Kataasraj.. The Silent Witness - 21 books and stories free download online pdf in Hindi

कटासराज... द साइलेंट विटनेस - 21

भाग 21

शाम को अशोक भी आया दावत में। शमशाद ने साजिद खालू का परिचय बब्बन और अशोक के करवाया। वो आपस में बाते करते हुए एक दूसरे के घर परिवार के बारे में जानकारी लेने लगे।

साजिद ये जान कर खुश हुआ कि वो उसकी पत्नी की सहेली के पति हैं। साजिद ने बताया कि सलमा अक्सर आप सब का जिक्र करती है। वो आप सब के बहुत करीब है।

तभी अशोक को कुछ याद आया। उसने साजिद से पूछा,

"साजिद भाई…! आप चकवाल से आए हो ना। आप वहीं रहते हो…?"

साजिद बोले,

"हां…! अशोक भाई हम वहीं रहते हैं।"

अशोक बोले,

"भाई ..! वही आपके आस पास ही शायद हमारे भोले बाबा का मंदिर है। बड़ा ही पवित्र स्थल है।"

साजिद बोले,

"हां..! अशोक भाई है। बड़ी मान्यता है उस मंदिर की। हमने भी सुना है।"

अशोक शिव जी का अनन्य भक्त था। वो ना जाने कितने शिव मंदिरों में दर्शन करने जा चुका था। पर उसकी आस्था पर अर्थ का अभाव भारी पड़ता था। दूर तो जा नही सकता था। पर आस पास के सारे धार्मिक स्थलों के दर्शन कर चुका था। बाबा बैजनाथ धाम, बाबा विश्वनाथ और नागेश्वर नाथ तो वो सावन में और शिवरात्रि में इनमे से एक जगह जरूर जाता था। पर कटास राज और वहां के कुंड दर्शन की महिमा ही निराली थी। पर क्या करे..? भाग्य बलवान होता है। अब जब भोले ने इतना दिया ही नहीं कि उनका दर्शन पूजन कर सके तो क्या कर सकता है..?

अशोक जिज्ञासा वश पूछ बैठा,

"आपके घर से कितनी दूर

"हां…! अशोक भाई..! हम लोग जहां रहते है चकवाल में वहां से करीब सत्रह अठारह कोस पड़ता होगा। पर हमारा सेंधा नमक का भी कारोबार है ना। इसलिए खुदाई का काम ठीक ठाक हो रहा है या नही इस लिए जाना पड़ता है।"

बात चीत में समय कैसे बीत किसी को पता नही चला। एहसास तब हुआ जब खाना खा पी कर लगभग सारे मेहमान जा चुके। हवेली लगभग खाली हो गई बाहर से आए हुए मेहमानों से।

अब अशोक भी थक चुका था। उसने शमशाद से कहा कि उर्मिला और पुरवा को बुला दे अब वापस जाना चाहिए। घर सुना पड़ा होगा।

शमशाद किसी नौकर को भेजने की बजाय खुद ही अंदर गया उर्मिला और पुरवा को बुलाने के लिए।

उर्मिला भी बस अब जाने को तैयार ही थी। बस इसी संदेश का इंतजार कर रही थी।

शमशाद नईमा और उर्मिला से मुखातिब हो कर बोला,

"मोहतरमाओं…. आप दोनो को ही आप दोनो के शौहर याद फरमा रहे है। बातें अगर खत्म ना हुई हो तो या तो आप रुक जाए और उनको वापस जाने या फिर कल फिर से तशरीफ लाए। बंदे को आपकी मेहमानवाजी में बहुत खुशी होगी।"

शमशाद के कहने के अंदाज से तीनों हंस पड़ी।

सलमा बनावटी गुस्सा दिखाते हुए बोली,

" देखा तुम दोनो…! कोई मौका नहीं छोड़ता ये हमको तंज करने का अब अभी।"

उर्मिला बोली,

"भाई देखो…! सब की दावत हो गई है। नाज़ के निकाह में तुम्हारे घर के भी खूब चक्कर मैं और ये लगा चुके हैं नईमा। और सलमा बी आपके घर का भी खूब दौरा हुआ है आरिफ के निकाह के रस्मों में। अब बस मेरे घर का दौरा बाकी है। माना मैं आप सब जैसी रईस नही हूं। ना ही आप सब जैसी दावत दे सकती हूं। पर गरीब की कुटिया में कुछ ना कुछ तो खाने को मिलेगा ही। इस लिए आप सब तोड़ा कष्ट उठाए और मेरे घर पर तशरीफ लाए।"

