Kataasraj.. The Silent Witness - 20 books and stories free download online pdf in Hindi

कटासराज... द साइलेंट विटनेस - 20

भाग 20

पुरवा ने नाज़ के ससुराल वलीमा की दावत में जाने के लिए मुंह फुला कर जैसे आंदोलन ही शुरू कर दिया। अब चाहे ये बुआ और उनके पति रहे या ना रहे उसे तो बस हर हाल में जाना ही था। चाहे कोई कुछ भी कहे… कुछ भी सोचे… उसे तो बस जाना ही था नाज़ से मिलने उसके ससुराल। साफ साफ उसने अम्मा बाऊ जी को बता दिया था।

परेशान उर्मिला नही सोच पा रही थी कि क्या करे..? फिर उसने और अशोक ने सोचा थोड़ी देर के लिए दावत के वक्त चले जायेंगे।

पर भगवान जैसे ऊपर बैठा उनकी सारी उनकी दुविधा सुन देख रहा था। उसने बिना कहे ही उनकी समस्या दूर कर दी। सरस्वती माता ने गुलाब बुआ और उनके पति की बुद्धि फेर दी। और उन्होंने ये निर्णय किया कि जब बात चीत हो गई है। रिश्ता पक्का हो गया है, तब फिर रुकने की क्या जरूरत है..? वापस घर चलते है। गुलाब बुआ रुकना चाहती थीं, बहुत दिन बाद आई है फिर जाने कब आना हो। अभी तो जी भर कर बातें भी नही कर पाई थीं अपनी माई से। पर जवाहर जी के आगे एक ना चली उनकी। काम में नुकसान का वास्ता दिया तो फिर गुलाब बुआ को लौटने के लिए राजी होना ही पड़ा।

ये संयोग ही था कि गुलाब बुआ कल सुबह की बस से महाराजगंज वापस लौट रही थीं। ये खबर सुन कर पुरवा की खुशी का ठिकाना नही था। उसे जैसे मुंह मांगी मुराद मिल गई थी। अब उर्मिला और अशोक को शमशाद के घर जाने में कोई परेशानी नही थी।

अब वो खूब पहले ही नाज़ के ससुराल चली जायेगी। जिससे ढेर सारी बातें कर सके।

उसने अपना नया वाला सलवार कमीज निकाला पहनने को। पर उर्मिला ने डांट कर उसे रखवा दिया। बोली,

"अब तू साड़ी पहनना सीख। हमारे यहां साड़ी ही पहनते हैं। तू कब तक नाज़ की नकल करेगी..! उसकी देखा देखी सलवार समीज पहनती रहेगी..?"

जो गुलाबी बनारसी साड़ी गुलाब बुआ ने उसे दी थी उसे निकाल कर दी पहनने को। पहले तो पुरवा ने ना नुकर

किया साड़ी पहने में।

उर्मिला ने उसे समझाया,

"अब अगले ही साल तेरी शादी हो जायेगी। फिर तू कैसे पहनेगी..? तेरे ससुराल में सब यही कहेंगे कि मां ने कुछ सिखाया ही नहीं। अब शादी से पहले अच्छी तरह साड़ी पहनना सीख ले।"

पुरवा तो बहुत कोशिश के बाद भी पहन नही पाई साड़ी। उल्टा-सीधा लपेट लिया। उर्मिला ने जब उसे देखा इस हाल में कि पल्ला दाएं की बजाय बाएं कंधे पर है। खूब हंसी वो पहले तो। फिर अच्छे से साड़ी पहनना सिखाया कि ऐसे पहनते हैं।

उर्मिला भी अपनी सहेली सलमा और नईमा के साथ कुछ खुशनुमा वक्त बिताना चाहती थी। घर गृहस्ती के झंझट को कुछ देर भुला कर बीता वक्त याद करना चाहती थी।

अशोक तो चाहता था कि शाम को उसके साथ ही चले। पर उर्मिला ने पुरवा के बहाने अपना भी काम कर लिया। वो अशोक से बोली,

"ऐसा करती हूं। मैं पुरवा को ले कर चली जाती हूं। सयानी लड़की को अकेले जैसे जाने दूं..? जमाना बहुत खराब है। आप शाम को आना। फिर वापस साथ में आ जाएंगे।"

