Kataasraj.. The Silent Witness - 16 books and stories free download online pdf in Hindi

कटासराज... द साइलेंट विटनेस - 16

भाग 16

पहले दिन जब उर्मिला शमशाद के घर गई तो गहमा गहमी में सलमा बहन से ज्यादा बात नहीं कर पाई। बस औपचारिक तौर पे हाल चाल ही पूछ पाई। उर्मिला और सलमा का रिश्ता ऐसा नहीं था कि सिर्फ औपचारिक हाल चाल पूछ कर इत्मीनान हो जाता।

नईमा, उर्मिला और सलमा तीनो ही लगभग हम उम्र ही थी। कलमा अपने पूरे खानदान में सबसे बड़ी थी मायके और ससुराल दोनो ही तरफ से।

कलमा से रिश्ते की ननद नईमा और बहन सलमा दोनो ही उससे काफी छोटी थी। कलमा की शादी भी कुछ जल्दी हो गई थी और जल्दी ही शमशाद उसकी गोद में आ गया था। फिर उसके बाद तीन बेटियां हो गई। जिन्हें संभालना कलमा के लिए काफी मुश्किल भरा काम था। वो परेशान हो जाती साल साल भर छोटे चारों बच्चों को संभालने में। कुछ दिन मायके रह लेती तो कुछ आराम मिल जाता। सलमा जो खुद छोटी थी। पर उसे अपनी आपा के बच्चों को खिलाने में बड़ा मजा आता। बिलकुल वैसा ही जैसा कि किसी बच्ची को जीते जागते, हंसते खिलखिलाते गुड्डा गुडिया मिल गए हो। खास कर शमशाद को तो एक मिनट के भी नही छोड़ती थी सलमा। इस कारण जब कलमा ससुराल आने लगी तो अम्मी अब्बू से इल्तिज़ा कर के सलमा को भी अपनी मदद के लिए साथ लेती आई।

छोटी सलमा को धीरे धीरे आपा का घर रास आने लगा। नईमा के साथ उसका सहेली वाला रिश्ता कायम हो गया। अब वो अक्सर यहीं रहती।

ऐसे ही कलमा आपा के घर आते जाते सलमा का पहले परिचय हुआ था उर्मिला से। फिर धीरे धीरे नईमा के साथ ही उसकी भी दोस्ती उर्मिला से हो गई। फिर जब भी सलमा बहन के घर आती थी तो उर्मिला से मिले बिना नहीं जाती थी।

पर जब सलमा का निकाह इतनी दूर हो गया तो आने जाने का सिलसिला कम हो गया। फिर सबसे दूरी भी बन गई थी। अब जब लंबे अरसे बाद सलमा आई थी तो सब से मेल मुलाकात कर लेना चाहती थी।

अब इस भीड़ भाड़ वाले घर में चैन से बैठ कर दो घड़ी बैठ कर बात भी नही हो पाती थी। जब मेहदी की रस्म में उर्मिला आई तो उसने सलमा को अपने घर आने का न्योता दिया। जिसे सलमा ने मान भी लिया।

पर जैसे ही वो साजिद मियां के साथ उर्मिला के घर जाने को हुई। कलमा आपा नाराज होने लगी कि शादी का घर है कल ही बारात जानी है। इतने सारे काम पड़े हुए है और तुमको घूमना सूझ रहा है। अभी रहने दो निकाह और वलीमा के बीच तीन दिन का अंतर है उसी में चली जाना।

अब सलमा अपनी मां समान बहन की बात कैसे नही मानती…? इस लिए उर्मिला के घर जाने का इरादा बदल दिया। उसने सोचा अभी तो निकाह के बाद भी वो रुकेगी ही। क्या जल्दी है जब आपा मना कर रही हैं तो रहने ही देती है। बाद में ही चली जाएगी। अभी तो उर्मिला से आते जाते मुलाकात हो ही जा रही है।

