Kalvachi-Pretni Rahashy - 22 books and stories free download online pdf in Hindi

कलवाची--प्रेतनी रहस्य - भाग(२२)

कालवाची की बात सुनकर भूतेश्वर बोला....
"आज मेरी इच्छा पूर्ण हुई"
"कौन सी इच्छा"?,कालवाची ने पूछा...
"प्रेत देखने की",भूतेश्वर बोला...
"तो बताओ मेरी सहायता करोगे"कालवाची ने पूछा...
तब भूतेश्वर बोला...
"मुझे सिद्धियाँ तो प्राप्त हैं किन्तु मैंने ऐसी विद्या प्राप्त नहीं की जो किसी प्रेत को मानव रूप में परिवर्तित कर सके"
"ओह!तो मुझे निराश होना पड़ेगा"कालवाची बोली...
तब भूतेश्वर बोला...
"तुम्हें निराश होने की आवश्यकता नहीं है,मेरा एक मित्र है जिसे प्रेत को मानव रुप में परिवर्तित करने की विद्या आती है,कदाचित वो तुम्हारी कोई सहायता कर सके"
"किन्तु मैं उससे कैसें मिल सकती हूँ"?,कालवाची ने पूछा...
"इसके लिए तो तुम्हें चामुण्डा पर्वत पर जाना होगा,वो वहीं किसी कन्दरा(गुफा) में रहता है,उसकी विद्या का कोई अनुचित लाभ ना उठे सके इसलिए वो वहाँ वास करता है,मैं तुम्हें उस स्थान का पता बता देता हूँ तो तुम वहाँ चली जाओ",भूतेश्वर बोला...
"ओह....तुम्हारा ये उपकार मैं कभी ना भूलूँगीं",कालवाची बोली....
"किन्तु तुम्हें वहाँ जाने हेतु अत्यधिक लम्बा मार्ग तय करना होगा"भूतेश्वर बोला...
"वहाँ जाने के लिए मैं कुछ भी कर सकती हूँ,बस तुम मुझे उसका नाम और पता दे दो,मुझे कहाँ कहाँ से होकर जाना होगा,कृपया ये भी बता दो"कालवाची बोली....
"उसका नाम महातंत्रेश्वर है,मैं तुम्हें उस स्थान का मानचित्र बनाकर दे दूँगा,तुम उस मानचित्र के द्वारा वहाँ सरलता से पहुँच जाओगी"भूतेश्वर बोला...
"तो बिलम्ब किस बात का मुझे शीघ्रता से उस स्थान का मानचित्र बनाकर दो"कालवाची बोली...
"मानचित्र बनाने में तनिक बिलम्ब तो होगा,कदाचित एक दो दिन लग जाएं ,तब तक तुम दोनों यहीं रह लो" भूतेश्वर बोला...
"मुझे कोई आपत्ति नहीं,इतना समय तो मैं तुम्हें दे सकती हूँ",कालवाची बोली....
"यही उचित रहेगा,मैं आज से ही मानचित्र बनाने की योजना बनाता हूँ,अत्यधिक मस्तिष्क लगाकर इस कार्य को करना होगा,मैं सरल मार्ग खोजने का प्रयास करूँगा जिससे तुम वहाँ शीघ्र ही पहुँच जाओ ," भूतेश्वर बोला...
"बहुत बहुत आभार तुम्हारा,मैं सदैव तुम्हारी ऋणी रहूँगी,यदि मैं सदैव के लिए मानव रूप में परिवर्तित हो गई तो अवश्य तुम्हारे पास आऊँगी तुम्हारा आभार प्रकट करने"कालवाची बोली...
"अच्छा!अब ये वार्तालाप समाप्त करो,देखो त्रिलोचना आ रही है"भूतेश्वर बोला...
इसके पश्चात त्रिलोचना के आते ही सब शांत हो गए तो त्रिलोचना ने सबसे पूछा....
"तुम लोग अभी मेरे यहाँ आने के पूर्व तक तो वार्तालाप कर रहे थे,परन्तु मेरे आते ही शांत क्यों हो गए"?
"भय लगता है तुमसे,इसलिए शांत हो गए"भूतेश्वर बोला...
"मैं कोई पिशाचिनी या प्रेतनी हूँ,जो मुझसे भय लगता है",त्रिलोचना बोली...
"ऐसा कुछ भी नहीं है,क्या मैं तुमसे परिहास भी नहीं कर सकता"?,भूतेश्वर बोला....
एवं ऐसे ही सभी के मध्य वार्तालाप चलता रहा,पूरा दिन इसी तरह बीत गया ,रात्रि होने को आई थी,भूतेश्वर दीपक के प्रकाश में मानचित्र बना रहा था,मानचित्र का अभी कुछ ही भाग बन पाया था कि उसे निंद्रा ने घेर लिया,त्रिलोचना तो पहले ही सो चुकी थी और कौत्रेय भी सो चुका था,तब कालवाची अपने भोजन हेतु घर से बाहर निकली और उड़कर गाँव के भीतर पहुँच गई,अपना रूप बदलकर वो एक चिड़िया बन गई,अत्यधिक खोजने पर उसे एक मनुष्य दिखाई दिया,जो किसी के घर के द्वार की रखवाली कर रहा था,कालवाची पुनः अपने बीभत्स प्रेतनी रूप में आई और उस मनुष्य को अपने साथ उड़ाकर गाँव से दूर एक वृक्ष पर ले गई एवं उसे मारकर उसने उसका हृदय निकाल कर ग्रहण कर लिया,कुछ समय पश्चात वो घर वापस लौटी और शान्ति से अपने बिछौने पर आकर लेट गई,दूसरे दिन सभी का दिन ऐसे ही हँसी खुशी प्रारम्भ हुआ,सायंकाल तक मानचित्र भी तैयार हो गया तो कालवाची और कौत्रेय ने भूतेश्वर से जाने की आज्ञा माँगी और भूतेश्वर ने दोनों को जाने दिया,त्रिलोचना ने दोनों से कहा भी कि और कुछ दिन यहाँ रुक जाते तो अच्छा होता,किन्तु कालवाची ना मानी और रात्रि के समय ही कौत्रेय के संग चल पड़ी अपने मार्ग पर....