सलमा ने आगे बढ़ कर उर्मिला का हाथ थाम लिया और बड़े ही प्यार से बोली,

"उर्मिला..! आज ये कैसी बहकी-बहकी बातें कर रही है..? क्या तुमने भी एक दो घूंट नशा कर लिया है। ये अमीरी गरीबी .. कभी भी हमारे बीच इस तरह की बातें नही हुई फिर आज क्यों…? अरे..! ये धन दौलत आनी जानी चीज है। आज इसके पास कल उसके पास। इसका क्या काम दोस्ती में..? हम आयेंगे न तेरे घर। और घबरा मत। दोपहर और रात दोनो समय का खाना खा कर ही आयेंगे। खूब अच्छी-अच्छी चीजें बनाना। तेरे हाथ का स्वाद अब भी मुझे याद है। तुझे हैरान कर के ही छोड़ेंगे। क्यों नईमा..?"

नईमा अपने हाथ खड़े करते हुए बोली,

"ना बाबा.. मुझे इन सब में मत घसीटो। आप तो चली जाओगी चार दिन में। इसे सता के.. पर मुझे तो यहीं रहना है। अपनी इसी पगली सहेली के साथ। इसके बिना तो मेरा निबाह होने से रहा।"

सलमा फिर बोली,

"तो क्या तुम नहीं आओगी..उर्मिला के घर दावत में….?"

उर्मिला बोली,

"हम तो हमेशा मिलते-जुलते ही रहते हैं। आप चली जाना। मेरे घर में अभी कुछ मेहमान टिके हुए हैं।"

नईमा ने अपनी मजबूरी बताई।

पर सलमा आग्रह करते हुए बोली,

"नईमा…! ये क्या बात हुई….? तुम दोनो अकेले अकेले तो हमेशा ही मिलती हो। अब जब मैं आई हूं और कह रही हूं तो नखरे दिखा रही हो।"

फिर नईमा को कोई जवाब ना देते देख नाराजगी जाहिर करते हुए बोली,

"हां…! भाई अब मेरा कोई चाव तो है नही पहले के जैसे। तुम मेरे लिए क्यों आने लगी…? ठीक ही है। मेहमान के आगे मेरी क्या औकात है..? मैं तो इतनी दूर से इसी लालच में दौड़ी आई थी कि तुम दोनो के संग भी अच्छा समय गुजार लूंगी। पर तुम दोनो को तो वक्त ही नही है मेरे लिए। रहने दे उर्मिला तू भी। मैं भी कल भाई जान के साथ उनके घर चली जाती हूं।"

नईमा को अंदाजा नहीं था कि उसके उर्मिला के घर आने से मना कर देने से सलमा को बुरा लग जायेगा। वो सलमा के गले में हाथ डाल कर मनाते हुए बोली,

"आप क्या बात करती हैं सलमा आपा…! आपकी जगह कोई मेहमान नही ले सकता। वो तो मैंने ऐसे ही कह दिया था। आप को बुरा लग गया। हम भी बहुत बेताबी से आपके आने का इंतजार कर रहे थे। अब चाहे किसी को भी बुरा लगे। मैं आऊंगी उर्मिला के घर। आप बताइए कब आना है..?"

सलमा अपनी कामयाबी पर मुस्कुरा उठी। तीर सही निशाने पर लगा था। नईमा वैसे तो शायद नही आती। पर अब तो जरूर आएगी इसके ताने सुन कर।

सलमा बोली,

"अब भाई हम तो परसों जाएंगे उर्मिला के घर। ठीक है ना उर्मिला..?"

उर्मिला बोली,

"क्यों.??? कल ही आइए…।"

उर्मिला के घर जाने का कार्यक्रम कब का तय हुआ..? सलमा क्या कल ही जा पाई…? क्या नईमा जा पाई उर्मिला और सलमा से मिलने..? जानने के लिए पढ़ें अगला भाग।