तय तारीख पर आरिफ बारात ले कर नाज़ के घर पहुंचा।

नाज़ को पुरवा और उसकी सहेलियों ने खूब सजाया था। हरे जोड़े में सजी धजी नाज़ परदे के पीछे बैठी थी।

बारात के इस्तकबाल और खाना पीना खत्म निपटने के बाद आरिफ भी आ गए। उन्हें नाज़ के दूसरी ओर बिठाया गया। जिस पर्दे के पीछे नाज़ को बिठाया गया था वह ऐसा था कि दूसरी तरफ देखना संभव नहीं था। आरिफ की सारी कोशिश जाया हो जा रही थी। वो एक झलक नाज़ के दुल्हन रूप की देखना चाहता था। पर…… फिलहाल तो ये मोटा पर्दा उनके बीच में दीवार बन के टंगा हुआ था।

मौलवी साहब आए और पहले नाज़ के पास गए। नाज़ से निकाह कुबूल है…? पूछा।

नाज़ को नईमा ने हां कहने को बोला।

तीनों ही बार नाज़ ने हां कहा।

इसके बाद मौलवी साहब आरिफ के पास गए।

उससे भी निकाह कुबूल है….? तीन बार पूछा।

आरिफ ने भी कुबूल है, कुबूल है, कुबूल है उनके हर बार पूछने पर कहा।

आरिफ के ’हां’ कहते ही चारों ओर बधाइयां गूंजने लगी। सभी एक दूसरे के गले मिल कर निकाह की मुबारक बाद देने लगे।

शमशाद ने बेटे समान भाई को सीने से लगा लिया। आज अल्लाह मियां की रहमत से उसका निकाह भी मुकम्मल हो गया। आरिफ को एक भरपूर नज़र देख कर वो फूले नहीं समा रहे थे। निकाह की शेरवानी में आरिफ बेहद दिलकश लग रहा था।

इधर परदे के पीछे से नईमा भी अपनी लाडो को गले लगा कर ममता बरसा रही थी। बस अब कलेजे का टुकड़ा कुछ देर का ही मेहमान था।

अब शीशे में दूल्हा दुल्हन को एक दूसरे को देखने की रस्म होनी थी। नाज़ को पुरवा ने आरिफ को दिखाया और अमन ने आरिफ को। शर्म ने नाज़ की झुकी आंखे बस एक पल को ही शीशे पर ठहर सकी। फिर उसने नजरें हटा ली अपनी।

पर आरिफ ने बकायदा नाज़ को तब तक निहारा जब तक की शीशा हटा नही लिया गया।

अब इसके बाद नाज़ को अंदर ले जा कर रूखसती की तैयारी होने लगी।

नाज़ ने जो अब तक अपने आंसुओ को बड़े ही जतन से अब तक रोक कर रक्खा हुआ था, अब वो सैलाब बन कर सारे बांध तोड़ कर बहने को आतुर था।

अंदर कमरे में आते ही वो अम्मी के गले लग कर बिलखने लगी। नईमा भी जैसे उसे भींच कर सीने में छुपा लेना चाहती थी। जिससे कोई उसे अलग ना कर सके। पर ये कहां संभव था। नाज़ तो अब पराई हो चुकी थी। कोई भी ताकत अब उसे अलग होने से नही रोक सकती थी।

घर की बड़ी बूढियों ने समझा बुझा कर, समाज की रीति बता कर कि हर मां को अपनी बेटी को विदा करना ही होता है, किसी तरह नईमा और नाज़ को शांत किया।

फिर रूखसती के लिए आरिफ को अंदर लाया गया। फिर उसके साथ नाज़ को विदा कर दिया गया।

रोती बिलखती नाज़ एक नए जीवन की शुरुआत करने के लिए, नये घर के लिए चल पड़ी।

कैसा रहा नाज़ के नए सफर का आगाज़..? आरिफ के घर उसका स्वागत किस तरह हुआ…..? क्या आरिफ नाज़ की मदद करेगा इस नए घर में घुलने मिलने में…? जानने के लिए पढ़े ’कटास राज द साइलेंट विटनेस’ का अगला भाग।