सैनिकों को इकट्ठा करना फिर उन्हें खतरे में ले जाकर खड़ा कर देना— यही एक कुशल सेनानायक का काम है।

अपनी सेना को युद्ध के लिए तैयार करने के बाद दुश्मन के सर्वाधिक प्रिय ठिकानों (जो उसके लिए सबसे अधिक सामरिक महत्व रखते हों) पर हमला करने में कतई देरी नहीं करनी चाहिए। आज के मुकाबले प्राचीन चीन के युद्धरत राज्यों के बीच पलायन निश्चित तौर पर एक गंभीर समस्या रही होगी।

अलग-अलग क्षेत्रों के लिए आवश्यकतानुसार उपाय, आक्रामक अथवा रक्षात्मक युक्तियाँ तथा मानवीय प्रकृति के नियम, ये सभी वे बातें हैं जिनका गहराई से अध्ययन किया जाना चाहिए।
सैनिक दुश्मन के इलाके में जितने अधिक अंदर होंगे वे उतने अधिक संगठित तथा एकजुट होंगे परंतु कम दूरी तक अंदर होने पर उनमें उपरोक्त गुणों का अभाव होगा।

1.)
क्षेत्र— बिखरे हुए
वर्णन— जब आप अपने ही देश में युद्ध करते हैं।
क्या करें?— अपने सैनिकों का हौसला बढ़ाएं।

2.)
क्षेत्र— सुगम
वर्णन— जब आप दुश्मन के इलाके में थोड़ा आगे बढ़ते हैं।
क्या करें?— सुनिश्चित करें कि सेना के सभी भागों में सामंजस्य बना रहे।

3.)
क्षेत्र— विवादित
वर्णन— वह क्षेत्र जिसे प्राप्त करने पर दोनों पक्षों को लाभ मिलता हो।
क्या करें?— यह सुनिश्चित करें कि पीछे आने वाले तेज गति से आगे बढ़ रहे हों।

4.)
क्षेत्र— स्वतंत्र
वर्णन— वह क्षेत्र जिसमें दोनों सेनाएं आ जा सकती हैं।
क्या करें?— अपनी स्थिति मजबूत करें, अचानक हमला हो सकता है।

5.)
क्षेत्र— राजमार्गों को मिलाने वाले
वर्णन— जहां तीन देशों के राजमार्ग मिलते हों।
क्या करें?— मित्र राष्ट्रों से मित्रता बनाए रखें।

6.)
क्षेत्र— गंभीर
वर्णन— जब आपकी सेना किलेबंद शहरों को ੜपीछे छोड़कर दुश्मन के इलाके में बहुत अंदर तक चली जाए।
क्या करें?— सुनिश्चित करें कि रसद की निरंतर आपूर्ति होती रहे।

7.)
क्षेत्र— जटिल
वर्णन— पर्वत, जंगल, दलदल, खड़े पहाड़ अथवा ढलान, एवं बाढ़ग्रस्त इलाके।
क्या करें?— रास्ते के सहारे आगे बढ़ते रहें।

8.)
क्षेत्र— घिरे हुए इलाके
वर्णन— तंग घाटी तथा दरें
क्या करें?— लौटने के सभी रास्ते बंद
कर दें ताकि लगे कि आप बचाव की मुद्रा में हैं
जबकि आपका इरादा दुश्मन
की सेना के बीच से रास्ता बनाना हो।

9.)
क्षेत्र— विवशता वाले
वर्णन— जब शत्रु आपके पीछे हो और आगे संकरा रास्ता, जहाँ लड़ाई ही एकमात्र विकल्प हो।
क्या करें?— युद्ध करें।

वर्ष 532 ई. में 'काओ हुआन' (जिसे शेन वू की उपाधि दी गई थी और राजा बनाया गया था) को हरचू चाओ तथा उसके साथियों की सेना ने घेर लिया। उनके मुकाबले हुआन की सेना बहुत छोटी थी, जिसमें दो हजार घुड़सवार तथा 30 हजार से कम पैदल सैनिक थे। घेराव के बीच में काफी जगह खाली पड़ी थी, परंतु हुआन ने वहां से भगाने के बजाए उन रिक्त स्थानों पर बैल तथा गधे खड़े करा दिए। जैसे ही उसके अधिकारियों को इस बात का पता चला तो उनमें गजब का उत्साह छा गया क्योंकि भगाने के सभी रास्ते बंद थे। परिणामस्वरूप उन्होंने दुश्मन पर ऐसा जबरदस्त वार किया कि दुश्मन की सेना के दांत खट्टे हो गए।