रात्रि का समय था एवं उन्हें मार्ग तय करना था,इसलिए कालवाची ने कौत्रेय को पुनः कठफोड़वे में परिवर्तित कर दिया ,अब दोनों उड़कर अपनी यात्रा का मार्ग तय कर सकते थे,इसलिए दोनों उड़ते हुए चले जा रहे थे,अर्द्धरात्रि बीतने को थी एवं वें किसी गाँव के समीप पहुँच गए थे,तभी उन्हें लोगों की पुकार सुनाई दी,लोग कह रहे थे ... दस्यु .... दस्यु(चोर),पकड़ो...पकड़ो....,बहुत सारे लोग उसे पकड़ने भागे किन्तु कोई भी उसे पकड़ नहीं पाया,वो दस्यु वायु के वेग से ना जाने कहाँ अन्तर्धान हो गया, किन्तु आकाश से कालवाची और कौत्रेय ये घटना घटते देख रहे थे,उन्होंने देख लिया कि दस्यु कहाँ जाकर छुप गया है?,सभी लोगों के चले जाने के पश्चात कालवाची और कौत्रेय मानव रूप में आए और उस दस्यु को पकड़ लिया,कालवाची ने देखा कि उसका मुँख किसी वस्त्र से ढ़का हुआ है,उसकी कमर में एक कृपाण खुसी हुई है एवं उसके हाथ एवं शरीर अत्यधिक कोमल था,कालवाची ने जब उसे स्पर्श किया तो उसे कुछ संदेह हुआ ,इसलिए उसने उसे पूछा....
"कदाचित तुम एक युवती हो,क्योंकि पुरूष का शरीर इतना कोमल नहीं होता"
तब वो युवती बोली...
"हाँ!मैं एक युवती हूँ और उसने अपने मुँख का वस्त्र हटा दिया"
"तुम एक युवती होकर ऐसा कार्य कर रही हो"कौत्रेय ने पूछा...
तब वो युवती बोली...
"तो क्या करूँ?जब निर्धन को भूख लगती है ना!तो वो अच्छा-बुरा कुछ भी नहीं सोचता,बस ये सोचता है कि कैसे भी करके वो अपनी भूख मिटाए,यदि उसके घर में कोई अस्वस्थ हो तो वो किस प्रकार उसके लिए औषधि का प्रबन्ध करें,निर्धन के लिए इस संसार में जीवन जीना अत्यधिक कठिन है,ये तुम दोनों कभी नहीं समझोगे"यदि निर्धन होते तब समझते,"
"ओह....भूल हो गई,मैं समझ ना सकी तुम्हें"कालवाची बोली....
"हम निर्धनों को केवल निर्धन ही समझ सकते हैं,वो युवती बोली...
"मैं तुम्हारी विवशता समझ चुकी हूँ,यदि मैं तुम्हारी कोई सहायता कर सकूँ तो मैं इसके लिए तत्पर हूँ",कालवाची बोली...
"नहीं!मुझे किसी की सहायता की आवश्यकता नहीं,बाल्यकाल से मैनें किसी की सहायता नहीं ली तो अब क्या लूँगी?,वो युवती बोली...
"ऐसा प्रतीत होता है,तुम बड़ी स्वाभिमानी हो"कालवाची बोली...
"स्वाभिमानी होने से क्या होता है? उदर की भूख स्वाभिमान तो शांत नहीं कर सकता,भूख शान्त करने के लिए भोजन चाहिए और भोजन खरीदने के लिए धन चाहिए,जो कि मेरे पास नहीं तभी तो मुझे ऐसा कार्य करना पड़ता है,"वो युवती बोली....
"तुम और कोई कार्य भी तो कर सकती हो"कौत्रेय बोला...
"प्रयास किया था दूसरे और भी कार्य करने का,किन्तु जिस स्थान और जिस घर में कार्य करने पहुँची तो वहाँ के पुरूषों को मेरे कार्य में नहीं,मेरे यौवन और रूप में रूचि थी,क्योंकि इस संसार में किसी निर्धन युवती का यौवन और रूप उसका सबसे बड़ा शत्रु होता है"वो युवती बोली...
"ओह...तो ये बात है,अब मैं समझी कि तुमने विवशता में आकर इस घृणित कार्य को चुना",कालवाची बोली...
"हाँ!मैनें आनन्द के लिए थोड़े ही इस कार्य को चुना है"वो युवती बोली....
तब कालवाची ने उस युवती से पूछा....
"वैसे तुम्हारा नाम क्या है?"
तब वो युवती बोली....
"मेरा नाम भैरवी है"
भैरवी नाम सुनकर कालवाची कुछ असमंजस में पड़ गई....

क्रमशः....
सरोज वर्मा....