पत्नी की बातों से अशोक भी सहमत हो गया।

उर्मिला पुरवा को ले कर शमशाद हुसैन के घर चल दी।

पुरवा बार बार साड़ी में उलझती हुई लदर फदर करती हुई चल रही थी।

बस बाग था, बाग के पार पोखरा.. फिर शमशाद का लीची का बाग था। फिर उसके बाद शमशाद की हवेली थी।

शमशाद मुख्य द्वार पर ही बैठा हुआ था। वो आने जाने वाले सभी मेहमानों का बड़ी ही खुश दिली स्वागत कर रहे थे। उनके साथ वाले सोफे पर साजिद मियां, बब्बन मियां और बाकी के खास मर्द मेहमान बैठे हुए थे।

उर्मिला को देखते ही बड़े प्यार से बोले,

"आइए आइए उर्मिला बहन। अशोक भाई नही आए…?"

शमशाद उर्मिला को फूफी ही बोलता था। भले ही वो उसकी खाला की सखी थीं। पर एक रिश्ता पड़ोसी का भी था। उस रिश्ते से वो फूफी ही लगती थी।

फिर पुरवा को साड़ी में देख हैरानी जताते हुए बोले,

"ये… ये.. अपनी पुरवा है ना..! आज कितनी अलग दिख रही है।"

फिर उसके सिर पर हाथ फेरते हुए बोले,

"सदा खुश रह मेरी पुरवा। कितनी जल्दी बड़ी हो गई।"

उर्मिला ने बताया कि अशोक कुछ काम कर रहे थे इसलिए थोड़ी देर में आएंगे।

शमशाद ने उन्हें नौकर से अंदर जनान खाने में ले जाने को बोला।

वहां उर्मिला सलमा और नईमा को देख खुश हो गई। वो दोनो उर्मिला का ही इंतजार कर रही थी। तीनो अब सबसे थोड़ा दूर बैठ कर आपस में बातें करने में व्यस्त हो गईं।

इधर पुरवा तो बस जाकर दुलहन बनी नाज़ के बगल में बैठ गई। लाल जोड़े और जड़ाऊ गहनों से लदी नाज़ की सुंदरता सब को आकर्षित कर रही थी। अपनी अजीज सहेली को देख नाज़ का चेहरा भी खिल उठा। उसके पास हजारों बातें थी पुरवा से सांझा करने के लिए। उसकी राय लेने के लिए। और पुरवा को भी बहुत कुछ जानना था।

कुछ देर बाद मेहमान आने का सिलसिला थम गया। जो आ चुके थे वो दुल्हन की मुंह दिखाई करके खाने पीने और परिचितों से बात चीत में व्यस्त हो गए। सब की जुबान पर एक ही बात थी कि शमशाद मियां ने भाई आरिफ के लिए दुल्हन खूब कस के छांटी है।

नईमा, सलमा और उर्मिला एक तरफ थोड़ा सा एकांत देख कर बैठ गई। फिर सिलसिला शुरू हुआ पुरानी बातों का। तीनो बीता समय याद कर खूब हंस रही थी। जिन कामों के लिए वो आज अपने अपने बच्चों को रोका टोका करती हैं। अपने समय में वे वही काम करने के लिए बेचैन रहती थी। खुद वो तीनो ही बिना डांट खाए घर का कोई भी काम हाथ नही लगाती थीं। और खाना पकाना तो सबसे उबाऊ काम लगता था। पर अब..! अब वही तीनो इन्ही कामों को करने के लिए बेटियों के पीछे पड़ी रहती थीं। नही करने पर चार बात सुनाती हुई कहती थी कि हम तो घर का सारा काम बिना कहे ही कर दिया करते थे। एक तुम हो कि सुनती ही नही हो। अपने इस झूठ पर तीनो ही मजे ले रही थीं।

उर्मिला और नईमा ने सलमा के शौहर साजिद भाई से भी मिलने की इच्छा जताई। पर वो बाहर मर्दों के बीच बैठे थे तो वहां से उठा कर आना ठीक नही था। इस लिए अभी मुलाकात संभव नहीं था।

क्या नईमा और उर्मिला कि मुलाकात सलमा के शौहर साजिद से हो पाई..? क्या अशोक शमशाद के घर वलीमे में आया…? जानने के लिए पढ़े अगला भाग।