मौत को गले लगाकर ही जिंदा बचा जा सकता है।

विपत्ति के समय में अपना सारा सामान जला दें, खाने-पीने की सामग्री को नष्ट कर दें, पीने का पानी फेंक दें, भोजन पकाने के पात्र तोड़ दें, तथा अपने सैनिकों को स्पष्ट शब्दों में बता दें कि अब उनके जीवित रहने का एक ही उपाय है युद्ध करना। मीयाओ चेन के शब्दों में— जीवन जीने का मौका जीवन जीने की आस खोकर ही पाया जा सकता है।

जब एक सैनिक चारों ओर से घिर जाता है तो वह दृढ़तापूर्वक वरोध करता है, और जी-जान लगाकर युद्ध करता है। खतरे में पड़ने पर वह सभी आज्ञाओं का पालन करता है।

वर्ष 73 में जब पेन चाओ, शेनशन कुआंग पहुंचा तो वहाँ के राजा ने उसका भव्य स्वागत किया। किन्तु थोड़े ही समय बाद राजा का व्यवहार अचानक से बदल गया। वह पेन चाओ की मजाक बनाने लगा और उसे अनदेखा करने लगा। पेन चाओ ने इसके कारण को भांप लिया और अपनी सेवा में लगाए गए एक खातिरदार को बुलाकर उससे इस बारे में चतुराई से पूछा, “अभी कुछ दिनों पूर्व जो लोग सियुंगनू से आए थे वे कहाँ हैं?” सेवादार घबरा गया और उसने सच उगल दिया “उत्तरी दिशा से दूसरे देश के राजदूत आए हैं और राजा अनिश्चय की स्थिति में है, वह यह तय नहीं कर पा रहा है कि वह किसके पक्ष में जाए।” पेन चाओ ने उस सेवादार को कमरे में बंद करके ताला लगा दिया। उसने अपने साथ आए सभी अधिकारियों को मदिरा पान के बहाने बुलाया और बोला, “हम सभी अपने देश से दूर अनजान स्थान पर मान-सम्मान के भूखे हैं। अभी कुछ दिन पहले यहां सिंयुगनू देश से एक राजदूत आया है, इसका नतीजा यह हुआ कि यहां के राजा ने हमारे साथ अभद्र व्यवहार करना आरंभ कर दिया है। यदि ऐसा ही चलता रहा तो वह दिन दूर नहीं जब यह मूर्ख राजा हमें सियुंगनू के हवाले कर देगा, और हमारी हड्डियां रेगिस्तानी भेड़ियों का शिकार बन जाएंगी। मित्रों, ऐसे में हमें क्या करना चाहिए?” सभी अधिकारियों ने एक स्वर में कहा, “खतरे की इस घड़ी में हम सभी आपके साथ हैं, चाहे हमें अपनी जान ही क्यों न गंवानी पड़े।”

हमें अपने पड़ोसी राज्यों के साथ तब तक मित्रता नहीं करनी चाहिए जब तक हमें उनके इरादों की जानकारी न हो। जब तक हम शत्रु राष्ट्र की भौगोलिक अवस्था (जैसे वहाँ के पहाड़, जंगल, दलदल, रेगिस्तान, खाइयां आदि) से परिचित न हों तब तक हमें हमला नहीं करना चाहिए। इसके लिए स्थानीय गाइड की मदद लेना उपयोगी रहता है।
निम्न पांच सिद्धांतों की जानकारी नहीं है तो आप एक अच्छे राजा कहलाने योग्य नहीं हैं।
युद्ध में प्रवीण योद्धा जो स्वयं से अधिक ताकतवर शत्रु पर हमला करता है वह दुश्मन की सेना को एकजुट नहीं होने देता, वह शत्रु को डरा कर चौंका देता है, तथा उसके मित्र देशों को उस तक मदद पहुंचाने से रोकता है।

मी याओचेन के अनुसार स्वयं से अधिक शक्तिशाली राज्य पर आक्रमण करने पर यदि आप दुश्मन की सेना में फूट डालने में कामयाब हो जाते हैं तो आप दुश्मन से अधिक ताकतवर कहलाएंगे, यदि आप ताकतवर साबित हो गए तो आपका शत्रु आपसे डर जाएगा, परिणामस्वरूप पड़ोसी राज्य भी आपसे भयभीत हो जाएंगे, जिसके चलते वे आपके शत्रु को सहयोग करने का साहस नहीं जुटा पाएंगे।

वह आंख मूंद कर प्रत्येक राष्ट्र से न तो मित्रता करता है और न ही किसी की मदद। वह अपनी गुप्त योजनाओं पर अमल करके विरोधी पक्ष को डरा कर रखता है और सम्मान पाता है। इस प्रकार वह उनके शहरों पर कब्जा करके उनकी सत्ता को उखाड़ फेंकता है।
अपने सैनिकों को बिना किसी प्रयोजन की प्रतीक्षा किए पुरस्कृत करें, आवश्यकता पड़ने पर पूर्व निर्धारित योजनाओं को नज़र अंदाज करते हुए नए आदेश जारी करें, ऐसा करके आप अपनी सेना को ऐसे नियंत्रित कर रहे होंगे जैसे कि आप अनेक नहीं बल्कि एक अकेले व्यक्ति की सेना को नियंत्रित कर रहे हों।

विश्वासघात को रोकने के लिए अपने द्वारा तैयार की गई योजनाओं को पूरी तरह गुप्त रखें तथा किसी को इनकी कानोंकान खबर तक न होने दें। योजना के प्रकट हो (खुल) जाने की अवस्था में अंतिम क्षणों में पूरी योजना का बदला जाना जरूरी हो जाता है।

अपने सैनिकों के संपर्क में रहें परंतु आप क्या सोच रहे हैं, उन्हें इसकी खबर तक न होने दें। अच्छी बातें सभी को बताएं और बुरे हालात अथवा प्रतिकूल परिस्थितियों में शांत रहें।
अपने सैनिकों को घातक तथा जानलेवा स्थिति में लगाएं — वे जीवित बच जाएंगे, उन्हें असुरक्षित एवं तंग हाल में छोड़ दें — वे सुरक्षित लौट आएंगे।

एक सफल संग्राम में इस्तेमाल किए गए अपने दांव-पेच तथा चालों के बारे में 'हैन सिन' ने 'सुन त्सू' के हवाले से बताते हुए कहा— 204 ई. पू. में उसे चाओ की सेना से युद्ध करने के लिए भेजा गया था। उसने चिंग सिंग दर्रे से दस मील की दूरी पर डेरा डाला था, जहाँ दुश्मन पूरी ताकत के साथ अपनी सेना लिए खड़ा था। हैनसिन ने आधी रात को अपनी सेना के दो हजार घुड़सवारों को एक लाल झण्डा दिया और आदेश दिया कि उन्हें संकरे रास्तों से होते हुए कूच करना है तथा दुश्मन पर गुप्त रूप से नजर रखनी है। हैनसिन ने कहा, "जब चाओ के सैनिक अपनी किलेबंदी छोड़कर मेरा पीछा करना शुरू कर दें, तब तुम तेजी से आ कर चाओ का ध्वज नीचे गिरा देना और उसकी जगह अपना लाल झण्डा लगा देना।" इसके बाद उसने अपने अन्य अधिकारियों को सम्बोधित किया, "मित्रों, हमारा दुश्मन मजबूत स्थिति में है, अतः इस बात की कोई संभावना नहीं है कि वह आसानी से बाहर आकर युद्ध करेगा। वह हम पर तब तक हमला नहीं करेगा जब तक वह प्रमुख सेनापति द्वारा बजाए गए नगाड़ों की आवाज नहीं सुन लेगा क्योंकि उसे डर होगा कि मैं पीठ दिखा कर पहाड़ियों के रास्ते भाग सकता हूँ।" ऐसा कहकर उसने सर्वप्रथम अपनी सेना के एक भाग जिसमें 10 हजार सैनिक थे, को आदेश दिया कि वे युद्ध के लिए कतार में खड़े हो जाएं तथा उनकी पीठ टी नदी की तरफ होनी चाहिए। उनका यह युद्धाभ्यास देखकर चाओ की सेना जोर-जोर से हंसने लगी। सुबह होते ही हैन सिन नगाड़ों की आवाज के बीच संकरे रास्ते की ओर निकल गया। यह देखकर चाओ की सेना उसके पीछे लग गई। उनके बीच घमासान युद्ध हुआ, अंतत: हैनसिन तथा उसका साथी चेंगनी भाग खड़े हुए और नदी किनारे अपनी सैन्य टुकड़ी के पास जा पहुंचे जहाँ पहले से ही भयंकर युद्ध चल रहा था। हैनसिन के वहाँ षहुंचने पर उसकी सेना का उत्साह दो गुना हो गया। पूर्व निर्धारित योजना के अनुसार दो हजार घुड़सवार सुनसान किले की दीवारों के पीछे पहुंचे और उन्होंने दुश्मन के झण्डे को फाड़कर वहाँ अपनी पताका फहरा दी। हैन का झण्डा देखकर चाओ की सेना के होश उड़ गए। उन्हें लगा कि हैन के सैनिक अंदर घुस गए हैं और उन्होंने राजा को बंदी बना लिया है, परिणामस्वरूप चाओ की सेना में भगदड़ मच गई। तब हैन की सेना उन पर टूट पड़ी, इस युद्ध में चाओ के सैनिक बड़ी संख्या में मारे गए, बाकी बचे हुए लोगों को बंदी बना लिया गया जिनमें वहाँ का राजा या भी शामिल था। युद्ध के बाद हैन सिन के कुछ अधिकारियों ने उससे पूछा, "प्रशिक्षण के दौरान हमें सिखाया गया था कि हमारे पीछे के दाहिने भाग में पहाड़ी होनी चाहिए तथा बाईं ओर नदी अथवा दलदल, इसके विपरीत आपने हमें नदी की ओर पीठ करके खड़ा होने का आदेश दिया, फिर भी आप विजय प्राप्त करने में कैसे कामयाब हुए?" सेनापति ने उत्तर दिया, "मुझे लगता है कि आपने युद्ध कला का ठीक से अध्ययन नहीं किया है। क्या उसमें नहीं बताया गया कि अपने सैनिकों को जानलेवा स्थिति में धकेल दो और वे जीवित निकल आएंगे, उन्हें इतनी कठिनाई में डाल दो जिसमें से बच निकलने की कोई आशा ही न हो और वे सुरक्षित बाहर आ जाएंगे। यदि मैंने साधारण रास्ता अपनाया होता तो मैं कभी भी अपने सहयोगियों को साथ लेकर नहीं चल पाता। यदि मैंने अपने सैनिकों को ऐसी अवस्था में नहीं डाला होता जहाँ वे अपनी जिंदगी बचाने के लिए लड़ने को विवश हुए, और यदि मैंने प्रत्येक सैनिक को अपना विवेक इस्तेमाल करने की अनुमति दी होती तो हमारी सेना में भगदड़ मच जाती जिसके चलते कुछ भी पाना संभव नहीं होता।" अधिकारी सेनापति द्वारा दी गई दलीलों से सहमत थे, अतः उन्होंने कहा– यह उच्च कोटि की युक्तियाँ हैं जिनके हम स्वयं योग्य नहीं।

संकट की घड़ी में सैनिक मरने मारने पर उतारू हो जाते हैं क्योंकि खतरे में लोग स्वयं को उस खतरे से निपटने के लिए तैयार कर लेते हैं, परिणामस्वरूप युद्ध में उन्हें कामयाबी मिलती है।
युद्ध में जीत हासिल करने के लिए चतुराई के साथ दुश्मन की योजना के अनुसार चलें।

दुश्मन की इच्छा के आगे झुककर उसकी बात मानने का ढोंग करें। चेंग यू के अनुसार— यदि दुश्मन आगे बढ़कर युद्ध करने में रुचि दिखाता है तो उसे प्रलोभन दें और आगे बढ़ने में उसकी मदद करें, यदि वह मोर्चे से पीछे हटना चाहता है। तो अपनी कार्यवाही में देरी कर दें ताकि वह अपनी इच्छा पूरी कर सके। ऐसे में दुश्मन को हम नियंत्रित कर रहे होंगे, परिणामस्वरूप आक्रमण के समय वह अपने कर्तव्य के प्रति लापरवाह तथा असावधान होगा, उसमें ऊर्जा, जोश, उत्साह एवं शक्ति का भी अभाव होगा।

दुश्मन की सेना के निकट जमे रह कर हम उनके सेनापति को मारने में कामयाब होंगे, इसे चतुराई के द्वारा लक्ष्य प्राप्त करना कहा जाता है।
सेना का नियंत्रण अपने हाथों में लेने पर सीमांत क्षेत्रों के रास्तों पर रोक लगा दें, आधिकारिक अभिलेखों (रिकॉर्ड्स) को नष्ट कर दें तथा सभी तरह के दूतों के आने-जाने पर प्रतिबंध लगा दें। सलाहकार परिषद के सदन में कड़ा रुख अपनाएं ताकि स्थिति पर आपका नियंत्रण रहे।
यदि दुश्मन कोई दरवाजा खुला छोड़ दे तो अविलम्ब उसमें प्रवेश करें।
दुश्मन की कोई प्रिय वस्तु अपने कब्जे में लेकर उसे मनमुताबिक तरीके से नियंत्रित करें। नियमों का पालन करते हुए आगे बढ़ें तथा निर्णायक युद्ध के लिए तैयार होने तक सावधानीपूर्वक स्वयं को दुश्मन के अनुसार चलाते रहें।
नपे-तुले तथा बंधे-बंधाए नियमों का बहिष्कार करें। केवल अपनी जीत को महत्व दें। याद रखें पारम्परिक (रूढ़ीवादी) नियमों का पालन करके जीत को हासिल करना असंभव बन जाता है।
जब तक दुश्मन आगे बढ़ने का अवसर प्रदान न करे नई नवेली दुल्हन की तरह संकोच एवं लज्जा का प्रदर्शन करें। अवसर प्राप्त होने पर तेंदुए की सी फुर्ती से युद्ध करें, तब तक आपका सामना करने का समय दुश्मन के हाथ से निकल चुका होगा।